क्या नरेंद्र मोदी अयोध्या में मंदिर बनवाएंगे? इस सवाल का जवाब इतना आसान नहीं है, खुद मोदी के लिए भी नहीं. मोदी एक अजीब सी उलझन में खुद को फंसा पा रहे होंगे.
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हाशिम अंसारी नहीं रहे. राम लला बनाम बाबरी मस्जिद केस के सबसे उम्रदराज पेशकार हाशिम अंसारी का 96 साल की उम्र में निधन हो गया. उन्होंने जाने से पहले रॉयटर्स से बातचीत में एक डर जाहिर किया था. वह बोले, "मैं नहीं चाहता कि मंदिर बने. लेकिन उन्होंने इसकी योजना बना ली है. उन्होंने सरकार पर कब्जा कर ही लिया है. वे अब सत्ता में हैं. वे जो चाहे कर सकते हैं." क्या नरेंद्र मोदी अयोध्या में मंदिर बनवाएंगे? इस सवाल का जवाब इतना आसान नहीं है, खुद मोदी के लिए भी नहीं.
जून में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब अमेरिकी संसद में शानदार भाषण की सफलता से मुग्ध भारत लौट रहे थे तो उन्हें अंदाजा भी नहीं था कि कैसा सिरदर्द उनका इंतजार कर रहा है. जब मोदी वतन लौटे तो वह देश को आर्थिक तरक्की की राह पर दौड़ाने के अपने कदमों की तारीफ की उम्मीद कर रहे होंगे लेकिन उनका स्वागत हिंदू कट्टरपंथी आवाजों ने किया जो देश को चलाने के तरीके में ज्यादा हिस्सेदारी चाहते हैं.
अयोध्या: जानिए कब क्या हुआ..
अयोध्या: कब क्या हुआ
भारतीय राजननीति में अयोध्या एक ऐसा सुलगता हुआ मुद्दा रहा है जिसकी आग ने समाज को कई बार झुलसाया है. जानिए, कहां से कहां तक कैसे पहुंचा यह मुद्दा...
तस्वीर: dpa - Bildarchiv
1528
कुछ हिंदू नेताओं का दावा है कि इसी साल मुगल शासक बाबर ने मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई थी.
तस्वीर: DW/S. Waheed
1853
इस जगह पर पहली बार सांप्रदायिक हिंसा हुई.
तस्वीर: Getty Images/AFP/D. E. Curran
1859
ब्रिटिश सरकार ने एक दीवार बनाकर हिंदू और मुसलमानों के पूजा स्थलों को अलग कर दिया.
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1949
मस्जिद में राम की मूर्ति रख दी गई. आरोप है कि ऐसा हिंदुओं ने किया. मुसलमानों ने विरोध किया और मुकदमे दाखिल हो गए. सरकार ने ताले लगा दिए.
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1984
विश्व हिंदू परिषद ने एक कमेटी का गठन किया जिसे रामलला का मंदिर बनाने का जिम्मा सौंपा गया.
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1986
जिला उपायुक्त ने ताला खोलकर वहां हिंदुओं को पूजा करने की इजाजत दे दी. विरोध में मुसलमानों ने बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया.
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1989
विश्व हिंदू परिषद ने मस्जिद से साथ लगती जमीन पर मंदिर की नींव रख दी.
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1992
वीएचपी, शिव सेना और बीजेपी नेताओं की अगुआई में सैकड़ों लोगों ने बाबरी मस्जिद पर चढ़ाई की और उसे गिरा दिया.
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जनवरी 2002
तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने दफ्तर में एक विशेष सेल बनाया. शत्रुघ्न सिंह को हिंदू और मुस्लिम नेताओं से बातचीत की जिम्मेदारी दी गई.
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मार्च 2002
गोधरा में अयोध्या से लौट रहे कार सेवकों को जलाकर मारे जाने के बाद भड़के दंगों में हजारों लोग मारे गए.
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अगस्त 2003
पुरातात्विक विभाग के सर्वे में कहा गया कि जहां मस्जिद बनी है, कभी वहां मंदिर होने के संकेत मिले हैं.
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जुलाई 2005
विवादित स्थल के पास आतंकवादी हमला हुआ. जीप से एक बम धमाका किया गया. सुरक्षाबलों ने पांच लोगों को गोलीबारी में मार डाला.
