1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन का बढ़ता वर्चस्व

रोडियोन एबिगहाउजेन
६ जनवरी २०२३

चीन का बढ़ता वर्चस्व हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिकी नेतृत्व वाली सुरक्षा व्यवस्था को चुनौती दे रहा है. इससे इस क्षेत्र में सैन्य खर्च बढ़ गया है. यह बदलाव पूरी दुनिया को अस्थिर कर सकता है.

तस्वीर: Ezra Acayan/Getty Images

नेपोलियन बोनापार्ट ने कहा था, "चीन को सोने दो, क्योंकि जब वह जागेगा, तो पूरी दुनिया को हिला देगा.” बोनापार्ट की यह भविष्यवाणी आज सदियों बाद सच होती दिख रही है और मौजूदा भू-राजनीतिक स्थिति को बयां कर रही है. आज चीन जाग गया है और वैश्विक महाशक्ति होने का दावा कर रहा है.

राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अक्टूबर में चीनीकन्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) की 20वीं कांग्रेस में कहा कि देश का लक्ष्य 2049 तक राष्ट्रीय शक्ति के तौर पर दुनिया का नेतृत्व करना है. दरअसल, सीसीपी की स्थापना 1949 में हुई थी और 2049 में पार्टी का 100वां स्थापना दिवस मनाया जाएगा. इसलिए, 2049 सीसीपी के लिए काफी महत्वपूर्ण वर्ष है.

बर्लिन स्थित जर्मन इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल एंड सिक्योरिटी अफेयर्स (एसडब्ल्यूपी) के राजनीतिक शोधकर्ता फेलिक्स हाइडूक ने हाल के एक अध्ययन में लिखा है कि वैश्विक नेतृत्व के लिए चीन का नया दावा एशिया के मौजूदा सुरक्षा ढांचे के लिए पहली ‘वास्तविक चुनौती' है, जो 1953 में कोरियाई युद्ध की समाप्ति के बाद से मौजूद है.

कौन हैं चीन के नए विदेश मंत्री चिन गांग

यूएस हब-एंड-स्पोक्स सिस्टम

यूएस हब-एंड-स्पोक्स अलायंस मॉडल लगभग सात दशकों से एशिया के सुरक्षा ढांचे के केंद्र में रहा है. संयुक्त राज्य अमेरिका इस प्रणाली के केंद्र में है, जबकि जापान, दक्षिण कोरिया, फिलीपींस, थाईलैंड और ऑस्ट्रेलिया तथाकथित स्पोक्स हैं. अमेरिका का इन पांच देशों के साथ द्विपक्षीय गठबंधन है.

इसके अलावा, अमेरिका का इस क्षेत्र के कई अन्य देशों के साथ भी सुरक्षा समझौता है और ताइवान के साथ उसके विशेष संबंध हैं. 

अमेरिका और ताइवान के संबंधों के ऊपर 1979 का ताइवान संबंध अधिनियम (ताइवान रिलेशनशिप एक्ट) लागू होता है. हालांकि, उस समय अमेरिका ने पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के साथ संबंध स्थापित करने के लिए, रिपब्लिक ऑफ चाइना (ताइवान का आधिकारिक नाम) के साथ औपचारिक संबंध तोड़ दिया था.

ताइवान रिलेशनशिप एक्ट में कहा गया है कि ताइवान स्ट्रेट में यथास्थिति को बदलने के लिए चीन द्वारा किया जाने वाला कोई भी प्रयास अमेरिका के लिए खतरा माना जाएगा. इस कानून के तहत अमेरिका को यह भी अनुमति है कि वह ताइवान की रक्षा के लिए उसे हथियार भी दे सकता है.

2014 में शी जिनपिंग ने यह घोषणा की थी कि अमेरिका का प्रभुत्व वाला सुरक्षा ढांचा ‘शीत युद्ध का अवशेष' था. उन्होंने आह्वान किया कि वे अमेरिका के नेतृत्व वाली प्रणाली को एशियाई देशों के नेतृत्व वाली क्षेत्रीय व्यवस्था से बदलेंगे.

उत्तर कोरिया के साथ अपने संबंधों के अलावा, चीन ने अब तक किसी भी सैन्य गठबंधन में शामिल होने से परहेज किया है. हालांकि, हाल के वर्षों में उसने रूस, कंबोडिया, लाओस, ईरान और पाकिस्तान के साथ सुरक्षा साझेदारी की है. 

जर्मन मार्शल फंड के एंड्रयू स्मॉल ने अपनी हालिया किताब ‘द चाइना-पाकिस्तान एक्सिस' में पाकिस्तान के साथ चीन की साझेदारी को ‘अर्ध-गठबंधन (लगभग गठबंधन जैसा)' के तौर पर बताया है.

अन्य सुरक्षा मंच

अमेरिका और चीन के आसपास केंद्रित इन दो सुरक्षा नेटवर्कों के अलावा, सुरक्षा और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए एशिया में अन्य साझेदारी भी स्थापित की गई है. उदाहरण के लिए, दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संगठन (आसियान) द्वारा स्थापित मंच, जैसे कि आसियान क्षेत्रीय मंच (एआरएफ) या पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (ईएएस). इनका मुख्य उद्देश्य आपसी विश्वास बहाल करना है. वहीं, आलोचकों का कहना है कि ये मंच ज्यादा प्रभावी नहीं हैं.

हालांकि, इन मंचों में आसियान देशों के अलावा अन्य देश, जैसे कि अमेरिका, चीन, भारत और जापान भी शामिल हैं. 

हाइडूक कहते हैं कि हब-एंड-स्पोक्स मॉडल ने एशिया में ‘सामूहिक रक्षा या सुरक्षा प्रणाली नहीं बनाई है', जैसा कि अटलांटिक क्षेत्र में नाटो के साथ है और पहले वारसॉ संधि के दौरान किया गया था.

उन्होंने आगे कहा कि ये द्विपक्षीय गठबंधन और साझेदारी हैं, जो आम तौर पर आपस में पूरी तरह नहीं जुड़े हुए हैं. इसका मतलब है कि न तो हब-एंड-स्पोक्स मॉडल ने और न ही आसियान के अलग-अलग सुरक्षा मंचों ने, किसी ने एशिया में सुरक्षा के लिए स्थायी रूप से स्थिर नींव तैयार नहीं की है.

सैन्य तैयारी पर भारी खर्च

एशिया में संभावित विवाद वाली जगहों पर नजर डालें, तो पता चलता है कि यह क्षेत्र चीन के चारों ओर धनुष की आकृति के तौर पर दिखाई पड़ता है. साथ ही, क्षेत्र में सुरक्षा की नाजुक स्थिति को भी दिखाता है. इस क्षेत्र में सैन्य खर्च भी बढ़ रहा है. चीन अपने सशस्त्र बलों का आधुनिकीकरण कर रहा है और उन्हें अत्याधुनिक सैन्य उपकरणों से लैस कर रहा है.

2012 की शुरुआत में चीन के तत्कालीन राष्ट्रपति और चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता हू जिंताओ ने घोषणा की थी कि देश को सैन्य क्षमता के लिहाज से ‘समुद्री महाशक्ति' बनाना है.

हिंद-प्रशांत क्षेत्र के कई देश पनडुब्बियों में भारी निवेश कर रहे हैं. इसे अत्याधुनिक और महंगे हथियारों से लैस कर रहे हैं. हाल के वर्षों में वियतनाम, सिंगापुर, इंडोनेशिया और ऑस्ट्रेलिया ने भी पनडुब्बी सौदे किए हैं.

हिंद-प्रशांत क्षेत्र की रणनीतियां

चीन के बढ़ते वर्चस्व और बढ़ती भू-राजनीतिक अनिश्चितता से उत्पन्न चुनौती का सामना करने के लिए जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत जैसे देशों ने नई हिंद-प्रशांत रणनीतियों का खुलासा किया है.

यहां तक कि यूरोपीय देशों ने भी इस क्षेत्र के लिए अपनी खुद की रणनीति तैयार की है, जैसे कि जर्मनी की ‘हिंद-प्रशांत के लिए नीति दिशानिर्देश' और यूरोपीय संघ की ‘हिंद-प्रशांत सहयोग के लिए रणनीति'.

अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और भारतका 2006 में बना संगठन क्वॉड यानी क्वॉड्रिलेटरल सिक्यॉरिटी डायलॉग के बीच हाल के वर्षों में संबंध और मजबूत हुआ है. 

2023 की शुरुआत में इस समूह के विदेश मंत्रियों के बीच की एक बैठक की घोषणा की गई है. क्वॉड के साझेदार जापान ने अपनी रक्षा रणनीति के तौर पर यह घोषणा की है कि वह ‘जवाब देने की क्षमता' तैयार करेगा. इसके लिए उसने दिसंबर के मध्य में अपने रक्षा खर्च को दोगुना करने की घोषणा की.

यूं तो क्वॉड हिंद-प्रशांत क्षेत्र में रणनीतिक और आर्थिक सहयोग के लिए काम करने वाला संगठन है, लेकिन अकसर इसे चीन को चुनौती देने वाली शक्तियों के गठबंधन के तौर पर देखा जाता है. 

