बिना एक भी गोली चलाए ताइवान पर कब्जा कर सकता है चीनः रिपोर्ट
२४ जून २०२४
चीन बिना बल प्रयोग किए ताइवान पर कब्जे की कोशिश कर सकता है. एक प्रतिष्ठित थिंक टैंक का कहना है कि इसके लिए ‘ग्रे जोन रणनीति’ का इस्तेमाल किया जा सकता है.
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अमेरिका के वॉशिंगटन स्थित थिंकटैंक सेंटर फॉर स्ट्रैटिजिक एंड इंटरनेशनल स्ट्डीज (सीएसआईएस) ने एक विस्तृत रिपोर्ट में कहा है कि ताइवान पर कब्जा करने के लिए चीन बल प्रयोग करने के बजाय अन्य रणनीतियां अपना सकता है.
रिपोर्ट कहती है कि चीन ताइवान पर सीधा सैन्य आक्रमण करने के बजाय उसे सैन्य रूप से अलग-थलग करने से लेकर उसकी अर्थव्यवस्था को पंगु करने जैसे तरीकों का इस्तेमाल कर बिना एक गोली चलाए उसे अपनी इच्छा मानने पर मजबूर कर सकता है.
चीन ताइवान को अपना हिस्सा बताता है लेकिन ताइवान में चुनी हुई सरकार है जो उसे संप्रभु राष्ट्र मानती है. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने ताइवान को हासिल करने का प्रण लिया है. इसके लिए पिछले कुछ सालों से चीन ने लगातार दबाव बनाया हुआ है. कई पश्चिमी विशेषज्ञ और सरकारें आशंका जता चुकी हैं कि जिस तरह रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण किया, उसी तरह चीन भी ताइवान पर आक्रमण कर सकता है.
चीन को सैन्य कार्रवाई की जरूरत नहीं
सीएसआईएस की रिपोर्ट कहती है कि ताइवान पर कब्जा करने के लिए चीन को सैन्य बल प्रयोग की जरूरत नहीं है और वह ‘ग्रे जोन रणनीति' का इस्तेमाल कर सकता है. ग्रे जोन रणनीति ऐसी गतिविधियां होंगी जिन्हें युद्ध का नाम नहीं दिया जा सकेगा, इसलिए कोई उनका जवाब नहीं दे पाएगा. रिपोर्ट के मुताबिक चीन की यह रणनीति अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों के लिए भी चुनौतीपूर्ण होगी क्योंकि वे इसका सीधा जवाब नहीं दे पाएंगे.
ताइवान में लोग क्यों ले रहे हथियार चलाने की ट्रेनिंग
यूक्रेन पर रूस के हमले से सबक लेते हुए ताइवान के लोग भी बंदूक चलाने की ट्रेनिंग ले रहे हैं. उन्हें डर है कि जिस तरह से रूस ने यूक्रेन के साथ किया है कहीं चीन भी ताइवान के साथ न कर दे.
तस्वीर: Ann Wang/REUTERS
ताइवान में भी युद्ध की आशंका
ताइवान के कई लोगों को अब इसमें कोई संदेह नहीं है कि एक बड़ा पड़ोसी अपने छोटे पड़ोसी पर हमला कर सकता है. उनमें से कई लोगों का मानना है कि चीन ताइवान पर कभी भी हमला कर सकता है और ऐसे में चूंकि उसे अपने अस्तित्व के लिए लड़ना है, इसलिए बेहतर होगा कि अभी से तैयारी शुरू कर दी जाए. इसे ध्यान में रखते हुए कई लोगों ने पहले ही बंदूक प्रशिक्षण में दाखिला ले लिया है.
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ताइवान पर बढ़ता दबाव
चीन ताइवान को अपना इलाका मानता है और उसे अपने अधीन लाने का प्रण ले चुका है. रूस ने फरवरी में यूक्रेन पर हमला किया था तब से ताइवानियों के बीच बंदूक प्रशिक्षण में रुचि अभूतपूर्व दर से बढ़ी है. राजधानी ताइपेई के पास पोलर लाइट ट्रेनिंग सेंटर के मुख्य कार्यकारी अधिकारी मैक्स चियांग ने कहा कि बहुत से लोग जिन्होंने अपने जीवन में कभी बंदूक नहीं देखी है, वे इसका इस्तेमाल करना सीख रहे हैं.
