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विवादयूरोप

रूसी ड्रोन हमलों का मुकाबला कैसे कर सकते हैं यूरोप के देश

मैथ्यू वार्ड आगीयूस
१९ सितम्बर २०२५

हाल ही में यूक्रेन और पोलैंड में रूसी ड्रोन की घुसपैठ की घटनाओं ने मजबूत ड्रोन सुरक्षा प्रणालियों की आवश्यकता को उजागर किया है. यह सिर्फ विदेशी हमलों से सुरक्षा के लिए ही नहीं, बल्कि आम नागरिकों के लिए भी बेहद जरूरी है.

ईरान का कामीखेज ड्रोन
ड्रोन बनाने की दिशा में ईरान ने काफी प्रगति की हैतस्वीर: Middle East Images/picture alliance

सितंबर 2025 में कीव पर हुए ड्रोन हमले और पोलैंड के ऊपर दिखे ड्रोन के झुंड ने तेजी से विकसित हो रहे स्वचालित और मानवरहित विमानों से उत्पन्न खतरे को उजागर किया है. ड्रोन पूरी दुनिया की सेनाओं के लिए काफी अहम हथियार बनता जा रहा है.

इसके लोकप्रिय होने की सबसे खास वजह इसका सस्ता होना है. दूसरे हथियारों के मुकाबले इसे बनाने में काफी कम लागत आती है. यूक्रेन युद्ध के अलावा हाल के कई और युद्धों में भी ड्रोन इस्तेमाल किए गए हैं. हालांकि, ड्रोन के बढ़ते इस्तेमाल के साथ-साथ इससे बचाव के तरीके भी लगातार बेहतर हो रहे हैं.

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ड्रोन की खासियत यह है कि इन्हें जल्दी बनाया जा सकता है. ये रडार की पकड़ से बचने के लिए कम ऊंचाई पर उड़ सकते हैं.

अमेरिका के एक थिंक टैंक ‘रैंड' में होमलैंड सिक्योरिटी और टेक्नोलॉजी के वरिष्ठ नीति विश्लेषक क्रिस्टोफर एडम्स ने कहा, "ड्रोन के निर्माण में तेजी आई है. इसलिए, ड्रोन का मुकाबला करने के तरीके भी लगातार बेहतर बनाए जा रहे हैं.”

इन सब के बीच, अलग-अलग देशों के पास ड्रोन की घुसपैठ से बचने के कई तरीके हैं. हर तरीके के अपने फायदे और नुकसान हैं.

यूक्रेन युद्ध में दोनों तरफ से ड्रोन का खूब इस्तेमाल हो रहा हैतस्वीर: Gleb Garanich/REUTERS

ड्रोन से बचने के उपाय

मानवरहित विमान होने के कारण, ड्रोन काम करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक प्रणालियों पर निर्भर रहते हैं और अक्सर रेडियो फ्रीक्वेंसी (आरएफ) कनेक्शन उन्हें नियंत्रित करते हैं. ड्रोन को निष्क्रिय करने के पसंदीदा तरीकों में ‘स्पूफिंग' और ‘जैमिंग' शामिल हैं.

स्पूफिंग तकनीक में ड्रोन को भ्रमित करने के लिए उसे नकली रेडियो सिग्नल भेजे जाते हैं, जिससे वह रास्ता भटक जाता है. वहीं, आरएफ जैमिंग तकनीक का उपयोग करके, ड्रोन का अपने कंट्रोल सेंटर से संपर्क पूरी तरह काट दिया जाता है, जिससे वह काम करना बंद कर देता है.

अब सेनाएं इन तरीकों का मुकाबला करने के लिए नए उपाय तलाश रही हैं. फ्राउनहोफर इंस्टीट्यूट ऑफ ऑप्ट्रोनिक्स, सिस्टम टेक्नोलॉजीज एंड इमेज एक्सप्लॉइटेशन में वीडियो एक्सप्लॉइटेशन सिस्टम्स के प्रमुख मार्कुस म्युलर ने बताया, "अब ज्यादातर ड्रोन अपने-आप काम करते हैं. आपके पास हमले वाली जगह की तस्वीर होती है, फिर आप उसे उड़ने का रास्ता बताते हैं और वह बिना किसी की मदद के अपने-आप ही वहां तक चला जाता है.”

