क्यों है जहरीली शराब की गिरफ्त में बिहार
१८ दिसम्बर २०२२दिन-गुरुवार, स्थान-मशरख प्रखंड का बहरौली गांव. यहां चारों तरफ चीत्कार सुनाई दे रही है. जहरीली शराब पीने से इस गांव के 12 लोगों की मौत हो चुकी है और कई अन्य अभी अस्पताल में भर्ती हैं. सभी अति पिछड़े वर्ग के और गरीब हैं. जगह-जगह लोग जमा हैं, लेकिन सब शांत और आक्रोशित. अपनों को खो चुके लोगों की आंखें नम हैं. पुलिस-प्रशासन के अधिकारी व स्थानीय जन प्रतिनिधि भी यहां दिख रहे हैं. लगातार विलाप कर रही एक महिला के बारे में पूछने पर पता चलता है कि वह फूलमती देवी हैं और देसी शराब पीकर मरने वालों में उनके दो पुत्र कमलेश साह और सूरज साह भी हैं.
शराबबंदी वाले राज्य में शराब की लत के शिकार बने सैकड़ों पुलिसवाले
इस परिवार के कुल पांच लोगों की मौत हुई है. कई घरों के दरवाजे पर महिलाएं-बच्चे बिलख रहे थे. नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर ग्रामीण बताते हैं, ‘‘शराब माफिया के दबाव में मरने वालों में तो कई का पोस्टमार्टम के बिना ही अंतिम संस्कार कर दिया गया." गांव के मुखिया अजीत कुमार सिंह भी स्वीकार करते हैं कि लोग शराब माफिया के दबाव में पुलिस को सूचना दिए बिना ऐसा कर रहे हैं. वहीं, एक अन्य युवक का कहना था, ‘‘कौन नहीं जानता कि लोगों को शराब कहां से मिलती है. पुलिस को भी खूब पता है. शराब की होम डिलीवरी भी होती है. कोई अगर पुलिस को सूचित करता है तो उसकी जान पर बन आती है, क्योंकि शराब माफिया के लोग हर जगह मौजूद हैं. जो इस सिंडिकेट की सबसे निचली कड़ी है.'' गुरुवार की रात तक 53 लोगों की जान जा चुकी थी और कई लोग अस्पताल में भर्ती थे. शराब पीकर मरने वालों में तीन सप्लायर भी थे. इसकी सप्लाई टेट्रा पैक में की गई थी.
पुलिस लापरवाह, सिंडिकेट चुस्त
सारण जिले के इन्हीं इलाकों में चार माह पहले 18 लोगों की मौत हो गई थी. इन लोगों की मौत की वजह जहरीली शराब थी, यह पता करने में तीन महीने से अधिक का वक्त लग गया. विसरा जांच अगर प्राथमिकता में होती तो दस दिन में रिपोर्ट मिल जाती. बताया जाता है कि इन लोगों ने देसी शराब (कंट्री मेड) का सेवन किया था और जहां-जहां से इसे खरीदा था, उन सबों का सप्लायर एक ही था. लेकिन, सभी ने एक जगह इसे पीया नहीं था. शराब की उपलब्धता किस हद तक सहज थी, इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि मामला सामने आने के बाद से बीते 48 घंटे के दौरान 600 लीटर देसी शराब जब्त की जा चुकी है तथा 150 धंधेबाज पकड़े जा चुके हैं.
बिहार में शराबबंदी को कौन लगा रहा है पलीता
मुखिया अजीत कुमार सिंह कहते हैं, ‘‘इन इलाकों में आसानी से शराब मिल जाती है. यहां टैंकरों के जरिए बाहर से इसे लाया जाता है. फिर लोकल वेंडर इसकी सप्लाई करते हैं.'' प्रारंभिक जांच में यह बात भी सामने आ रही है कि 50 से अधिक लोगों को लीलने वाली इस जहरीली शराब को बनाने में मशरख थाने में जब्त कर रखी गई स्पिरिट का उपयोग किया गया था. मालखाने में रखे गए कई कंटेनरों के ढक्कन गायब हैं तो कई कंटेनरों में स्पिरिट है ही नहीं. हालांकि, इस संबंध में सारण के उत्पाद अधीक्षक रजनीश कुमार कहते हैं, "यह मामला उनकी जानकारी में नहीं है, किंतु सभी थानों में जब्त कर रखी गई शराब और स्पिरिट की जांच की जा रही है."
