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धरती से जीवों को मिटाने का दंश झेल रहा है मानव

१७ जनवरी २०२५

अंधाधुंध शिकार, इकोसिस्टमों का खत्म होना और इंसानों के किए उत्सर्जनों से हो रहा जलवायु परिवर्तन दुनिया भर के जीवों को मिटाने पर तुला है. ये नुकसान इकतरफा नहीं है, उन्हें भी इसकी कीमत चुकानी पड़ रही है.

स्पर्म व्लेहें
विशालकाय व्हेलों की वजह से सागर में दूसरे जीवों के पलने लाएक परिस्थितियां बनती हैंतस्वीर: Wild Wonders of Europe/Lundgren/Nature Picture Library/IMAGO

व्हेल से सागर, सागर से मछली और मछली से मानव, यह सिलसिला टूट रहा है. वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) की एक नई रिपोर्ट ने इस बारे में विस्तार से जानकारी दी है कि जैव विविधता के खत्म होने में इंसान क्या खो रहा है या फिर पर्यावरण का कितना नुकसान हो रहा है.

विशालकाय व्हेलें सागर के पानी को मथ कर जलीय जीवों के पनपने का आधार तो तो टपीर अमेजन के जंगलों को बढ़ाने में मदद करते हैं. यही जंगल दक्षिण अमेरिका के लिए वर्षा का पानी मुहैया कराते हैं. पृथ्वी की जैवविविधता का यहां पर जीवन के फलने फूलने से बहुत गहरा रिश्ता है. 

मछली और दूसरे जीवों का शिकार

शिकार और मछली पकड़ना मानव इतिहास के शुरुआत से ही सभी संस्कृतियों का हिस्सा रही हैं. वन्यजीव हमेशा से भोजन और इंसानों के रोजगार का एक प्रमुख साधन रहे हैं.

पश्चिमी और मध्य अफ्रीका के कुछ ग्रामीण इलाकों में लोगों के भोजन में शामिल प्रोटीन का 80 फीसदी हिस्सा जंगली जीवों के मांस से आता है. डब्ल्यूडब्ल्यूएफ की रिपोर्ट के मुताबिक यह उनकी स्थानीय अर्थव्यवस्था और साथ ही खाद्य सुरक्षा के लिए भी बेहद अहम है.

टपीर पेड़ पौधों के बीजों को फैला कर जंगल के फलने फूलने में मदद करते हैंतस्वीर: Robert Hofstede

इंसान ताजे पानी में पलने वाली करीब 2,500 मछली की प्रजातियों को अपना आहार बनाता है. यह जानकारी 2023 में वाटर जर्नल डब्ल्यूआईआरईएस ने दी थी. इसी तरह फिश एंड फिशरिज जर्नल की 2011 में जारी रिपोर्ट ने बताया था कि समुद्री मछलियां दुनिया भर में 20 करोड़ से ज्यादा लोगों को पूरे वक्त का रोजगार मुहैया कराती हैं. हालांकि वन्य जीवों की घटती आबादी मछली पकड़ने के कारोबार को नुकसानेके साथ ही भोजन की कमी को भी जन्म दे रही है.

पिछले 50 सालों में कितनी बीमार हुई कुदरत

समुद्री विज्ञान के जर्नल आईसीईएस में 2021 में छपी एक रिसर्च रिपोर्ट ने बताया कि पूर्वी कनाडा में 1968 में 8,10,000 टन कॉड मछली पकड़ी गई थी जो 2019 में मछलियों की कमी के कारण घट कर 10,559 टन पर आ गई. यह रिपोर्ट कनाडा और जर्मनी के रिसर्चरों ने तैयार की थी.

इकोसिस्टम का वास्तु और जैवविविधता

इकोसिस्टम का वास्तुशास्त्र और नियम कायदे के लिए भी जैव विविधता प्रमुख है. यह वो प्रक्रिया है जिसके जरिए जीव अपने आवासों को शक्ल देते हैं. एक जीव का लुप्त होना एक नए चक्र को जन्म देता है जो पूरे इकोसिस्टम के लिए खतरे के रूप में सामने आता है. 

अमेजन के जंगल दक्षिण अमेरिका में बारिश कराते हैंतस्वीर: AP

घास के मैदानों वाले इकोसिस्टम में शाकाहारी जीव जमीन और मिट्टी को प्रभावित करते हैं, वो जमीन की रूपरेखा बदल देते हैं जिससे जैव विविधता को बढ़ावा मिलता है. इसी बीच शिकारी जीव घास फूस खाने वाले जीवों की आबादी को नियंत्रित रखते हैं. इसके साथ ही जरूरत से ज्यादा घास को चरने से बचाने और मिट्टी के कटाव को रोकने में भी मदद मिलती है. साइंस जर्नल की 2014 की एक रिपोर्ट ने यह बताया था.

