भारत में एक स्टडी मुताबिक दाऊदी बोहरा समुदाय की लगभग तीन चौथाई महिलाओं को खतने जैसी क्रूर धार्मिक परंपरा से गुजरना होता है. हाल में सरकार ने कहा था कि उसके पास इस मामले से जुड़ा कोई सरकारी आंकड़ा नहीं है.
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इस सर्वे के सामने आने के बाद अब सामाजिक कार्यकर्ताओं को उम्मीद है कि इस दिशा में कानून बनाने के लिए काम होगा. कार्यकर्ताओं के मुताबिक खतना जैसी प्रक्रिया महिलाओं को शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक नुकसान पहुंचाती है. दाऊदी बोहरा समुदाय, शिया मुसलमान होते हैं. दुनिया में इनकी संख्या तकरीबन 20 लाख है. यह समुदाय इसे एक धार्मिक परंपरा मानता है लेकिन इसका जिक्र कुरान में नहीं मिलता. इसके तहत बच्ची जब सात साल या इसके आसपास की उम्र की होती है तो उसकी योनि को खतने के नाम पर काट दिया जाता है. जिसे खफ्द भी कहा जाता है.
सर्वे में शामिल एक मां ने कहा कि उन्हें डर है कि खतने में उनकी बेटी का बहुत खून बहेगा. हर तीसरी महिला कहती है कि इस प्रक्रिया के चलते उसकी सेक्स लाइफ पर भी असर पड़ा है. वहीं कुछ मानसिक आघात की चर्चा करती हैं. इस स्टडी में शामिल कैंपेन समूह "वी स्पीक आउट" की संस्थापक मासूमा रानालवी के मुताबिक महिलाओं के अनुभव दिल दहला देने वाले हैं. रानालवी कहती हैं कि यह रिपोर्ट न सिर्फ ये बताती है कि खतने जैसी परंपरा भारत में अब भी जारी है बल्कि इससे यह भी पता चलता है कि यह कितनी भयावह है.
महिला खतने के डरावने सच
महिला खतना मुस्लिम बहुल देशों की एक खतरनाक और दर्दनाक सच्चाई है. इंडोनेशिया दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा मुल्क है जहां खतना प्रचलित है. वहीं से कुछ भयावह सच्चाइयां...
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कहां-कहां
दुनियाभर में हर साल करीब 20 करोड़ बच्चियों या लड़कियों का खतना होता है. इनमें से आधे से ज्यादा सिर्फ तीन देशों में हैं, मिस्र, इथियोपिया और इंडोनेशिया.
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बच्चियां सबसे ज्यादा
यूनिसेफ के आंकड़े कहते हैं कि जिन 20 करोड़ लड़कियों का खतना होता है उनमें से करीब साढ़े चार करोड़ बच्चियां 14 साल से कम उम्र की होती हैं और इन तीन देशों से आती हैं: गांबिया, मॉरितानिया और इंडोनेशिया. इंडोनेशिया की आधी से ज्यादा बच्चियों का खतना हुआ है.
क्यों होता है खतना?
खतना कराने की वजहों में परंपरा सबसे ऊपर है. उसके बाद धर्म, फिर साफ-सफाई और बीमारी से बचने आदि के नाम पर भी लड़कियों का खतना किया जाता है. लेकिन कुछ लोग ऐसे भी तर्क देते हैं कि युवा होने पर लड़कियों की सेक्स की इच्छा कम करने के मकसद से भी ऐसा किया जाता है.
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क्या फायदा है?
इंडोनेशिया की यारसी यूनिवर्सिटी की डॉ. आर्था बदुी सुशीला दुआरसा कहती हैं कि महिला खतने का कोई फायदा नहीं है. बल्कि इसके उलट इसके बहुत नुकसान हैं जिनमें मौत भी एक है.
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मौत भी हो सकती है
महिला खतने से कई तरह की मानसिक और शारीरिक दिक्कतें हो सकती हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन कहता है कि कुछ मामलों में तो मौत तक हो सकती है. खतने के दौरान या उसके बाद अत्याधिक खून बहने से या बैक्टीरियल इन्फेक्शन से मौत हो सकती है.
