ध्वनि विश्लेषण एआई टाइप 2 डायबिटीज का पता करने के लिए एक उपयोगी टूल हो सकता है, लेकिन इसके साथ चेतावनी भी जुड़ी है.
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उन्नत ध्वनि विश्लेषण का इस्तेमाल करने वाले मेडिकल डायग्नोस्टिक टूल्स तेजी से सटीक होते जा रहे हैं. स्पीच पैटर्न का विश्लेषण खासतौर पर पार्किंसंस या अल्जाइमर्स जैसी बीमारियों के लिए बहुमूल्य जानकारी मुहैया करा सकता है.
वॉयस एनालिसिस का इस्तेमाल करके मानसिक बीमारी, अवसाद, पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर और दिल की बीमारी का भी पता लगाया जा सकता है.
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआई संकुचित रक्त वाहिकाओं या थकावट के लक्षणों का भी पता लगा सकती है. इससे स्वास्थ्यकर्मियों को मरीजों का जल्द इलाज करने और किसी भी संभावित जोखिम को कम करने की अनुमति मिलती है.
अमेरिका के 'मेयो क्लिनिक प्रोसीडिंग्सः डिजिटल हेल्थ' मेडिकल जर्नल में छपे एक शोध के मुताबिक किसी व्यक्ति को टाइप 2 डायबिटीज है या नहीं यह आश्चर्यजनक सटीकता के साथ निर्धारित करने के लिए आवाज की एक छोटी रिकॉर्डिंग ही काफी है.
कैसे बचें डायबिटीज से
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अज्ञात रोग
इस तकनीक का उद्देश्य अज्ञात डायबिटीज से पीड़ित लोगों की पहचान करने में मदद करना है. इस नई तकनीक के जरिए दुनियाभर में ऐसे 24 करोड़ लोगों को बहुत मदद मिलेगी जो टाइप-2 डायबिटीज के शिकार हैं, लेकिन उन्हें इसका पता ही नहीं है. यह आंकड़ा इंटरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन का है.
ब्रिटिश मेडिकल जर्नल लांसेट में छपे इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के शोध के मुताबिक भारत के कुछ राज्यों में मधुमेह के मामले तेजी से बढ़े हैं. करीब दस करोड़ भारतीय लोग इस बीमारी से जूझ रहे हैं. टाइप 2 डायबिटीज वाले लोगों में दिल से जुड़ी बीमारियों, जैसे दिल का दौरा और स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है.
10 सेकेंड में कैसे पता चलेगा टाइप-2 डायबिटीज का
वैज्ञानिकों ने लोगों की सेहत के बुनियादी डाटा जैसे उम्र, सेक्स, ऊंचाई और वजन के साथ-साथ आवाज के छह से दस सेकेंड लंबे सैंपल लेकर एआई मॉडल विकसित किया, जिसकी मदद से पता चल सके कि व्यक्ति को टाइप-2 डायबिटीज है या नहीं.
इस मॉडल का डायग्नोसिस 89 फीसदी महिलाओं और 86 फीसदी पुरुषों के मामले में सही साबित हुआ. अमेरिका की क्लिक लैब ने यह एआई मॉडल तैयार किया है, जिसमें वॉयस टेक्नॉलजी के साथ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल करके मधुमेह का पता लगाने में प्रगति हुई है.
एआईको प्रशिक्षित करने के लिए कनाडा में ओंटारियो टेक यूनिवर्सिटी में जेसी कॉफमैन और उनकी टीम ने 267 व्यक्तियों की आवाजें रिकॉर्ड कीं, जिन्हें या तो मधुमेह नहीं था या जिन्हें पहले से ही टाइप 2 मधुमेह का पता था.
अगले दो सप्ताह के दौरान प्रतिभागियों ने अपने स्मार्टफोन पर हर रोज छह बार एक छोटा वाक्य रिकॉर्ड किया. 18,000 से अधिक आवाज के नमूने तैयार किए गए, जिनमें से 14 अकूस्टिक फीचर को अलग किया गया, क्योंकि वे मधुमेह वाले और बिना मधुमेह वाले प्रतिभागियों के बीच भिन्न थे.
