1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
अर्थव्यवस्थाश्रीलंका

श्रीलंका राष्ट्रपति चुनाव: नई सरकार के लिए बड़ी चुनौतियां

२१ सितम्बर २०२४

श्रीलंका में राष्ट्रपति चुनाव के लिए मतदान हो रहा है. 2022 में चरम पर पहुंचे अभूतपूर्व आर्थिक संकट और इसके कारण पैदा हुई अराजकता और राजनीतिक अस्थिरता के बाद यह चुनाव देश के भविष्य के लिहाज से बेहद अहम माना जा रहा है.

21 सितंबर को श्रीलंका की राजधानी कोलंबो में एक मतदान केंद्र के बाहर कतार में खड़े मतदाता.
श्रीलंकाई मतदाताओं में आधी से ज्यादा संख्या महिलाओं की है, लेकिन राष्ट्रपति चुनाव लड़ रहे 38 उम्मीदवारों में एक भी महिला नहीं है तस्वीर: Dinuka Liyanawatte/REUTERS

श्रीलंका के राष्ट्रपति चुनाव में 38 उम्मीदवार किस्मत आजमा रहे हैं. हालांकि, मुख्य मुकाबला त्रिकोणीय रहने की उम्मीद है. जिन तीन उम्मीदवारों की संभावनाएं सबसे मजबूत मानी जा रही हैं वो हैं वर्तमान राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे, मार्क्सवादी रुझान के नेता अरुना कुमारा दिसानायके और वर्तमान में विपक्ष के नेता रहे सजित प्रेमदासा. चुनाव का नतीजा 22 सितंबर तक आ सकता है.

श्रीलंका में करीब 1.70 करोड़ मतदाता हैं. तस्वीर: Dinuka Liyanawatte/REUTERS

मुख्य उम्मीदवारों का संक्षिप्त परिचय

अरुना कुमारा दिसानायके भ्रष्टाचार पर कार्रवाई के वादे के साथ युवा मतदाताओं को आकर्षित कर रहे हैंतस्वीर: REUTERS

अरुना कुमारा दिसानायके: 55 साल के दिसानायके वामपंथी रुझान के दल 'पीपल्स लिबरेशन फ्रंट' के नेता हैं. हालांकि, चुनाव में वह नेशनल पीपल्स पार्टी (एनपीपी) गठबंधन की ओर से मैदान में उतरे हैं. भ्रष्टाचार पर सख्त कार्रवाई और गरीब समर्थक नीतियां दिसानायके के प्रमुख चुनावी वादों में है. मतदान पूर्व सर्वेक्षणों में वह 36 फीसदी वोटों के साथ सबसे आगे बताए जा रहे हैं.

सजित प्रेमदासा प्रमुख विपक्षी दल एसजेबी के नेता हैं. उन्होंने 'लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स' से पढ़ाई की हैतस्वीर: REUTERS/Dinuka Liyanawatte

सजित प्रेमदासा: 57 वर्षीय विपक्षी नेता प्रेमदासा 'समागी जन बालावेगया' (एसजेबी) के नेता हैं. एसजेबी, साल 2020 में रानिल विक्रमसिंघे की यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) से अलग हुई थी. सजित प्रेमदासा के पिता रानासिंघे प्रेमदासा देश के प्रधानमंत्री (1978-1989) और राष्ट्रपति (1989-1993) थे. 1 मई 1993 को एक रैली के दौरान आत्मघाती हमले में उनकी हत्या कर दी गई थी. आईएमएफ के साथ बेलआउट कार्यक्रम में बदलाव करना और टैक्स सुधारों की मदद से महंगाई घटाना, प्रेमदासा के प्रमुख चुनावी वादों में है.

महंगाई जैसे रोजमर्रा के संघर्षों के कारण इस चुनाव में रानिल विक्रमसिंघे बहुत लोकप्रिय नहीं माने जा रहे हैंतस्वीर: REUTERS/Dinuka Liyanawatte

रानिल विक्रमसिंघे: 75 साल के विक्रमसिंघे यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) के नेता हैं और छह बार देश के प्रधानमंत्री रह चुके हैं. 2022 में जनता के प्रचंड विरोध के बाद जब गोटाबाया राजपक्षे देश छोड़कर गए और इस्तीफा दिया, तब रानिल विक्रमसिंघे राष्ट्रपति बनाए गए. उनकी पार्टी यूएनपी के पास फिलहाल संसद में एक ही सीट है. इस चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर लड़ रहे हैं.

