हांग कांग में लोकतंत्र समर्थक अखबार एप्पल डेली के खिलाफ बड़ी कार्रवाई की गई है. पांच सौ पुलिसकर्मियों ने अखबार के दफ्तर पर छापा मारा और चीन की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताते हुए पत्रकारों की सामग्री जब्त कर ली.
विज्ञापन
बाद में पुलिस ने पांच अधिकारियों को भी गिरफ्तार किया है, जिनमें एप्पल डेली के मुख्य संपादक शामिल हैं. अखबार से जुड़ी तीन कंपनियों की लगभग 1.8 करोड़ हांग कांग डॉलर यानी करीब 17 करोड़ रुपये की संपत्ति भी जब्त कर ली गई. यह दूसरी बार है जब अखबार के दफ्तर पर छापा मारा गया है. पिछले साल ही अखबार चलाने वाली कंपनी नेक्स्ट डिजिटल के मालिक जिमी लाई को गिरफ्तार किया गया था. जिमी लाई एक लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ता और चीन के कट्टर आलोचक हैं.
अखबार पर खतरा
गुरुवार के छापे के बाद अखबार ने शुक्रवार को आम तौर पर छपने वाली 80 हजार से बढ़ाकर पांच लाख प्रतियां छापी हैं क्योंकि 75 लाख लोगों के शहर में इनकी मांग बढ़ने की उम्मीद जताई गई थी. पिछले साल अगस्त में लाई की गिरफ्तारी के बाद भी अखबार ने ऐसा ही किया था.
अखबार के एक पाठक सांग ने बताया कि वह आधी रात को ही अखबार की दो-तीन प्रति खरीद लाए थे. उन्होंने कहा, "पता नहीं यह अखबार कब मर जाएगा. हांग कांग निवासी होने के नाते हमें इतिहास को सहेजने की जरूरत है. जब तक हो सके, टिके रहना है. हालांकि रास्ता मुश्किल है फिर हमें इसी पर चलना है. कोई और रास्ता तो है नहीं.”
शुक्रवार को अखबार ने छापे को अपनी मुख्य खबर बनाया है. अखबार ने लिखा है कि पुलिस ने 44 हार्ड डिस्क जब्त कर ली हैं. 2020 में लोकतंत्र समर्थकों द्वारा चीन विरोधी प्रदर्शनों के बाद से यह पहली बार है जबकि अधिकारियों ने पत्रकारों के लेखों को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून का उल्लंघन करने वाला बताया है.
कैसे शुरू हुआ ताइवान और चीन के बीच झगड़ा
1969 में साम्यवादी चीन को चीन के रूप में मान्यता मिली. तब से ताइवान को चीन अपनी विद्रोही प्रांत मानता है. एक नजर डालते हैं दोनों देशों के उलझे इतिहास पर.
तस्वीर: Imago/Panthermedia
जापान से मुक्ति के बाद रक्तपात
1945 में दूसरे विश्वयुद्ध के खत्म होने के साथ ही जापानी सेना चीन से हट गई. चीन की सत्ता के लिए कम्युनिस्ट पार्टी के नेता माओ त्सेतुंग और राष्ट्रवादी नेता चियांग काई-शेक के बीच मतभेद हुए. गृहयुद्ध शुरू हो गया. राष्ट्रवादियों को हारकर पास के द्वीप ताइवान में जाना पड़ा. चियांग ने नारा दिया, हम ताइवान को "आजाद" कर रहे हैं और मुख्य भूमि चीन को भी "आजाद" कराएंगे.
तस्वीर: AFP/Getty Images
चीन की मजबूरी
1949 में ताइवान के स्थापना के एलान के बाद भी चीन और ताइवान का संघर्ष जारी रहा. चीन ने ताइवान को चेतावनी दी कि वह "साम्राज्यवादी अमेरिका" से दूर रहे. चीनी नौसेना उस वक्त इतनी ताकतवर नहीं थी कि समंदर पार कर ताइवान पहुंच सके. लेकिन ताइवान और चीन के बीच गोली बारी लगी रहती थी.
