शी के राज में कैसे ध्वस्त हो गया चीन का मानवाधिकार आंदोलन
४ अक्टूबर २०२२
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के दस साल के शासन में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को सबसे बुरे दौर से गुजरना पड़ा है. देश का जागृत समाज लगभग तबाह कर दिया गया है.
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मानवाधिकार कार्यकर्ता चार्ल्स वो वक्त याद करते हैं जब चीन में जागृत सामाजिक कार्यकर्ताओं का एक बड़ा तबका फलने-फूलने लगा था. तब वह अपना समय मजदूर वर्ग के लोगों का जीवन बेहतर बनाने में लगा पा रहे थे.
अब वक्त बदल गया है. राष्ट्रपति शी जिनपिंग को पद पर बैठे दस साल हो गये हैं. इन दस साल में चार्ल्स और उन जैसे हजारों लोगों की बेहतर समाज बनाने की उम्मीदें धराशायी हो चुकी हैं. सामाजिक संगठनों को तहस-नहस कर दिया गया है और कुछ नया करने की कोशिशें नाकाम हो चुकी हैं.
चार्ल्स खुद चीन छोड़कर जा चुके हैं जबकि उनके बहुत से साथी जेल में हैं. चार्ल्स बताते हैं, "2015 के बाद पूरा जागृत सामाजिक तबका धराशायी होने लगा और उसमें दरारें पड़ने लगीं.
शी जिनपिंग तीसरी बार देश के राष्ट्रपति बनने की कोशिशों में लगे हैं. पिछले दस साल से सत्ता में रहते हुए उन्होंने देश की राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्थाओं में आमूलचूल बदलाव किए हैं. बहुत से लोग मानते हैं कि उनके कार्यकाल में देश के सामाजिक आंदोलनों, स्वतंत्र मीडिया और अकादमिक आजादी को बड़ा नुकसान पहुंचा है. बहुत से गैर-सरकारी संगठनों को बंद कर दिया गया है. बड़ी संख्या में मानवाधिकार कार्यकर्ता और वकील जेल में हैं.
खराब होते मानवाधिकारों पर कार्रवाई की मांग
संयुक्त राष्ट्र ने मानवाधिकारों की सबसे खराब वैश्विक गिरावट के खिलाफ कार्रवाई की अपील की है. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख मिशेल बैचलेट ने चीन, रूस और इथियोपिया समेत अन्य देशों की स्थिति पर प्रकाश डाला.
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अधिकारों का हनन
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख मिशेल बैचलेट ने कहा, "हमारे जीवनकाल में मानवाधिकारों के सबसे व्यापक और गंभीर झटकों से उबरने के लिए हमें एक जीवन बदलने वाली दृष्टि और ठोस कार्रवाई की जरूरत है." मानवाधिकार परिषद के 47वें सत्र को संबोधित करते हुए उन्होंने टिग्रे में साढ़े तीन लाख लोगों के सामने भुखमरी के संकट पर चिंता जताई.
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'एनकाउंटर और यौन हिंसा'
मिशेल बैचलेट ने अपने संबोधन में, "न्यायेतर फांसी की सजा, मनमाने तरीके से गिरफ्तारी और हिरासत, बच्चों के साथ-साथ वयस्कों के खिलाफ यौन हिंसा" की ओर इशारा किया और कहा कि उनके पास "विश्वसनीय रिपोर्ट" है कि इरिट्रिया के सैनिक अभी भी इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं.
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इथियोपिया में जातीय और सांप्रदायिक हिंसा
इथियोपिया जहां हाल में ही चुनाव हुए हैं, वहां "घातक जातीय और अंतर-सांप्रदायिक हिंसा और विस्थापन की खतरनाक घटनाएं" देखने को मिल रही हैं. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकारों की उच्चायुक्त का कहना है कि "सैन्य बलों की मौजूदा तैनाती एक स्थायी समाधान नहीं है."
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मोजाम्बिक में जिहादी हिंसा
उत्तरी मोजाम्बिक में जिहादी हिंसा में तेजी से उछाल आया है. यहां हिंसा के कारण खाद्य असुरक्षा बढ़ी है. और करीब आठ लाख लोग, जिनमें 3,64,000 बच्चे शामिल हैं, उन्हें अपने घरों से भागना पड़ा है.
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हांग कांग की चिंता
संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार प्रमुख ने हांग कांग में पेश किए गए व्यापक राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के "डरावने प्रभाव" की ओर भी इशारा किया. यह कानून 1 जुलाई 2020 से प्रभावी है. इस कानून के तहत बीजिंग के आलोचकों पर कार्रवाई की जा रही है. इस कानून के तहत 107 लोगों को गिरफ्तार किया गया है और 57 को औपचारिक रूप से आरोपित किया गया है.