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बंदूक के साथ लड़ना सीख रहे
पिछले तीन महीनों में ताइवान में सभी उम्र और व्यवसायों के लोगों में बंदूक प्रशिक्षण में रुचि बढ़ी है. रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक देश के टुअर गाइड से लेकर टैटू आर्टिस्ट तक लगभग हर कोई एक विशेष परिस्थिति के लिए तैयार रहने के लिए शूटिंग में कुशल होना चाहता है.
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नेता भी सहमे
यूक्रेन में जो हालात हैं उनसे ताइवान के नेताओं का एक बड़ा वर्ग भी चिंतित है. उनमें से कुछ ने तो युद्ध की तैयारी भी शुरू कर दी है. सत्तारूढ़ डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी के एक नेता लिन पिंग-यू ने कहा कि अगर युद्ध छिड़ता है तो उसके लिए उन्होंने अपने परिवार के लिए आपातकालीन खाद्य आपूर्ति और बैट्री जमा कर ली है.
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टैटू कलाकार भी मैदान में
चीन से खतरे के खिलाफ तैयारी करने वालों में 39 साल के टैटू कलाकार सु चुन भी हैं. वे एयर गन चलाने की ट्रेनिंग ले रहे हैं. वे कहते हैं, "मैं युद्ध के कुछ कौशल सीखना चाहता हूं, जिसमें सिर्फ हथियार चलाने की ट्रेनिंग नहीं बल्कि किसी भी तरह की स्थिति पर प्रतिक्रिया देने की ट्रेनिंग शामिल हो."
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रिपोर्ट कहती है, "चीन की जल सेना, उसके कथित समुद्री लड़ाके और अन्य पुलिस व जल क्षेत्र एजेंसियां ताइवान को पूरी तरह या कुछ हद तक अलग-थलग कर सकती हैं. इसके लिए उसके बंदरगाहों का घेराव किया जा सकता है और ऊर्जा संसाधनों आदि को उस तक पहुंचने से रोका जा सकता है.”
सीएसआईएस के विश्लेषकों बोनी लिन, ब्रायन हार्ट, मैथ्यू फुनेलो, समांथा लू और ट्रूली टिंजली ने यह रिपोर्ट तैयार की है. वे लिखते हैं, "चीन ने हाल के सालों में ताइवान पर दबाव को बहुत हद तक बढ़ा दिया है. इससे यह चिंता बढ़ी है कि यह तनाव युद्ध का रूप ले सकता है. इस बात की ओर बहुत ज्यादा ध्यान केंद्रित है कि चीन ताइवान पर आक्रमण कर सकता है लेकिन बीजिंग के पास ताइवान पर कब्जा करने, उसे सजा देने और उस पर दबाव बनाने के लिए और भी कई विकल्प हैं.”
पश्चिम के लिए चुनौती
इसी महीने सिंगापुर में हुए शांगरी-ला रक्षा सम्मेलन में चीन के रक्षा मंत्री एडमिरल दोंग जुन ने चेतावनी दी थी कि जो भी ताइवान की आजादी का समर्थन करेगा, वह ‘खुद के नाश' को न्यौता देगा. यह परोक्ष रूप से अमेरिका को चेतावनी है जो ताइवान को हथियार देना जरूरी बताता है.
दोंग ने कहा था, "हम ताइवान की आजादी को रोकने के लिए कड़ी कार्रवाई करेंगे और सुनिश्चित करेंगे कि ऐसी कोई योजना कभी कामयाब ना हो.” उन्होंने बाहर से दखलअंदाजी करने वाली ताकतों को ‘ताइवान को हथियार बेचने और अवैध आधिकारिक संपर्क बनाने' के खिलाफ भी चेतावनी दी थी.
यूं बनते हैं ताइवान के सबसे शक्तिशाली योद्धा
ये ताइवान के सबसे शक्तिशाली सैनिकों में से हैं. देश के सबसे विशेष दल एंफीबियस रीकॉनेसाँ ऐंड पट्रोल (एआरपी) यूनिट में भर्ती होना अमेरिका के सबसे विशिष्ट सैन्य दल नेवी सील जैसा ही मुश्किल है. देखिए...
