जो होगा, अच्छा होगा यह मान लेने भर से जीवन बदल सकता है. शोधकर्ता कहते हैं कि ऐसा सोचने वाले लोग ज्यादा लंबा जीते हैं.
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प्रिंस भोजवानी खुद को कभी निराशावादी इंसान नहीं मानते थे. लेकिन जब एक महीने में तीन बार उन्हें अस्पताल के चक्कर लगाने पड़े तो उन्हें अपने बारे में कुछ अलग पता चला. मई 2018 से पहले वह एक स्वस्थ इंसान थे. नियमित रूप से 30 किलोमीटर साइकल चलाते थे. फिर एक दिन अचानक उनका ब्लड प्रेशर बढ़ गया. आंखें धुंधला गईं और चलना मुश्किल हो गया.
इमरजेंसी के डॉक्टरों को लगा कि उन्हें स्ट्रोक हुआ है लेकिन वह उनकी स्थिति की सही वजह नहीं बता पाए. भोजवानी बताते हैं कि उनके एक "बेहद आशावादी दोस्त” ने इस बात की ओर इशारा किया कि वह हमेशा निराशावादी नजरिया रखते हैं और यह उनकी सेहत खराब होने की वजह बना.
सबसे आशावादी देश
अपने आसपास बहुत से लोग मिलेंगे जिनका मानना है कि दुनिया बदलती जा रही है और बदलाव बुरे की तरफ हो रहा है. लेकिन यूगव के एक सर्वे के अनुसार कुछ ऐसे भी देश हैं जहां के लोग समझते हैं कि दुनिया बेहतर होती जा रही है.
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1. चीन
यूगव के सर्वे में पहले नंबर पर चीन है जहां 41 प्रतिशत लोग मानते हैं कि दुनिया रहने के लिए बेहतर हो रही है.
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2. इंडोनेशिया
इस सूची में इंडोनेशिया दूसरे नंबर पर है जहां 23 प्रतिशत लोगों को आशा है कि दुनिया बेहतर हो रही है.
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3. सऊदी अरब
तेल की कीमत गिरने से सऊदी अरब की आर्थिक हालत पर दबाव जरूर है, लेकिन 16 प्रतिशत लोग आशावादी हैं.
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4. थाइलैंड
आशावादियों की अंतरराष्ट्रीय सूची में 11 प्रतिशत के साथ एशियाई देश थाइलैंड चौथे नंबर पर है.
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5. संयुक्त अरब अमीरात
संयुक्त अरब अमीरात ने खुशहाली को बढ़ाने के लिए मंत्रालय बनाने का फैसला किया है. सूची में पांचवे नंबर पर.
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6. स्वीडन
स्वीडन इस समय बेहतर जीवन के लिए शरणार्थियों में काफी लोकप्रिय है. 10 प्रतिशत के साथ यूएई के साथ.
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7. जर्मनी
जर्मनी इस समय 11 लाख से ज्यादा शरणार्थियों का बोझ झेल रहा है. सिर्फ 4 प्रतिशत लोगों को उम्मीद है कि दुनिया बेहतर हो रही है.
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न्यू यॉर्क में रहने वाले भोजवानी कहते हैं, "उसके अगले दिन से ही मैंने जिंदगी को अलग तरह से देखना शुरू किया.” उन्होंने ध्यान लगाना शुरू किया और रोज सुबह इस बात के लिए शुक्रिया अदा करना शुरू किया कि वह जीवित हैं.
इस तरह भोजवानी को एक मकसद मिला. उन्होंने साथियों के साथ मिलकर एक समाजसेवी संस्था ‘आसन वॉइसेज' की शुरुआत की.
तब से भोजवानी की सेहत पर वैसा संकट नहीं आया है, जबकि वह घंटों तक काम करते हैं. वह कहते हैं कि ऐसा उनके नए आशावादी नजरिए के कारण है. वह बताते हैं, "उस जिंदगी बदल देने वाली घटना ने मुझे सकारात्मक सोच अपनाने को मजबूर किया. अब मैं उस तरह से जीना सोच भी नहीं सकता, जैसा पहले जिया करता था.”
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क्या करता है आशावाद?