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शिनजियांग में मानवाधिकार उल्लंघन
बैचलेट ने चीन के शिनजियांग प्रांत में "गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन की रिपोर्ट" का उल्लेख किया. उन्होंने उम्मीद जताई कि चीन उन्हें इस प्रांत का दौरा करने की अनुमति देगा और गंभीर उत्पीड़न की रिपोर्टों की जांच करने में मदद करेगा.
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रूस पर प्रतिक्रिया
बैचलेट ने क्रेमलिन द्वारा राजनीतिक विचारों का विरोध करने और सितंबर के चुनावों में भागीदारी तक पहुंच को कम करने के हालिया उपायों की भी आलोचना की. क्रेमलिन आलोचक अलेक्सी नावाल्नी के आंदोलन को खत्म करने की कोशिश पर भी यूएन ने चिंता जाहिर की.
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समाचार एजेंसी एएफपी ने चीन के आठ सामाजिक कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों से बात की जिन्होंने बताया कि शी के राज में कैसे चीन की सिविल सोसायटी ध्वस्त हुई है और जो बचे हैं वे किस तरह खतरे उठाते हुए काम कर रहे हैं.
ये बुद्धिजीवी बताते हैं कि जो लोग काम कर रहे हैं उन्हें सुरक्षा बलों द्वारा प्रताड़ित किया जाता है. कई लोगों को पूछताछ के लिए हर हफ्ते थाने में बुला लिया जाता है. समलैंगिक अधिकारों के लिए काम करने वाले एक कार्यकर्ता ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया, "मुझसे और मेरे सहकर्मियों से कई बार 24 घंटे लगातार पूछताछ की गई है. हम लगातार और ज्यादा बेबस होते जा रहे हैं. बात चाहे धन की हो या काम करने की आजादी की या फिर निजी स्तर पर.”
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धीरे-धीरे कुचला गया आंदोलन
चीन की सिविल सोसायटी की यह स्थिति एकदम नहीं हुई है बल्कि यह एक लंबी प्रक्रिया रही है. कार्यकर्ताओं के लिए धीरे-धीरे मुश्किलें बढ़ती गई हैं. 2015 में ‘709 क्रैकडाउन' नाम के एक अभियान के तहत 300 से ज्यादा मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और वकीलों को गिरफ्तार कर लिया गया. इस अभियान को 709 नाम इसलिए दिया गया क्योंकि यह 9 जुलाई को शुरू किया गया था.
तब से बहुत से वकील या तो जेलों में बंद हैं या फिर सख्त निगरानी में जीवन जी रहे हैं. कई अन्यों को वकालत से प्रतिबंधित कर दिया गया है.
चीन ने बदला फिल्म का अंत
चीन ने फिल्म 'मिनियंसः द राइज ऑफ ग्रू' का अंत बदल दिया है. लेकिन फिल्मों पर प्रतिबंधों के मामले में कई देशों का रिकॉर्ड खराब है.
तस्वीर: SHOWBIZ Film Reviews/empics/picture alliance
बदल गया अंतः पकड़े गए चोर
चीन ने फिल्म 'मिनियन्सः द राइज ऑफ ग्रू' का अंत बदल दिया है ताकि चोरों को भागते ना दिखाया जा सके. चीन में रिलीज वर्जन में एक मिनट अतिरिक्त है जहां पुलिस चोरों को पकड़कर जेल में डालती है और सजा दिलाती है. इसका मकसद है कि पुलिस और सरकार प्रभुत्व बना रहे.
तस्वीर: SHOWBIZ Film Reviews/empics/picture alliance
किस के कारण बैन
‘लाइटईयर’ नाम की नई फिल्म को संयुक्त अरब अमीरात समेत कई मुस्लिम देशों में प्रतिबंधित कर दिया गया है. वजह है एक सीन जिसमें दो महिला किरदारों को किस करते दिखाया गया है.
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हटाना चाहा था सीन
फिल्म निर्माता कंपनी पिक्सर ने अलिशा और एक अन्य महिला किरदार के बीच किसिंग का यह सीन हटाने पर भी विचार किया था. लेकिन कंपनी के कर्मचारियों ने इस कदम का विरोध किया जिसके बाद सीन को ना हटाने का फैसला किया गया. हालांकि यूएई ने हाल ही में ऐलान किया था कि वह फिल्मों को सेंसर नहीं करेगा, लेकिन ‘लाइटईयर’ को फिर भी बैन कर दिया. वहां समलैंगिक संबंध अपराध हैं.
तस्वीर: Disney/Pixar/AP Photo/picture alliance
चीन में ‘फैंटैस्टिक बीस्ट्स 3’ में बदलाव
चीन में भी फिल्मों में समलैंगिकता दिखाने पर सख्ती है. इसकी मिसाल तब मिली जब ‘फैंटैस्टिक बीस्ट्स 3’ फिल्म में दो लाइन के एक डायलॉग को चीनी अधिकारियों की संतुष्टि के लिए हटाया गया.