सागर में स्पर्म व्हेलें पानी को मथती हैं और पोषक तत्वों को अपने विशाल शरीर की मदद से समंदर के अलग अलग स्तरों तक ले जाती हैं. इसकी मदद से वहां इकोसिस्टम को पोषण मिलता है और मछलियों के पलने के लिए उचित जगह तैयार होती है.

हालांकि एक आकलन के मुताबिक करीब 1000 साल पहले व्हेलों का कारोबारी शिकार शुरू होने के बाद इनकी संख्या में 66-99 फीसदी तक की कमी आई है. इसका मतलब है कि सागर को जीवों से भरपूर बनाए रखने में इनका योगदान भी घट गया.

इकोसिस्टम की सेवाएं

इकोसिस्टम को स्वस्थ रखने के लिए तो जैवविविधता जरूरी है ही, साथ ही इंसानों को वह सब देने के लिए भी जो इकोसिस्टम की सेवाएं कही जाती हैं. इनमें भोजन, फसलों का परागण, मिट्टी की सुरक्षा, तापमान में कमी, ताजा पानी और निश्चित रूप से खाली वक्त बिताने का जरिया भी.

दुनिया भर में खाने पीने की एक तिहाई चीजों का उत्पादन मधुमक्खियों के परागण की वजह से संभव होता हैतस्वीर: Charlie Riedel/AP/picture alliance

2020 में छपी प्रोसिडिंग्स ऑफ द रॉयल सोसायटी बी जर्नल ने दिखाया कि अमेरिका में जिन सात फसलों पर रिसर्च हुई, उनमें से पांच में पहले ही पर्याप्त परागण करने वाले जीवों मसलन मधुमक्खियों की कमी हो चुकी है. इनके बगैर इन फसलों का पूर्ण विकास नहीं हो सकता. इसका मतलब है कि अगर यहां कीटों की जैवविविधता ज्यादा होती तो उत्पादन भी ज्यादा होता.

अमेजन के बारे में ब्राजीलियाई रिसर्चरों की एक रिपोर्ट ने बताया कि टपीर बहुत दूर दूर तक बीजों को फैलाने में मदद करते हैं. जंगलों को मुश्किलों से उबरने में इससे काफी मदद मिलती है. अमेजन के जंगलों का पानी बादल बन कर दक्षिण अमेरिका को बारिश से भिगोता है. यही पानी ना सिर्फ जीव और खेतों की प्यास बुझाता है बल्कि तापमान में कमी और जंगल की आग को भी काबू में रखता है.

दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन की वजह से हो रहे बदलावों और प्राकृतिक इलाकों की तबाही के कारण 1990 से 2020 के बीच 43 लाख वर्ग किलोमीटर जमीन सूख गई. ये जमीन भारत के क्षेत्रफल से ज्यादा है और ये आंकड़े 2024 में संयुक्त राष्ट्र ने जारी किए थे. इस सूखे का नतीजा जंगलों की आग के रूप में भी सामने आता है जिससे फिलहाल अमेरिका कैलिफोर्निया में जूझ रहा है.

सेहत पर सीधा असर

जैवविविधता के नुकसान का इंसानों की सेहत और स्वास्थ्य से भी सीधा संबंध है. 2024 में 2,900 से ज्यादा रिसर्चों के बाद यह नतीजा निकला कि इंसान ज्यादा संक्रामक रोगों की चपेट में आ रहा है. उदाहरण के लिए छोटे स्तनधारियों की आबादी में कमी का नतीाज हंटवायरस जैसी बीमारियों के उभार के रूप में सामने आया.

हंटवायरस से सांस लेने में तकलीफ और किडनी फेल होने जैसी गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा होती हैं.

जैविविविधता के घटने से चूहे जैसी कुछ प्रजातियों का आपस में हिंसक टकराव बढ़ता है जिसमें वे एक दूसरे को जहर बांटते हैं और फिर ये बीमारियां इंसानों में फैलती हैं. जैवविविधा का संबंध मनोवैज्ञानिक और सांस्कृतिक फायदों से भी है.

2013 में ब्रिटिश रिसर्चरों ने कुछ लोगों को चिड़ियों की आवाज के बीच में रख कर देखा और फिर पता चला कि उन्हें तनाव और थकान से राहत मिली. जंगली जीव भी इंसानों की कला और संगीत के लिए प्रेरणा रहे हैं लेकिन मानवता का उनसे वह संपर्क मिट रहा है. शहरी इलाकों में रहने वाले लोगों का जंगली जीवों से सामान बहुत दुर्लभ होता जा रहा है.

एनआर/वीके (रॉयटर्स)

यहां जारी है व्हेल के शिकार की परंपरा

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