जेसी कॉफमैन ने कहा, "फिलहाल जो तरीके इस्तेमाल होते हैं, उनमें बहुत वक्त लगता है, आना-जाना पड़ता है और ये महंगे पड़ सकते हैं. वॉयस टेक्नॉलजी में यह संभावना है कि इन सारी रुकावटों को पूरी तरह से दूर कर दे."
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वॉयस एनालिसिस के खतरे
डायग्नोस्टिक टूल्स के रूप में वॉयस एनालिसिस के समर्थक उस गति और दक्षता पर जोर देते हैं जिसके साथ रोगी की आवाज का इस्तेमाल करके बीमारियों का पता लगाया जा सकता है. लेकिन भले ही एआई समर्थित टूल्स बहुत विशिष्ट जानकारी मुहैया करने में सक्षम हों, मुट्ठी भर आवाज के नमूने एक अच्छी तरह से स्थापित डायग्नोस्टिक टूल्स विकसित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं.
क्या दुरुपयोग हो सकता है
आलोचकों और डाटा सुरक्षा ऐक्टिविस्टों ने स्पीच एनालिसिस सॉफ्टवेयर के भारी जोखिम के बारे में चेतावनी दी है, उदाहरण के लिए नियोक्ताओं या इंश्योरेंस कॉल सेंटरों द्वारा इसका गलत इस्तेमाल किया जा सकता है.
एक जोखिम यह भी है कि स्पीच एनालिसिस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल सहमति के बिना किया जा सकता है और व्यक्तिगत स्वास्थ्य जानकारी के आधार पर ग्राहकों या कर्मचारियों को नुकसान हो सकता है.
यही नहीं संवेदनशील मेडिकल जानकारी हैक हो सकती है, उसे बेचा जा सकता है या फिर उसका गलत इस्तेमाल हो सकता है. हालांकि डायग्नोस्टिक टूल्स के रूप में स्पीच एनालिसिस पर स्पष्ट नियम और सीमाएं वैज्ञानिकों द्वारा निर्धारित नहीं की जा सकती हैं. यह पूरी तरह से राजनीति के दायरे में आता है.
पहचानें डायबिटीज के शुरुआती संकेत
डायबिटीज बहुत ही चुपचाप आने वाली बीमारी है. लेकिन अगर आप अपने शरीर और व्यवहार पर ध्यान देंगे तो आप इससे बचाव कर सकते हैं.
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दो किस्म का डायबिटीज
डायबिटीज दो प्रकार हैं, टाइप-1 और टाइप-2. टाइप-1 आनुवांशिक होता है, यह बच्चों और युवाओं में देखने को मिलता है. लेकिन इसके मामले बहुत ही कम होते हैं. टाइप-2 डायबिटीज ज्यादा जीवनशैली से जुड़ा है और दुनिया भर में तेजी से फैल रहा है.
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टाइप-1
इसमें शरीर इंसुलिन नहीं बनाता है. इंसुलिन खाने से मिलने वाले ग्लूकोज को तोड़ता है और ऊर्जा के रूप से कोशिकाओं तक पहुंचाता है. लेकिन टाइप-1 डायबिटीज के पीड़ितों को बचपन से इंसुलिन लेना पड़ता है.
टाइप-2
यह चुपचाप आता है. बढ़ती उम्र और बेहद आरामदायक जीवनशैली के चलते इंसान को यह बीमारी लगती है. इसमें शरीर शुगर को ऊर्जा में बदलने की रफ्तार धीमी या बंद कर देता है. और एक बार यह लगी तो फिर इससे पार पाना आसान नहीं होता. आगे देखिये टाइप-2 डायबिटीज के शुरूआती संकेत.
तेज प्यास लगना
टाइप-2 डायबिटीज का अहम शुरुआती लक्षण है, बार बार तेज प्यास लगना. मुंह में सूखापन रहना. ज्यादा भूख लगना और ज्यादा पानी न पीने के बावजूद बार बार पेशाब लगना.
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शारीरिक तकलीफ
शुरुआती संकेत मिलने पर अगर कोई न संभले तो ज्यादा मुश्किल होने लगती है. डायबिटीज के चलते सिर में दर्द रहना, नजर में धुंधलापन सा आना और बेवजह थकने जैसी समस्यायें सामने आती हैं.
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नींद न आना
शुगर का असर नींद पर भी पड़ता है. डायबिटीज के रोगियों को बहुत गहरी नींद नहीं आती है. उनके हाथ या पैरों में झनझनाहट सी रहती है.
