मार्च के महीने में ही कई भारतीय शहरों में पारा 40 डिग्री के पार पहुंच गया है. भारतीय मौसम विभाग ने कई इलाकों के लिए गर्मी की लहरों की चेतावनी दी है.
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पिछले दिनों भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई समेत कई इलाकों के लिए मौसम विभाग ने चरम गर्मी की चेतावनी जारी की थी. मार्च के महीने के मौसम ने मुंबई को लोगों को चौंका दिया था. 15 मार्च के आसपास मुंबई और उसके नजदीक वाले इलाकों में पारा 40 डिग्री सेल्सियस को छूने वाला था. भीषण गर्मी को लेकर भारतीय मौसम विभाग ने लू (हीट वेव्स) की चेतावनी जारी की थी. बीएमसी ने भी लोगों से हर समय हाईडेट्रेड रहने को कहा था. लेकिन यह तो बस शुरूआत माना जा रहा है, दिन बीतने के साथ मौसम अपना और कड़ा तेवर दिखाएगा.
शहरों में गर्मी के कवच छोटे जंगल
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दिल्ली में भीषण लू की चेतावनी
मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने सोमवार को भारत के कई हिस्सों में पहले से चल रही गर्मी से राहत के बिना गर्म दिनों की भविष्यवाणी की है. मौसम विभाग ने जानकारी दी है कि हरियाणा और उत्तर प्रदेश के दक्षिणी क्षेत्र, बिहार, झारखंड, ओडिशा, गैंगटिक पश्चिम बंगाल, पूर्वी मध्य प्रदेश के उत्तरी भाग, उत्तरी महाराष्ट्र और मराठवाड़ा में 30 मार्च से 1 अप्रैल तक तेज गर्म हवाएं चलेंगी.
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वहीं मौसम विभाग ने बताया कि जम्मू डिविजन, हिमाचल प्रदेश, सौराष्ट्र-कच्छ में अगले दो दिनों तक लू के थपेड़ों की स्थिति बनी रहेगी. पश्चिमी मध्य प्रदेश, विदर्भ और राजस्थान में जनता को अगले पांच दिनों तक गर्म हवाओं से राहत नहीं मिलने की उम्मीद है.
मौसम विभाग ने राजधानी दिल्ली के लिए भी अलर्ट जारी किया है. मंगलवार और बुधवार के लिए मौसम विभाग ने भीषण लू की चेतावनी जारी की है. एक दिन पहले सोमवार को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के आठ मौसम केंद्रों पर अधिकतम तापमान 40 डिग्री सेल्सियस या इससे अधिक रहा. दिल्ली के नरेला में 42 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, जबकि पीतमपुरा में 41.1 डिग्री सेल्सियस, नजफगढ़ में 40.7 डिग्री सेल्सियस और हरियाणा के गुरुग्राम में 40.5 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया.
दिल्ली में 2021 में 29 मार्च को तापमान 40.1 डिग्री दर्ज हुआ था. यह 76 वर्षों के दौरान मार्च का सबसे गर्म दिन था. जबकि इससे पहले 31 मार्च 1945 को तापमान 40.6 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया था.
गर्मी के कारण होने वाली मौत के लिए जलवायु परिवर्तन भी जिम्मेदार
शोधकर्ताओं का कहना है कि एक तिहाई से अधिक गर्मी से संबंधित मौतें जलवायु परिवर्तन के कारण होती हैं. उन्होंने बढ़ते वैश्विक तापमान के कारण और अधिक मौतों की चेतावनी दी है. ताजा शोध नेचर क्लाइमेट चेंज में छपा है.
तस्वीर: Reuters/C. Allegri
तीन में से एक मौत के लिए जिम्मेदार
पू्र्व के शोधों में जलवायु परिवर्तन मानव स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित करता है इस पर ध्यान दिया गया था. गर्म हवा के थपेड़े, सूखा, जंगल की आग और जलवायु परिवर्तन से बदतर होने वाली अन्य चरम घटनाओं से भविष्य के जोखिमों का अनुमान लगाया जाता रहा है. नए शोध में कहा गया है कि मानव प्रेरित जलवायु परिवर्तन, पिछले तीन दशकों में गर्मी की वजह से होने वाली सभी मौतों में एक तिहाई से अधिक मामलों के लिए जिम्मेदार है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/HMB Media/O. Mueller
मानवजनित जलवायु परिवर्तन
70 विशेषज्ञों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम द्वारा किया गया यह अध्ययन स्वास्थ्य पर पहले ही पड़ चुके प्रभाव को जानने वाला पहला और सबसे बड़ा शोध है. नेचर क्लाइमेट पत्रिका में छपे शोध के मुताबिक गर्मी की वजह से होने वाली सभी मौतों के औसतन 37 प्रतिशत मौतों के लिए सीधे तौर पर जलवायु परिवर्तन जिम्मेदार है.
