कांग्रेस के लिए अपना ब्रैंड खराब नहीं करेंगे पीके!
सुहैल वहीद, लखनऊ
४ नवम्बर २०१६
प्रशांत किशोर यूपी और पंजाब में कांग्रेस के लिए जो करने की कोशिश कर रहे हैं, वह सीनियर नेताओं को रास नहीं आ रहा. इस वजह से पीके अपना रास्ता अलग कर सकते हैं.
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नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो प्रशांत किशोर यानी पीके के गुण गाये गए कि उनकी रणनीतियों से मोदी पीएम की कुर्सी तक पहुंच गए. फिर बिहार चुनाव में वही प्रशांत मोदी के खिलाफ नीतीश कुमार के लिए काम कर रहे थे. बिहार में लालू और नीतीश को एक मंच पर लाकर मोदी को मात दिला देने से पीके भारतीय राजनीति में किसी को हराने और जिताने के विशेषज्ञ मान लिए गए. उसके बाद उन्हें जो शोहरत मिली तो कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी उन्हें यूपी के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की बची खुची साख को बचाने के लिए अनुबंधित कर लाए.
पीके के आगमन के बाद गुलाम नबी आजाद को यूपी कांग्रेस का प्रभारी बनाया गया और प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर बने. यूपी में कांग्रेस को नया जामा पहनाने का तो श्रेय प्रशांत किशोर को मिला लेकिन वाराणसी रोड शो में सोनिया गांधी के बीमार हो जाने पर उनकी रणनीति की आलोचना भी हुई. देवरिया से दिल्ली तक राहुल गांधी की किसान यात्रा में खाट सभाओं के लिए प्रतिदिन 10 रुपये के किराए पर 5000 खाटें बुक कराई गई थीं. देवरिया में 1700, मिर्जापुर में 1500 तथा सोनभद्र में 1600 से अधिक खाटें या तो टूट गईं या लूट ली गईं जबकि वेंडर्स से अनुबंध था कि एक सभा से दूसरी सभा तक इन खाटों को ट्रकों के जरिए ले जाया जाएगा. इसका नतीजा यह हुआ कि प्रति खाट 1000 रुपये हर्जाना वेंडर को कांग्रेस ने अदा किया. यानी जितनी कीमत नहीं थी उतना हर्जाना. इसके लिए भी प्रशांत की आलोचना हुई.
तस्वीरों में: भारतीय राजनीति के प्रमुख खिलाड़ी
भारतीय राजनीति के प्रमुख खिलाड़ी
भारत में नरेंद्र मोदी की सरकार लोक सभा में बहुमत के बावजूद संसद में अपने कानूनों को पास करवाने में मुश्किल झेल रही है. विपक्ष को राजी करवाने में विफलता ने बीजेपी सरकार की प्रतिष्ठा और प्रधानमंत्री के रुतबे को कम किया है.
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नरेंद्र मोदी
प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी की मुख्य चुनौती चुनाव में किए गए अपने वादों को पूरा करना है. वे देश को विकास के रास्ते पर लाने के लिए अपनी नीतियों के लिए संसद की मंजूरी चाहते हैं.
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सोनिया गांधी
संसद में बीजेपी को पर्याप्त बहुमत नहीं है. लोक सभा में उसे बहुमत पाने में कामयाबी मिली लेकिन प्रातों में मजबूत नहीं होने के कारण राज्य सभा में कांग्रेस अभी भी उसे रोक सकने की हालत में है.
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राहुल गांधी
कांग्रेस पार्टी अपनी इसी शक्ति का इस्तेमाल राज्य सभा में विधेयकों को रोकने में कर रही है. लोक सभा में सिर्फ 44 सांसदों वाली कांग्रेस बाधा डालने की रणनीति अपना रही है. बीजेपी भी पहले ऐसा कर चुकी है.
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सुषमा स्वराज
विदेश मंत्री भ्रष्टाचार कांडों में देश से भागे क्रिकेट प्रशासक ललित मोदी के लिए ब्रिटेन की सरकार को पत्र लिखकर फंस गई हैं. कांग्रेस संसद को चलने देने के लिए उनके इस्तीफे की मांग पर अड़ी है.
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अरुण जेटली
प्रधानमंत्री के विपरीत केंद्रीय वित्त मंत्री दिल्ली के हैं और सत्ता प्रतिष्ठान को जानते हैं. राज्य सभा के नेता होने के नाते वे सरकार और विपक्ष के बीच सुलह में अहम भूमिका निभा सकते हैं, लेकिन अब तक नाकाम रहे हैं.
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मुलायम सिंह यादव
समाजवादी पार्टी के नेता उत्तर प्रदेश में बीजेपी का विरोध कर सत्ता में आए हैं लेकिन केंद्र की सरकार की नाराजगी मोल नहीं लेना चाहते. उन्होंने सदन में चर्चा का पक्ष लिया है और मोदी की तारीफ पाई है.