श्रीलंका राष्ट्रपति चुनाव: विक्रमसिंघे के सामने कई चुनौतियां

श्रीलंका की राजनीति में दशकों तक वर्चस्व रखने वाले राजपक्षे परिवार के उम्मीदवार नमल राजपक्षे के जीतने की संभावनाएं मजबूत नहीं हैंतस्वीर: ISHARA S. KODIKARA/AFP via Getty Images

नमल राजपक्षे: 38 साल से नमल दशकों तक श्रीलंका की राजनीति पर दबदबा बनाए रखने वाले राजपक्षे परिवार के सदस्य हैं. महिंदा राजपक्षे उनके पिता और गोटाबाया राजपक्षे उनके चाचा हैं. इस चुनाव में नमल 'श्रीलंका पोदुजना पेरामुना' (एसएलपीपी) के उम्मीदवार हैं. इस पार्टी का गठन उनके ही एक और चाचा बासिल राजपक्षे ने किया है.

2022 में कहां थी श्रीलंका की अर्थव्यवस्था?

करीब 1.70 करोड़ मतदाताओं के लिए देश का गंभीर आर्थिक संकट सबसे प्रमुख चुनावी मुद्दा है. अर्थव्यवस्था को दोबारा पटरी पर लाना, महंगाई कम करना और विदेशी कर्ज के भुगतान की ठोस नीति निर्वाचित सरकार के आगे सबसे बड़ी चुनौतियां होंगी. अत्यधिक कर्ज, विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार आ रही गिरावट जैसी लंबे समय से गहराती चली जा रही आर्थिक और वित्तीय समस्याएं कोरोना महामारी के कारण चरम पर पहुंच गईं.

साल 2022 में हालात विस्फोटक मोड़ पर पहुंच गए. बड़े स्तर पर बिजली आपूर्ति बाधित होने लगी. विदेशी मुद्रा की किल्लत के कारण खाद्य सामग्री और ईंधन जैसी बुनियादी चीजों के आयात पर असर पड़ा. देश में अनाज, दवा, पेट्रोल-डीजल और रसोई के गैस जैसे बुनियादी सामान की भारी कमी के कारण कीमतें बेतहाशा बढ़ गईं.

भूख और गरीबी के कारण श्रीलंका में स्कूल छोड़ रहे बच्चे

मई 2022 में सरकार 30 दिनों का ग्रेस पीरियड मिलने के बाद भी विदेशी कर्ज की किस्त भरने में नाकाम रही. यह पहली बार था, जब श्रीलंका अपने कर्ज का ब्याज नहीं चुका पाया था. देश के सेंट्रल बैंक ने कहा कि जब तक लेनदार कर्ज की रीस्ट्रक्चरिंग नहीं करते, श्रीलंका भुगतान नहीं कर सकेगा.

श्रीलंका के सामने अभी सबसे गंभीर चुनौती आर्थिक संकट से पार पाने की हैतस्वीर: Dinuka Liyanawatte/REUTERS

राजपक्षे परिवार के करीबी माने जाते हैं विक्रमसिंघे

गंभीर आर्थिक संकट के विरोध में राजधानी कोलंबो में लोग सड़कों पर उतर आए और जल्द ही प्रदर्शन राष्ट्रव्यापी हो गए. हिंसक प्रदर्शनों के कारण आखिरकार मई 2022 में पीएम राजपक्षे ने इस्तीफा दे दिया. इसके बाद भी प्रदर्शनकारियों का गुस्सा शांत नहीं हुआ और उन्होंने राजपक्षे समेत सत्तापक्ष से जुड़े कई नेताओं और मंत्रियों का घर जला दिया.

क्या श्रीलंका वर्षों पुराने संकट से खुद को बाहर निकाल सकता है

जुलाई में उनके भाई और राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को भी आनन-फानन में देश छोड़ना पड़ा. गोटाबाया के इस्तीफा देने के बाद बतौर राष्ट्रपति उनके बचे हुए दो साल के कार्यकाल के लिए रानिल विक्रमसिंघे को राष्ट्रपति चुना गया. हालांकि, विक्रमसिंघे भी राजपक्षे परिवार के करीबी माने जाते रहे हैं. संसद में हुई वोटिंग में वह मुख्यतौर पर राजपक्षे समर्थकों के ही मतों से निर्वाचित हुए थे. ऐसे में राजपक्षे परिवार के नाराज प्रदर्शनकारी उनकी नियुक्ति से भी खुश नहीं थे. कई लोग विक्रमसिंघे पर राजपक्षे परिवार को बचाने का भी आरोप लगाते हैं. 