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सेक्स में परेशानी
डायबिटीज के 30 फीसदी रोगियों को सेक्स में परेशानी भी होने लगी है. इसके पीड़ित महिला और पुरुष को आर्गेज्म में परेशानी होने लगती है.
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गंभीर संकेत
कुछ मामलों के टाइप-2 डायबिटीज के शुरुआती लक्षण बिल्कुल नजर नहीं आते. उनमें दूसरे किस्म के लक्षण नजर आते हैं, जैसे फुंसी, फोड़े या कटे का घाव बहुत देर से भरना. खुजली होना, मूत्र नलिका में इंफेक्शन होना और जननांगों के पास जांघों में खुजली होना. पिंडलियों में दर्द भी रहता है.
किसे ज्यादा खतरा
मोटे और खासकर मोटी कमर वाले लोगों को, आलसियों को, सुस्त जीवनशैली के साथ सिगरेट पीने वालों को, बहुत ज्यादा लाल मीट व मीठा खाने वालों डायबिटीज का खतरा सबसे ज्यादा होता है.
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उम्र और टाइप-2 डाबिटीज का रिश्ता
आम तौर पर 45 साल के बाद इसका पता चलता है. लेकिन भारत समेत कई देशों में बदलती जीवनशैली के साथ 25-30 साल के युवाओं को डायबिटीज की शिकायत होने लगी है. लेकिन कड़ी शारीरिक मेहनत करने वाले और संयमित ढंग से खाना खाने वाले बुजुर्गों में कोई डायबिटीज नहीं दिखता.
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बैक्टीरिया की भी भूमिका
ताजा शोध में पता चला है कि बड़ी आंत में रहने वाले बैक्टीरिया भी टाइप-2 डायबिटीज में भूमिका निभाते हैं. आंत में हजारों किस्म के बैक्टीरिया होते हैं, इनमें ब्लाउटिया, सेरेराटिया और एकेरमानसिया भी शामिल हैं. लेकिन डायबिटीज के रोगियों में इनकी संख्या बहुत बढ़ जाती है. वैज्ञानिकों को शक है कि इनकी बहुत ज्यादा संख्या के चलते मेटाबॉलिज्म प्रभावित होने लगता है
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शक होने पर क्या करें
खुद टोटके करने के बजाए डॉक्टर से परामर्श करें और नियमित अंतराल में शुगर टेस्ट कराएं. डायबिटीज से लड़ने का सबसे अच्छा तरीका है, कसरत या शारीरिक मेहनत. अगर आपका शरीर थकेगा तो शुगर लेवल नीचे गिरेगा और नींद भी अच्छी आएगी.
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खुद के लिए 30 मिनट
हर दिन 30 मिनट कसरत कर लें, यह डायबिटीज से आपको बचाएगी. डायबिटीज हो भी गया तो कसरत उसे काबू में रखेगी. संतुलित आहार भी बहुत जरूरी है.
कैसी हो खुराक
खून में शुगर की मात्रा खाने पर निर्भर करती है. डायबिटीज के रोगियों को या डायबिटीज का शक होने पर कभी पेट भरकर न खाएं. तीन घंटे के अंतराल पर कुछ हल्का खाएं. प्याज, भिंडी, पत्ता गोभी, खीरा, टमाटर, दही, दाल, पपीता और हरी सब्जियां बेहद लाभदायक होती हैं.
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मिक्स खाना
वैज्ञानिकों के मुताबिक अलग अलग आहार में भिन्न भिन्न किस्म के बैक्टीरिया होते हैं. इसीलिए बेहतर है कि फल, अनाज, सब्जी, बीज और रेशेदार फलियों से संतुलित डायट बनाई जाए. इससे आंतों में अलग अलग बैक्टीरियों का अनुपात सही बना रहेगा.
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मीठा भी साथ रहे
डायबिटीज ऐसी बीमारी है जो बहुत ज्यादा परहेज करने पर भी मारती है. शुगर लेवल अगर बहुत नीचे गिर जाए तो रोगी को चक्कर आ सकता. लिहाजा डायबिटीज से लड़ने के दौरान हमेशा कुछ मीठा अपने पास रखें. जब लगे कि शुगर लेवल बहुत गिर रहा है तो हल्का सा मीठा खा लें.