आशावाद अपने आप में किसी चीज का इलाज नहीं है. लेकिन बहुत से अध्ययन सकारात्मक सोच और अच्छी सेहत के बीच सीधा संबंध दिखा चुके हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि कोई व्यक्ति कितना आशावादी है, यह जानने के लिए ‘लाइफ ओरिएंटेशन टेस्ट' के दस सवाल एक मानक टेस्ट है. यह टेस्ट 1994 में प्रकाशित हुआ था.
इस टेस्ट में लोगों से विभिन्न बातों पर एक से पांच के बीच नंबर देने को कहा जाता है, जैसे कि "जब जीवन में अनिश्चितता हो तो मैं उम्मीद करता हूं सबसे अच्छा नतीजा निकलेगा.”
हार्वर्ड सेंटर फॉर पॉप्युलेशन एंड डिवेलपमेंट स्ट्डीज में शोधकर्ता हयामी कोगा कहती हैं, "आमतौर पर यह मानना कि सब अच्छा होगा या भविष्य में जो होगा वह मेरे लिए लाभकारी होगा, आशावाद की परिभाषा है.”
डॉ. हैप्पी के बताए खुश रहने के पांच तरीके
पॉजीटिव साइकोलॉजी की दुनिया के प्रमुख नामों में से एक डॉ. टिम शार्प, जिन्हें डॉ. हैप्पी भी कहते हैं, खुश रहने के ये पांच तरीके बताते हैं.
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ऐसे रहें खुश
मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि खुशी और दुख मनस्थिति है. यानी एक ही अवस्था में कोई खुश भी हो सकता है और दुखी भी. डॉ. टिम शार्प ने हैप्पीनेस यानी प्रसन्नता और उसके मनोविज्ञान पर काफी शोध किया है. इसीलिए उन्हें डॉ. हैप्पी कहा जाने लगा. उन्होंने खुश रहने की ये युक्तियां बताई हैं.
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जो है, उसकी खुशी
आपके पास जो है उसके होने की खुशी मनाइए ना कि जो नहीं है उसके ना होने का गम. उम्मीदें खुशी लाती हैं.
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खुश रहने के लिए मकसद हो
अर्थपूर्ण लक्ष्य तय कीजिए और उन्हें हासिल करने के लिए मेहनत कीजिए. फिर अपनी उपलब्धियों का आनंद लीजिए.
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अच्छे रिश्ते
अच्छे रिश्ते बनाइए. लोगों से मिलिए जुलिए क्योंकि आपके आस पास के लोग आपकी खुशी की सबसे बड़ी वजह होते हैं.
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सेहत का ख्याल
अपनी शारीरिक सेहत का ख्याल रखिए. नियमित व्यायाम, उचित भोजन और सही नींद खुशी का आधार हैं.
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हमेशा खुशी संभव नहीं
यह स्वीकार कीजिए कि हर वक्त सब कुछ अच्छा नहीं रह सकता. बुरा होना भी जिंदगी का हिस्सा है. गलत होना भी ठीक ही है. आप हर मिनट खुश रहने की उम्मीद नहीं कर सकते.
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कोगा 2022 में हुए एक अध्ययन में मुख्य शोधकर्ता थीं जिसका निष्कर्ष था कि जो लोग आशावादी होते हैं, उनके 90 साल से ज्यादा जीने की संभावना अधिक होती है. इसी साल मई में जेएएमए (JAMA) साइकिएट्री पत्रिका में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन में शोधकर्ताओं ने कहा कि जैसे-जैसे आशावादी लोगों की उम्र बढ़ती है, उनके शारीरिक अंगों के काम सुचारू रूप से करते रहते हैं.
इस अध्ययन के लिए छह साल तक 5,930 ऐसी महिलाओं पर अध्ययन किया गया था जो मेनोपॉज से गुजर चुकी थीं.
कोगा कहती हैं, "हम जानते हैं कि ज्यादा आशावादी लोगों के अधिक स्वस्थ जीवन जीने की संभावना बहुत होती है. उनकी आदतें स्वस्थ होती हैं, वे सेहतमंद भोजन करते हैं और एक्सरसाइज करते हैं.”
क्या आशावादी होना सीखा जा सकता है?
कुछ लोग तो पैदा ही आशावादी होते हैं लेकिन न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी में साइकिएट्री पढ़ाने वालीं सू वर्मा कहती हैं कि आशावादिता सीखी भी जा सकती है.