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ममता बनर्जी
कम्युनिस्टों को कमजोर करने के बाद बंगाल के मुख्यमंत्री की चुनौती बीजेपी है जो प्रदेश में अपना आधार बढ़ाने में लगी है. केंद्र सरकार ने वित्तीय घोटाले में उसके सांसदों और विधायकों पर नकेल कस रखी है.
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जयललिता
तमिलनाडु की मुख्यमंत्री भ्रष्टाचार के आरोपों में काफी समय जेल में रही हैं. हाईकोर्ट से राहत पाकर वे फिर से सत्ता में अपनी स्थिति मजबूत कर रही हैं. केंद्र सरकार से वे कोई पंगा लेने की हालत में नहीं हैं.
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लालू यादव
मुख्यमंत्री के रूप में आरजेडी नेता ने बीजेपी के धार्मिक अभियान को रोकने की हिम्मत दिखाई थी और अल्पसंख्यकों का भरोसा जीता था. बिहार चुनाव जीतने के लिए वे बीजेपी विरोध की अपनी छवि भुना रहे हैं.
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नीतीश कुमार
बिहार के मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री मोदी की हरेक बात का विरोध कर रहे हैं. बिहार में इस साल विधान सभा चुनाव होने वाले हैं जिसमें उनकी कुर्सी और राजनीतिक भविष्य, तो प्रधानमंत्री की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है.
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वेंकैया नायडू
संसदीय कार्य मंत्री की भूमिका संसद में सभी दलों के बीच सुलह कराने की होती है. लेकिन उन्होंने दबाव की नीति के तहत विपक्ष पर आरोपों की झड़ी लगाकर सुलह की संभावना को कम ही किया है.
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बुनियादी तौर पर प्रशांत किशोर रणनीतिकार हैं, इवेंट मैनेजर नहीं जैसा कि आम तौर पर समझा जाने लगा है. अमेरिका में रिपब्लिकन उम्मीदवार डॉनल्ड ट्रंप के चुनाव प्रचार और प्रबंधन में हिस्सा लेकर दिल्ली लौटे प्रशांत के एक जूनियर सहयोगी ने यह बताया और कहा कि भारत में भी रणनीतिकारों की कद्र और कीमत का अंदाजा सभी को होने लगा है. उधर यूपी, पंजाब के सीनियर कांग्रेसी नेता प्रशांत के विरोध में बोलने लगे हैं. जिस दिन सपा प्रमुख मुलायम सिंह से प्रशांत किशोर ने दिल्ली में मुलाकात की उसके अगले दिन ही यूपी कांग्रेस प्रभारी गुलाम नबी आजाद का बयान लखनऊ के अखबारों में छपा कि प्रशांत कोई फैसला नहीं ले सकते. पंजाब से कैप्टन अमरिंदर सिंह के प्रशांत किशोर से रिश्ते अच्छे नहीं होने की चर्चा है. खबरें आने लगी हैं कि यूपी और पंजाब में कांग्रेस और पीके के रास्ते अलग हो सकते हैं.
लेकिन पीके ने कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की बड़ी फौज जरूर तैयार कर दी है. कैसे किया उन्होंने, इस पर वह मुस्कुरा देते हैं. उनके सामने बैठे एक भावी प्रत्याशी गोविंद सिंह बताते हैं कि जब उन्होंने लखनऊ पूर्वी विधान सभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने का मन बनाया तो उनके पास अपनी जाति के कुछ लोगों के अलावा कोई कार्यकर्ता नहीं था. पीके ने सबसे पहले उनसे उनके क्षेत्र के 18 प्रभावशाली लोगों के मोबाइल फोन नबंर मांगे. उन 18 लोगों से गोविंद सिंह के बारे में फीडबैक लेने के बाद टीम पीके ने 180 लोगों के नाम मांगे और फिर 360. करीब दो महीने में टीम पीके ने इन फोन नंबरों के सहारे सर्वे कर लिया और कांग्रेस की फजा तैयार कर दी. गोविंद सिंह आश्चर्य से कहते हैं कि पीके की रणनीति के वह कायल हो गए हैं.
देखिए, किस किस को मिली है विरासत में नेतागीरी
विरासत की नेतागिरी
बीजेपी और कम्युनिस्ट पार्टियों को छोड़ दें तो भारतीय लोकतंत्र की प्रमुख पार्टियां वंशवाद के सहारे चल रही हैं. एक नजर ऐसी ही पार्टियों और विरासत में नेतागिरी पाने वाले नेताओं पर.
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राहुल गांधी
पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बेटे राहुल गांधी ने अपनी मां सोनिया गांधी से पार्टी की बागडोर संभाली. सोनिया ने 19 साल तक पार्टी का नेतृत्व किया. हालांकि बहुत से लोग राहुल की नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठाते हैं. पार्टी को लगातार वंशवाद के आरोपों को भी झेलना पड़ता है.
