जलवायु लक्ष्यों को पूरा कर लाखों जिंदगियां बचाई जा सकती हैं
२३ फ़रवरी २०२१
लांसेट प्लैनेटरी हेल्थ के शोध के मुताबिक पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते और बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के तहत निर्धारित जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के प्रयासों से नौ देशों में हर साल 1 करोड़ लोगों की जान बचाई जा सकती है.
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इस शोध के मुताबिक साल 2040 तक ब्राजील, चीन, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, नाइजीरिया, दक्षिण अफ्रीका, ब्रिटेन और अमेरिका में अकेले बेहतर आहार से 60.4 लाख लोगों की जान बचाई जा सकती है, स्वच्छ हवा से 10.6 लाख और नियमित शारीरिक गतिविधियों से अन्य 20 लाख लोगों की जान बचाई जा सकती है. इन देशों में दुनिया की कुल आबादी का आधे से भी बड़ा हिस्सा है और कुल वैश्विक उत्सर्जन में उनका हिस्सा 70 प्रतिशत के लगभग है. जीवाश्म ईंधन पर चलने वाले उद्योगों, परिवहन, कृषि और ताप प्रणाली से विषाक्त उत्सर्जन हवा को प्रदूषित करता है और ग्लोबल वॉर्मिंग में योगदान देता है.
स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन पर लांसेट काउंटडाउन के प्रमुख लेखक और कार्यकारी निदेशक इयान हैमिल्टन के मुताबिक, "रिपोर्ट जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए महत्वपूर्ण है. इससे न केवल हर साल लाखों लोगों को समय से पहले मरने से रोका जाएगा, बल्कि बेहतर स्वास्थ्य के माध्यम से लाखों लोगों के लिए जीवन की गुणवत्ता भी बेहतर होगी."
हालांकि, पेरिस जलवायु समझौते के तहत बड़ी संख्या में देशों ने 2 डिग्री सेल्सियस के भीतर वैश्विक तापमान वृद्धि को सीमित करने के लिए उत्सर्जन स्तर पर अंकुश लगाने का वादा किया है. लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित प्रतिबद्धता (एनडीसी) के तहत सरकारों द्वारा घोषित उत्सर्जन की वर्तमान दर पर दुनिया में 3 डिग्री सेल्सियस से अधिक के तापमान में वृद्धि देखी जा सकती है. अध्ययन के निष्कर्ष एक ऐसे महत्वपूर्ण क्षण में आए हैं जब 170 से अधिक देशों के नीति निर्माता इस साल नवंबर में वार्षिक जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के लिए ग्लासगो में मिलेंगे.
सरकारें पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते को पूरा करने के लिए अपने संशोधित एनडीसी को सौंपेगी. जलवायु समझौते में फिर से शामिल होने की अमेरिका की घोषणा और साल 2060 तक कार्बन तटस्थ बनने की चीन की प्रतिज्ञा के मद्देनजर इस साल की जलवायु वार्ता भी महत्वपूर्ण होगी. उन सभी देशों को ग्लासगो में आयोजित होने वाले संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन से पहले अपनी महत्वाकांक्षा के स्तर को बढ़ाने के लिए कहा जा रहा है. आने वाले महीने जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में महत्वपूर्ण रहेंगे. इतना ही नहीं, उनके पास वैश्विक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने का अवसर भी है.
एए/सीके (रॉयटर्स)
जलवायु परिवर्तन सूचकांक: किस देश का है कैसा प्रदर्शन
दुनिया का कोई भी देश अभी तक पेरिस समझौते के लक्ष्य हासिल नहीं कर सका है. यह कहना है जर्मनवॉच और न्यूक्लाइमेट इंस्टीट्यूट संगठनों का जो सभी देशों का क्लाइमेट चेंज परफॉरमेंस इंडेक्स पर आकलन करते हैं.
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भारत एक स्थान फिसला
2019 के मुकाबले भारत 2020 में एक स्थान फिसल गया. पिछले साल भारत नौवें स्थान पर था, लेकिन इस साल फिसल कर 10वें स्थान पर आ गया है. लेकिन भारत का प्रदर्शन अच्छा है और उसकी "हाई" रेटिंग बरकरार है.
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ऊपर के तीनों स्थान फिर खाली
2019 की ही तरह एक बार फिर इस साल भी ऊपर के तीनों स्थान खाली रखे गए हैं, क्योंकि सूचकांक के मुताबिक दुनिया के किसी भी देश के जलवायु को बचाने के प्रयास पर्याप्त नहीं हैं. ऐसा कहना है 100 से भी ज्यादा विशेषज्ञों का जो 90 प्रतिशत वैश्विक सीओटू उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार 58 देशों के प्रदर्शन का आकलन करते हैं.
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स्वीडन है आदर्श
स्वीडन को लगातार चौथे साल आदर्श देश माना गया है. वहां अभी भी इतनी तरक्की नहीं हुई है कि उसे ऊपर के तीन स्थानों में से एक में जगह मिल पाती, लेकिन उसने सीओटू उत्सर्जन, अक्षय ऊर्जा और जलवायु नीति में ऊंचे मानक स्थापित किए हैं. देश में अब कोयले से चलने वाला एक भी बिजली संयंत्र नहीं है और वहां लगभग 139 डॉलर प्रति टन का सीओटू टैक्स लागू है. बस वहां प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत अभी भी बहुत ज्यादा है.
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कैसे मिलते हैं अंक
सूचकांक में अंक कई बिंदुओं पर दिए जाते हैं, जिनमें प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत, उसे कम करने की रणनीति, देश की ऊर्जा आपूर्ति में अक्षय स्त्रोतों का प्रतिशत और जलवायु संधि को देश-विदेश में लागू करवाने के लिए देश के नीति-निर्धारकों के कदम शामिल हैं.
स्वीडन के बाद नंबर है यूके, डेनमार्क, मोरक्को, नॉर्वे, चिली और भारत का. इन सभी देशों को "हाई" रेटिंग मिली है. फिनलैंड, माल्टा, लात्विया, स्विट्जरलैंड और पुर्तगाल को भी यही रेटिंग मिली है.
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यूरोपीय संघ का अच्छा प्रदर्शन
ईयू छह स्थान ऊपर उछल कर 16वें स्थान पर आ गया है और "गुड" या अच्छी रेटिंग हासिल की है. इस रेटिंग के साथ संघ बाकी दो बड़े उत्सर्जकों अमेरिका और चीन से आगे बढ़ गया है.
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अमेरिका सबसे पीछे
पिछले साल की ही तरह अमेरिका इस साल भी सूचकांक में सबसे पीछे 61वें स्थान पर है. चीन 33वें स्थान पर है, यानी सूचकांक के लगभग मध्य में. सऊदी अरब (60) और ईरान (59) भी सबसे पीछे की ही तरफ हैं.