तस्वीर: Warner Bros. Entertainment/dpa/picture alliance
पर हर कहानी नहीं बदली जा सकती
कई ऑस्कर जीतने वाली 2005 की फिल्म ‘ब्रोकबैक माउंटेन’ दो युवकों की प्रेम कहानी थी. इसे चीन में रिलीज नहीं किया जा सका था. ब्रिटिश गायक एल्टन जॉन की जिंदगी पर बनी 2019 की फिल्म ‘रॉकेटमैन’ को भी चीन में बैन किया गया था.
तस्वीर: Focus Features/Paramount Classics/imago
तिब्बत पर भी टेढ़ी निगाहें
तिब्बत को लेकर भी चीन अत्याधिक संवेदनशील रहता है. यही वजह है कि ब्रैड पिट की फिल्म ‘सेवन ईयर्स इन तिब्बत’ (1997) को चीन में बैन कर दिया गया था. यह फिल्म एक ऑस्ट्रियाई पर्वतारोही हाइनरिष हारेर और दलाई लामा की दोस्ती की कहानी है. ना सिर्फ इस फिल्म को बैन कर दिया गया बल्कि फिल्म के हीरो ब्रैड पिट की अन्य फिल्मों पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया.
तस्वीर: Film Constantin/dpa/picture alliance
बोहेमियन रैप्सडी
म्यूजिक बैंड ‘क्वीन’ के गायक फ्रेडी मर्करी के बारे में फिल्म ‘बोहेमियन रैप्सडी’ जब चीन में रिलीज हुई तो उसमें ऐसी हर बात लापता थी जिससे गायक की समलैंगिकता का संकेत मिलता था. यहां तक कि कहानी के लिए बेहद अहम बातें जैसे मर्करी का खुलकर यह कहना कि वह समलैंगिक हैं या फिर उन्हें एड्स हो जाना भी हटा दिया गया.
तस्वीर: Everett Collection/picture alliance
रूस में क्या है सीन
रूस में भी समलैंगिकता से जुड़े सीन फिल्मों से हटाए जाते रहे हैं. ‘रॉकेटमैन’ के कई सीन हटाए गए थे, जिसका एल्टन जॉन ने विरोध भी किया था. हालांकि रूस में समलैंगिक संबंधों पर रोक नहीं है लेकिन समलैंगिकता के बारे में प्रॉपेगैंडा फैलाना अवैध है.
तस्वीर: Matrix/imago images
जर्मनी में भी बैन
जर्मनी में कई फिल्मों को प्रतिबंध झेलना पड़ा है. मसलन, राष्ट्रीय समाजवाद, हिंसा या नस्लवादी हिंसा भड़काने वाली फिल्मों को प्रतिबंधित किया जा सकता है. पीटर जैक्सन की फिल्म ‘ब्रेनडेड’ को जर्मनी में बैन कर दिया गया था क्योंकि इसमें अत्याधिक हिंसा दिखाई गई थी.
तस्वीर: Apple Corps Ltd
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चीन के कार्यकर्ताओं के लिए एक और बुरा दौर तब आया जब 2016 में कथित एनजीओ कानून पास किया गया जिसके तहत गैर सरकारी संगठनों पर कड़े प्रतिबंध लगाए गए और उनके खिलाफ कार्रवाई करने के लिए पुलिस को असीमित अधिकार दिए गए. पर्यावरण के लिए काम करने वाले एक कार्यकर्ता ने बताया, "2014 में हम विरोध स्वरूप बैनर लगा सकते थे, जमीन पर वैज्ञानिक काम कर सकते थे और पर्यावरणीय उल्लंघनों की पोल खोलने के लिए मीडिया के साथ मिलकर काम कर सकते थे.”
नाम ना छापने की शर्त पर बातचीत को तैयार हुए यह कार्यकर्ता कहते हैं कि अब हालात एकदम अलग हैं. वह कहते हैं, "अब स्थिति यह है कि कुछ भी करने से पहले हमें पुलिस को सूचित करना होता है. हर परियोजना को अब किसी सरकारी विभाग के साथ मिलकर ही चलाया जा सकता है, जो अक्सर निगरानी समिति की तरह काम करता है.”
कई कार्यकर्ता मानते हैं कि शी जिनपिंग से पहले राष्ट्रपति रहे हू चिन थाओ के दौर के मुकाबले अब हालात में जमीन-आसमान का फर्क है. एक समलैंगिक अधिकार समूह के सदस्य कार्ल अपना पूरा नाम न बताने की शर्त पर कहते हैं, "2015 के आसपास विश्वविद्यालयों में कई समूह और संगठन उभर आए थे.”
