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हिजाब पर विवाद और मुस्लिम पहचान का सवाल

१५ मार्च २०२२

हिजाब से प्रतिबंध हटाने की मांग करने वाली याचिकाकर्ता कहती हैं, "जब मैं इसे एक मुसलमान के नजरिए से देखती हूं तो मुझे लगता है कि मेरा हिजाब दांव पर है, और एक भारतीय होने के नाते मेरे संवैधानिक मूल्यों का उल्लंघन हुआ है."

Proteste gegen Hidschab-Verbot an Schulen in Indien
तस्वीर: DIBYANGSHU SARKAR/AFP

केवल 12 साल की उम्र में आलिया ने कराटे की प्रतियोगिता में अपने राज्य कर्नाटक का प्रतिनिधित्व हिजाब पहने हुए किया था. उसमें आलिया ने गोल्ड जीता. ठीक पांच साल बाद जूनियर कॉलेज में पढ़ने जाते हुए उसने हिजाब पहना तो उसे कैम्पस गेट से आगे नहीं जाने दिया गया. कारण बनी वह नीति जिसके हिसाब से स्कूल कॉलेजों में धार्मिक पहनावे के लिए कोई जगह नहीं.

आलिया असादी कहती हैं, "यह केवल एक कपड़ा नहीं है.'' अपनी सहेली के घर जाते समय वह निकाब पहनती हैं जो कि हिजाब से भी ज्यादा ढंकने वाला परिधान है. इसमें आंखों को छोड़ कर लगभग पूरा चेहरा ढंका होता है. आलिया कहती हैं, "हिजाब मेरी पहचान है और इस समय मुझ से मेरी पहचान छीनने की कोशिश हो रही है.''

कालेजों में हिजाब पर प्रतिबंध लगाने पर बहस छिड़ी हुई है. हिजाब को प्रतिबंधित करने का मुद्दा देश में हिन्दू राष्ट्रवाद को हवा देने का असर माना जा रहा है. कर्नाटक हाई कोर्ट ने अपने ताजा फैसले में कहा है कि हिजाब इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है. आलिया उन छह छात्राओं में से एक हैं जिन्होंने सरकारी प्रतिबंध के खिलाफ कोर्ट में याचिका दायर की. प्रतिबंध को वह अपने शिक्षा और धार्मिक आजादी के अधिकार का उल्लंघन मानती हैं.

स्कूल कॉलेजों में हिजाब पहन कर जाने पर इससे पहले कोई पाबंदी नहीं रही. तस्वीर: DW

हर महिला के लिए हिजाब के अलग मायने

दक्षिण भारतीय राज्य कर्नाटक में हिन्दू धर्म के मानने वाले बहुलता में हैं लेकिन संवैधानिक रूप से भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है. सिर ढंकने वाला हिजाब देश में मुसलमानों के अधिकार की लड़ाई का प्रतीक बन गया है. कर्नाटक राज्य के साथ साथ देश भर के कई मुसलमान इसे अल्पसंख्यकों को अलग थलग करने की कोशिश बता रहे हैं.

भारत में बहुत सारी महिलाएं इसे अपनी गरिमा बरकरार रखने और बाकी धार्मिक प्रतीक के रूप में पहनती हैं और इसे पहनने की आजादी बरकरार रखना चाहती हैं. हिजाब के विरोधी मानते हैं कि यह महिलाओं पर दबाव का प्रतीक है जिसे उन पर थोपा जाता है. वहीं हिजाब के समर्थक कहते हैं कि हर पहनने वाले के लिए इसके मायने अलग होते हैं, जिनमें से एक अपनी मुस्लिम पहचान पर गर्व करना भी है. करीब 1.4 अरब की जनसंख्या वाले भारत की 14 फीसदी आबादी मुसलमान है. यह संख्या इतनी बड़ी है जो विश्व में इंडोनेशिया के बाद भारत को सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाला देश बनाती है.

इसी साल जनवरी में कर्नाटक के उडुपी से शुरु हुए विवाद की चर्चा पूरे देश में हो रही है. पीयू कॉलेज की छह छात्राओं ने कक्षा में हिजाब पहनने से रोके जाने का विरोध किया था. हिजाब पर विवाद उसके बाद उडुपी के अलावा अन्य जिलों तक फैल गया. हिजाब के साथ कॉलेज जाने की मांग को लेकर कई हफ्ते प्रदर्शन चले और छात्राएं कर्नाटक हाईकोर्ट गईं. अपनी याचिका पर आए फैसले से निराश होने के बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है.