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2009
जस्टिस लिब्रहान कमिश्न ने 17 साल की जांच के बाद बाबरी मस्जिद गिराये जाने की घटना की रिपोर्ट सौंपी. रिपोर्ट में बीजेपी को जिम्मेदार ठहराया गया.
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सितंबर 2010
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि विवादित स्थल को हिंदू और मुसलमानों में बांट दिया जाए. मुसलमानों को एक तिहाई हिस्सा दिया जाए. एक तिहाई हिस्सा हिंदुओं को मिले. और तीसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़े को दिया जाए. मुख्य विवादित हिस्सा हिंदुओं को दे दिया जाए.
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मई 2011
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को निलंबित किया.
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मार्च 2017
रामजन्म भूमि और बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दोनों पक्षों को यह विवाद आपस में सुलझाना चाहिए.
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मार्च, 2019
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की मध्यस्थता के लिए एक तीन सदस्यीय समिति बनाई. श्रीश्री रविशंकर, श्रीराम पांचू और जस्टिस खलीफुल्लाह इस समिति के सदस्य थे. जून में इस समिति ने रिपोर्ट दी और ये मामला मध्यस्थता से नहीं सुलझ सका. अगस्त, 2019 से सुप्रीम कोर्ट ने रोज इस मामले की सुनवाई शुरू की.
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नवंबर, 2019
सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने फैसला दिया कि विवादित 2.7 एकड़ जमीन पर राम मंदिर बनेगा जबकि अयोध्या में मस्जिद के लिए पांच एकड़ जमीन सरकार मुहैया कराएगी.
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अगस्त, 2020
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में बुधवार को राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन किया और मंदिर की आधारशिला रखी. कोरोना वायरस की वजह से इस कार्यक्रम को सीमित रखा गया था और टीवी पर इसका सीधा प्रसारण हुआ.
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दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के सबसे बड़े नेता नरेंद्र मोदी अपने ही खेमे से किस तरह का दबाव झेल रहे हैं, इसका अंदाजा अयोध्या से लगाया जा सकता है. टूटी-फूटी सड़कों, खुले मैनहोल्स और नालियों से बाहर बहते सड़े हुए पानी के बीच जीते इस पवित्र नगरी को हिंदू दक्षिणपंथी एक ही वजह से चाहते हैं और वह है मंदिर निर्माण. 1992 में बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद से यह चाह बनी हुई है और मोदी के सत्ता में आने के बाद इस चाह को पंख लग गए हैं. अयोध्या में मंदिर निर्माण के अभियान के अगुआ महंत नृत्यगोपाल दास कहते हैं, "हम उम्मीद करते हैं और चाहते हैं कि मोदी के शासनकाल में मंदिर का निर्माण हो."
देखिए, अद्भुत इमारतें जो सैकड़ों साल में बनीं
अद्भुत इमारतें, जिन्हें बनाने में लगे सैकड़ों साल
दुनिया में कुछ ऐसी इमारतें आज भी खड़ी हैं जिनका निर्माण पूरा होते होते सदियां बीत गईं. आइए देखें ऐसे पांच प्रभावशाली भवन.
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वेस्टमिंस्टर ऐबी
विलियम दि कॉन्करर (1066-1087) के समय से अंग्रेज राजा-रानियों की ताजपोशी यहीं होती आई है. इस इमारत का इतिहास तो इससे भी पुराना है. सातवीं सदी में यहां "वेस्ट मिंस्टर" चर्च हुआ करता था. आज मौजूद चर्च की नींव यहां सन 1245 में पड़ी. निर्माण चलता रहा और इसकी दो मुख्य मीनारें सन 1745 में बन कर तैयार हुईं - ठीक 500 साल बाद.
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मिलान कैथीड्रल
यह केवल मिलान शहर ही नहीं, इटली में गॉथिक आर्किटेक्चर का सबसे महत्वपूर्ण प्रतीक है. कैथीड्रल-बैसिलिका ऑफ सांता मारिया नेसेन्टे को आम बोलचाल में मिलान कैथीड्रल के रूप में जाना जाता है. इसकी नींव 1388 में पड़ी और इसे बनाने में कई आर्किटेक्ट्स ने काम किया. सन 1965 में निर्माण पूरा होने तक 577 साल बीच चुके थे.