मी टू आंदोलन का दमन
2018 में जब दुनियाभर में MeToo आंदोलन शुरू हुआ तो सरकार ने मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के प्रति शून्य-सहिष्णुता का रुख अख्तियार कर लिया. तब दर्जनों छात्र आंदोलनकारियों को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया. कार्ल कहते हैं, "जिन गतिविधियों की पहले इजाजत रहती थी, वे भी प्रतिबंधित कर दी गई. वैचारिक प्रसार जैसे राजनीतिक शिक्षा की कक्षाओं आदि की संख्या तेजी से बढ़ा दी गई.”
महामारी घटी, मौत की सजा बढ़ी
कोविड महामारी का जोर कम होते ही दुनिया में मौत की सजाओं की संख्या बढ़ गई है. पिछले साल 579 लोगों को मौत की सजा दी गई, जिनमें सबसे ज्यादा मरने वाले ईरान के थे.
तस्वीर: Brendan Smialowski /AFP/Getty Images
बढ़ गई मौत की सजाएं
मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा है कि 2021 में 18 देशों के 579 लोगों को मौत की सजा देकर मार दिया गया, जो 2020 के मुकाबले 20 प्रतिशत ज्यादा है.
तस्वीर: Nerijus Liobe/Zoonar/picture alliance
ईरान सबसे ऊपर
मौत की सजा देने वाले देशों में ईरान सबसे ऊपर है जहां 314 लोगों की जान गई. 2020 में वहां 246 लोगों को मौत की सजा दी गई थी.
तस्वीर: Francois Guillot/AFP/Getty Images
मिस्र में हालात चिंताजनक
मिस्र में 2021 में 83 से ज्यादा लोगों को मौत की सजा दे दी गई, जो 2020 के मुकाबले 22 प्रतिशत ज्यादा है.
तस्वीर: Myat Thu Kyaw/NurPhoto/picture alliance
सऊदी अरब में दोगुनी मौतें
सऊदी अरब में मौत की सजा पाने वाले लोगों की संख्या 2020 के मुकाबले दोगुनी हो गई. वहां 2021 में 65 लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया.
तस्वीर: AA/picture alliance
2,000 से ज्यादा सजाएं
एमनेस्टी की रिपोर्ट कहती है कि 2021 में 56 देशों में अदालतों ने 2,052 लोगों को मौत की सजा सुनाई है. बांग्लादेश, भारत, डीआर कॉन्गो, मिस्र और पाकिस्तान में मौत की सजा सुनाए जाने के मामलों में बड़ी वृद्धि दर्ज हुई.
तस्वीर: Munir Uz Zaman/AFP/Getty Images
चीन का पता नहीं
रिपोर्ट में चीन के आंकड़े शामिल नहीं हैं लेकिन एक अनुमान है कि वहां एक हजार से ज्यादा लोगों को मौत की सजा दी गई, जो दुनिया में सर्वाधिक है.
तस्वीर: Wu Xiaoling/Photoshot/picture alliance
108 देश फांसी-मुक्त
2021 के आखिर तक 108 देशों ने मौत की सजा को पूरी तरह खत्म कर दिया है. अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत हत्या के अपराध में ही मौत की सजा का प्रावधान है लेकिन कई देशों ने नशीली दवाओं से जुड़े कानूनों में मौत की सजा दी है.
तस्वीर: Brendan Smialowski /AFP/Getty Images
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2022 में बीजिंग की प्रतिष्ठित शिंगुआ यूनिवर्सिटी में दो छात्रों को सतरंगी झंडे बांटने के लिए आधिकारिक चेतावनी जारी की गई जबकि समलैंगिक अधिकारों के लिए काम करने वाले दर्जनों समूहों के सोशल मीडिया अकाउंट बंद कर दिए गए.
इन कठोर परिस्थितियों का नतीजा यह हुआ है कि बहुत से कार्यकर्ता या तो देश छोड़कर चले गए हैं या फिर उन्होंने अपना काम बंद कर दिया है. कुछ ही हैं जो तमाम तरह की प्रताड़नाओं और परेशानियों के बावजूद खुलकर काम कर रहे हैं. इक्विटी नामक मानवाधिकार संगठन के संस्थापक फेंग युआन कहते हैं, "शायद इस वक्त हम अपने निम्नतम धरातल पर हैं. लेकिन अब भी लोग लगातार बोल रहे हैं.”
लेकिन बहुत से लोग मानने लगे हैं कि यह एक ऐसा युद्ध है जिसे जीता नहीं जा सकता. पर्यावरण के लिए काम करने वाले एक कार्यकर्ता कहते हैं, "मुझे ऐसा लगता है कि मेरी सारी कोशिशें बेकार हो चुकी हैं.”