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कैसे-कैसे खतने
संयुक्त राष्ट्र की संस्था विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक महिला खतना चार तरह का हो सकता है. पूरी क्लिटोरिस को काट देना, कुछ हिस्से काटना, योनी की सिलाई और छेदना या बींधना.
यौन हिंसा का एक प्रकार
महिला कार्यकर्ता मानती हैं कि महिलाओं का खतना एक तरह की यौन हिंसा है जिसमें पीड़ित को मानसिक और शारीरिक दोनों तरह के तनाव से गुजरना पड़ता है. कई संस्थाएं इसे महिलाओं के खिलाफ हिंसा में जोड़ चुकी हैं.
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एक साल के अध्ययन के बाद तैयार की गई रिपोर्ट को "इंटरनेशनल डे ऑफ जीरो टॉलरेंस फॉर एफजीएम" के मौके पर जारी किया गया. रिपोर्ट में इस प्रक्रिया के विरोधी और समर्थक दोनों ही पक्षों की राय को शामिल करते हुए कुल मिलाकर 94 साक्षात्कार लिए गए. भारत का सर्वोच्च न्यायालय खतने की प्रक्रिया पर रोक से जुड़ी याचिका पर विचार कर रहा है. लेकिन इस मामले में आवाज उठा रहे कार्यकर्ता पिछले साल दिसंबर में उस वक्त हैरान रह गए जब महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने कहा कि इस मसले पर सरकार के पास कोई सरकारी आंकड़ा नहीं है.
यह क्रूर धार्मिक परंपरा अफ्रीकी देशों के भी कुछ समुदाय में देखने को मिलती है. लेकिन इसके समर्थक इसे खतना नहीं कहते. हालांकि संयुक्त राष्ट्र खतने की इस प्रक्रिया को लड़कियों के अधिकारों का हनन मानता है. रानाल्वी कहती हैं कि ऐसा माना जाता था कि खफ्द और खतना इसलिए जरूरी है ताकि महिलाओं की यौन इच्छा को रोका जा सके. लेकिन अब इसने खराब रूप ले लिया है और अब बहुत सी महिलाएं डर के मारे कुछ नहीं बोलती.
साल 2015 में खतने जैसा मामला उस वक्त चर्चा में आया जब ऑस्ट्रेलिया में दाऊदी बोहरा समुदाय के तीन लोगों को खफ्द के मामले में दोषी ठहराया गया. अमेरिका में रहने वाले बोहरा समुदाय पर भी इसी तरह के आरोप लगते रहे हैं.
एए/एमजे (रॉयटर्स)
जननांगों की विकृति की परंपरा
आधिकारिक रूप से लगी रोक के बावजूद कई अफ्रीकी देशों में महिलाओं के जननांगों को विकृत किया जाना बंद नहीं हुआ है. घुमक्कड़ जीवन जीने वाले केन्या के पोकोट कबीले में लड़कियों को आज भी ये दर्दनाक रस्म सहनी पड़ती है.
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सबके लिए एक ही ब्लेड
केन्या की रिफ्ट घाटी में यह महिला अब तक चार लड़कियों का खतना कर चुकी है, वो भी एक ही रेजर से. पोकोट लोगों की मान्यता है कि खतने किसी लड़की के महिला बनने की प्रक्रिया का प्रतीक है. कई देशों में इस पर पाबंदी लगी होने के बावजूद आज भी कुछ ग्रामीण इलाकों में चलन जारी है.
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'समारोह' की तैयारी
खतने की रस्म वाली एक ठंडी सुबह को पोकोट महिलाएं और बच्चे आग के आस-पास इकट्ठे होकर गर्म होते हैं. जिन महिलाओं का खतना ना हो उनकी शादी होना मुश्किल हो जाता है. अगर कोई खतने के लिए मना करे तो उस पर भारी दबाव डाला जाता है और कई बार समुदाय से बाहर भी निकाल दिया जाता है.
