इंडोनेशिया के एक कैफे में काम करने वाला कर्मचारी समुद्र के किनारे बिखरा कचरा उठाता है. स्पाइडर मैन की पोशाक में साफ सफाई का संदेश देने वाला एक व्यक्ति अपनी पहल से बहुत से अन्य लोगों को स्वच्छता के लिए प्रेरित कर रहा है.
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इंडोनेशिया के पारेपारे में कैफे में काम करने वाला एक कर्मचारी रूडी हार्टोनो अपने तटीय समुदाय को यह समझाने की कोशिश में है कि वे भी उसकी तरह तटों और सड़कों पर बिखरे कूड़े को उठाएं. 36 साल के हार्टोनो कहते हैं, "पहली बार मैंने यह काम बिना पोशाक पहने किया था और मैंने जो किया उसने जनता का ध्यान आकर्षित नहीं किया." अब स्पाइडर मैन की तरह की पोशाक पहन कर सफाई करने वाले हार्टोनो बताते हैं, "इस वेशभूषा के कारण मिली लोगों की प्रतिक्रिया अद्भुत है."
इंडोनेशिया के कई इलाकों में कचरे से निपटने के लिए संगठित सार्वजनिक सेवाओं की कमी है, खासतौर पर प्लास्टिक के कचरे से निपटने के लिए. अकसर प्लास्टिक के कचरे का आखिरी ठिकाना या तो कोई नदी या फिर समुद्र होता है. इंडोनेशिया दुनिया का चौथा सबसे ज्यादा आबादी वाला देश है. एक अध्ययन के मुताबिक इंडोनेशिया में हर साल करीब 32 लाख टन कचरा पैदा होता है जिसमें से आधा समुद्र में जा मिलता है.
हार्टोनो काम पर जाने से पहले स्पाइडर मैन बनकर कचरा उठाते हैं. उनकी वजह से देश का ध्यान कूड़े की समस्या पर गया है. उन्होंने अखबारों को इंटरव्यू दिया है और कई टीवी शो में स्पाइडर मैन के कॉस्ट्यूम में पहुंच कर अपने मकसद के बारे में बता चुके हैं. हार्टोनो ने बताया कि अपने भतीजे का मन बहलाने के लिए उन्होंने कभी स्पाइडर मैन की पोशाक खरीदी थी. लेकिन आगे चल कर उन्होंने इसी वेशभूषा के सहारे स्वच्छता का संदेश देना शुरू किया.
प्लास्टिक के दानव से जंग
लाखों टन प्लास्टिक दुनिया भर के सागरों में पहुंच कर उनसे जीवन छीन रहा है. आइए देखें कि प्लास्टिक प्रदूषण रूपी दैत्य से लड़ने के लिए दुनिया भर में क्या तरीके सोचे जा रहे हैं.
तस्वीर: DW/D. Tosidis
टनों कूड़ा
कम से कम 80 लाख टन प्लास्टिक हर साल सागरों में जाकर मिल रहा है. एलन मैकआर्थर फाउंडेशन की रिपोर्ट के अनुसार अगर तुरंत कुछ नहीं किया गया तो साल 2050 तक सागर में मछलियों से ज्यादा प्लास्टिक होगा. देखिए प्रशांत महासागर में मिडवे द्वीप के बीच का दृश्य.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/R.Olenick
प्लास्टिक की लत
पानी पर तैरता प्लास्टिक ना केवल दिखने में बुरा लगता है बल्कि बहुत छोटे छोटे टुकड़ों में टूट जाता है, जिसे समुद्री जीव भोजन समझकर खा लेते हैं. उपसाला विश्वविद्यालय की एक स्टडी दिखाती है कि प्लास्टिक खाने से मछलियों की वृद्धि अवरूद्ध होती है और वे जल्दी मरने लगती हैं. वहीं कुछ मछलियों को इन्हें खाने की लत लग जाती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/R.Olenick
खाने योग्य विकल्प
ओशन कंजर्वेन्सी के अनुसार समुद्री जीवों की तकरीबन 690 प्रजातियां प्लास्टिक प्रदूषण से प्रभावित हुई हैं. फ्लोरिडा में डेलरे बीच क्राफ्ट ब्रूअरी ने खाने लायक छह छल्ले बनाए हैं, जो गेहूं और जौ से बनते हैं. यह बीयर कैन्स के ऊपर लगने वाले प्लास्टिक के रिंग की जगह ले सकता है और इससे समुद्री जीव खा भी सकते हैं.
