मध्य प्रदेश की व्यापारिक नगरी इंदौर नवाचारों के लिए पहचान बना चुका है. इसी क्रम में महिलाओं को विशेष सुविधाएं मुहैया कराने के मकसद से "शी कुंज" स्थापित किए गए हैं.
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"शी कुंज" ऐसे सुविधा केंद्र हैं जहां महिलाओं को आवश्यक सुविधाएं मिल सकेंगी. महिलाओं का भीड़-भाड़ वाले इलाकों में आना जाना होता है और उनके लिए प्रसाधन की बेहतर सुविधा सुलभ नहीं हो पाती. इसी के मद्देनजर नगर निगम ने शहर के प्रमुख स्थानों पर "शी कुंज" स्थापित करने की योजना बनाई है. योजना के तहत चार जगहों पर "शी कुंज" शुरु भी हो गए हैं. यह वे सुविधा केंद्र है जहां महिलाओं को प्रसाधन, स्तनपान, शौचालय आदि की सुविधाएं एक साथ मिल सकेंगी.
बताया गया है कि अभी चार जगहों पर "शी कुंज" स्थापित किए गए है, शहर में कुल 25 जगहों पर यह केंद्र स्थापित करने की योजना है. इन सभी केंद्रों में महिलाओं को घर जैसी सुविधा मिलेगी. इंदौर नगर निगम आयुक्त और स्मार्ट सिटी की कार्यपालक निदेशक प्रतिभा पाल ने बताया कि स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के अंतर्गत शहर के भीड़ भरे इलाकों और बाजारों में महिलाओं की सुविधा के लिए "शी कुंज" बनाए गए हैं.
एक "शी कुंज" का कुल क्षेत्रफल 400 वर्ग फीट है. "शी कुंज" में आने वाली महिलाओं के लिए फीडिंग रूम बनाया गया है. इसमें बैठने के लिए सोफे भी लगाए गए हैं, इसके साथ ही महिलाओं के लिये सुविधा घर में सौन्दर्य प्रसाधन सामग्री भी रखी गई है और महिलाओं के लिए सैनिटरी पैड मशीन भी लगाई गई है. यह सब सुविधाएं मुफ्त रहेंगी. साथ ही महिलाओं की सुरक्षा के लिए गार्ड की तैनाती भी की जाएगी. इंदौर नगर निगम और स्मार्ट सिटी के तहत कोई राशि व्यय नहीं की जाएगी, यह सुविधा घर सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) मॉडल पर तैयार किया गया है.
आईएएनएस
जर्मनी में स्नान संस्कृति का इतिहास
सामूहिक रूप से स्नान का इतिहास प्राचीन काल तक जाता है. रोमन काल के गरम सोतों से लेकर मध्य युग के स्नानगृहों से होकर सागर तटों पर नहाने तक इसने लंबा सफर तय किया है. आइए नहाने के इतिहास पर एक नजर डालें.
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स्विमिंग सूट उठाओ...
ये 1950 के दशक की एक लोकप्रिय जर्मन धुन से टेक था. गर्म पानी, नीला आसमान और अंतहीन धूप लाखों जर्मनों को उत्तरी सागर के समुद्र तटों की ओर आकर्षित कर रहा था. और जिनके घर के आसपास कोई समुद्र तट नहीं होता, वे पड़ोस की सबसे नजदीकी झील या सार्वजनिक पूल में तैरने चले जाते थे. लोग हजारों वर्षों से पानी से रोमांचित होते रहे हैं और हर युग की अपनी स्नान संस्कृति रही है.
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रोमन पूल परिसर
रोमन साम्राज्य के शुरुआती दिनों में लोग सार्वजनिक स्नान के बड़े प्रशंसक थे. इसे यहां जीर्णोद्धार किए गए उस काल के स्पा में देखा जा सकता है. रोमन काल के पुरुष और महिलाएं पानी के गर्म, गुनगुने और ठंडे पूलों के बीच बारी-बारी से पसीना बहाया करते थे. उन दिनों वे एक साथ नहीं अलग-अलग हिस्सों में नहाया करते थे. रोमन स्पा मुख्य रूप से स्नान के अलावा गपशप, विश्राम और कारोबार के लिए मुलाकातों की जगह भी थे.
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स्नान घर और पाप की तपिश
रोमन साम्राज्य के पतन के बाद स्पा संस्कृति का पतन होने लगा. मध्य युग के दौरान लोग पानी से कतई नहीं डरते थे. इस तरह के स्नानघरों में लोग टबों में नहाया करते थे, हालांकि कैथोलिक चर्च अत्यधिक स्नान को पाप बताता था. रोम की ही तरह मध्ययुग में भी स्नानागार मुलाकातों और आपस में घुलने मिलने की जगह होते थे. और कभी-कभी यह पाप के केंद्र बन जाते थे जहां पुरुष और महिलाएं एक साथ मिलते.