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लोहे से सख्त सैनिक
ताइवान की सबसे विशेष सैन्य यूनिट एआरपी में भर्ती होने के लिए ट्रेनिंग दस हफ्ते चलती है. इस साल 31 प्रतिभागियों ने इस ट्रेनिंग में हिस्सा लिया लेकिन कामयाब सिर्फ 15 हो पाएंगे. इस ट्रेनिंग में सैनिकों की शरीर और आत्मा दोनों को कठिनतम हालात से गुजरना होता है.
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शीत स्नान
दिनभर समुद्र में ट्रेनिंग करने के बाद सैनिकों को इस तरह बर्फीले पानी से नहलाया जाता है. कांपते हुए भी इन्हें खंभों की तरह खड़े रहना होता है.
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सामान्य नहीं अभ्यास
इन सैनिकों का अभ्यास देखने में जितना सामान्य लगता है, उतना है नहीं. प्रशिक्षक बेहद कठोर होते हैं और जरा भी समझौता नहीं करते. सैनिक घंटों तक पानी और जमीन पर अभ्यास करते हैं. छुट्टी के नाम पर कुछ मिनट ही मिलते हैं.
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युद्ध के लिए तैयारी
इन जवानों को हर तरह के हालात के लिए तैयार रहने की ट्रेनिंग दी जाती है. अफसर उम्मीद करते हैं कि इस अभ्यास से जवानों में इच्छाशक्ति पैदा होगी और वे एक दूसरे के लिए व देश के लिए हर हालात में खड़े रहेंगे.
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पानी में जीवन
इन जवानों को अधिकतर समय समुद्र या स्विमिंग पूल में गुजारना होता है. वे पूरी वर्दी में तैरने से लेकर लंबे समय तक पानी के अंदर सांस रोकने जैसे कौशल सीखते हैं. कई बार उन्हें हाथ-पांव बांधकर पानी में फेंक दिया जाता है.
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टूटने की हद तक
जवानों के शरीर को टूट जाने की हद तक तोड़-मरोड़ा जाता है. इस दौरान उनकी चीखें निकलती हैं. और अगर कोई जवान प्रशिक्षक का विरोध कर दे, तो फौरन उसे बाहर कर दिया जाता है.
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पथरीला रास्ता
आखरी ट्रेनिंग को स्वर्ग का रास्ता कहा जाता है. इस अभ्यास में जवानों को एक बेहद मुश्किल बाधा दौड़ से गुजरना होता है. उन्हें बिना कपड़े पहने ही, कुहनियों पर चलने से लेकर, पत्थरों पर घिसटने तक कई ऐसी बाधाएं पार करनी होती हैं जो आम इंसान के लिए असंभव हैं.
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जीत की घंटी
पास होने वाले जवानों को यह घंटी बजाने का मौका मिलता है. प्रोग्राम में शामिल सभी जवानों की किस्मत में यह घंटी नहीं होती. लेकिन इस बेहद कठिन ट्रेनिंग के लिए जवान अपनी इच्छा से आते हैं.
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जिस ‘ग्रे जोन रणनीति' का हवाला सीएसआईएस की रिपोर्ट में दिया गया है, चीन हाल के महीनों में अक्सर उसका इस्तेमाल करता भी दिखाई दिया है. रिपोर्ट कहती है कि दुनिया के अन्य देशों की तरह चाइना कोस्ट गार्ड को भी कानून का पालन करवाने वाली एजेंसी माना जाता है. इसका अर्थ है कि यह द्वीप के इर्द-गिर्द जहाजों की आवाजाही को नियंत्रित कर सकती है और उन्हें रोक भी सकती है. यह कार्रवाई सैन्य घेराव के दायरे में नहीं आएगी, बल्कि इसे क्वॉरन्टीन करना माना जाएगा.
रिपोर्ट कहती है, "क्वॉरन्टीन एक कानून-सम्मत अभियान है जो किसी तय क्षेत्र में समुद्री या हवाई यातायात को नियंत्रित करता है. जबकि घेराव एक सैन्य कार्रवाई होती है.” सैन्य घेराव को युद्ध की कार्रवाई माना जाता है. विशेषज्ञ कहते हैं कि ताइवान की घेराबंदी चीन को काफी महंगी पड़ सकती है.