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अखिलेश यादव
मुलायम सिंह यादव के बेटे अखिलेश यादव बेटा होने के कारण पद पर आए. लेकिन मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने पिता के तिकड़म के विपरीत स्वच्छ और भविष्योन्मुखी प्रशासन देने की कोशिश की है.
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तेजस्वी यादव
बिहार के मुख्यमंत्री माता-पिता की संतान तेजस्वी यादव बिहार के उप मुख्यमंत्री रह चुके हैं. नीतीश सरकार से अलग होने के बाद बिहार सरकार और बीजेपी पर खूब हमलावर रहते हैं. पिता लालू यादव भ्रष्टाचार के दोषी होने के कारण चुनाव लड़ नहीं सकते.
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महबूबा मुफ्ती
जम्मू-कश्मीर की मौजूदा मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री सैयद मुफ्ती की बेटी हैं और पिता द्वारा बनाए गए राजनीतिक साम्राज्य को संभालने और पुख्ता करने की कोशिश में हैं.
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उमर अब्दुल्लाह
उमर अब्दु्ल्लाह दादा शेख अब्दुल्लाह और पिता फारूक अब्दुल्लाह की राजनीतिक विरासत संभाल रहे हैं. वे जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे हैं और पिछला चुनाव हारने के बाद वे प्रांत में विपक्ष के नेता हैं.
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सुप्रिया सूले
सुप्रिया सूले प्रमुख मराठा नेता शरद पवार की बेटी हैं और सांसद हैं. पिछले चुनाव तक पिता स्वयं सक्रिय राजनीति में थे, इसलिए अभी तक सुप्रिया को राजनीतिक प्रशासनिक अनुभव पाने का मौका नहीं मिला है.
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एमके स्टालिन
द्रमुक नेता और तमिलनाडु के कई बार मुख्यमंत्री रहे करुणानिधि ने अपने बेटे स्टालिन को अपना उत्तराधिकारी चुना है. 63 साल के स्टालिन पार्टी की युवा इकाई के प्रमुख हैं और युवा नेता माने जाते हैं.
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अनुराग ठाकुर
अनुराग ठाकुर हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर से भारतीय जनता पार्टी के सांसद हैं. उनके पिता प्रेम कुमार धूमल भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं और हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. अनुराग ठाकुर बीसीसीआई के प्रमुख भी रह चुके हैं.
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अशोक चव्हाण
अशोक चव्हाण महाराष्ट्र में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं और वह राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. उनके पिता शंकर राव चव्हाण ने भी दो बार बतौर मुख्यमंत्री राज्य की बागडोर संभाली थी.
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चिराग पासवान
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के बेटे हैं और सांसद हैं. बिहार में रामविलास पासवान की दलित राजनीति को चमकाना और उसे आधुनिक चेहरा देना उनकी जिम्मेदारी है.
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दुष्यंत चौटाला
वे देश के उपप्रधानमंत्री और हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे देवी लाल की खानदानी विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं. उनके दादा ओमप्रकाश चौटाला भी मुख्यमंत्री थे, लेकिन अब भ्रष्टाचार के लिए जेल काट रहे हैं.
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सुखबीर बादल
पिता प्रकाश सिंह बादल ने खानदानी राजनीति की नींव रखी. पिता बादल की सरकार में उनके बेटे सुखबीर पंजाब के उपमुख्यमंत्री रहे. बादल की राजनीतिक पूंजी को बचाना का भार उन पर है.
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गोविंद सिंह के अनुसार उनके चुनाव क्षेत्र में इस समय करीब 70-80 कर्मठ कार्यकर्ता तैयार हो चुके हैं. इसी तरीके से यूपी के 75 जिलों की कुल 403 विधानसभा सीटों के लिए करीब 2000 प्रत्याशी और इसके दस गुना कार्यकर्ता तैयार हो गए हैं. 2012 के विधानसभा चुनावों में मात्र 29 सीटों पर सिमटी कांग्रेस के लिए पीके धीमे से सिर्फ इतना कहते हैं कि देखिए मैं नेता नहीं हूं, जो काम दिया गया कर रहा हूं.
नए कार्यकर्ताओं की यही फौज कांग्रेस के साथ सपा या किसी भी पार्टी के गठबंधन का विरोध कर रही है. कांग्रेस के एक पुराने नेता के अनुसार राहुल ने पांच-सात साल पहले इसी तरह यूपी में युवा और नई कांग्रेस खड़ी करने की कोशिश की थी, तब सीनियर कांग्रेसियों ने ही उनके उस प्रयास को सफल नहीं होने दिया था लेकिन पीके ने यह काम बेहद प्रोफेशनल तरीके से किया. सीनियर कांग्रेसी यही नहीं होने देना चाहते हैं. इसलिए पीके के रास्ते से हटने की अफवाहें तैर रही हैं और पीके गठबंधन के सहारे अपनी ब्रैंडिंग भी खराब नहीं होने देना चाहते हैं.