हांगकांग का कानून विदेशी घरेलू सहायकों को गुलाम जैसा बना देता है. यही कारण है कि महामारी के बीच भी कई घरेलू सहायकों को घर से निकाल दिया गया. परदेस में उन्हें ना तो छत मिली, ना इलाज.
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चीन की वित्तीय राजधानी हांगकांग, दुनिया में सबसे घनी आबादी वाले महानगरों में से एक है. हांगकांग में करीब तीन लाख 70 हजार विदेशी नागरिक घरेलू सहायक का काम करते हैं. इनमें ज्यादातर फिलीपींस और इंडोनेशिया की महिलाएं हैं. वे घर की सफाई, खाना पकाना और बच्चों की देखभाल करती हैं. कानून के मुताबिक विदेशी घरेलू सहायक को अपने मालिक के साथ ही रहना पड़ता है. उन्हें हफ्ते में छह दिन काम करना पड़ता है और आराम करने के लिए एक दिन की छुट्टी मिलती है. आसानी से नौकरी बदलना उनके लिए मुमकिन नहीं है.
हांगकांग इस वक्त कोरोना से जूझ रहा है. हर दिन हजारों मामले सामने आ रहे हैं और अस्पताल भी फुल होने लगे हैं. लेकिन इसी दौर में बड़ी संख्या में विदेशी घरेलू सहायकों को घर और नौकरी से निकाला जा रहा है. कुछ ऐसे मामले भी सामने आए हैं, जहां कोविड पॉजिटिव होने पर घरेलू सहायक को बेघर कर दिया गया. घरेलू सहायक का काम करने वाले विदेशी नागरिकों के संगठन के मुताबिक कई डोमेस्टिक वर्कर्स सड़कों पर सोने को मजबूर हैं. नौकरी न होने की वजह से अस्पताल भी उनका इलाज नहीं कर रहे हैं.
खुद घरेलू सहायक की नौकरी करने वाली इंडोनेशिया की इनी लेस्तारी कहती हैं, "हमारी उपेक्षा की गई है. हमें सेवाएं देने से इनकार किया जा रहा है, हमें अकेला छोड़ दिया गया है." डोमेस्टिक वर्कर्स के अधिकारों के लिए लड़ने वाली लेस्तारी के मुताबिक महामारी के दौरान घरेलू सहायकों ने हर तरीके से अपने मालिकों की मदद की. लेकिन बदले में उनके साथ ऐसा सलूक किया जा रहा है.
सबका जोर गरीब विदेशी कामगारों पर
कार्यकर्ताओं के मुताबिक नौकरी देने वालों का ऐसा व्यवहार नया नहीं है. वे कहते हैं, कुछ मालिक तो एक दिन के ऑफ के दौरान भी घरेलू सहायक घर से बाहर नहीं निकलने देते हैं. कुछ घरेलू सहायकों को एक दिन की तय छुट्टी लेने के कारण नौकरी से निकाल दिया गया. एशियन माइग्रेंट्स कॉर्डिनेटिंग बॉडी की डोलोरेस बालाड्रेस पलाइज कहती हैं, "हमारे लिए घर पर रहने का मतलब है कि हमें काम करना होगा." सरकार और समाज से अपील करते हुए उन्होंने कहा कि घरेलू सहायकों को आपकी "करुणा और मदद" की जरूरत है.
घरेलू सहायकों की आवाज उठाने वाले संगठनों के मुताबिक पुलिस का जोर भी इन्हीं विदेशी नागरिकों पर ज्यादा चलता है. कोरोना के कारण सोशल डिस्टेंसिंग के नियम लागू किए गए हैं. वीकेंड पर जब घरेलू सहायकों को एक दिन का ऑफ मिलता, तभी जुर्माने के सबसे ज्यादा मामले सामने आते हैं. ज्यादातर मामलों में जुर्माने की रकम घरेलू सहायकों की महीने भर तनख्वाह से भी ज्यादा है.
हांगकांग में भी चीन की तरह जीरो कोविड पॉलिसी है. लेकिन वित्तीय केंद्र होने के कारण कई तरह का काम काज में रियायत दी गई है.
यहां है टॉयलेट और रसोई एक साथ
क्या आप रसोई के साथ टॉयलेट शेयर करने के बारे में सोच सकते हैं. शायद नहीं. लेकिन हांगकांग में आज यह नजारा हकीकत बन चुका है. जगह की कमी ने लोगों की जिंदगी दूभर कर दी है.
तस्वीर: Benny Lam & SoCo
खाना बनाने की जगह
यहां टॉयलेट और चॉपिंग बोर्ड की दूरी में फासला बेहद ही कम है. तस्वीर में नजर आ रहा है कि कैसे चावल बनाने का कुकर, टीपॉट और किचन के दूसरे बर्तन टॉयलेट सीट के पास पड़े हुए है. हांगकांग के कई अपार्टमेंट में रसोई और टॉयलेट ऐसे ही एक साथ बने हुए हैं.