जब रेडियो फ्रीक्वेंसी (आरएफ) जैमिंग तकनीक प्रभावी नहीं होती या किसी वजह से उसका इस्तेमाल ड्रोन को रोकने में नहीं किया जा सकता, तो ड्रोन को गिराने के लिए सतह से हवा में या हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलों जैसे पारंपरिक तरीकों का भी इस्तेमाल किया जाता है.

राइनमेटाल स्काईरेंजर जैसे एंटी-ड्रोन प्लेटफॉर्म पहले से ही यूक्रेन की सुरक्षा के लिए इस्तेमाल किए जा रहे हैं. कई अन्य कंपनियों के पास भी इसी तरह की तकनीकें उपलब्ध हैं, जो ड्रोन से निपटने में मदद कर सकती हैं.

म्युलर ने कामिकेज ड्रोन सिस्टम की ओर भी इशारा किया, जिसका उद्देश्य आसमान से दुश्मनों पर हमला करना है. इसके अलावा, उन्होंने एनर्जी कैनन के बारे में भी बताया है, जो लक्ष्यों को नष्ट करने या उड़ते हुए ड्रोन के इलेक्ट्रॉनिक्स को खराब करने के लिए उच्च शक्ति वाले लेजर या माइक्रोवेव का उपयोग करते हैं.

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हमला से ज्यादा महंगा है सुरक्षा

ड्रोन को मार गिराने वाले हथियार अक्सर कई गुना ज्यादा महंगे होते हैं. अमेरिका के बेल्फर सेंटर फॉर साइंस एंड इंटरनेशनल अफेयर्स में सुरक्षा अध्ययन की शोधार्थी डोमिनिका कुनेर्तोवा ने कहा, "हकीकत यह है कि सुरक्षा करना आम तौर पर हमले से ज्यादा महंगा होता है.”

एक ड्रोन को बनाने में कुछ हजार या लाख डॉलर लग सकते हैं, वहीं एक मिसाइल की कीमत दसियों लाख डॉलर तक हो सकती है. यूक्रेन ने एक बार रूसी ठिकानों पर हमला करने के लिए ऑस्ट्रेलिया में बने सस्ते कार्डबोर्ड ड्रोन का इस्तेमाल भी किया था.

दूसरी तरफ ड्रोन से बचाव के दौरान सुरक्षा बलों को आम लोगों की सुरक्षा का भी ध्यान रखना होता है. शहर के बीच में मिसाइलें या उच्च-शक्ति वाले लेजर का इस्तेमाल करने से बेगुनाह लोगों को चोट लग सकती है या उनकी जान भी जा सकती है. इसी तरह, आसमान से गिरने वाले ड्रोन भी आम लोगों को नुकसान पहुंचा सकते हैं या बुनियादी ढांचे को क्षतिग्रस्त कर सकते हैं.

जिस तेज रफ्तार से ड्रोन बनाए जा सकते हैं, वह भी सुरक्षा एजेंसियों और देश की सुरक्षा क्षमता के लिए एक बड़ी चुनौती बनती जा रही है. कुनेर्तोवा ने कहा, "ना सिर्फ पहले की तुलना में ज्यादा ड्रोन बनाए जा रहे हैं, बल्कि ड्रोन की क्वालिटी और क्षमता भी बेहतर हुई है. यह बड़ी चुनौती है.”

हर तरह के ड्रोन से बढ़ रही चुनौतियां

आम तौर पर, सुरक्षा बल ड्रोन की घुसपैठ का पता लगाने के लिए रडार तकनीक का इस्तेमाल करते हैं. ये सिस्टम पूरी तरह असरदार नहीं हैं, लेकिन वे असली खतरों और हवा में उड़ रहे पक्षियों या सामान्य विमानों के बीच फर्क करने में लगातार बेहतर हो रहे हैं.

हालांकि, सैन्य इस्तेमाल के लिए बने ड्रोन की पहचान करना एक बड़ी प्राथमिकता है. उसी तरह ऐसी तकनीक बनाने की भी जरूरत है जो महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचों और सार्वजनिक स्थानों के पास ड्रोन की पहचान कर सके. इससे हिंसक हमलों के लिए, सामान्य ड्रोन का इस्तेमाल होने से रोका जा सकता है.