तस्वीर: Imago/Zuma/Keystone
यूएन में ताइपे की जगह बीजिंग
1971 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने चीन के आधिकारिक प्रतिनिधि के रूप में सिर्फ पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना को चुना. इसके साथ ही रिपब्लिक ऑफ चाइना कहे जाने वाले ताइवान को यूएन से विदा होना पड़ा. ताइवान के तत्कालीन विदेश मंत्री और यूएन दूत के चेहरे पर इसकी निराशा साफ झलकी.
तस्वीर: Imago/ZUMA/Keystone
नई ताइवान नीति
एक जनवरी 1979 को चीन ने ताइवान को पांचवा और आखिरी पत्र भेजा. उस पत्र में चीन के सुधारवादी शासक डेंग शिआयोपिंग ने सैन्य गतिविधियां बंद करने और आपसी बातचीत को बढ़ावा देने व शांतिपूर्ण एकीकरण की पेशकश की.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/UPI
"वन चाइना पॉलिसी"
एक जनवरी 1979 के दिन एक बड़ा बदलाव हुआ. उस दिन अमेरिका और पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के बीच आपसी कूटनीतिक रिश्ते शुरू हुए. जिमी कार्टर के नेतृत्व में अमेरिका ने स्वीकार किया कि बीजिंग में ही चीन की वैधानिक सरकार है. ताइवान में मौजूद अमेरिकी दूतावास को कल्चरल इंस्टीट्यूट में तब्दील कर दिया गया.
तस्वीर: AFP/AFP/Getty Images
"एक चीन, दो सिस्टम"
अमेरिकी राष्ट्रपति कार्टर के साथ बातचीत में डेंग शिआयोपिंग ने "एक देश, दो सिस्टम" का सिद्धांत पेश किया. इसके तहत एकीकरण के दौरान ताइवान के सोशल सिस्टम की रक्षा का वादा किया गया. लेकिन ताइवान के तत्कालीन राष्ट्रपति चियांग चिंग-कुओ ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. 1987 में ताइवानी राष्ट्रपति ने एक नया सिद्धांत पेश किया, जिसमें कहा गया, "बेहतर सिस्टम के लिए एक चीन."
तस्वीर: picture-alliance/Everett Collection
स्वतंत्रता के लिए आंदोलन
1986 में ताइवान में पहले विपक्षी पार्टी, डेमोक्रैटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (डीपीपी) की स्थापना हुई. 1991 के चुनावों में इस पार्टी ने ताइवान की आजादी को अपने संविधान का हिस्सा बनाया. पार्टी संविधान के मुताबिक, ताइवान संप्रभु है और पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना का हिस्सा नहीं है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Yeh
एक चीन का पेंच
1992 में हॉन्ग कॉन्ग में बीजिंग और ताइपे के प्रतिनिधियों की अनऔपचारिक बैठक हुई. दोनों पक्ष आपसी संबंध बहाल करने और एक चीन पर सहमत हुए. इसे 1992 की सहमति भी कहा जाता है. लेकिन "एक चीन" कैसा हो, इसे लेकर दोनों पक्षों के मतभेद साफ दिखे.
तस्वीर: Imago/Xinhua
डीपीपी का सत्ता में आना
सन 2000 में पहली बार विपक्षी पार्टी डीपीपी के नेता चेन शुई-बियान ने राष्ट्रपति चुनाव जीता. मुख्य चीन से कोई संबंध न रखने वाले इस ताइवान नेता ने "एक देश दोनों तरफ" का नारा दिया. कहा कि ताइवान का चीन से कोई लेना देना नहीं है. चीन इससे भड़क उठा.
तस्वीर: Academia Historica Taiwan
"एक चीन के कई अर्थ"
चुनाव में हार के बाद ताइवान की केमटी पार्टी ने अपने संविधान में "1992 की सहमति" के शब्द बदले. पार्टी कहने लगी, "एक चीन, कई अर्थ." अब 1992 के समझौते को ताइवान में आधिकारिक नहीं माना जाता है.
