सदी के अंत तक यूरोप में गर्मी से मौतें तीन गुना बढ़ सकती हैं
२३ अगस्त २०२४
इंसानी बसाहट वाली जगहों में यूरोप पृथ्वी का सबसे ठंडा महादेश है. बढ़ते तापमान के कारण यहां गर्मी से होने वाली मौतों में बड़ा इजाफा हो सकता है. सदी के आखिर तक गर्मी से होने वाली मौतों की संख्या तीन गुना तक बढ़ सकती है.
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प्रकृति और पर्यावरण में तेजी से हो रहे बदलावों के बीच यूरोप में बेतहाशा बढ़ रही गर्मी के कारण होने वाली मौतों की संख्या बढ़ रही है. इस सदी के आखिर तक इसमें तीन गुना तक इजाफा हो सकता है. इटली और स्पेन जैसे दक्षिण यूरोप के इलाके ज्यादा खतरे में होंगे और यहां ज्यादा मौतें हो सकती हैं.
'लांसेट पब्लिक हेल्थ' पत्रिका में छपे एक नए शोध से भविष्य की यह तस्वीर सामने आई है. शोधकर्ताओं ने पाया कि अगर दुनिया के गर्म होने की रफ्तार बढ़कर तीन या चार डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गई, तो गर्मी से होने वाली मौतें भी विकराल हो जाएंगी.
क्या बताते हैं मौजूदा अनुमान
रिसर्चरों ने इस स्टडी में जिन परिस्थितियों को रेखांकित किया, वे ग्लोबल वॉर्मिंग में तीन डिग्री सेल्सियस के इजाफे पर अनुमानित हैं. नवंबर 2023 में आई संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट बताती है कि मौजूदा नीतियों के हिसाब से चलते रहे, तो ग्लोबल वॉर्मिंग को इस सदी में 3 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने पर सीमित किया जा सकता है.
साल 2100 के बाद तापमान और बढ़ने की उम्मीद है क्योंकि अब भी कार्बन उत्सर्जन के नेट-जीरो स्तर तक पहुंचने की उम्मीद नहीं है. बहुत आशावादी भी हो लें, तब भी पेरिस जलवायु समझौते में तय हुए डेढ़ डिग्री के लक्ष्य को हासिल करने की संभावना केवल 14 फीसदी ही है.
सर्दियों में भी भीषण सूखे की चपेट में है भूमध्य क्षेत्र
दक्षिणी यूरोप और उत्तरी अफ्रीका सर्दी के मौसम में भी भयानक सूखे का सामना कर रहे हैं. वसंत में हालात और बदतर हो सकते हैं.
तस्वीर: PAU BARRENA/AFP/Getty Images
पेड़ पर ही सूख रहे हैं फल
इस साल सिसली में पैदा हुए संतरे सामान्य आकार से बहुत छोटे हैं. वो भी तब, अगर संतरे पकने से पहले ही पेड़ पर ना सूख जाएं. इसकी वजह है, पानी की कमी. फरवरी की शुरुआत में ही प्रशासन ने सूखे की आपात स्थिति और "प्राकृतिक आपदा" का एलान कर दिया था.
तस्वीर: ALBERTO PIZZOLI/AFP
सर्दियों में बारिश ही नहीं हुई
ऐसा नहीं कि बस यूरोप में ये हालत हो. यह तस्वीर मोरक्को की है, जहां पानी की कमी के कारण मिट्टी में दरार पड़ गई है. यूरोपियन अर्थ ऑब्जर्वेशन प्रोग्राम कोपरनिकस के आंकड़े बताते हैं कि यूरोप और उत्तरी अफ्रीका का एक चौथाई हिस्सा सूखे का सामना कर रहा है. 2023 की पड़ी भीषण गर्मी के बाद सर्दियों में भी बहुत कम बारिश हुई. इसके कारण भूमध्यसागर के बड़े हिस्से में सूखे की स्थिति बनी हुई है.
तस्वीर: FADEL SENNA/AFP/Getty Images
ज्यादा हरियाली नहीं बची
यह तस्वीर सिसली की है, जहां एक गाय हरी घास तलाश रही है. किसान समझ नहीं पा रहे कि मवेशियों का चारा कैसे जुटाएं. 2023 के वसंत में यहां तूफान आया, जिसमें घास-फूस और चारे की पैदावार तबाह हो गई. तब से बारिश ना के बराबर हुई है. इंसानी गतिविधियों से गंभीर हुई जलवायु परिवर्तन की स्थिति ने लू, सूखा और अप्रत्याशित बारिश की निरंतरता बढ़ाई है.
तस्वीर: ALBERTO PIZZOLI/AFP/Getty Images
भीषण सूखा, खेती कैसे करेंगे
मोरक्को का बेर्रेचिद इलाका खेती के लिहाज से बेहद अहम है. यहां एक किसान आलू के खेत में सिंचाई के लिए पाइप बिछा रहा है. मोरक्को के अलावा दक्षिणी इटली, स्पेन, अल्जीरिया और ट्यूनीशिया में भी सूखे की भीषण स्थिति है. हालांकि, पिछले साल हालात और भी खराब थे. 2023 में मेडीटरेनियन में 31 फीसदी से ज्यादा इलाका सूखे की चपेट में था.
तस्वीर: FADEL SENNA/AFP/Getty Images
हरियाली की जगह भूरा रंग बिखरा है
अंतरिक्ष से ली गई यह तस्वीर देखिए. आमतौर पर कसाब्लांका के आसपास का यह इलाका बारिश के मौसम में हरा-भरा होना चाहिए, ना कि ऐसा सूखा और भूरा. औसत से अधिक तापमान के कारण सूखे की स्थिति विकराल हो गई है. अभी फरवरी में यहां तापमान बढ़कर 37 डिग्री सेल्सियस पर पहुंच गया. मोरक्को लगातार छह साल से सूखे का सामना कर रहा है.
तस्वीर: NASA Earth/Zumapress/picture alliance
घटती पैदावार, जो भी हाथ लगे बहुत है
पड़ोसी देश ट्यूनीशिया में भी कमोबेश ऐसी ही हालत है. यह तस्वीर नवंबर 2023 की है. एक किसान पेड़ से गिने-चुने जैतून तोड़ रही हैं. यहां जैतून सबसे अहम फसलों में से एक है, लेकिन इसकी पैदावार 30 फीसदी तक गिर गई है. इसके लिए सूखा और प्रचंड गर्मी भी जिम्मेदार हैं. कोपरनिकस के अनुसार, पिछली जनवरी रिकॉर्ड स्तर पर गर्म थी.
तस्वीर: Yassine Gaidi/Andalou/picture alliance
सर्दियों में गर्मियों का एहसास
सर्दियों में धूप सेंकना? गुनगुनी धूप नहीं, तेज गर्मी. 2024 में स्पेन ने अपने इतिहास की सबसे गर्म जनवरी का सामना किया. मालागा समेत कई इलाकों में तापमान करीब 30 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया. आमतौर पर जून से इतनी गर्मी पड़नी शुरू होती है. अंदलूसिया में कई साल से सूखा पड़ रहा है. इतनी गर्म सर्दी के कारण सूखा और बदतर हो गया है.
तस्वीर: Europa Press/abaca/picture alliance
गुम हो गया है पानी
उत्तरी स्पेन भी पानी की कमी से जूझ रहा है. कैटेलोनिया के इस विलानोवा डी साउ जलाशय में पानी की कमी के कारण कई नावें फंसी हैं. यह बार्सिलोना को पानी की आपूर्ति करने वाले सबसे अहम जलाशयों में है. तीन साल से पड़ रहे सूखे के कारण इसमें पानी चार फीसदी से नीचे चला गया है, जो अब तक का सबसे निचला स्तर है. कैटेलोनिया में आपातकालीन स्थिति की घोषणा कर दी गई है और पानी की खपत सीमित कर दी गई है.
तस्वीर: PAU BARRENA/AFP/Getty Images
पानी का नामो-निशां नहीं
यह फरवरी के शुरुआती दिनों की तस्वीर है. फ्रांस में एगली नदी तकरीबन पूरी तरह सूखी नजर आ रही है. हालात बेहतर होने की संभावना बहुत कम है. कोपरनिकस ने इस साल वसंत में भूमध्य क्षेत्र में औसत से अधिक तापमान की भविष्यवाणी की है. आशंका है कि इसके कारण पहाड़ों पर कम बर्फ गिरेगी. इस बर्फ के पिघलने से पानी की जो खुराक मिलती है, वो नदियों के लिए बेहद अहम है.
तस्वीर: Hans Lucas/AFP/Getty Images
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अभी यूरोप की क्या हालत है
पिछले साल यूरोप में गर्मी के कारण 47,000 से ज्यादा मौतें हुईं. सबसे ज्यादा असर दक्षिणी यूरोप के देशों पर रहा. ग्रीस, इटली, स्पेन और बुल्गारिया में ऐसी मौतें सबसे ज्यादा दर्ज की गईं. यह जानकारी बार्सिलोना इंस्टिट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ (आईएसग्लोबल) ने जारी की है.
2023 वैज्ञानिकों की जानकारी में दुनिया का अब तक का सबसे गर्म साल रहा. अगर बीते दो दशकों में लोगों को बढ़ते तापमान के प्रति ज्यादा अनुकूल बनाने की कोशिशें ना की गई होतीं, तो मौतों की संख्या 80 फीसदी तक ज्यादा हो सकती थी.
जलवायु परिवर्तन के असर से यूं तो पृथ्वी का कोई कोना नहीं बचा है, लेकिन कुछ इलाके ज्यादा मुश्किल में हैं. ठंडा महादेश यूरोप सबसे तेजी से गर्म हो रहा है. यूरोप की जलवायु एजेंसी कोपरनिकस ने इसी साल अपनी रिपोर्ट में बताया कि यूरोप का तापमान, वैश्विक औसत की तुलना में करीब दोगुनी तेजी से बढ़ रहा है.
बीते पांच सालों का औसत तापमान दिखाता है कि औद्योगीकरण से पहले की तुलना में वैश्विक वृद्धि जहां 1.3 फीसदी ज्यादा है, वहीं यूरोप में यह इजाफा करीब 2.3 डिग्री अधिक है.
ठंड से भी मरते हैं लोग
अभी यूरोप में ठंड से ज्यादा लोग मरते हैं. लांसेट की स्टडी के मुताबिक, 1991 से 2020 के बीच समूचे यूरोप में सर्दी और गर्मी, दोनों से जुड़ी मौतों की सालाना संख्या 4,07, 538 पाई गई. इनमें 3,63, 809 मौतें ठंड के कारण हुईं. दक्षिणी यूरोप में जहां गर्मी से जुड़ी मृत्यु दर ज्यादा है, वहीं पूर्वी यूरोप में ठंड से होने वाली मौतें ज्यादा पाई गईं.
1991 से 2020 के बीच पश्चिमी यूरोप की तुलना में पूर्वी यूरोपीय इलाकों में ठंड से हुई मौतें ढाई गुना तक ज्यादा रहीं. वहीं, उत्तरी यूरोप की तुलना में यूरोप के दक्षिणी हिस्से में गर्मी के जुड़ी मौतें छह गुना तक ज्यादा हुईं.
स्टडी के मुताबिक, ऐसा नहीं है कि तापमान में हो रहे इजाफे के कारण ठंड से होने वाली मौतें रुक जाएंगी या कम हो जाएंगी. इसमें मामूली बदलाव का अनुमान है. हालांकि, तब गर्मी से होने वाली मौतों की संख्या कहीं ज्यादा होगी.
जलवायु परिवर्तन के साए में जिंदगी
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गर्मी कैसे मारती है
ज्यादा गर्मी एक चरम मौसमी स्थिति है. जब हमें गर्मी लगती है, तो हमारा शरीर अपना कुदरती एसी चलाकर, यानी पसीना बहाकर खुद को ठंडा करने की कोशिश करता है. इस सिस्टम की भी अपनी सीमा है.
अत्यधिक गर्मी हमारे शरीर पर कई तरह से असर करती है. पसीने के साथ शरीर से पानी और नमक भी बहता है. बहुत पसीना निकले, तो डिहाइड्रेशन हो सकता है. शरीर में खून की मात्रा कम हो सकता है और ऐसी स्थिति में ब्लड प्रेशर सामान्य नहीं रह जाएगा. इसके कारण किडनी काम करना बंद कर सकती हैं. रक्तचाप कम होने, धड़कन बढ़ने से दिल पर दबाव बढ़ सकता है और हार्ट अटैक आ सकता है.
बेहद गर्मी का सामना करने के लिए शरीर की अंदरूनी मशीनरी त्वचा में रक्त का बहाव बढ़ा देती है, ताकि उसे ठंडा कर सके. इसकी वजह से शरीर के दूसरे हिस्सों में खून और ऑक्सीजन की आपूर्ति घट सकती है. यह प्रक्रिया ऐसा चक्र शुरू कर सकती है, जिसमें कई अंग काम करना बंद कर सकते हैं.