सिंगापुर से गोटाबाया राजपक्षा पर मुकदमा चलाने की अपील

अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना, महंगाई घटाना और कर्ज के भुगतान की ठोस नीति नई सरकार के आगे सबसे बड़ी चुनौतियां हैंतस्वीर: Eranga Jayawardena/AP Photo/picture alliance

कर्ज की रीस्ट्रक्चरिंग है बड़ा मुद्दा

इन दो सालों में आर्थिक मोर्चे पर स्थितियां थोड़ी सुधरी हैं, लेकिन ऊंची टैक्स दरों और महंगाई के कारण आम लोग अब भी संघर्ष कर रहे हैं. हालांकि, सरकार ने कहा है कि उसने कर्ज में 1,700 करोड़ डॉलर से ज्यादा की राशि को रीस्ट्रक्चर कर लिया है. 2022 में किए गए डिफॉल्ट के समय श्रीलंका पर करीब 8,300 करोड़ डॉलर का कर्ज था.

देनदार अगर गंभीर आर्थिक संकट के कारण कर्ज के भुगतान की स्थिति में ना हो, या दिवालिया होने की नौबत आ गई हो, तो लेनदार अपनी पूरी रकम डूबने से बचाने के लिए बातचीत के जरिए कुछ राहत दे सकते हैं. मसलन, बचे हुए मूलधन पर ब्याज की दर घटाना/भुगतान की अवधि बढ़ाना. इसे डेट रीस्ट्रक्चरिंग कहा जाता है.

राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, मौजूदा आर्थिक संकट ने चुनाव में जनता की भागीदारी और दिलचस्पी बढ़ाई हैतस्वीर: Eranga Jayawardena/AP Photo/picture alliance

नई सरकार के आगे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के कार्यक्रम के तहत अपने राष्ट्रीय कर्ज की रीस्ट्रक्चरिंग की भी बड़ी चुनौती होगी. इसी हफ्ते मौजूदा सरकार ने एलान किया कि उसने प्राइवेट बॉन्ड होल्डरों के साथ कर्ज की रीस्ट्रक्चरिंग को लेकर एक सैद्धांतिक सहमति बनाने की दिशा में आखिरी बाधा पार कर ली है.

दवाओं की भारी किल्लत, विदेशी मदद लेने को मजबूर श्रीलंका

अरुना कुमारा दिसानायके और सजित प्रेमदासा, दोनों ने अपनी चुनावी घोषणाओं में आईएमएफ के साथ समझौते पर दोबारा बातचीत का वादा किया है. वहीं, विक्रमसिंघे ने चेताया है कि समझौते के बुनियादी तत्वों में अगर अब कोई बदलाव किया गया, तो आईएमएफ पैकेज की चौथी किस्त मिलने में देर हो सकती है. यह रकम करीब 300 करोड़ डॉलर है. विक्रमसिंघे कह रहे हैं कि देश में स्थिरता बनाए रखने के लिए यह रकम जरूरी है.

नई सरकार से जनता क्या चाहती है?

आम लोगों को इस चुनाव से काफी उम्मीदें हैं. उनकी अपेक्षा है कि नई सरकार देश को पूरी तरह आर्थिक संकट से बाहर निकाले और व्यवस्थागत भ्रष्ट्राचार खत्म करे. चंद्रकुमार सुरियारच्ची, कैब ड्राइवर हैं. 21 सितंबर को वोट डालने के बाद उन्होंने समाचार एजेंसी एपी के संवाददाता से कहा, "मेरा मानना है कि भ्रष्टाचार उन मुख्य कारणों में है, जिसकी वजह से अभी हमारे देश की इतनी खराब हालत है. इसलिए आने वाले नेता को भ्रष्टाचार खत्म करने और देश को नए सिरे से खड़ा करने पर ध्यान देना चाहिए." सुरियारच्ची कहते हैं, "हमारे बच्चों को एक बेहतर जिंदगी का अधिकार है."

क्यों डूबी श्रीलंका की इकोनॉमी और अब क्या होगा?

दिवालिएपन के कगार पर श्रीलंका

05:49

This browser does not support the video element.

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पुराने नेताओं से बड़े स्तर पर लोगों का मोहभंग हो चुका है. देश की आर्थिक अस्थिरता के लिए लोग राजनीतिक नेतृत्व को बड़ा दोषी मानते हैं. ऐसे में संभावना है कि जनाधार बंटा हुआ आया. स्पष्ट बहुमत ना मिलने की स्थिति में अस्थिरता और बढ़ने का अंदेशा है. विसाका दिस्सानायके भी एक मतदाता हैं. वह उम्मीद जताते हैं कि लोग "एक मजबूत नेता को वोट देंगे, जो देश को आर्थिक सुधार की राह पर आगे ले जा सके." दिस्सानायके कहते हैं, "अभी हम बहुत ही मुश्किल हालात से बाहर निकले हैं. मैं उम्मीद करता हूं कि आर्थिक बहाली जारी रहेगी."

एसएम/एसके (एपी, रॉयटर्स, एएफपी)

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें
डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें