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पूरी दुनिया का पेट भर सकती हैं जंगली प्रजातियां

टिम शाउएनबेर्ग
१५ जुलाई २०२२

जैव विविधता के विशेषज्ञ विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी जंगली प्रजातियों के संरक्षण का आह्वान कर रहे हैं. इन प्रजातियों के संरक्षण से अरबों लोगों को भोजन मिल सकता है. साथ ही, आमदनी बढ़ सकती है.

दक्षिण अमेरिका में तेजी से साफ हो रहे हैं अमेजन के वर्षावन
तस्वीर: Raul Arboleda/AFP/Getty Images

इंटरगवर्नमेंटल साइंस-पॉलिसी प्लेटफॉर्म ऑन बायोडायवर्सिटी एंड इकोसिस्टम सर्विसेज (आईपीबीईएस) की दो ऐतिहासिक रिपोर्ट के लेखकों का कहना है कि जंगली प्रजातियों को विलुप्त होने से बचाने और मानव जीवन के लिए आवश्यक पारिस्थितिक तंत्र को संरक्षित करने के लिए "परिवर्तनकारी बदलाव" की जरूरत है.

इन रिपोर्ट में शैवाल, जानवरों, फफुंद के साथ-साथ जमीन और जल में मौजूद पौधों के स्थायी इस्तेमाल के विकल्पों की जांच की गई है. रिपोर्ट को तैयार करने में लगभग 400 विशेषज्ञ और वैज्ञानिकों के साथ ही स्थानीय समुदायों के प्रतिनिधि शामिल थे. कुल मिलाकर, उन्होंने हजारों वैज्ञानिक स्रोतों का मूल्यांकन किया. इस सप्ताह इससे जुड़ी अहम जानकारी जारी की गई. आईपीबीईएस के सह-अध्यक्ष जॉन डोनाल्डसन ने कहा, "दुनिया की लगभग आधी आबादी वास्तव में जंगली प्रजातियों के इस्तेमाल पर बहुत ज्यादा या कुछ हद तक निर्भर है. लोग जितना सोचते हैं उससे ज्यादा वे जंगली प्रजातियों पर निर्भर हैं.”

दुनिया में जैव विविधता के लिहाज से बहुत ही समृद्ध हैं भारत के पश्चिमी घाट के जंगलतस्वीर: MANJUNATH KIRAN/AFP/Getty Images

10 लाख से ज्यादा प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा

फिलहाल, दुनिया भर में लगभग दस लाख प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा है, क्योंकि जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं. इससे दुनिया भर के लोगों के स्वास्थ्य और उनकी जीवन की गुणवत्ता को नुकसान पहुंच रहा है. साथ ही, वे आर्थिक रूप से कमजोर हो रहे हैं. इंसानी गतिविधियों की वजह से हो रहे जलवायु परिवर्तन के कारण, धरती का तापमान पूर्व-औद्योगिक काल की तुलना में सदी के अंत तक 2.7 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है. इस वजह से विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी प्रजातियों के लिए 10 गुना खतरा बढ़ जाएगा.

शोधकर्ताओं ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि बड़े स्तर पर प्रजातियों के विलुप्त होने का छठा चरण पहले से ही शुरू हो चुका है. रिपोर्ट में बताया गया है कि स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र के निर्माण और उसकी सुरक्षा के लिए मछली, कीड़े, फफूंद, शैवाल, जंगली फल, जंगल और पक्षियों की जंगली प्रजातियों का संरक्षण जरूरी है.

जंगली प्रजातियों से लोगों को फायदा

रिपोर्ट में कहा गया है कि जंगली प्रजातियों और उनके पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा करने से लाखों लोगों की आजीविका सुरक्षित होगी. जंगली प्रजातियों का लगातार बेहतर प्रबंधन, गरीबी और भूख से लड़ने के लिए संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों में से एक को और मजबूत करेगा.  उदाहरण के लिए, सभी खाद्य फसलों का दो-तिहाई हिस्सा बड़े पैमाने पर जंगली परागणकों पर निर्भर करता है. दूसरे शब्दों में कहें, तो पक्षी, हवा, कीड़े या किसी अन्य माध्यम से बीज जंगल में एक जगह से दूसरे जगह फैलते हैं. दुनिया भर में पाई जाने वाली दो-तिहाई से ज्यादा फसलें परागण के लिए कीटों पर निर्भर हैं. बिना इन कीटों के परागण संभव नहीं और बिना परागण के फसल संभव नहीं है. आज स्थिति यह है कि इन कीटों की करीब एक तिहाई आबादी विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी है. ऐसे में न तो परागण होगा और न ही फसल होगी. जब फसल ही नहीं होगी, तो इंसानों को भोजन नहीं मिलेगा. जंगली पौधे, फफूंद और शैवाल दुनिया की 20 फीसदी आबादी के भोजन का हिस्सा हैं.

दक्षिण पूर्वी एशिया के मेकॉन्ग इलाके में हाल में जीवों की 224 नई प्रजातियां पता चलींतस्वीर: World Wildlife Foundation/AP Photo/picture alliance

दुनिया में आर्थिक रूप से कमजोर लोगों में से 70 फीसदी लोग जंगली प्रजातियों पर सीधे तौर पर निर्भर हैं. जंगली पेड़ों से ही लाखों लोगों का जीवन-बसर होता है. यह उनकी आमदनी का मुख्य स्रोत है. हालांकि, इसके साथ ही जिन 2 अरब लोगों को खाना पकाने के लिए लकड़ी की जरूरत होती है वे जैव विविधता को नष्ट कर रहे हैं. वनों की कटाई के कारण हर साल लगभग 50 लाख हेक्टेयर जंगल नष्ट हो जाते हैं. जबकि, लोगों को यह समझना होगा कि पेड़ों को काटे बिना भी जंगली प्रजातियों से कमाई की जा सकती है. 