तस्वीर: AP
पहली आधिकारिक मुलाकात
चीन 1992 की सहमति को ताइवान से रिश्तों का आधार मानता है. दूसरे विश्वयुद्ध के बाद 2005 में पहली बार ताइवान की केएमटी पार्टी और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के शीर्ष नेताओं की मुलाकात हुई. चीनी राष्ट्रपति हू जिन्ताओ (दाएं) और लियान झान ने 1992 की सहमति और एक चीन नीति पर विश्वास जताया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Reynolds
"दिशा सही है"
ताइवान में 2008 के चुनावों में मा यिंग-जेऊ के नेतृत्व में केएमटी की जीत हुई. 2009 में डॉयचे वेले को दिए एक इंटरव्यू में मा ने कहा कि ताइवान जलडमरूमध्य" शांति और सुरक्षित इलाका" बना रहना चाहिए. उन्होंने कहा, "हम इस लक्ष्य के काफी करीब हैं. मूलभूत रूप से हमारी दिशा सही है."
तस्वीर: GIO
मा और शी की मुलाकात
नवंबर 2015 में ताइवानी नेता मा और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात हुई. दोनों के कोट पर किसी तरह का राष्ट्रीय प्रतीक नहीं लगा था. आधिकारिक रूप से इसे "ताइवान जलडमरूमध्य के अगल बगल के नेताओं की बातचीत" कहा गया. प्रेस कॉन्फ्रेंस में मा ने "दो चीन" या "एक चीन और एक ताइवान" का जिक्र नहीं किया.
तस्वीर: Reuters/J. Nair
आजादी की सुगबुगाहट
2016 में डीपीपी ने चुनाव जीता और तसाई इंग-वेन ताइवान की राष्ट्रपति बनीं. उनके सत्ता में आने के बाद आजादी का आंदोलन रफ्तार पकड़ रहा है. तसाई 1992 की सहमति के अस्तित्व को खारिज करती हैं. तसाई के मुताबिक, "ताइवान के राजनीतिक और सामाजिक विकास में दखल देने चीनी की कोशिश" उनके देश के लिए सबसे बड़ी बाधा है. (रिपोर्ट: फान वांग/ओएसजे)
तस्वीर: Sam Yeh/AFP/Getty Images
14 तस्वीरें1 | 14
हांग कांग के सुरक्षा मंत्री जॉन ली ने अखबार के दफ्तर को ‘क्राइम सीन' बताया. उन्होंने कहा कि यह कार्रवाई उन लोगों के खिलाफ थी, जो पत्रकारिता को राष्ट्रीय सुरक्षा के खिलाफ एक औजार की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं.
विज्ञापन
दुनिया भर में प्रतिक्रिया
चीन की इस कार्रवाई की दुनिया के कई देशों ने आलोचना की है. यूरोपीय संघ और ब्रिटेन ने कहा है कि छापे दिखाते हैं कि चीन कानून का इस्तेमाल असहमति की आवाजों को दबाने के लिए कर रहा है. यूरोपीय संघ की प्रवक्ता नाबिला मसाराली ने एक बयान में कहा कि ये छापे "फिर दिखाते हैं कि राष्ट्रीय सुरक्षा कानून को हांग कांग में मीडिया की आजादी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है.” उन्होंने कहा, "यह जरूरी है कि हांग कांग के लोगों के अधिकारों और आजादियों की सुरक्षा की जाए. मीडिया और प्रकाशन की स्वतंत्रता समेत.”
ब्रिटेन क विदेश मंत्री डॉमिनिक राब ने कहा कि यह असहमति को दबाने की कार्रवाई है. चीन के साथ हांग कांग को लेकर हुए समझौते का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, "मीडिया की स्वतंत्रता उन अधिकारों में से एक है, जिनका साझा घोषणा में चीन ने वादा किया था. इसकी रक्षा होनी चाहिए.”
ब्रिटेन ने 1997 में हांग कांग को चीन को सौंपा था. तब दोनों देशों ने एक साझा ऐलान किया था जिसके तहत इस शहर को विशेष अधिकार दिए गए थे. ‘एक देश, दो व्यवस्थाएं' का यह सिद्धांत 1984 में चीन और ब्रिटेन के बीच हुए समझौते पर आधारित है. लेकिन ब्रिटेन और उसके सहयोगी कहते हैं कि चीन राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के इस्तेमाल के जरिए इस सिद्धांत का उल्लंघन कर रहा है.
चीन हालांकि इसे अपना अंदरूनी मामला बताता है. वह कई बार ब्रिटेन और अमेरिका समेत पश्चिमी देशों को उसके अंदरूनी मामलों में दखलअंदाजी ना करने को कह चुका है.
वीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी)
चीन ने कब-कब बदली अपनी जनसंख्या नीति
चीन को दशकों से अपने नागरिकों पर बच्चे पैदा करने को लेकर कड़े नियम लागू करने वाले देश के रूप में जाना जाता है. जानिए कब कब बदली चीन की जनसंख्या नीति.
तस्वीर: Reuters
एक-बच्चा नीति
चीन ने 1979 में अपनी विवादास्पद एक-बच्चा नीति की शुरुआत की थी. उस समय चीन की सरकार का कहना था कि गरीबी मिटाने और अर्थव्यवस्था को विकसित करने की कोशिशों को तेजी से बढ़ रही जनसंख्या की वजह से नुकसान पहुंच रहा था.
तस्वीर: picture-alliance/Imaginechina
कइयों के दो बच्चे थे
शहरों में जो लोग अपने अपने माता पिता की इकलौती संतान थे उन्हें दो बच्चे पैदा करने की अनुमति थी. ग्रामीण इलाकों में भी कई लोगों पर कुछ ढीले प्रतिबंध लागू थे, जिसकी वजह से ऐसे कई लोग थे जिनके दो बच्चे थे.
तस्वीर: Wang Fei/Xinhua/imago images
बेटों की चाहत
2015 में चीन में अवैध रूप से जन्मपूर्व भ्रूण का लिंग जानने के लिए की जाने वाली जांच और अनचाहे लिंग के भ्रूण के गर्भपात को रोकने के लिए अभियान शुरू किया. सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ के मुताबिक ऐसा लैंगिक असुंतलन की समस्या से निपटने के लिए किया गया. चीन में पारंपरिक रूप से बेटों के प्रति झुकाव है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A. Wong
दो-बच्चा नीति
2016 में चीन ने लोगों को दो बच्चे पैदा करने की अनुमति दी. ऐसा बुजुर्गों की बढ़ती जनसंख्या से निपटने और कम होती श्रमिक संख्या को बढ़ाने के लिए किया गया.
तस्वीर: Reuters/T. Peter
गिरी जन्म दर
लेकिन दो-बच्चा नीति के बावजूद, 2019 में हर 1000 व्यक्तियों पर जीवित जन्मे बच्चों की संख्या 10.48 के रिकॉर्ड कम स्तर पर पहुंच गई. 2018 में यह संख्या 10.94 थी.
तस्वीर: Hu Huhu/Xinhua/imago images
बदलती हकीकत
2019 के मुकाबले 2020 में चीन में जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या में 15 प्रतिशत गिरावट आई. कोरोना वायरस के आने से अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ा और परिवार बढ़ाने के फैसलों पर भी.
तस्वीर: Noel Celis/AFP/Getty Images
"समावेशी" नीति
चीनी सरकार ने मार्च 2021 में कहा कि वो देश की जनसंख्या नीति को "और समावेशी" बनाएगी और बच्चे पालने के खर्च को भी कम करने की कोशिश करेगी. देश में तेजी से बढ़ती बुजुर्गों की आबादी को लेकर चिंताएं बढ़ती जा रही हैं.
तस्वीर: Aly Song/REUTERS
थमती जनसंख्या वृद्धि
मई में हुई जनगणना में सामने आया कि पिछले दशक में चीन की जनसंख्या बढ़ने की गति 1950 के दशक के बाद से अभी तक की सब्सि धीमी गति रही. इससे सरकार पर लोगों को और बच्चे पैदा करने के लिए प्रलोभन देने का दबाव और बढ़ गया. 31 मई 2021 को एक बड़े नीतिगत बदलाव के तहत लोगों को तीन बच्चे पैदा करने की इजाजत दे दी गई. (रॉयटर्स)
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Reynolds
दो से ज्यादा बच्चों की जरूरत
ग्वांगडोंग की जनसंख्या विकास अकादमी के निदेशक डॉन्ग यूशेंग जैसे विशेषज्ञों ने कहा कि अगर सरकार जल्द अधिकतम दो बच्चे पैदा करने की नीति को खत्म नहीं करती है तो अगले पांच सालों में हर साल में एक करोड़ से भी कम बच्चे पैदा हो सकते हैं.