‘प्रैक्टिकल ऑप्टिमिजमः द आर्ट, साइंस एंड प्रैक्टिस ऑफ एक्सेपशनल वेल-बीइंग' नामक किताब की लेखिका वर्मा बताती हैं, "गिलास को हमेशा आधा भरा देखने और सब अच्छा होने की उम्मीद का गुण भले ही आपके अंदर जन्म से नहीं हो, तब भी आप इसे सीख सकते हैं.”
औरतों के 8 'राज'
औरतें मर्दों से बेहतर कैसे हैं? आइए, आपको बताते हैं वे 8 राज की बातें जो उन्हें मर्दों से बेहतर बनाती हैं.
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ज्यादा जीती हैं
महिलाएं ज्यादा जीती हैं. इसकी एक सबसे बड़ी वजह है हृदय रोगों के लिए उनकी प्रतिरोध क्षमता. उन्हें हृदय रोग 70-80 की उम्र में होते हैं जबकि पुरुषों का दिल 50-60 में ही टें बोलने लगता है.
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ज्यादा सहनशक्ति
कई अध्ययन यह साबित कर चुके हैं कि महिलाओं में दर्द सहने की क्षमता पुरुषों से ज्यादा होती है. साइकॉलजिस्ट क्लिफर्ड लजारस कहते हैं कि वे खुद को प्रसव के दर्द के लिए तैयार कर रही होती हैं.
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तनाव सहने में माहिर
वेस्टर्न ओंतारियो यूनिवर्सिटी में लंबे अध्ययनों से यह पता चला कि महिलाएं तनाव को बर्दाश्त करने में ज्यादा सक्षम होती हैं. उनका मस्तिष्क ऑक्सिटोसिन ज्यादा पैदा करता है. यही हारमोन हमें शांत रखता है.
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याददाश्त गजब की
ब्रिटेन की ऐस्टन यूनिवर्सिटी में एक रिसर्च से पता चला कि महिलाओं की याददाश्त पुरुषों से बेहतर होती है और उम्र के साथ दोनों की क्षमताओं का अंतर बढ़ता जाता है.
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ज्यादा स्मार्ट
इंटेलिजेंस एक्सपर्ट जेम्स फ्लिन के मुताबिक यूरोप, अमेरिका, कनाडा और न्यूजीलैंड की महिलाओं ने पुरुषों को इंटेलिजेंस टेस्ट में हरा दिया है. महिलाओं का मस्तिष्क ज्यादा तेजी से विकसित होता है.
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कॉलेज में ज्यादा सफल
जॉर्जिया और कोलंबिया यूनिवर्सिटी की एक साझी स्टडी में पता चला कि लड़कियां साइंस को ज्यादा अच्छे से समझ सकती हैं. पुरुषों की यूनिवर्सिटी में पढ़ाई अधूरी छोड़ने की संभावनाएं भी ज्यादा होती हैं.
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रास्ते पहचानने में माहिर
प्रोफेसर डाएन हाल्पर कहते हैं कि महिलाएं निशान और संकेत याद रखने में बेहतर होती हैं इसलिए उन्हें रास्ते याद रहते हैं. वे खोई चीजें भी जल्दी खोज सकती हैं.
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पाई-पाई का हिसाब
हिसाब-किताब में महिलाएं बेहतर होती हैं. बार्कलेज वेल्थ ऐंड लेडबरी रिसर्च की स्टडी में पता चला कि निवेश में महिलाओं ने बेहतर नतीजे दिए क्योंकि पुरुषों में टेस्टोस्टेरॉन बनता है जो उन्हें गैरजरूरी रिस्क लेने को उकसाता है.
वर्मा की सलाह है कि जब भी कोई उलझन या संदेह की स्थिति हो तो बुरे के बजाय अच्छा होगा, यह सोचना सीखना होता है. वह कहती हैं, "क्या रोशनी की कोई किरण दिखाई दे रही है? क्या कोई समस्या है जिसे हल किया जा सकता है, या फिर कोई सच्चाई है जिसे स्वीकार कर लेना चाहिए?”
वर्मा कहती हैं कि वह अपने मरीजों को कहती हैं कि किसी भी उलझन में यह मानना चाहिए कि जो सबसे अच्छा हो सकता है, वही होगा और फिर उस नतीजे के लिए कदम-दर-कदम रास्ता बनाना चाहिए.