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बायोडिग्रेडेबल पैकेजिंग
एक बार इस्तेमाल में आने वाली प्लास्टिक पैकिंग के बजाए कई कंपनियां बायोडिग्रेडेबल विकल्पों के बारे में सोच रही हैं. पोलैंड के एक प्लांट में गेहूं के ब्रैन से बायोट्रेम पैकेजिंग विकसित करने का आइडिया जेर्सी विसोकी का है. इस पैकेट को ओवन या फ्रिज में भी रखा जा सकता है. यह 30 दिनों में अपने आप विघटित हो जाएगी या इसे खाया भी जा सकता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Reszko
प्लास्टिक की जगह बैंबू
तेजी से बढ़ने वाले बांस के पौधे से टूथब्रश से लेकर बाथरूम के पर्दे, बर्तन यहां तक कि कंप्यूटर के पार्ट्स भी बनाए जा सकते हैं. तस्वीर में देखिए कि टोंगू जियांगकियो बैंबू ऐंड वुड इंडस्ट्री कंपनी ने कैसे कीबोर्ड, माउस और मॉनिटर का निर्माण कर रही है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Z.Haibin
सागरों की छनाई
एक डच फाउंडेशन ओशन क्लीनअप का मकसद है कि वह 100 किलोमीटर लंबे तैरने वाले बांध से कचरे को छान सके और इससे पानी में रहने वाली मछलियों पर असर ना पड़े. इस तरह का एक सिस्टम प्रशांत महासागर में लगाने का काम 2020 तक पूरा करने का लक्ष्य है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/E.Zwart
कूड़े से फैशन
ऐसे कुछ प्लास्टिक को रिसाइकिल कर दूसरे रूपों में इस्तेमाल किया जाना चाहिए. जैसे कि एक स्पैनिश कंपनी इकोआल्फ कर रही है. मैड्रिड स्थित यह कंपनी प्लास्टिक कचरे से कपड़े बना रही है. मछुआरों ने पानी से कचरा इकट्ठा किया, इसे प्लेक्स के रूप में पीसा गया, फिर इनसे पॉलिएस्टर फाइबर बनाकर फैशनेबल जैकेट, बैकपैक और दूसरी चीजें बनाई गईं.
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असली रूप में
2012 में संयुक्त राष्ट्र की एक कॉन्फ्रेंस के दौरान प्लास्टिक की बेकार बोतलों से बड़ी मछली बना दी गई थी. इसे रियो जडे जेनेरो में पानी के पास ही प्रदर्शित किया गया था.
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पारेपारे के स्थानीय निवासी सैफुल बाहरी कहते हैं, "हमें पर्यावरण की रक्षा में समाज की सक्रिय भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए रचनात्मक मॉडल की जरूरत है." इंडोनेशिया के पर्यावरण मंत्रालय के 2018 के आंकड़ों के मुताबिक, एक लाख चालीस हजार के करीब आबादी वाला पारेपारे रोजाना 27 लाख टन कूड़ा पैदा करता है. हार्टोनो को उम्मीद है कि सरकार उनके इस प्रयास पर अधिक बल देगी और सिंगल यूज प्लास्टिक के इस्तेमाल पर नियमों को सख्त करेगी. हार्टोनो कहते हैं, "प्लास्टिक कचरे को कम करना सबसे महत्वपूर्ण काम है क्योंकि प्लास्टिक का गलना बहुत कठिन है."
दूसरी ओर भारत में भी कचरे से निपटने के लिए सरकार और सार्वजनिक संस्थान लगातार प्रयास कर रही हैं. भारत सरकार ने पिछले साल ही एक बार इस्तेमाल के बाद फेंक दिए जाने वाले प्लास्टिक के इस्तेमाल को बंद करने के लिए 2022 का लक्ष्य तय किया है. सरकार चाहती है कि लोग प्लास्टिक के इस्तेमाल को कम करें और कपड़े के थैलों का अधिक से अधिक इस्तेमाल करें.
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के देश के 60 बड़े शहरों में किए गए सर्वे में सामने आया था कि शहरों से रोजाना 4,000 टन प्लास्टिक कचरा निकलता है. इस आधार पर अनुमान लगाया गया था कि देश भर से रोजाना 25,940 टन प्लास्टिक कचरा निकलता है. इसमें से सिर्फ 60 फीसदी यानी 15,384 टन प्लास्टिक कचरा ही इकट्ठा या रिसाइकिल किया जाता है, जबकि बाकी नदियों और नालों के जरिए समुद्र में जाकर मिल जाता है.
खत्म होने से पहले प्लास्टिक के थैले का इतिहास जान लीजिए
पिछली आधी सदी में मौटे तौर पर हर चीज की पैकिंग के लिए इस्तेमाल की जा रही प्लास्टिक सिर्फ सुविधा का ही नाम नहीं है. बहुत से लोगों को इसमें कला भी नजर आती है. प्लास्टिक पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने के लिए दबाव बढ़ रहा है.
तस्वीर: Imago Images/biky
सिरदर्द या कला?
लोग खरीदारी के लिए कपड़े या फिर दूसरे थैलों का इस्तेमाल करने लगे हैं. प्लास्टिक पर रोक लगाने के लिए दबाव बढ़ने के साथ ही कला की दुनिया के लोगों की इसमें दिलचस्पी बढ़ गई है. जर्मनी में वाल्डेनबुख के म्यूजियम ऑफ एवरीडे लाइफ ने प्लास्टिक थैलों के इतिहास और डिजाइन पर एक खास प्रदर्शनी लगाने का फैसला किया है.
