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वैश्विक खाद्य सुरक्षा के लिए बरकरार रखनी होगी मिट्टी की नमी

२३ सितम्बर २०२२

मिट्टी का स्वस्थ होना वैश्विक खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ उन हजारों प्रजातियों के लिए भी जरूरी है जो मिट्टी में ही रहती हैं. अगर मिट्टी पर सूखे और भीषण गर्मी का असर पड़ता है, तो इससे वैश्विक खाद्य संकट गहरा सकता है.

सूखे से चटकी मिट्टी
तस्वीर: picture alliance/PantherMedia

मिट्टी की गुणवत्ता को नजरअंदाज करना हमारे लिए उतना ही आसान है जितना जूते पर जमी धूल. अगर आप किसान या माली नहीं हैं, तो आपको मिट्टी के स्वास्थ्य की कभी परवाह नहीं होती. हालांकि, मिट्टी के स्वास्थ्य की परवाह करना हमारे लिए काफी महत्वपूर्ण है. यह हमारे अस्तित्व का सवाल है. अगर मिट्टी स्वस्थ नहीं होगी, तो भोजन पैदा करना मुश्किल हो जाएगा और दुनिया में खाद्य संकट गहरा सकता है.

मिट्टी में खनिज और जैविक कचरे का मिश्रण मौजूद होता है, जिनमें सूक्ष्म जीव होते हैं. पोषक तत्वों से भरपूर मिट्टी की परत का ऊपरी एक इंच विकसित होने में सैकड़ों साल लग जाते हैं. यही एक इंच हिस्सा कृषि भूमि का अभिन्न अंग होता है जिसकी वजह से अनाज पैदा होता है और अरबों लोगों को भोजन मिलता है. हालांकि, काफी ज्यादा गर्मी और सूखा पड़ने की वजह से मिट्टी की यह परत नष्ट होने लगती है, जैसे कि इस साल यूरोप में पड़ी भीषण गर्मी ने मिट्टी को नुकसान पहुंचाया है.

यूनिवर्सिटी ऑफ हैम्बर्ग के इंस्टीट्यूट ऑफ सॉयल साइंस के शोधकर्ता लिजेथ वास्कोनेज नवास ने कहा, "हम जो देख रहे हैं वह यह है कि अब काफी ज्यादा सूखा पड़ रहा है. साथ ही, मिट्टी का कटाव भी तेज होता जा रहा है.”

कश्मीर के सेब उद्योग पर जलवायु परिवर्तन के कारण खतरा

हालांकि, कुछ महीने की बारिश के बाद यह स्थिति बदल सकती है, लेकिन जरूरी नहींकि भारी बारिश किसानों के लिए वरदान साबित हो. चिकनी मिट्टी जैसी कुछ मिट्टियां गर्मी की वजह से इतनी ज्यादा शुष्क हो सकती हैं कि पानी को सही तरीके से अवशोषित न कर पाएं. ऐसे में जब बारिश होती है, तो पानी मिट्टी के ऊपर से बह जाता है और मिट्टी के पोषक तत्वों को अपने साथ बहा ले जाता है. इससे अचानक बाढ़ भी आ सकती है.

बर्लिन के उत्तर-पूर्व में स्थित थ्यूनेन  इंस्टीट्यूट फॉर फॉरेस्ट इकोसिस्टम के मृदा विशेषज्ञ निकोल वेलब्रॉक का कहना है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से अचानक और तेज बारिश होने की घटनाएं बढ़ने लगी हैं. सामान्य तरीके से कभी-कभी ही बारिश होती है. वह कहते हैं, "हमें सामान्य तरीके से लंबी अवधि तक होने वाली बारिश की जरूरत है. इससे पानी धीरे-धीरे मिट्टी में रिसता है और इसे नर्म बनाता है.”

मिट्टी की रक्षा करने का उपाय क्या है?