तस्वीर: Reuters/A. Hilse
732 स्थानों से जुटाए आंकड़े
शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन के लिए 43 देशों में 732 स्थानों से आंकड़े लिए हैं जो पहली बार गर्मी की वजह से मृत्यु के बढ़ते खतरे में मानवजनित जलवायु परिवर्तन के वास्तविक योगदान को दिखाता है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/M. Kulbis
जलवायु परिवर्तन और हम
शोध के वरिष्ठ लेखक अंटोनियो गसपर्रिनी कहते हैं, "जलवायु परिवर्तन दूर के भविष्य की चीज नहीं है." वे कहते हैं कि यह जलवायु परिवर्तन के कारण स्वास्थ्य खतरों को लेकर अब तक का सबसे बड़ा अध्ययन है. गसपर्रिनी कहते हैं, "हम पहले से ही स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभावों को माप सकते हैं."
तस्वीर: Reuters/M. Torokman
मानवजनित जलवायु के गंभीर परिणाम
लेखकों ने कहा कि उनके तरीके अगर दुनिया भर में विस्तारित किए जाते हैं तो हर साल एक लाख से अधिक गर्मी से संबंधित मौतें जुड़ जाएंगी. यह मौतें मानव प्रेरित जलवायु परिवर्तन के कारण होंगी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/S. Hoppe
दो अहम क्षेत्र के आंकड़े उपलब्ध नहीं
इस संख्या को कम करके आंका जा सकता है क्योंकि जिन दो क्षेत्रों के लिए डेटा काफी हद तक उपलब्ध नहीं था वह है दक्षिण एशिया और मध्य अफ्रीका. ये दोनों ऐसे क्षेत्र हैं जो विशेष रूप से अत्यधिक गर्मी से होने वाली मौतों के लिए संवेदनशील माने जाते हैं.
तस्वीर: picture alliance/AP/C. Anand
भविष्य की चिंता
अध्ययन की प्रथम लेखिका एना एम विसेडो-कैबेरा कहती हैं, "हमें आशंका है की अगर हमने जलवायु परिवर्तन के बारे में कुछ नहीं किया तो इससे मौत के प्रतिशत में और इजाफा होगा."
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/V. Mayo
स्थिति चिंताजनक
अगर 95 प्रतिशत आबादी के पास एयर कंडीशनिंग है, तो मृत्यु दर कम होगी. लेकिन अगर वह उनके पास नहीं है, या फिर किसान को 45 डिग्री सेल्सियस तापमान में अपने परिवार के भरण-पोषण करने के लिए बाहर काम करना पड़ता है, तो प्रभाव विनाशकारी हो सकते हैं. यहां तक कि धनी राष्ट्र भी असुरक्षित होते हैं. 2003 में, पश्चिमी यूरोप में एक निरंतर गर्मी ने 70,000 लोगों की जान ले ली थी.
तस्वीर: Reuters/W. Rattay
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शहरों को ठंडा रखने की चुनौती
तेजी से विकसित होते शहर और पेड़ों की कटाई तापमान में वृद्धि के लिए जिम्मेदार माने जाते हैं. भारत में जहां पहले सर्दी के बाद वसंत आता था. वसंत के मौसम में तापमान हलका-हलका बढ़ता था. वसंत के बाद ही गर्मी आती थी. लेकिन पिछले कुछ वर्षों से देखा जा रहा है कि मौसम का जो परंपरागत बंटवारा था, वह खत्म हो रहा है और सर्दी के तुरंत बाद गर्मी आ रही है. इसी कारण भारत के कई शहर मार्च के महीने में लू के थपेड़ों का अनुभव कर रहे हैं.
शहरों को ठंडा रखने की तरकीब
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पिछले दिनों आईपीसीसी की जो रिपोर्ट आई थी उसमें भी कहा गया है कि भारतीय उपमहाद्वीप में अगर तापमान डेढ़ डिग्री से ज्यादा होता है तो हीट वेव और भी तेजी से बढ़ेंगी. रिपोर्ट में वेट बल्ब तापमान के बारे में बताया गया है जो गर्मी और आर्द्रता को एक साथ मापने का एक पैमाना है. 31 डिग्री सेल्सियस वेट बल्ब तापमान इंसानों के लिए बेहद खतरनाक माना जाता है. 35 डिग्री में तो सेहतमंद इंसान भी छह घंटों से ज्यादा जिंदा नहीं रह सकेगा.