एडम्स ने कहा कि बाजार में आसानी से मिलने वाले सामान्य ड्रोन ‘बहुत बड़ा संभावित खतरा' हैं. वह कहते हैं, "ऐसा ड्रोन जो रेडियो सिग्नल नहीं छोड़ता है और जिसका उपयोग कई तरह के खतरनाक कामों में किया जा सकता है, वह असामाजिक तत्वों के लिए बाजार में काफी आसानी से उपलब्ध है.”

इसी वजह से, हवाई अड्डों और बंदरगाहों जैसे महत्वपूर्ण स्थानों के साथ-साथ म्यूजिक फेस्टिवल और खेल के मुकाबलों जैसे सार्वजनिक कार्यक्रमों की सुरक्षा बहुत महत्वपूर्ण हो गई है.

हालांकि, म्युलर ने डीडब्ल्यू को बताया, "बाजार में अभी कोई विश्वसनीय प्रणाली नहीं है जो 200 से 400 या 500 मीटर की रेंज में आने वाले छोटे ड्रोनों से निपट सके.”

उन्होंने कहा कि कुछ सुरक्षा प्रणालियां कम दूरी के लिए प्रभावी हैं. वहीं, बड़े सार्वजनिक आयोजनों की सुरक्षा के लिए ऐसी तकनीक विकसित करने की जरूरत है जो मध्यम दूरी से ही आतंकी हमलों के लिए इस्तेमाल होने वाले ड्रोन का पता लगा सके.

फ्राउनहोफर की टीमें इस पर काम कर रही हैं. संस्थान का एक प्लेटफॉर्म ‘मोडियास' अभी प्रोटोटाइप चरण में है. यह ड्रोन की पहचान करने, उन्हें अलग-अलग कैटेगरी में बांटने, और ट्रैक करने के लिए ऑप्ट्रॉनिक्स और रडार का इस्तेमाल करता है.

अगर बड़े पैमाने पर इस सिस्टम को बनाया जाता है, तो यह सुरक्षा एजेंसियों और निजी कंपनियों को उपलब्ध कराया जा सकता है. इससे उन्हें ड्रोन से जुड़े खतरों को बेहतर ढंग से निपटने में मदद मिलेगी.

पोलैंड की सीमा में ड्रोन दिखने के बाद नाटो के सदस्य देशों ने पूर्वी इलाके में निगरानी अभियान शुरू किया हैतस्वीर: Thibaud Moritz/AFP/Getty Images

रूसी ड्रोनों का मुकाबला करने का कोई आसान उपाय नहीं

डीडब्ल्यू से बात करने वाले विश्लेषकों ने कहा कि सरकारों, खासकर यूरोप के नाटो देशों के लिए अपनी सुरक्षा पर ध्यान देना सबसे जरूरी है.

रूस-यूक्रेन युद्ध में ड्रोन के इस्तेमाल का कई बार विश्लेषण कर चुकीं कुनेर्तोवा ने कहा कि रूस ड्रोन बनाने और यूक्रेनी ड्रोन से बचाव करने के तरीके ईजाद करने में बहुत आगे है. इसके विपरीत, नाटो और यूरोपीय संघ के देश ‘ड्रोन खतरे से निपटने के लिए, यानी बचाव के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं कर रहे हैं.'

उन्होंने कहा, "छोटे ड्रोन के नए आक्रामक उपयोगों से उत्साहित होने के बजाय, मैं चाहती हूं कि ड्रोन के खतरे का मुकाबला करने के लिए ज्यादा पहल और कोशिशें की जाएं.”

चूंकि ड्रोन को रोकने वाले उपायों पर, ड्रोन के हमले भारी पड़ सकते हैं. इसलिए, एक बहु-स्तरीय सुरक्षा व्यवस्था बनाना समझदारी होगी, जिसमें आरएफ जैमिंग, मिसाइलें, पारंपरिक हथियार और लेजर या माइक्रोवेव तकनीक का इस्तेमाल एक साथ किया जाए.

कुनेर्तोवा ने कहा, "कोई भी एक उपकरण पूरी तरह आपकी सुरक्षा नहीं कर सकता. इसलिए, सबसे अच्छा तरीका है कि कई परतों वाली सुरक्षा प्रणाली का इस्तेमाल किया जाए. इसमें ड्रोन की पहचान करने वाले डिटेक्टर और जवाबी हमला करने वाले सिस्टम, दोनों शामिल हों.”

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