स्कूबा डाइविंग, जंगल की सैर या वन्यजीव देखने जैसे प्रकृति पर्यटन से 2018 में 120 अरब डॉलर की कमाई हुई. कोरोना महामारी से पहले राष्ट्रीय उद्यानों और संरक्षित क्षेत्रों से हर साल करीब 600 अरब डॉलर की कमाई हुई.

पर्यावरण के नुकसान की लागत

लेखकों का कहना है कि राजनीतिक और आर्थिक निर्णय लेते समय प्रकृति को कम आंकना वैश्विक स्तर पर जैव विविधता के संकट को बढ़ा रहा है. आर्थिक विचारों पर आधारित नीतिगत निर्णय लेने के दौरान इस बात की अनदेखी की जाती है कि पर्यावरण में होने वाले बदलाव लोगों के जीवन को कैसे प्रभावित करते हैं. उदाहरण के लिए, क्षणिक लाभ और सकल घरेलू उत्पाद के रूप में विकास को मापने पर ध्यान केंद्रित करने से अत्यधिक दोहन या सामाजिक अन्याय जैसे नकारात्मक प्रभावों का आकलन नहीं हो पाता.

दोनों रिपोर्ट में से एक के सह-लेखक पेट्रीसिया बलवनेरा ने कहा, "नीति-निर्माण में प्रकृति के मूल्यों को शामिल करना, 'विकास' और 'जीवन की अच्छी गुणवत्ता' को फिर से परिभाषित करने जैसा है. साथ ही, उन तरीकों की पहचान करना है जिससे लोग प्रकृति के ज्यादा करीब आ सकते हैं.”

टूना मछलीतस्वीर: NAVESH CHITRAKAR/REUTERS

सुशी के प्रचार से टूना मछली की आबादी बचाने तक

डोनाल्डसन ने बताया, "सुशी की बढ़ती लोकप्रियता के कारण 1980 के दशक में ब्लूफिन टूना मछली विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गई थी. इसे बचाने के लिए कई उपाय अपनाए गए. जैसे, मछली पकड़ने की समयावधि कम की गई, मछली पकड़ने की गतिविधियों की निगरानी की गई, छोटे आकार की मछली पकड़ने पर रोक लगाई गई, कम मछली पकड़ी गई, मछलियों को फलने फूलेन का मौका दिया गया. इन सब उपायों के बेहतर नतीजे देखने को मिले.”

उन्होंने आगे कहा, "जब स्थिति को बेहतर तरीके से प्रबंधित किया जाता है, तो इससे न सिर्फ स्थिरता आती है, बल्कि इन्हें उन जगहों पर इस्तेमाल किया जा सकता है जहां से ज्यादा फायदा हो.”  लेखक लकड़ी उद्योग में भी इसी तरह के उपायों को लागू करने की सलाह देते हैं. इसके तहत अवैध कटाई पर रोक, कड़े नियम लागू करना, बेहतर निगरानी प्रणाली स्थापित करना वगैरह शामिल है. साथ ही, लेखकों ने ऐसे नियम बनाने की भी मांग की जिससे जमीन का अधिकार स्थानीय लोगों के हाथ में हो और जो मोनोकल्चर की जगह जंगली प्रजातियों को बढ़ावा देती हो.

 

चीन में बायमा लेक नेशनल वेटलैंड पार्कतस्वीर: He Jinghua/Costfoto/picture alliance

स्थानीय समुदायों को ‘कम आंका गया'

रिपोर्ट में स्थानीय समुदायों की भूमिका की भी चर्चा की गई. साथ ही, यह प्रस्ताव दिया गया कि पारिस्थितिक तंत्र को कैसे बेहतर ढंग से संरक्षित और इस्तेमाल किया जा सकता है.  स्थानीय लोग एक ही जमीन पर हर साल अलग-अलग फसल लगाते हैं, ताकि उसकी उर्वरा बनी रहे. वे पशुओं के चरने का मौसम भी निर्धारित करते हैं. कुछ विशेष मौसम के दौरान विशेष प्रजातियों की कटाई नहीं करते हैं. यह सब जैव विविधता को बनाए रखने या बढ़ाने के लक्ष्य के साथ किया जाता है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन क्षेत्रों में स्थानीय समुदाय रहते हैं, वहां वनों की कटाई कम होती है. स्थानीय समुदायों के प्रतिनिधियों ने रिपोर्ट तैयार करने में सीधे तौर पर योगदान दिया है. इसमें प्रकृति से जरूरत से अधिक न लेने की उनकी साझा संस्कृति पर प्रकाश डाला गया है. जैव विविधता पर अंतरराष्ट्रीय स्थानीय मंच के विवियाना फिगेरोआ कहते हैं, "स्थानीय ज्ञान की यह मान्यता ‘प्रगति' है. स्थानीय लोग किसी से कोई पैसा लिए बिना प्रजातियों के संरक्षण का काम कर रहे हैं.”  इस व्यापक योगदान के बावजूद, कई समुदायों को मानवाधिकारों के उल्लंघन का सामना करना पड़ रहा है. कई समुदायों को विस्थापन का दर्द झेलना पड़ा, तो कुछ हिंसा के शिकार हुए. कइयों को जबरन उनकी जमीन से बेदखल कर दिया गया. 

फिगेरोआ कहते हैं, "सरकारों को वन्यजीव प्रजातियों के संरक्षण और स्थायी इस्तेमाल में हमारी सहायता करनी चाहिए. हम चाहते हैं कि इस रिपोर्ट से स्थानीय स्तर पर होने वाली कार्रवाई में भी मदद मिले.”

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