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चीन की अतुलनीय ताकत
रिपोर्ट में अनुमान जताया गया है कि चाइना कोस्ट गार्ड के पास 150 बड़ी और 400 छोटी नौकाएं हैं. ये 150 बड़ी नौकाएं गहरे समुद्र में जाने में सक्षम हैं. नौकाओं की संख्या के हिसाब से यह दुनिया की सबसे बड़ी कोस्ट गार्ड एजेंसी है. इसके अलावा चीन के पास मैरीटाइम सेफ्टी एजेंसी, मैरीटाइम मिलिशिया और चीन की सेना से जुड़ीं मछली पकड़ने वाली नौकाओं के रूप में भी बड़ी ताकत मौजूद है.
पिछले महीने जब ताइवान के नए राष्ट्रपति ने शपथ ली थी तो चीन ने एक बड़ा सैन्य अभ्यास किया था. उसकी सेना ने कहा था कि यह ताइवान का घेरा डालने और ‘सत्ता पर नियंत्रण' का अभ्यास था.
सीएसआईएस की रिपोर्ट कहती है कि ताइवान के कोस्ट गार्ड के पास सिर्फ 10 बड़ी और 160 छोटी नौकाएं हैं, जो ‘क्वॉरन्टीन की कोशिशों का जवाब देने के लिए नाकाफी हैं.'
जो देश होकर भी देश नहीं हैं
दुनिया के कई हिस्से खुद को एक अलग देश मानते हैं, उनकी अपनी सरकार, संसद और अर्थव्यवस्था है. कइयों की अपनी मुद्रा भी है. फिर भी उन्हें पूरी दुनिया में मान्यता नहीं है और न ही वे यूएन के सदस्य हैं. ऐसे ही देशों पर एक नजर.
तस्वीर: DW
फलस्तीन
फलस्तीन को संयुक्त राष्ट्र के 136 सदस्य देशों और वेटिकन की मान्यता हासिल है और फलस्तीनी इलाकों में फलस्तीनी विधायी परिषद की सरकार चलती है. लेकिन लगातार खिंच रहे इस्राएल-फलस्तीन विवाद के कारण एक संपूर्ण राष्ट्र के निर्माण का फलस्तीनियों का सपना अधूरा है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Momani
कोसोवो
कोसोवो ने 2008 में एकतरफा तौर पर आजादी की घोषणा की, लेकिन सर्बिया आज भी उसे अपना हिस्सा समझता है. वैसे कोसोवो को संयुक्त राष्ट्र के 111 सदस्य देश एक अलग देश के तौर पर मान्यता दे चुके हैं. साथ ही वह विश्व बैंक और आईएमएफ जैसी विश्व संस्थाओं का सदस्य है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
सहारा रिपब्लिक
पश्चिमी सहारा के इस इलाके ने 1976 में सहारावी अरब डेमोक्रेटिक रिपब्लिक (एसएडीआर) नाम से एक आजाद देश की घोषणा की. उसे संयुक्त राष्ट्र के 84 देशों की मान्यता हासिल है. लेकिन मोरक्को पश्चिमी सहारा को अपना क्षेत्र मानता है. एसआएडीआर यूएन का तो नहीं, लेकिन अफ्रीकी संघ का सदस्य जरूर है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Messara
ताइवान
चीन ताइवान को अपना एक अलग हुआ हिस्सा मानता है जिसे एक दिन चाहे जैसे हो, चीन में ही मिल जाना है. चीन के बढ़ते प्रभाव के कारण दुनिया के मुट्ठी भर देशों ने ही ताइवन के साथ राजनयिक संबंध रखे हैं. हालांकि अमेरिका ताइवान का अहम सहयोगी है और उसकी सुरक्षा को लेकर बराबर आश्वस्त करता रहा है.
तस्वीर: Taiwan President Office
दक्षिणी ओसेतिया
दक्षिणी ओसेतिया ने आजादी की घोषणा 1991 में सोवियत संघ के विघटन के समय ही कर दी थी. लेकिन उसे आंशिक रूप से मान्यता 2008 में उस वक्त मिली जब रूस और जॉर्जिया के बीच युद्ध हुआ. रूस के अलावा निकारागुआ और वेनेजुएला जैसे संयुक्त राष्ट्र के सदस्य भी उसे मान्यता दे चुके हैं.