विशेषज्ञों का कहना है कि सूखी मिट्टी को कटाव से बचाने के लिए जल्द से जल्द नया ग्राउंड कवर स्थापित करना जरूरी है. तेजी से बढ़ने वाले पौधे मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा को बनाए रखते हुए पोषक तत्वों को बरकरार रखने में मदद करते हैं. इससे मिट्टी के नुकसान को रोकने में मदद मिल सकती है.

फलीदार पौधे, गेहूं, जई जैसी ‘कवर फसलें' प्राकृतिक ढाल के तौर पर काम कर सकती हैं, मिट्टी में मौजूद पानी को तेजी से सूखने से रोक सकती हैं, और जमीनी स्तर पर तापमान को कम करते हुए नमी बनाए रख सकती हैं.

भारतीय गैर-लाभकारी अनुसंधान संस्थान, ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद की 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, कवर फसलें कटाव को नियंत्रित करके, खरपतवारों और कीटों को दबाकर, जड़ प्रणाली को स्थिर करके, और जैविक पदार्थों को बढ़ाकर मिट्टी के स्वास्थ्य को बनाए रख सकती हैं.

यूके में क्रैनफील्ड विश्वविद्यालय में मृदा विज्ञान की वरिष्ठ शोध सहयोगी लिंडा डीक्स ने कहा कि मिट्टी की नमी को बनाए रखने का एक अन्य तरीका है गीली घास की परत तैयार करना. दूसरे शब्दों में कहें, तो पौधे से बनने वाली हरी खाद का इस्तेमाल करना. उन्होंने कहा, "समय के साथ यह खाद मिट्टी में मिल जाती है और इससे जैविक पदार्थों में वृद्धि होती है.”

यूरोप में सूखे के कारण मिट्टी सख्त हुईतस्वीर: Mauro Ujetto/NurPhoto/picture alliance

अत्यधि  गर्मी से मिट्टी में कम हो जाती हैं जैविक गतिविधियां

जमीन के अंदर रहने वाले जीवों के लिए भी मिट्टी का नम रहना जरूरी है. थ्यूनेन इंस्टीट्यूट फॉर फॉरेस्ट इकोसिस्टम के मृदा विशेषज्ञ निकोल वेलब्रॉक का कहना है, "मिट्टी जब काफी शुष्क और गर्म हो जाती है, तो सूक्ष्मजीव अपनी गतिविधियां बंद कर देते हैं और पौधों को पोषक तत्व मिलना कम हो जाता है. उदाहरण के लिए, मिट्टी में पाए जाने वाले नेमाटोड जैसे सूक्ष्मजीवों से पौधों को विकसित होने के लिए पोषक तत्व मिलता है.”

यह बात सिर्फ सूक्ष्मजीवों पर ही लागू नहीं होती. स्कॉटलैंड के डंडी स्थित जेम्स हटन इंस्टीट्यूट में मृदा पारिस्थितिक विज्ञानी रॉय नीलसन ने कहा, "मिट्टी के सूखने की वजह से केंचुए भी अपनी गतिविधियां बंद कर देते हैं. वे मिट्टी में जैविक पदार्थ मिलाना बंद कर देते हैं. इस वजह से, मिट्टी के अंदर हवा की कमी होने लगती है, जिससे मिट्टी में जल रिसने की क्षमता कम हो जाती है.”

स्वस्थ्य मिट्टी यानि स्वस्थ्य इकोसिस्टमतस्वीर: Michael Linnenbach

खेतों में पेड़ लगाना

हैम्बर्ग विश्वविद्यालय के वास्कोनेज नवास का कहना है कि हमें पारिस्थितिक तंत्र और मिट्टी के स्वास्थ्य को फिर से बेहतर बनाने के लिए ‘पीछे मुड़कर प्रकृति को देखना चाहिए'. इसका एक समाधान यह है कि हमें कृषि भूमि के बीच फिर से पेड़ लगाने चाहिए.