तस्वीर: Benny Lam & SoCo
किचन और बाथरूम
कैनेडियन फोटोग्राफर बेनी लेम ने हांगकांग में बने ऐसे अपार्टमेंट और यहां रह रहे लोगों की तस्वीरों को अपने कैमरे में कैद किया. इन तस्वीरों की सिरीज "ट्रैप्ड" के तहत एक गैरलाभकारी संस्था द सोसाइटी फॉर कम्युनिटी ऑर्गनाइजेशन (एसओसीओ) के साथ तैयार किया गया है. यह संस्था हांगकांग में गरीबी उन्मूलन और नागरिक अधिकारों के लिए काम करती है.
तस्वीर: Benny Lam & SoCo
जगह की कमी
75 लाख की आबादी वाले हांगकांग में अब जगह की कमी होने लगी है. यहां घरों की कीमतें आकाश छू रही हैं. प्रॉपर्टी के मामले में हांगकांग दुनिया का काफी महंगा शहर है. कई लोगों के पास इस तरह से रहने के अलावा कोई विकल्प ही नहीं बचा है. और शायद, लोगों ने भी ऐसे रहना सीख भी लिया है.
तस्वीर: Benny Lam & SoCo
अमानवीय स्थिति
एसओसीओ के मुताबिक, हांगकांग की जनगणना और सांख्यिकी विभाग की रिपोर्ट बताती है कि करीब दो लाख लोग ऐसे ही 88 हजार छोटे अपार्टमेंट में अपना जीवन गुजार रहे हैं. स्वयं को ऐसी स्थिति में ढालने के लिए लोगों को काफी मशक्कत करनी पड़ती है.
तस्वीर: Benny Lam & SoCo
दोगुनी कीमत
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक हांगकांग के प्रमुख इलाकों में साल 2007 से 2012 के बीच अपार्टमेंट की कीमत दोगुनी हो गई. इन छोटे-छोटे कमरों में रहने वालों कई लोग कहते हैं कि उन्हें यहां जाने से डर भी लगता है. वहीं कुछ कहते हैं कि उनके लिए यहां रहना इसलिए मुश्किल है क्योंकि उनके पास यहां सांस लेने के लिए खुली हवा भी नहीं होती.
तस्वीर: Benny Lam & SoCo
एक गद्दे का घर
अपने एक गद्दे के अपार्टमेंट में एक किरायेदार टीवी देखते हुए. यहां कम आय वालों के पास ऐसे रहने के अलावा कोई और विकल्प ही नहीं है. अब इन लोगों ने ऐसे रहना सीख लिया है. भले ही वे इस जगह खड़े होकर न तो अंगड़ाई ही ले पाते हो या न ही सुस्ता पाते हों. लेकिन यहां रहते-रहते इन लोगों की कॉकरोच और खटमल से दोस्ती जरूर हो जाती है.
तस्वीर: Benny Lam & SoCo
पिंजरा या ताबूत
फोटोग्राफर लैम दो साल तक हांगकांग के ऐसे ही गरीब इलाके को कैमरे में कैद करते रहे हैं. इन इलाकों में गरीब और अमीर के बीच की खाई बहुत गहरी है. इन फ्लैट्स को अकसर पिंजरे और ताबूत की संज्ञा दी जाती है. जो होटल, मॉल्स, टॉवर वाले चमचमाते हांगकांग का चौंकानेवाला चेहरा उजागर करता है.
तस्वीर: Benny Lam & SoCo
सरकारी मशीनरी
रहने का यह तरीका लोगों की मानसिक स्थिति पर भी बुरा असर डालता है. हालांकि कई लोग सालों से ऐसे ही यहां गुजर-बसर कर रहे हैं. सरकारी प्रक्रिया के तहत घर मिलने में यहां औसतन पांच साल का समय लगता है. लेकिन यह इंतजार एक दशक तक बढ़ना बेहद ही आम है.
तस्वीर: Benny Lam & SoCo
मानवीय गरिमा का अपमान
संयुक्त राष्ट्र मानता है कि ऐसे पिंजरों और ताबूत के आकार वाले घरों में रहना, मानवीय गरिमा के विरुद्ध है. हालांकि हांगकांग सरकार कहती है कि साल 2027 तक यहां करीब 2.80 लाख नए अपार्टमेंट बनाए जाएंगे. एसओसीओ कहता है कि जो लोग इन अमानवीय स्थितियों में रहने के लिए मजबूर हैं उनके लिए इस बीच भी कदम उठाए जाने चाहिए. (अयू पुरवानिग्से)