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शी जिनपिंग के तीसरे कार्यकाल पर चीनी लोगों का नजरिया

४ नवम्बर २०२२

जबसे शी जिनपिंग ने तीसरी बार राष्ट्रपति पद संभाला और अपने वफादारों और समर्थकों को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी में शीर्ष पदों पर बैठाया है, तबसे दुनिया इस नये दौर के संभावित प्रभावों का अंदाजा लगाने में जुटी है.

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग
शी जिनपिंगतस्वीर: Andy Wong/AP Photo/picture alliance

शी जिनपिंग के हाथों में अब चीनी सत्ता की बागडोर पूरी तरह से आ गई है लेकिन चीन में कुछ लोग देश के भविष्य पर नकारात्मकता का इजहार करते हैं. कुछ लोग चीनी नेता के विरोध में एक दुर्लभ वैश्विक आंदोलन खड़ा कर रहे हैं.

कुछ चीनी नागरिकों का मानना है कि शी के पिछले दशक के शासन में उपभोक्ता सामान की कीमतों में भारी उछाल देखा गया था. जबकि वेतन और पगार में कोई बढ़ोत्तरी नहीं की गई थी. युवाओं में बेरोजगारी की दर जुलाई में 19.9 प्रतिशत हो गई थी. 2018 में इस बारे में आंकड़े जारी करने के बाद से ये सबसे ऊंची दर है.

पूर्वी चीन के निवासी शेन नाम के 30 वर्षीय व्यक्ति ने कहा, "मुझे लगता है कि पिछले कुछ साल से पैसे की कीमत कम होती जा रही है."

कम्युनिस्ट पार्टी के पोलितब्यूरो की नई स्थाई समिति के सदस्यतस्वीर: Kyodo/picture alliance

उन्होंने डीडब्लू को बताया, "कॉलेज पास करने वाले बहुत से युवाओं को नौकरी नहीं मिल पा रही है. जिसके चलते वे विवश होकर नौकरशाही की राष्ट्रीय परीक्षा में बैठते हैं. नौकरी की लगातार तलाश ने मुझे थका दिया है और तनख्वाहें भी आमतौर पर कम हैं. अधिकारी बोलने की आजादी पर नियंत्रण कस रहे हैं तो मैंने ऑनलाइन पोस्ट शेयर करना भी बंद कर दिया है और हर स्थिति में चुप रहना ही मैंने तय किया है."

शी के तीसरे कार्यकाल में अपनी संभावनाओं को लेकर नकारात्मक ख्याल वाले अकेले शेन नहीं हैं. मध्य चीन में दो बच्चों की मां लिन सुरक्षा कारणों से सिर्फ अपना आखिरी नाम ही बताने के लिए तैयार हुईं.

उन्होंने डीडब्लू को बताया कि सबसे जमीनी स्तर पर चीनी नागरिक, शी के भ्रष्टाचार विरोधी अभियान और कोरोनावायरस को फैलने से रोकने की उनकी शुरुआती कोशिशों के पक्ष में रहे हैं, लेकिन राजनीति पर नजर रखने वाले नागरिक अब भी निराश हैं और तीसरी बार उनके नेता चुने जाने के लिए चिंतित भी हैं.

वो कहती हैं, "खासतौर पर जब उन्होंने पार्टी के शीर्ष पदों पर अपने लोगों को भर दिया तो हममें से कई लोग चिंतित है कि चीन कहीं सांस्कृतिक क्रांति के दौर में न पहुंच जाए." वो ये भी कहती हैं कि सरकार की ओर से कई सारी आर्थिक चुनौतियों से निपटने और चीनी अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित करने वाली जीरो कोविड रणनीति से अलग हटने को लेकर कोई संकेत नजर नहीं आते हैं.

निकल भागने की सोच

शेन और लिन उन चीनी नागरिकों की बढ़ती संख्या का हिस्सा हैं जिन्होंने चीन छोड़ने की तैयारी शुरू कर दी है या ऐसा करने की सोच रहे हैं. इस बारे में एक खास शब्दावली- रन ज्यू या रन फिलासफी यानी भागने का दर्शन चीनी इंटरनेट पर महामारी की शुरुआत के दिनों से ट्रेंड कर रहा है. इसमें विदेश जाने को लेकर सवाल जवाब किए जाते हैं.

क्या चीन वैश्विक अर्थव्यवस्था की अगुवाई के लिए वाकई तैयार है?

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शेन कहते हैं, "मैंने पहले कुछ शुरुआती जापानी सीखी हुई है इसलिए मैं तो जापान भागना चाहता हूं. लेकिन बहुत सारे आर्थिक दबाव हैं, तो मुझे अगले साल तक चीन छोड़ने के लिए कर्ज लेना पड़ सकता है. थोड़ा दुविधा में भी हूं, घबराता भी हूं और अपने भविष्य को लेकर चिंतित भी हूं."

लिन तो 20वीं कम्युनिस्ट पार्टी कांग्रेस के पहले से ही दूसरे देश चले जाने के बारे में सोचना शुरू कर चुकी थीं. जबसे शी जिनपिंग ने तीसरा कार्यकालसंभाला है तो वो अब अपने दोनों बच्चों को विदेश भेजने को लेकर पूरी तरह से निश्चित हो चुकी हैं. वो कहती हैं, "मेरे नजरिए से बाहर निकलने पर उन्हें बेहतर पर्यावरण मिलेगा. इसलिए बाहर नहीं जाएंगे कि दूसरे देशों में जिंदगी का अनुभव लेना है."

लिन के मुताबिक, "जब देश कानून से नहीं चलाए जाता तो जिनके पास साधन हैं उन्हें देश छोड़ देना चाहिए. शी जिनपिंग के तीसरे कार्यकाल और रूसी राष्ट्रपति ब्लादीमिर पुतिन से उनके करीबी रिश्ते को देखते हुए मुझे चिंता है कि चीन कहीं दूसरा रूस न बन जाए."

कुछ लोग चीन छोड़ने को उत्सुक हैं तो कुछ लोग कहते हैं पार्टी कांग्रेस के बाद शक्तिहीनता या असहायता की भावना महसूस करते हैं.

शंघाई में रहने वाले हुन नाम के ताईवानी मार्केटिंग प्रोफेश्नल का कहना है, "भले ही कई लोग सोचते हैं कि पार्टी कांग्रेस के बाद चीन के सामाजिक विकास का रुझान और ज्यादा अवरुद्ध हो जाएगा, वे तब भी बदलाव का आह्वान करने या मांग करने की अपेक्षा अपने काम से काम रखने पर ही जोर देंगे."

पार्टी कांग्रेस से एक दिन पहले बीजिंग में सड़को पर निगाह रखते पुलिसकर्मीतस्वीर: Koki Kataoka/Yomiuri Shimbun/AP Photo/picture alliance

वो कहते हैं, "नतीजों को लेकर वे क्रोधित हो सकते हैं, लेकिन उस गुस्से का अंत कुछ न कर पाने के अहसास में होता है. चीन की सेंसरशिप वाली हुकूमत तमाम संवेदनशील विषयों पर रोक लगा रही है. इस बीच कुछ लोग जो कुछ खास संदेशों को ऑनलाइन फैलाना चाहते हैं, वे भी अंततः यही मान बैठेंगे कि कुछ बदलने वाला नहीं है. और इसके चलते कुछ न कर पाने का अहसास और घर कर जाएगा."

शी विरोधी वैश्विक पोस्टर आंदोलन

चीन छोड़ने की कोशिशों के अलावा कई चीनी नागरिक पिछले दो हफ्तों से शी विरोधी संदेश भी देश के भीतर और बाहर फैला रहे हैं. इससे पहले 13 अक्टूबर को पेंग नाम के एक व्यक्ति ने दुर्लभ तौर पर सार्वजनिक विरोध प्रदर्शन की शुरुआत की थी.

आजादी, लोकतंत्र और ज्यादा बुनियादी अधिकारों की मांग करते हुए उसने चीनी राजधानी बीजिंग के एक पुल पर विशाल बैनर टांग दिए थे. उसके बाद कुछ चीनी नागरिकों ने बैनरों पर दर्ज नारों के हवाले से विरोध प्रदर्शन किए थे जबकि कुछ लोगों ने बस अड्डों और सार्वजनिक स्नानघरों में नारे लिख डाले थे.

