दक्षिण अफ्रीका में गैंडों का शिकार रोकने के लिए एक नया तरीका आजमाया जा रहा है. इसके तहत गैंडों के सींग में जहरीला इंजेक्शन लगाया जा रहा है. जहरीले इंजेक्शन से कैसे बचेंगे गैंडे, देखिए.
जानकारों को उम्मीद है कि इस इंजेक्शन से गैंडो का सींग आकर्षक नहीं रहेगा जिससे शिकारी गैंडों का शिकार नहीं करेंगे. इस इंजेक्शन में ऐसे रसायन इस्तेमाल किए जाते हैं जिनसे सींग जहरीला और बदरंग हो जाए.
बदरंग होने की वजह से ऐसे सींग से कलात्मक चीजें नहीं बनाई जा सकेंगी और दूसरे सींग में जहरीले पदार्थ होने की वजह से उन्हें दवाओं में इस्तेमाल नहीं किया जा सकेगा. इन दो कारणों से गैंडों का शिकार बढ़ रहा है. गैंडो के शिकार का कारोबार अरबों में है. इसलिए इसे रोकने के लिए काफी मशक्कत करनी होगी.
इंटरनेट ने न सिर्फ इंसानों की, बल्कि जानवरों की जिंदगी में भी दखल बना लिया है. एक रिपोर्ट के मुताबिक इंटरनेट पर संरक्षित वन्यजीवों का बाजार तेजी से बढ़ा है और महंगे दामों में इनकी खरीद-फरोख्त हो रही है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Hussain
क्या है मसला
वन्यजीवों के संरक्षण से जुड़ी गैरसरकारी संस्था इंटरनेशनल फंड फॉर एनिमल वेलफेयर (आईएफएडब्ल्यू) ने अपनी रिपोर्ट में इस मामले पर रोशनी डाली है. संस्था ने कहा कि हाथी दांत, तेंदुए की खाल से बने कोट से लेकर कछुए और जीवित भालू समेत तमाम तरह के पशु इंटरनेट पर बिक रहे हैं.
तस्वीर: Getty Images/D. Kitwood
कहां के आंकड़ें
संस्था ने रूस, फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन जैसे देशों में जानवरों से जुड़ी जानकारी को जुटाने में तकरीबन छह हफ्ते का वक्त लिया. विशेषज्ञों ने देखा कि इंटरनेट पर विलुप्त होने के खतरे से जूझ रहे पशुओं की खरीद-फरोख्त पर तमाम विज्ञापन हैं जिनमें पशुओं के जिंदा, मृत, टुकड़ों तक की पेशकश की गई है.
तस्वीर: imago/Anka Agency International
विज्ञापनों की भरमार
ऐसे करीब 11,772 जानवर और इनसे जुड़ी सामग्री इंटरनेट पर बिक रही है. ऐसे करीब पांच हजार से भी ज्यादा विज्ञापन वेबसाइट और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर चल रहे हैं. इनकी कीमत भी कुल 40 लाख डॉलर के करीब बैठती है.
तस्वीर: Imago/imagebroker
क्या बिक रहा है
रिपोर्ट में कहा गया है बड़ी संख्या जिंदा पशुओं की भी है, जिसमें मीठे-पानी में रहने वाले कछुए (45 फीसदी), चिड़िया (24 फीसदी) और स्तनपायी जीव (5 फीसदी) है. आईएफएडब्ल्यू के मुताबिक ऐसी खरीद-फरोख्त, कन्वेंशन ऑफ इंटरनेशनल ट्रेड इन एनडेंजर स्पीशीज (सीआईटीइएस) के एक खास परमिट के तहत संभव है लेकिन इन मामलों में ऐसा नहीं है.
तस्वीर: DW/E. Boniphace
गैरकानूनी बिक्री
संस्था अपनी जांच के आधार पर दावा करती है कि इंटरनेट पर पेश की जा रही ये खरीद-फरोख्त गैरकानूनी है. अमेरिका की गैरसरकारी संस्था वाइल्ड क्राइम कहती है कि इंटरनेट ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को तेजी से बदला है, जिसके चलते गैरकानूनी जीव व्यापार का तौर-तरीका भी बदल गया है.
ये संस्थाएं कहती हैं कि वन्यजीव अपराध अब ऑनलाइन स्पेस की ओर मुड़ गया है. कछुओं के अलावा, सरीसृपों में सांप, छिपकली, घड़ियाल की भी इस काले बाजार में काफी मांग है. उल्लू समेत अन्य पक्षियों में सारस, रंगबिरंगा टूकन भी इस ई-मार्केट में उपलब्ध है.
स्तनपायी जीवों का बाजार इंटरनेट पर काफी विविधताओं भरा है. गैंडों के सींग से लेकर, तेंदुए की खाल और हाथी के पैरों से बनी कॉफी टेबल भी बिक रही है. रूस में इन जानवरों की बिक्री बढ़ी है, जिनमें बिल्ली, बंदर और भालू शामिल हैं.