देसी शराब कैसे बन जाती है जानलेवा
देसी शराब बनाने या बेचने का मामला बिहार में नया नहीं है. इसमें मिलावट की शिकायतें पहले भी आती रहीं हैं. दरअसल, महुआ के साथ शीरे के तौर पर गुड़ का इस्तेमाल करके देसी या कच्ची शराब बनाई जाती है. मगर ज्यादा मुनाफा कमाने व अधिक नशीली बनाने के चक्कर में धंधेबाज यूरिया या नौसादर मिला देते हैं. अगर इसकी मात्रा थोड़ी भी अधिक हो जाती है तो यह जहर बन जाता है. इधर, इसमें ऑक्सीटोसिन नामक रसायन मिलाने की बात भी सामने आई है. रसायन विशेषज्ञ एके जंगबहादुर बताते हैं, ‘‘यूरिया या ऑक्सीटोसिन जैसा केमिकल मिलाने से बना मिथाइल अल्कोहल ही जानलेवा बन जाता है. सबसे पहले आंखों की रोशनी जाती है और फिर अंदरूनी अंग काम करना बंद कर देते हैं. जिससे इंसान की मौत हो जाती है.''
समय रहते इसका उपचार किया जाए तो लोगों को बचाया भी जा सकता है. लेकिन पुलिस द्वारा पकड़े जाने के डर से ये गरीब और कम पढ़े-लिखे अस्पताल का भी रुख नहीं करते. साफ है, कुछ लोग शराब के नाम पर कुछ भी पी ले रहे और कुछ लोग कुछ भी बेच दे रहे हैं. वहीं, राज्य में शराबबंदी को लागू करने की जिम्मेदारी वाले मद्य निषेध, उत्पाद व निबंधन विभाग की एक केमिकल जांच रिपोर्ट के अनुसार बिहार में चोरी-छिपे बाहर से लाई जा रही 90 प्रतिशत ब्रांडेड शराब भी या तो नकली है या फिर मानक अनुरूप नहीं है. आंकड़ों के मुताबिक बिहार में शराबबंदी लागू होने के इनछह सालों में जहरीली शराब से 700 से ज्यादा लोगों की मौत हुई है, 53 लाख लीटर शराब पकड़ी गई है तथा कानून का उल्लंघन करने के आरोप में चार लाख लोग जेल भेजे गए हैं.
वरिष्ठ भाजपा नेता व पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी का आरोप है कि शराब से जुड़े मामलों में हरेक माह 45000 से अधिक लोग गिरफ्तार किए जा रहे हैं तथा रोजाना दस हजार लीटर शराब जब्त की जा रही है. वे कहते हैं, "जब इतनी बड़ी मात्रा में शराब आ रही है तो नीतीश सरकार शराबबंदी लागू करने में अपनी विफलता स्वीकार करे." शराब की अवैध बिक्री के धंधे ने एक उद्योग का रूप ले लिया है. पुलिस-प्रशासन इस धंधे को रोकने के लिए भले ही पूरी कोशिश कर रहा हो, लेकिन सच यह है कि प्रांत में शराब कहीं और अधिक आसानी से लोगों को मिल जा रही है.
एक करोड़ से ज्यादा लोगों ने छोड़ी शराब
जहरीली शराब से होने वाली मौतों या फिर इसकी सहज उपलब्धता से यह बहस का मुद्दा हो सकता है कि शराबबंदी की नीति नाकाम है या नहीं. लेकिन, यदि हम नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस) के आंकड़ों को देखें तो स्पष्ट है कि राज्य में 2015-16 में बिहार की जनसंख्या की 29 प्रतिशत आबादी शराब (अल्कोहल) का सेवन करती थी, वहीं 2019-20 में यह आंकड़ा घटकर 15.5 प्रतिशत पर आ गया. अगर इसे हम जनसंख्या के परिप्रेक्ष्य में देखें तो यह संख्या एक करोड़ से ज्यादा आती है अर्थात इतने लोगों ने शराब का सेवन छोड़ दिया.
जिस समय शराबबंदी लागू की गई, उसके पहले 5200 करोड़ रुपये का राजस्व सरकार को शराब से प्राप्त होता था. जो आज कहीं न कहीं समानांतर अर्थव्यवस्था के तहत अवैध धंधेबाजों के हाथ में जा रहा है. सौ फीसद से अधिक का मुनाफा देख बेरोजगार युवा इस अवैध धंधे की ओर आकृष्ट होते हैं. तभी तो पहले कैरियर का काम करने वाले एक शख्स का कहना है, ‘‘शराब की दुकान पर काम करता था तो छह हजार रुपये प्रतिमाह मिलते थे. प्रतिबंध लगा तो बेरोजगार हो गया. किसी के कहने पर इस धंधे में आया तो दो-तीन दिन में छह हजार कमा लेता हूं. कोई नौकरी दे नहीं रहा तो मैं क्यों छोड़ दूं.'' शायद यही वजह रही होगी कि केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा कि बिहार में शराब भगवान की तरह है, जो दिखती कहीं नहीं है, लेकिन मिलती हर जगह है.