तस्वीर: DW
अबखाजिया
2008 के युद्ध के बाद रूस ने जॉर्जिया के अबखाजिया इलाके को भी एक देश के तौर पर मान्यता दे दी, जिसे जॉर्जिया ने अखबाजिया पर रूस का "कब्जा" बताया. अबखाजिया को संयुक्त राष्ट्र के छह सदस्य देशों की मान्यता हासिल है जबकि कुछ गैर मान्यता प्राप्त इलाके भी उसे एक देश मानते हैं.
तस्वीर: Filip Warwick
तुर्क साइप्रस
1983 में आजादी की घोषणा करने वाले तुर्क साइप्रस को सिर्फ तुर्की ने एक देश के तौर पर मान्यता दी है. हालांकि इस्लामी सहयोग संगठन और आर्थिक सहयोग संगठन ने साइप्रस के उत्तरी हिस्से को पर्यवेक्षक का दर्जा दिया है. सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 541 में उत्तरी साइप्रस की आजादी को अमान्य करार दे रखा है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/I. Hatzistavrou
सोमालीलैंड
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सोमालीलैंड को सोमालिया का एक स्वायत्त इलाका माना जाता है. लेकिन बाकी सोमालिया से शांत और समृद्ध समझे जाने वाले इस इलाके की चाहत एक देश बनने की है. उसने 1991 में अपनी आजादी का एलान किया, लेकिन उसे मान्यता नहीं मिली.
अर्टसाख रिपब्लिक
सोवियत संघ के विघटन के समय जब अजरबाइजान ने आजादी की घोषणा की, तभी अर्टसाख ने भी आजादी का एलान किया. अजरबाइजान इसे अपना हिस्सा मानता है. यूएन के किसी सदस्य देश ने इसे मान्यता नहीं दी है.
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/C. Arce
ट्रांसनिस्त्रिया
ट्रांसनिस्त्रिया का आधिकारिक नाम प्रिदिनेस्त्रोवियन मोल्दोवियन रिपब्लिक है, जिसने 1990 में मोल्दोवा से अलग होने की घोषणा की थी. लेकिन इसे न तो मोल्डोवा ने आज तक माना है और न ही दुनिया के किसी और देश ने मान्यता दी है.
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रिपोर्ट के मुताबिक ताइवान के क्वॉरन्टीन की चीन की कोशिशें बहुत सीमित होते हुए भी काफी असरदार हो सकती हैं और ताइवान को आर्थिक रूप से पंगु बना सकती हैं. रिपोर्ट कहती है, "चीन पहले भी दिखा चुका है कि वह व्यवसायिक जहाजों की तलाशी और उन्हें जब्त करने से पीछे नहीं हटेगा. अगर कुछ जहाजों के साथ भी ऐसा होता है तो इसका असर व्यापक होगा और बहुतों को हतोत्साहित करेगा.”
साथ ही, विश्लेषक कहते हैं कि क्वॉरन्टीन करने की इन कोशिशों को बहुत आसानी से वायु सीमा तक भी बढ़ाया जा सकता है. वे लिखते हैं, "चीन के विमान अगर कुछ ही विमानों को सीमा में आने से रोक देते हैं तो उसका पूरे यातायात पर व्यापक असर होगा.”
ताइवान के इर्द-गिर्द चीनी विमान नियमित रूप से उड़ान भरते हैं. पिछले हफ्ते ही ताइवान के रक्षा मंत्रालय ने कहा था कि शुक्रवार सुबह तक के 24 घंटों में चीन के 36 विमानों ने ताइवानी रक्षा सीमा को पार किया.
रिपोर्ट के मुताबिक इस नीति का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि चीन को ताइवान खाड़ी में आवाजाही रोकने की जरूरत नहीं होगी. यानी अमेरिका और उसके सहयोगी कुछ नहीं कर पाएंगे क्योंकि उनका सबसे बड़ा तर्क यह रहता है कि ताइवान खाड़ी एक अंतरराष्ट्रीय व्यापार मार्ग है और चीन उसे रोकने की कोशिश करता है.