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स्पा की लोकप्रियता
पानी सिर्फ पानी नहीं होता. 15 वीं सदी में खनिजों से भरे सोते बीमारी का तेज इलाज चाहने वाले अमीरों के लिए बड़ा आकर्षण थे. उस समय का मंत्र था कि "बहुत ज्यादा बहुत मदद करता है." स्पा आने वाले मेहमान अपना समय लंबे समय तक विशेष टब में डूबकर बिताते थे. खूब सारा भोजन, पीने के लिए कई तरह की ड्रिंक और जमकर पार्टी सेहत की तैयारियों का हिस्सा था.
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अमीरों के लिए नहाने का मजा
सदियों पहले से ही स्पा जाने वाले अपने टबों से बाहर निकलकर समुद्र की ओर जाने लगे थे. बाल्टिक तट पर स्थित हाइलिगेनडम 1793 में जर्मनी का पहला आउटडोर स्पा था और वह आज भी मौजूद है. यह रूस के जार सहित दुनिया भर के मेहमानों में बहुत ही लोकप्रिय था. हाइलिगेनडम बहुत ही महंगा ठिकाना था जहां केवल अमीर लोग ही जा सकते थे. बाकी की आबादी झीलों या नदियों में तैरने जाती थी.
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महिलाओं के लिए स्नान गाड़ियां
समुद्र तट पर और नए स्पा बनने में ज्यादा वक्त नहीं लगा. हालांकि उन दिनों महिलाओं के लिए पुरुषों के आस-पास कहीं भी स्नान करना असभ्य माना जाता था. एक विकल्प था नहाने के लिए खासतौर से बनी घोड़ा गाड़ियां. वह मेहमानों को समुद्र तट से पानी तक ले जाती थीं, जहां महिलाएं चुपचाप समुद्र के पानी में नहा सकती थीं. बाद में समुद्र से दूर के शहरों ने भी नदी के किनारे सार्वजनिक स्नानघर बनाना शुरू कर दिया.
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गर्मियों की छुट्टियां
ऊजेडोम द्वीप पर ली गई इस तस्वीर में लिखा है, आलबेक पुरुष स्पा में पुरुष सौंदर्य. बाल्टिक रिसॉर्ट 20 वीं सदी की शुरुआत में गर्मियों में छुट्टियां बिताने की किफायती जगह थी जहां अधिक से अधिक लोग आ सकते थे. लेकिन, यहां महिलाएं नहीं आया करती थीं. महिलाओं के नहाने का अपना इलाका मुख्य समुद्र तट से दूर था. 1920 में जर्मनी में विवाहित जोड़ों को एक साथ नहाने की अनुमति मिली.
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सभी के लिए सार्वजनिक स्नान
उसके बाद जल्द ही साथ नहाना जर्मनी में लोकप्रिय होने लगा. 1900 के आसपास जर्मनी के कई शहरों में सार्वजनिक स्विमिंग पूल बन गए जहां कोई भी जा सकता था. जो लोग खर्च नहीं करना चाहते थे उनके लिए बर्लिन में वान्न लेक की तरह अक्सर पास में तैरने की जगह हुआ करती थी. तैराकी आम लोगों का शगल बन गया. 1870 से डॉक्टर कहने लगे थे कि "हर जर्मन को हफ्ते में एक बार स्नान करना चाहिए."
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'स्वीडिश बाथ'
जब सामूहिक रूप से नहाने की प्रथा विकसित हो रही थी तो नग्न स्नान का आंदोलन भी शुरू हुआ. यह बहुत से लोगों के लिए चौंकाने वाली बात थी. हिप्पी आंदोलन से आधी सदी पहले ही नग्न होकर नहाने के आंदोलन ने नैतिकता के रखवालों को परेशानी में डाल दिया. जर्मनी में स्वीडिश बाथ कहा जाने वाला नग्न स्नान 1900 के आसपास दिखाई दिया और इसे सहज व्यवहार के खिलाफ माना जाता था.
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'हंगेरियन सी' पर छुट्टियां
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद कम्युनिस्ट पूर्वी जर्मनी के निवासी भी छुट्टियां बिताने और गर्मियों में तैरने के लिए बाल्टिक से बाहर दूसरे समुद्र तटों पर जाना चाहते थे. लेकिन, पश्चिम जर्मनी के भाइयों के विपरीत, उन्हें पश्चिम में छुट्टी बिताने की अनुमति नहीं थी. हंगरी में बालाटोन लेक एक विकल्प था. पैसे बचाने के लिए यहां छुट्टियां बिताने वाले पूर्वी जर्मन हमेशा डिब्बाबंद सामान साथ ले जाते थे.
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बीच पर जगह की कमी
आजकल तैरना नियमित व्यायाम का हिस्सा है. जगह जगह स्विमिंग पूल बने हैं और दूसरे देशों में छुट्टियां बिताना भी सामान्य है. गर्मियों में कई समुद्र तटों पर लोगों की ऐसी भीड़ होती है कि वे पानी में सार्डिन मछली की तरह दिखते हैं. लेकिन अगर भीड़ से बचना हो तो हर कहीं समुद्र तटों पर सुनसान इलाके अभी भी मिल जाते हैं. प्राथमिकता चाहे जो हो, लोगों को हर कहीं अपने लिए एक स्नान संस्कृति मिल ही जाती है.