थ्यूनेन इंस्टीट्यूट के वेलब्रॉक ने कहा, "जर्मनी जैसी जगहों में कृषि भूमि के बीच में आमतौर पर पेड़ नहीं होते हैं. कृषि में सुधार के लिए चलाए गए अभियान के तहत उन्हें हटा दिया गया था, ताकि ज्यादा से ज्यादा फसलों की पैदावार हो सके.”

पेड़ न सिर्फ मिट्टी का कटाव रोकते हैं, बल्कि मिट्टी को सूखने से भी बचाते हैं. साथ ही, मिट्टी की उर्वरा को फिर से बढ़ाने में मदद करते हैं. पेड़ों की कुछ ऐसी प्रजातियां हैं जिन्हें उर्वरक पेड़ के तौर पर जाना जाता है. ये हवा से नाइट्रोजन अवशोषित करते हैं और इसे अपनी जड़ों और पत्तियों के माध्यम से मिट्टी में पहुंचाते हैं.

इससे मिट्टी की उर्वरता में सुधार तो होता ही है, किसानों की निर्भरता भी औद्योगिक उर्वरकों पर कम हो जाती है. इससे उन्हें आर्थिक फायदा भी मिलता है. मलावी, जाम्बिया, बुर्किना फासो और उप-सहारा अफ्रीका के अन्य देशों में, ये पेड़ मक्का की पैदावार को दोगुना या तिगुना करने में मदद कर रहे हैं.

अफ्रीकी देशों में पारंपरिक ज्ञान का सहारा लेकर खेतीतस्वीर: Nduati Mambo/DW

प्राचीन सभ्यताओं से सीख

तंजानिया और केन्या के ग्रामीण इलाकों में, ग्रामीण समुदाय मरुस्थलीकरण से लड़ने के लिए कम तकनीक वाली पद्धति का उपयोग कर रहे हैं. इस तकनीक के तहत वे जमीन में अर्धवृत्ताकार गड्ढा खोदते हैं. बारिश होने पर पानी इस गड्ढे में जमा होता है और यह तेजी से वाष्प बनकर हवा में नहीं मिलता. इससे मिट्टी नम रहती है. इसके बाद, घास के बीजों को इन गड्ढे में बोया जाता है, जो अंकुरित होने पर मिट्टी के कटाव को कम करते हैं और तापमान को भी निम्न स्तर पर बनाए रखते हैं.

दुनिया भर में पर्यावरण संरक्षण से जुड़े लोग बंजर जमीनों को फिर से आबाद करने के लिए पुराने तरीके अपना रहे हैं. वे छत जैसे ढांचे का निर्माण कर रहे हैं,जैसा कि कांस्य युग में किया जाता था. पेरु के माचू पिचू इलाके में छत जैसे ढांचे वाले खेत देखे जा सकते हैं. इससे मिट्टी का कटाव कम होता है. खेती का यह तरीका 20वीं सदी में बड़े पैमाने पर उतना सफल नहीं रहा, लेकिन इटली और जापान जैसी जगहों पर इसे फिर से अपनाया जा रहा है.

जापान में धान की खेती का बदलता तरीकातस्वीर: Ryohei Moriya/AP Photo/picture alliance

वहीं, मिट्टी की उत्पादकता बनाए रखने के लिए कई विकल्प मौजूद हैं, जैसे कि पारिस्थितिक तंत्र की विविधता, मिट्टी की संरचना, इलाके के हिसाब से खेती का तरीका वगैरह.

यूके की विशेषज्ञ डीक्स ने कहा कि गर्म होते मौसम में मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने के लिए सबसे अच्छी रणनीतियों में से एक यह है कि इसे नुकसान से बचाया जाए. मिट्टी में कई ऐसे जीव मौजूद होते हैं जो हवा और पानी के लिए छिद्र बनाते है, ताकि पानी को अवशोषित किया जा सके. उन्होंने कहा, "हम मिट्टी को नुकसान होने से जितना बचाएंगे उतना ही अच्छा है.”

रिपोर्ट: हॉली यंग, मार्टिन कुएब्लर

जलवायु परिवर्तन का पोषण पर असर

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