छोटी कार्रवाई का बड़ा असर
रिपोर्ट में विश्लेषक लिखते हैं, "अगर क्वॉरन्टीन को कानून का पालन करवाने वाली एजेंसियों के अभियान के रूप में दिखाया जाता है तो चीन आसानी से अभियान पूरे होने का एलान कर कह सकता है कि उसका लक्ष्य पूरा हो गया है.” वे कहते हैं कि ताइवान को अलग-थलग करने के लिए चीन को क्वॉरन्टीन शब्द का इस्तेमाल करने की भी जरूरत नहीं है.
चीनी सेना कहां से कहां पहुंच गयी
चीन ने जो सैन्य ताकत हासिल की है, उससे किसी को भी रश्क हो सकता है. आइए एक नजर डालते हैं चीनी सेना के अतीत और वर्तमान पर.
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कब हुआ गठन?
चीन में 1 अगस्त 1927 को गृह युद्ध छिड़ा और यही दिन चीन की मौजूदा सेना का स्थापना दिवस माना जाता है. इस गृह युद्ध में एक तरफ चीन की राष्ट्रवादी ताकतें थीं तो दूसरी तरफ चीन की कम्युनिस्ट पार्टी. गृह युद्ध में आखिरकार कम्युनिस्टों की जीत हुई और चीन पर उनका नियंत्रण हो गया. वहीं राष्ट्रवादियों को भागकर ताइवान जाना पड़ा.
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1989, बीजिंग
1949 में आधुनिक चीन की स्थापना के बाद चीनी सेना कई ऐतिहासिक घटनाओं की गवाह बनी जिनमें कोरियाई युद्ध, चीनी सांस्कृतिक क्रांति और चीन-वियतनाम युद्ध शामिल रहे. लेकिन 1989 में कुछ चीनी युवा अपनी ही व्यवस्था के खिलाफ उठ खड़े हुए. चीन की सेना ने जिस बर्बरता से इस लोकतंत्र समर्थक आंदोलन को कुचला, उसकी अब तक आलोचना होती है.
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भारत-चीन युद्ध
अपनी आजादी के 15 साल बाद ही भारत को 1962 में चीन के साथ युद्ध लड़ना पड़ा. एक महीने तक चले इस युद्ध में भारत को हार का कड़वा घूंट पीना पड़ा. युद्ध का मुख्य कारण सीमा विवाद था लेकिन इसके लिए कई वजहें भी जिम्मेदार थीं. इनमें एक कारण तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा को उनके अनुयायी के साथ भारत में शरण दिया जाना भी था.
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चीन और अमेरिका का टकराव
बीते 20 साल में चीन का किसी देश से कोई युद्ध तो नहीं हुआ है, लेकिन चीनी सेना लगातार सुर्खियों में रही है. 1 अप्रैल 2001 को चीन और अमेरिका के विमान एक दूसरे से टकरा गये. चीन ने इस घटना के लिए अमेरिका को जिम्मेदार करार दिया और इसे लेकर दोनों देशों के रिश्ते खासे तनावपूर्ण हो गये थे.
तस्वीर: AP
हादसा
अप्रैल 2003 में चीनी नौसेना को एक बड़ी दुर्घटना का सामना करना पड़ा जिसमें उसके 70 अफसर मारे गये थे. ये लोग चीनी पनडुब्बी 361 में सवार थे. पानी के नीचे उनकी ट्रेनिंग हो रही थी कि तभी पनडुब्बी का सिस्टम फेल गया. सरकारी मीडिया के मुताबिक पनडु्ब्बी के डीजल इंजन ने सारी ऑक्सीजन इस्तेमाल कर ली जिसके चलते यह हादसा हुआ.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/featurechina
सेना में भ्रष्टाचार
हाल के सालों में भ्रष्टाचार चीन की सेना के लिए एक बड़ी समस्या रही है. लेकिन जब से चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सत्ता संभाली है, तब से देश में भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम चल रही है. इसी तहत सेना में उच्च पदों पर रह चुके शु सायहोऊ और कुओ बॉक्सीओंग के खिलाफ कार्रवाई हुई.