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कोलोन कैथीड्रल
पश्चिमी जर्मनी में स्थित कोलोन शहर का मशहूर कैथीड्रल जब सन 1880 में बन कर तैयार हुआ, तब वह दुनिया की सबसे ऊंची इमारत थी. उस वक्त वह दुनिया में स्टील की सबसे बड़ी संरचना भी थी. इसका फ्री-स्विंग घंटा भी विश्व में सबसे विशाल था. कैथीड्रल में सलीब पर चढ़े जीसस क्राइस्ट का सबसे प्राचीन प्रदर्शन है. इसे बनने में करीब 632 साल लगे.
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अलहम्ब्रा
स्पेन के ग्रेनादा की साबिका पहाड़ की चोटी पर स्थित अलहम्ब्रा मूरिश आर्किटेक्चर के सबसे महत्वपूर्ण उदाहरणों में से एक है. यूनेस्को के विश्व धरोहरों में शामिल अलहम्ब्रा को देखने हर साल 30 लाख से भी अधिक लोग पहुंचते हैं. इस 'लाल किले' की नक्काशी और छतों पर लकड़ी का महीन काम देख कर अंदाजा लग जाता है कि इसे बनाने में 600 साल से भी अधिक क्यों लगे.
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स्टोनहेंज
किसी को पता नहीं है कि स्टोनहेंज को बनने में ठीक ठीक कितने साल लगे. रिसर्चरों का मानना है कि दक्षिण इंग्लैंड में स्थित इस स्थल के निर्माण के कुल पांच चरण रहे होंगे और इसे पूरा होने में कम से कम 1,400 साल लगे. हालांकि इससे भी बड़ा अनुत्तरित सवाल ये है कि स्टोनहेंज को बनाया क्यों गया.
तस्वीर: picture-alliance/empics/English Heritage
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उत्तर प्रदेश में अगले साल चुनाव होने हैं. सरगर्मियां शुरू हो गई हैं. और उन सरगर्मियों में अयोध्या की भूमिका तेजी से बढ़ रही है. यूपी चुनाव केंद्र में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के लिए बेहद अहम हैं. ये चुनाव मोदी की ताकत की कसौटी माने जा रहे हैं. और यहां जीत मिलने से केंद्र सरकार को राज्यसभा में बहुमत भी मिल जाएगा जो फिलहाल उसकी राह का सबसे बड़ा रोड़ा साबित हो रही है. राज्यसभा में बहुमत का मतलब होगा कि मोदी अपने पूरे एजेंडे को बिना किसी परेशानी के आगे बढ़ा सकेंगे. वैसे उनके कार्यालय ने तो कहा है कि वह मंदिर मुद्दे को चुनावों से दूर रखना चाहते हैं. लेकिन ऐसा होता दिख नहीं रहा है. अयोध्या मोदी के लिए एक मुश्किल परीक्षा बनता जा रहा है. उनके सामने बड़ी दुविधा यह है कि हिंदू कट्टरपंथी मजबूत होते हैं तो उनके आर्थिक एजेंडे को प्रभावित करते हैं. और मजबूत नहीं होते हैं तो भारतीय जनता पार्टी के लिए वोट बटोरने का काम नहीं करेंगे. हिंदू कट्टरपंथियों का मजबूत होना मोदी के आर्थिक एंजेडे को कैसे नुकसान पहुंचाता है, इसकी मिसाल पिछले दिनों आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन के खिलाफ हुए प्रचार से देखने को मिली. इन्हीं कट्टरपंथियों ने अभियान चलाकर राजन को उनके पद से हटवाने का अपना मकसद हासिल कर लिया.
हाल ही में बीजेपी के यूपी अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य अयोध्या पहुंचे तो उनका पूरा जोर इस बात पर था कि चुनाव में विकास और भ्रष्टाचार ही मुद्दा होगा. मौर्य अयोध्या में महंत नृत्यगोपाल दास का जन्मदिन मनाने आए थे. माथे पर तिलक लगाए मौर्य से जब मंदिर के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, "हम हर लोकतांत्रिक संस्था का सम्मान करते हैं." लेकिन इसके बाद पूरा दिन मौर्य ने किया क्या? वह दिनभर उन लोगों के साथ रहे जो बाबरी मस्जिद के गिराए जाने का जश्न मनाते हैं. इन लोगों के बीच बेचैनी बढ़ रही है. मंदिर बना देने की इनकी उम्मीद दो साल से पल रही है जबसे केंद्र में बीजेपी सरकार बनी. लेकिन अब तक इस ओर कोई प्रगति नहीं हुई है जिससे ये लोग बेचैन हो रहे हैं.