कर्नाटक हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि हिजाब इस्लाम के अनिवार्य धार्मिक व्यवहार का हिस्सा नहीं है और इस तरह संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षित नहीं है. साथ ही हाईकोर्ट ने कहा कि छात्र स्कूल यूनिफॉर्म पहनने से मना नहीं कर सकते हैं और स्कूल यूनिफॉर्म पहनने का नियम वाजिब पाबंदी है. हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सरकार के आदेश को चुनौती का कोई आधार नहीं है.

कर्नाटक मामले पर मुस्लिम छात्राओं के समर्थन में 9 फरवरी को कोलकाता में हुआ प्रदर्शन. तस्वीर: Indranil Aditya/imago images/NurPhoto

इस्लामोफोबिया

इस बीच कई छात्राओं ने विवाद के कारण बने हालात के आगे हार मानते हुए बिना सिर ढंके ही कालेज जाने का कदम उठाया और क्लास में पढ़ने पहुंचीं. वहीं कई और लड़कियों ने इसे नहीं माना और विरोध करने पर दो महीने के लिए उनके क्लास आने पर रोक लग गई. 18 साल की आएशा अनवर जैसी छात्राओं की तो परीक्षा छूट गई और वह अपनी साथियों से पढ़ाई में पिछड़ गईं. इस पर अनवर कहती हैं, "मुझे ऐसा लग रहा है जैसे हर कोई हमें निराश कर रहा है."

कई अराजक तत्वों ने अनवर की निजी जानकारी सोशल मीडिया पर डाल दी जिसके कारण उन्हें ऑनलाइन दुर्व्यहार, गालियों और प्रताड़ना का सामना करना पड़ा. उन दोस्तों का साथ छूट गया जो उन्हें कट्टरवादी मुस्लिम के तौर पर देखने लगे. इन सबके बावजूद अनवर हिजाब नहीं छोड़ना चाहतीं. वह बताती हैं कि बचपन से उन्होंने अपनी मां को इसे पहनते देखा और वे उनकी नकल किया करतीं. आज उन्हें हिजाब से मिलने वाली प्राइवेसी और धार्मिक पहचान का गर्व बहुत अच्छा लगता है.

याचिकाकर्ताओं में से एक 20 साल की छात्रा आएशा इम्तियाज कहती हैं कि उनके लिए यह श्रद्धा का मामला है लेकिन दूसरी महिलाओं की राय अलग हो सकती है. वह कहती हैं, "मेरी कई सहेलियां क्लास में हिजाब नहीं पहनतीं. उन्हें ऐसा करके सशक्त महसूस होता है और मुझे अपने तरीके से सशक्त महसूस होता है.'' उनकी नजर में ऐसा प्रतिबंद "इस्लामोफोबिया" है.

यूरोप में भी प्रतिबंध

भारत में ऐतिहासिक रूप से ना तो हिजाब पर कोई प्रतिबंध लगा और ना ही सार्वजनिक जगहों पर उसे पहनने में कोई पाबंदी रही है. भारत के कई इलाकों और समुदायों में मुस्लिम ही नहीं हिन्दू महिलाएं भी सिर को घूंघट, पल्लू या आंचल से ढंकती आई हैं. ह्यूमन राइट्स वॉच और एमनेस्टी इंटरनेशनल जैसे अंतरराष्ट्रीय समूहों का कहना है कि देश में मुस्लिम विरोधी माहौल बनाया जा रहा है और इसके कारण मुसलमानों पर हमले बढ़ सकते हैं. इसी साल मुस्लिम महिलाओं को निशाना बनाने वाले 'बुल्ली बाई' और 'सुल्ली डील्स' जैसे अभियान चले जिनके पीछे कट्टरपंथी विचारों में विश्वास करने वाले पढ़े लिखे युवा हैं.

भारत के अलावा फ्रांस जैसे यूरोपीय देश में भी हिजाब पर प्रतिबंध का मुद्दा बन चुका है. फ्रांस में तो 2004 से ही स्कूलों में हिजाब पहनने पर पाबंदी है. कई और यूरोपीय देशों में भी सार्वजनिक जगहों पर निकाब और बुरका जैसे और भी ज्यादा चेहरा ढंकने वाले परिधानों को लेकर पाबंदियां हैं. मुस्लिम देशों में भी अलग अलग तरह के सिर ढंकने वाले कपड़ों को लेकर नियमों में काफी अंतर हैं. 

आरपी/एनआर (एपी)

अब ट्रोलों की खैर नहीं

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