तस्वीर: Landesmuseum Stuttgart
रंगों की बौछार
1950 के दशक तक लोग खरीदारी के लिए टोकरी ले कर जाते थे. 1960 के दशक में खरीदारी एक आराम से किया जाने वाला काम बन गया, पारंपरिक दुकानों की जगह शॉपिंग मॉल्स लेने लगे. इसका नतीजा यह हुआ कि 1965 आते आते प्लास्टिक बैग एक जरूरी चीज बन गए. ये सस्ते थे, रंगीन और आकर्षक भी, साथ ही भारी संख्या में आसानी से बनाए जा सकते थे. इतना ही नहीं, इनका एक बार के बाद भी इस्तेमाल हो सकता था.
तस्वीर: Landesmuseum Stuttgart/Hendrik Zwietasch
डिजाइनर बैग
कारोबारियों ने तुरंत ही यह महसूस कर लिया कि प्लास्टिक बैग उनके लिए विज्ञापन का एक बढ़िया जरिया हो सकता है. इसके बाद कई कंपनियां इनके डिजाइन पर थोड़ा पैसा खर्च करने के लिए तैयार हो गईं. यहां तक कि पॉप कलाकार एंडी वारहोल भी प्लास्टिक बैग के इस खेल में शामिल हो गईं. इस बीच जर्मनी के मशहूर ग्राफिक डिजाइनर गुंटर फ्रुहट्रंक इन प्लास्टिक थैलों का एक नया लुक ले कर आए जो जर्मन रिटेल चेन आल्डी के लिए था.
तस्वीर: Landesmuseum Stuttgart
छवि बनाते थैले
लुई वितां, फुर्ला एंड हर्मिज को भूल जाइए, 1970 और 80 के दशक में सबसे अच्छे बैग भी खरीदारी करने पर मुफ्त में मिलते थे. रोलिंग स्टोंस के कंसर्ट या फिर आपके पसंदीदा म्यूजिक स्टोर का प्लास्टिक बैग ले कर चलने का मतलब था कि आप अपनी एक अलग और विशिष्ट पहचान के साथ चल रही हैं. विज्ञापन एजेंसियों का यही मकसद भी था.
तस्वीर: Landesmuseum Stuttgart
संरक्षण का सवाल
क्यूरेटर फ्रांक लांग और उनकी टीम के लिए म्यूजियम ऑफ एवरीडे लाइफ की यह प्रदर्शनी एक मुश्किल काम था. प्लास्टिक बैग की क्वालिटी को सुरक्षित रखने का एक ही तरीका था कि उन्हें दूसरे थैलों से अलग रखा जाए. तभी इनको स्लाइडों के बीच दबा कर सपाट रखा जा सकता था. अगर ऐसा नहीं होता तो इनकी आकृति, रंग और डिजाइन के बिखरने का खतरा था. भले ही प्लास्टिक को अजर अमर माना जाता है लेकिन इनमें टूट फूट तो होती ही है.
तस्वीर: Landesmuseum Stuttgart/Heike Fauter
पोलीथीलिन, पोलीप्रोपीलिन, पोलिस्टीरिन
इस बीच प्लास्टिक के कई घटकों के कारण पैदा हुए पर्यावरण के लिए खतरे के कारण इस पर लगातार चर्चा होने लगी है. कई तरह के जीव प्लास्टिक के टुकड़ों की वजह से बीमार हो रहे हैं, जान गंवा रहे हैं. इनकी वजह से खाद्य श्रृंखला में शामिल हो रहा माइक्रोप्लास्टिक इंसानों तक पहुंच रहा है और इसके गंभीर परिणाम हो रहे हैं.
तस्वीर: Richard Carey
बीच का रास्ता
प्लास्टिक बैग का भविष्य 2011 में नजर आई लंदन की इस तस्वीर से बिल्कुल अलग होगा. पर्यावरणवादियों के दबाव के बाद इतना तो तय है कि पैकेजिंग उद्योग को उनकी कुछ मांगें माननी पड़ेंगी. राजनेता भी प्लास्टिक से दूर जाने का समर्थन कर रहे हैं. जर्मनी में 2020 तक प्लास्टिक थैलों पर प्रतिबंध लगने की उम्मीद है जबकि यूरोपीय संघ 2021 तक दूसरे तरह के प्लास्टिक पर भी रोक लगा सकता है.
तस्वीर: picture-alliance/empics/A. Devlin
गुड बाय कर दीजिए
प्रतिबंधों से दूर आपके पास प्लास्टिक बैग को गुडबाय कहने का अपना अलग तरीका भी हो सकता है. म्यूजियम ऑफ एवरीडेलाइफ में 1000 से ज्यादा प्लास्टिक के थैले लगाए गए हैं जिन्हें 50000 नमूनों में से चुना गया है. इस म्यूजियम में बार बार भी आया जा सकता है क्योंकि इस नुमाइश में हर महीने अलग अलग तरह के प्लास्टिक बैग दिखाए जाएंगे और यह सिलसिला जुलाई 2020 तक चलेगा.