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नो बिजनेस
चीन की सेना में 1990 के दशक में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार देखने को मिला. 1985 में खर्चों में कटौती के लिए चीनी सेना को आर्थिक गतिविधियां चलाने की अनुमति दे दी गयी. लेकिन कुछ समय बाद इस फैसले के चलते न सिर्फ सेना की क्षमता प्रभावित हुई बल्कि बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार भी हुआ. इसीलिए 1998 में चीन ने सेना की आर्थिक गतिविधियों पर पूरी तरह रोक लगा दी.
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नए हथियार
तौर पर चीन के बड़ी ताकत बनने के साथ ही उसके रक्षा खर्च में भी बेतहाशा इजाफा हुआ. सेना का आधुनिकीकरण किया गया और उसे नये नये हथियारों से लैस किया गया. उसके जखीरे में अब तेज तर्रार लड़ाकू विमान, विमानवाहक पोत, टोही विमान, पनडुब्बियां और परमाणु मिसाइलों समेत हर तरह के हथियार हैं.
तस्वीर: Reuters/Stringer
गहराते मतभेद
चीन की ताकत बढ़ने के साथ ही पड़ोसी देशों से उसके विवाद भी गहराये हैं. जापान से जहां उसकी पारंपरिक प्रतिद्ंवद्विता है, वहीं जल सीमा को लेकर वियतनाम, फिलीफींस, इंडोनेशिया, मलेशिया, ताइवान और ब्रूनेई जैसे देशों उसके मतभेद गहरे हुए हैं. इसके अलावा भारत के साथ सैकड़ों किलोमीटर लंबी सीमा का विवाद भी अनसुलझा है.
तस्वीर: picture-alliance/Photoshot/Xinhua/Liu Rui
ताइवान से तनातनी
छह विमानवर्षक शियान एच-6 विमानों को जुलाई में ताइवान के एयर डिफेंस आइडेंटिफिकेशन जोन के पास उड़ता हुआ पाया गया. इससे ताइवान की सेना सतर्क हो गयी. चीन ताइवान को अपना एक अलग हुआ हिस्सा बताता है जिसे उसके मुताबिक एक दिन चीन में ही मिल जाना है. जबकि ताइवान खुद को एक अलग देश समझता है.
तस्वीर: Reuters/Ministry of National Defense
विदेश में सैन्य अड्डा
चीन की सेना अब देश की सीमाओं से परे भी अपने पांव पसार रही है. अफ्रीकी देश जिबूती में चीन ने अपना पहला विदेशी सैन्य बेस बनाया है. रणनीतिक रूप से बेहद अहम लोकेशन वाले जिबूती में अमेरिका, जापान और फ्रांस के भी सैन्य अड्डे मौजूद हैं. चीन अफ्रीका में भारी पैमाने पर निवेश भी कर रहा है.
चीन की सेना दुनिया की कई बड़ी सेनाओं के साथ सैन्य अभ्यास करती है और इस दौरान वह अपने दमखम का परिचय देती है. जुलाई 2017 में रूस के साथ बाल्टिक सागर में सैन्य अभ्यास के लिए उसने तीन पोत भेजे. पहली बार चीन ने अपने पोत यूरोप भेजे हैं. बहुत से नाटो देश इस पर नजदीक से नजर बनाये हुए थे.
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चूंकि चीन ताइवान को अपना हिस्सा बताता है इसलिए उसे बस इतना करना होगा कि ताइवान तक जाने वाले किसी भी जहाज को कस्टम नियमों के तहत अपने सामान की जानकारी उजागर करने को कहा जाए. जो ऐसा नहीं करेंगे, उन पर कार्रवाई की जा सकती है.
रिपोर्ट कहती है, "चीन की कानून-पालक नौकाओं को जहाजों की तलाशी करने, नाविक दल से पूछताछ करने और नियमों का पालन ना करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने का अधिकार होगा.” विशेषज्ञों के मुताबिक चीन को ऐसा करने के लिए बहुत बड़ा अभियान चलाने की भी जरूरत नहीं होगी. वह अगर ताइवान के सबसे बड़े बंदरगाह काओजियूंग को लक्ष्य करे तो भी बहुत बड़ा असर डाल सकता है. ताइवान के कुल आयात का 57 फीसदी इसी बंदरगाह पर निर्भर है.