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विरोध है नामुमकिन
खतने से पहले लड़कियों के कपड़े उतरवाए जाते हैं और उन्हें नहलाया जाता है. सबको पता होता है कि इस रस्म के बाद वे कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित रहेंगी. जैसे उनकी मांएं पूरे जीवन सिस्ट, संक्रमण और बच्चे को जन्म देने से जुड़ी तकलीफें झेलती रही हैं. खतने की परंपरा 28 अफ्रीकी देशों में जारी है. यूरोप में रह रहे इन इलाकों के आप्रवासियों में भी ये किया जाता है.
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डरावना इंतजार
पोकोट समुदाय की लड़कियां रिफ्ट वैली के बारिंगो काउंटी की झोपड़ी में बैठी उस दर्दनाक घड़ी के पल गिनती हैं. केन्या में इसे 2011 में बैन कर दिया गया था. यूनीसेफ बताता है कि देश की 15 से 49 साल के बीच की उम्र वाली करीब 27 फीसदी महिलाओं का खतना हो चुका है. आमतौर पर खतना बेहोशी की दवा दिए बिना ही किया जाता है. साफ औजारों का इस्तेमाल ना होने के कारण महिलाएं जीवन भर कई तरह के संक्रमण झेलती हैं.
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सूक्ष्म पर्यवेक्षण
लड़कियों को बिना चीखे चिल्लाए उनके जननांगों को विकृत किए जाने का दर्द सहना होता है. डब्ल्यूएचओ के अनुसार, इस प्रक्रिया के दौरान करीब 10 फीसदी लड़कियां तुरंत दम तोड़ देती हैं, जबकि दूसरी 25 फीसदी इससे पैदा हुई तकलीफों के कारण कुछ समय बाद मारी जाती है. मौत के असली आंकड़े इससे कहीं ज्यादा होने का अनुमान है.
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पत्थर पर खून
अलग अलग कबीलों में खतने के तरीकों में अंतर है. पोकोट समुदाय में योनि का मुंह सिल दिया जाता है. डब्ल्यूएचओ ने तीन तरह के तरीकों का उल्लेख किया है. पहले में क्लिटोरिस को निकाल दिया जाता है, दूसरे में लेबिया माइनोरा को भी काट देते हैं और तीसरे तरीके में लेबिया मेजोरा को भी निकाल दिया जाता है और केवल एक छेद छोड़कर बाकी घाव को सिल देते हैं.
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सफेद रंग की पुताई
पोकोट परंपरा में लड़की का शरीर सफेद रंग से रंगा जाता है. ये पहले से ही मान के चलते हैं कि इस प्रक्रिया के कारण लड़की की मौत होने की काफी संभावना है. कई देशों में इस बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं. 2014 में केन्या में एक स्पेशल पुलिस टुकड़ी बनाई गई और इन मामलों की रिपोर्ट देने के लिए हॉटलाइन भी बनी है.
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जीवन भर का सदमा
इस दर्दनाक प्रक्रिया के बाद सदमे से ग्रस्त लड़की को ले जाकर जानवर की खाल में लपेटा जाता है. पोकोट अब इस लड़की को शादी के लायक मानते हैं. ऐसी लड़की के मां बाप उसकी शादी के लिए ऊंची कीमत मांग सकते हैं. इनका मानना है कि इससे महिला ज्यादा साफ, ज्यादा बच्चे पैदा करने लायक और पति के लिए ज्यादा वफादार हो जाती है.
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मां से बेटी को?
कोई लड़की कभी वह दर्दनाक अनुभव नहीं भूल सकती. ये छोटी सी लड़की जो खुद खतने को मजबूर थी क्या अपनी बेटी को बचा पाएगी? कुछ देशों में बहुत छोटे बच्चों का खतना किया जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि कई जगहों पर इसे गैरकानूनी घोषित कर दिया गया है और जब एक छोटा बच्चा रोता है तो वह कम ध्यान खींचता है.