न्यूयार्क में हुंटर कॉलेजड में चीनी कानून के विद्वादन तेंग बियाओ कहते हैं कि ये कार्रवाइयां शी के खिलाफ तीनी लोगों के "बड़े व्यापक" असंतोष और गुस्से की सीधी झलक दिखाती हैं. वो कहते हैं, "ये तमाम असंतोष दिखाता है कि चीन में लंबे समय से चले आ रहे दमन और बुनियादी अधिकारों के हनन से अब लोग आजिज आ चुके हैं, वे और बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं. पिछले तीन साल में महामारी रोकथाम की बेतुकी नीतियों ने भी व्यापक पैमाने पर जनाक्रोश फैलाया है."

दोस्ती से प्रतिद्वंद्विता की ओर बढ़ते दिख रहे चीन और जर्मनी

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चीन में छिटपुट विरोध के अलावा विदेशो में पढ़ रहे कई चीनी शिक्षार्थियों ने सोशल मीडिया के जरिए दुनिया भर के सैकड़ो विश्वविद्यालयो में विरोध जताया है. कैंपसों के बुलेटिन बोर्डों पर पोस्टर लगाए हैं या नारों भरे फ्लाइर बांटे हैं.

कनाडा में चीनी शिक्षार्थी आवा ने डीडब्लू को बताया कि बीजिंग के पुल पर बैनर टांगने वाले "ब्रिज मैन" ने उनके दिलों से डर निकाल दिया है और दुनिया भर में पोस्टर आंदोलन में वे भागीदारी कर पा रहे हैं.

वो कहती हैं, "लगता है कि जब बीजिंग में वो ऐसा कर सकते हैं, तमाम खतरों को जानते हुए भी, तो हम भी क्या नहीं कर सकते. उन्होंने चीनी यथार्थ पर अंगुली रखी है और वास्तविक बुनियादी समस्याओं की ओर ध्यान दिलाया है. तमाम प्रेरणा का ये भी एक अहम हिस्सा है."

येल लॉ स्कूल में रिसर्च स्कॉलर यांगयांग शेंग कहती हैं कि ब्रिज मैन की जांबाजी ने साबित किया है कि चीन में विरोध संभव है. उन्होंने डीडब्लू को बताया, "उनके त्याग ने और लोगों को अपनी ताकत को पहचानने में मदद की. ब्रिज मैने ने एक संभावना को अंजाम तक पहुंचाया और दिखाया कि लोगों के पास भी विकल्प हैं."

'अपनी ताकत की पहचान'

विभिन्न देशों में चीनी छात्रों के पोस्टर चित्रों या विरोधों को प्रमोट करने वाले, सिटीजन्स डेली सीएन नाम के एक इन्स्टाग्राम अकाउंट के मुताबिक उनक पास दुनिया भर के 300 से ज्यादा विश्वविद्यालयों से विरोध बैनरो के करीब 2000 चित्र आ चुके हैं.

पूर्व राष्ट्रपति हू जिंताओ के साथ शी जिनपिंगतस्वीर: Mark Schiefelbein/AP/picture alliance

इस आंदोलन को मदद देने के लिए सिटीजन्स डेली ने सोशल मीडिया "दपोस्टरमूवमेंट" भी चला दिया है. उन्हें उम्मीद है कि इससे अंतरराष्ट्रीय बिरादरी इन चीनी छात्रों के मुद्दों को बेहतर समझ पाएगी. इस अकाउंट को चलाने वाली टीम ने डीडब्लू को बताया, "हमारा लक्ष्य लोगों को फिर से जोड़ने में मदद देने का है, कि वे संवाद, बहस और कार्रवाई के जरिए अपना डर, अकेलापन और तमाम शकोशुबह दूर सकें."

न्यूयार्क के हंटर कॉलेज के तेंग का कहना है कि चीन में शीर्ष पदों पर बैठे लोगों के खिलाफ सार्वजनिक विरोध शुरू करने के खतरे बहुत ज्यादा हैं. ऐसे में विदेशों में बसी चीनी बिरादरी इस आंदोलन को चलाए रखने में अहम भूमिका निभा सकती है.

वो रेखांकित करते हैं कि, "चीन में जनता के सिर्फ साहस के दम पर इन कार्रवाइयों को चलाए रख पाना बहुत मुश्किल होगा क्योंकि बहुत कम लोग ही ऐसे खतरे उठा सकते हैं. अंतरराष्ट्रीय बिरादरी के समर्थन और एकजुटता के बिना, चीनी संघर्ष का भविष्य भी बहुत निराशाजनक है."

रिपोर्टः विलियम यांग

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