जानकार कहते हैं कि हीट वेव से बचने के लिए नए हीट कोड बनाए जाने की जरूरत है और शहरों और राज्यों को नए हीट कोड पर दिशानिर्देश देने की जरूरत है. वे कहते हैं कि शहरों में हरियाली के साथ-साथ तालाब बढ़ाने होंगे जिससे शहर ठंडा रह सके.
सूखे की ऐसी तस्वीरें जैसे कोई पेंटिंग हो
आम तौर पर प्राकृतिक आपदाओं की तस्वीरें देखकर जी भर आता है. लेकिन इन तस्वीरों को देख कर ऐसा लगता है जैसे किसी पेंटर ने कैनवास पर रंग भर दिए हों. ये ऑस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स की तस्वीरें हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/H. Schmidt
कैंसर जैसा
न्यू साउथ वेल्स का 95 फीसदी इलाका सूखे से प्रभावित है. यहां की एक किसान मार्गो वॉलेस्टन कहती हैं, "सूखा कुछ कुछ कैंसर जैसा होता है. वह आपको अंदर ही अंदर खाने लगता है. एक बार शुरू हो जाए तो और बुरा होता रहता है, आपकी ज़िन्दगी पर और असर करता है." तस्वीर उनके खेत पर पड़े एक पेड़ की है.
तस्वीर: Reuters/D. Gray
बूझो तो जानें
इस तस्वीर को समझने के लिए इसे बहुत ध्यान से देखना होगा. आसमान से ली गई इस तस्वीर में सूखी जमीन पर एक पेड़ और कुछ दूरी पर एक जल कुंड देखा जा सकता है. ऑस्ट्रेलिया में अगस्त का वक्त गर्मी का नहीं, बल्कि सर्दी का होता है और सर्दी के दौरान भी बरसात की कमी के चलते भीषण सूखा पड़ सकता है.
तस्वीर: Reuters/D. Gray
मंगल की तस्वीर?
जमीन लाल जरूर है लेकिन ये तस्वीर मंगल ग्रह की नहीं है. खेत के बीचोबीच एक पानी का कुंड और तीन टैंक. जिम्मी मैकक्वेन के इस खेत पर 2010 के बाद से बरसात नहीं हुई है. उनके दादा ने 1901 में यहां खेती शुरू की थी. लेकिन इस बार जैसा नुकसान अब तक कभी भी नहीं हुआ था.
तस्वीर: Reuters/D. Gray
कुएं के पास प्यासा
ये जमीन पर रखी अंगूठी की तस्वीर नहीं है, बल्कि पानी का टैंक है, जिसमें से कंगारू पानी पी रहा है. जानवरों पर सूखे का बेहद बुरा असर पड़ता है. सूखे के कारण जंगल में आग ना लग जाए, इस डर से युकलिप्टस के पेड़ों को काट दिया गया. लेकिन ये पेड़ ही कोआला भालुओं के घर होते हैं. अब वे कहां जाएं?
तस्वीर: Reuters/D. Gray
खेत के बीच हल
गुन्नेडाह इलाके के एक खेत की तस्वीर. बीचोबीच एक हल रखा है. सूखे के निशान यहां साफ देखे जा सकते हैं. ऐसा लगता है जैसे किसी कलाकार ने यहां लकीरें उकेरी हों. कुदरत का नजारा इंसान द्वारा बनाई गई किसी भी पेंटिंग से ज्यादा प्रभावशाली होता है.
तस्वीर: Reuters/D. Gray
खाने का इंतजाम
जो दो नीले बिंदु दिख रहे हैं, वे किसान हैं. एक पेड़ पर चढ़ कर गायों के लिए चारे का बंदोबस्त कर रहा है और आसपास भूरे रंग की गायें अपने खाने का इंतजार कर रही हैं. ऑस्ट्रेलिया में दिसंबर से फरवरी तक गर्मी का मौसम होता है, जो कि पिछले साल रिकॉर्डतोड़ रहा. इसके बाद पतझड़ में भी बरसात नहीं हुई.
तस्वीर: Reuters/D. Gray
थोड़ा सा खाना
सूखे के चलते फसल को भारी नुकसान हुआ है. एक किसान ने थोड़े बहुत अनाज को एक कतार में रख दिया है. यूं लगता है जैसे चींटियां एक दूसरे के पीछे चल रही हों. ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने एक अरब ऑस्ट्रेलियाई डॉलर की मदद का वादा किया है. किसानों के लिए ये बेहद जरूरी है. रिपोर्ट: डेविड एल