विदेश यात्राओं से मोदी ने क्या पाया?
विदेशी मोर्चों पर मोदी की जीत
विदेश यात्राओं को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरोधी उनका खूब मजाक उड़ाते हैं. लेकिन पिछले दो साल में विदेशी मोर्चों पर उनकी कई उपलब्धियां रही हैं. जानिए...
तस्वीर: Getty Images/A.Karimi
भूमिका में बदलाव
प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी दो दर्जन देशों की यात्राएं की हैं. इनमें ऐसी-ऐसी जगह भी शामिल हैं जहां दशकों से कोई भारतीय प्रधानमंत्री नहीं गया था. इससे यह संदेश गया कि भारत विदेशों में अपनी भूमिका बढ़ाना चाहता है.
तस्वीर: AFP/Getty Images/G. Robins
अंतरराष्ट्रीय योग दिवस
संयुक्त राष्ट्र ने हर साल 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने का फैसला किया. जून 2015 से यह पूरी दुनिया में मनाया जा रहा है.
तस्वीर: picture-alliance/Indian Press Information Bureau
एमटीसीआर की सदस्यता
जून 2016 में भारत को एमटीसीआर की सदस्यता मिल गई. मिसाइल टेक्नॉलजी कंट्रोल रेजीम के लिए भारत ने 2015 में अप्लाई किया था. फ्रांस और अमेरिका ने उसका साथ दिया.
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चाबाहार प्रोजेक्ट
मई 2016 में भारत और ईरान के बीच अहम समझौता हुआ जिसके तहत भारत चाबाहार पोर्ट पर एक बर्थ बनाएगा. इससे भारत और अफगानिस्तान के बीच व्यापार के लिए पाकिस्तान पर निर्भरता कम होगी.
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विदेशी भारतीयों का जुड़ाव
नरेंद्र मोदी जहां गए, वहां बसे भारतीयों से मिले. इससे विदेशी भारतीयों में आत्मविश्वास बढ़ा कि उनका देश उनके साथ है. अब वे भारत में निवेश करने में ज्यादा दिलचस्पी दिखा रहे हैं.
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इतिहासकार रामचंद्र गुहा कहते हैं कि मोदी के लिए यूपी चुनाव जीतना ही प्राथमिकता है. उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि मोदी किसी भी तरह यूपी चुनाव जीतना चाहते हैं. लेकिन, इसमें एक झोल है. मोदी जैसी बुद्धिमत्ता वाला व्यक्ति जानता है कि मंदिर का निर्माण उनकी छवि के लिए घातक साबित होगा." गुहा मानते हैं कि इसीलिए बीजेपी अगल-बगल के मुद्दे उठाकर हिंदू कट्टरपंथियों को उलझाए रखना चाहती है. गाय एक ऐसा ही मुद्दा है. भारत में गाय इस वक्त एक राजनीतिक मुद्दा बन चुका है. बीफ बैन के समर्थन और विरोध में प्रदर्शन हो रहे हैं. बहसें हो रही हैं. इस बीच कुछ स्वयंभू गौरक्षक चमड़ा व्यापारियों की पिटाई करके खबरों में बने रहते हैं. आलोचक कहते हैं कि इस तरह के मुद्दों से गैर हिंदू जनता में भय पसरता है.
मोदी के लिए फैसला आसान नहीं है. अगर वह मंदिर निर्माण की ओर कदम बढ़ाते हैं तो उनके समर्थक, खासकर हिंदू कट्टरपंथी बेशक बेहद खुश होंगे लेकिन उसके बाद देश में शांति बनाए रखना एक चुनौती बन जाएगी. 1992 में जब बाबरी मस्जिद गिराई गई थी तो भारत ने भयानक दंगे देखे थे जिनमें हजारों लोगों मारे गए थे. और उसके बाद देश के भीतर कई आतंकवादी संगठन भी खड़े हुए. अशांति पसरते ही आर्थिक विकास रुक जाएगा. यानी मोदी का एजेंडा रुक जाएगा. क्या वह ऐसा चाहेंगे?