चीन और भारत के बीच का सीमा विवाद जगजाहिर है. जापान और चीन ऐतिहासिक तौर पर एक दूसरे के विरोधी रहे हैं और अमेरिका-चीन के बीच किस तरह के संबंध हैं, यह पूरी दुनिया जानती है. कभी चीन के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार रहे ऑस्ट्रेलिया के साथ भी बीजिंग की स्थिति तनावपूर्ण है.

ऐसे में क्वॉड को चीन-विरोधी संगठन के तौर पर देखा जाना लाजिमी है. कम्युनिस्ट पार्टी के मुख पत्र ग्लोबल टाइम्स के मुताबिक, चीन क्वॉड को ‘चीन विरोधी अनौपचारिक सुरक्षा समूह' के तौर पर देखता है. साथ ही इसे ‘एशियाई नाटो' तक कह चुका है. 

तस्वीर: Li Yun/Xinhua/picture alliance

सुरक्षा का ‘एशियाईकरण'

हिंद-प्रशांत रणनीतियों और क्वॉड के अलावा, कई अन्य देशों ने द्विपक्षीय सहयोग व्यवस्था और साझेदारी स्थापित की है. जैसे कि इंडोनेशियाई और भारतीय नौसेनाओं के बीच समुद्र शक्ति सैन्य अभ्यास. वहीं, वियतनाम की चीन, रूस और भारत के साथ तथाकथित व्यापक रणनीतिक साझेदारी भी है.

हाइडूक ने हैम्बर्ग विश्वविद्यालय में दक्षिण चीन सागर पर आयोजित हालिया सम्मेलन में कहा, "हब-एंड-स्पोक मॉडल मौजूद है, लेकिन इसका भी एक अपना सीमित दायरा है. इसके अलावा, एक अन्य विकल्प के तौर पर, कई देशों वाली साझेदारियां बन रही हैं.”

उन्होंने आगे कहा कि क्षेत्र की सुरक्षा संरचना का ‘एशियाईकरण' चल रहा है. इसका मतलब यह है कि अमेरिका का महत्व तुलनात्मक तौर पर कम हो रहा है और एशियाई देशों का महत्व बढ़ रहा है.

हाइडूक ने कहा कि एशियाई देशों के नेतृत्व में एक सुरक्षा व्यवस्था तैयार करने की दिशा में शी जिनपिंग ने जो आह्वान किया था वह कुछ हद तक पूरा होता दिख रहा है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि चीन के वर्चस्व के कारण ऐसा हुआ. यह एशियाई देशों के बीच द्विपक्षीय सुरक्षा सहयोग के लगातार बढ़ते नेटवर्क की वजह से हुआ है.

अपना-अपना नजरिया

एसडब्ल्यूपी के हालिया अध्ययन में हाइडूक के विश्लेषण से पता चलता है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा को फिर से व्यवस्थित करने के लिए अलग-अलग देशों के अलग-अलग हित और दृष्टिकोण हैं.

उदाहरण के लिए, इंडोनेशिया ने स्पष्ट तौर पर समावेशी दृष्टिकोण अपनाया है. वह चीन को साझेदार के तौर पर देखता है. हाइडूक कहते हैं, "इस तरह से इंडोनेशिया हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन और अमेरिका वाले दो ध्रुवीय वर्चस्व की जगह, आसियान केंद्रित समावेशी सुरक्षा विकल्प को पेश करने की कोशिश कर रहा है.”

शायद यही वजह है कि इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो ने कुछ समय पहले स्पष्ट शब्दों में कहा कि दक्षिण-पूर्व एशिया को नए शीत युद्ध का मैदान नहीं बनने दिया जाएगा. आसियान की अध्यक्षता संभालते हुए इंडोनेशिया के राष्ट्रपति विडोडो ने कहा कि यह संगठन "किन्हीं भी शक्तियों का छद्म” नहीं बनेगा.

विडोडो ने कहा कि 10 देशों का यह संगठन कुल मिलाकर 70 करोड़ लोगों का प्रतिनिधित्व करता है जो एक गरिमापूर्ण क्षेत्र होना चाहिए और जिसे ‘मानवीय व लोकतांत्रिक मूल्यों का सम्मान' करना चाहिए. 

हाइडूक आगे कहते हैं कि इसके विपरीत, अमेरिका, भारत और ऑस्ट्रेलिया ‘क्षेत्रीय सुरक्षा की ऐसी संरचना स्थापित करना चाहते हैं जो चीन के विरुद्ध है, चीन के साथ मिलकर नहीं.' इनका लक्ष्य चीन के भू-राजनीतिक दावों को शामिल करके कई देशों को अपने साथ लाना है, क्योंकि अमेरिका मानता है कि एशिया में चीन के खिलाफ खड़े होने के लिए उसे साझेदारों की जरूरत है.

सुरक्षा की जगह बढ़ रही असुरक्षा 

अलग-अलग हित और रणनीतियों से यह साफ तौर पर जाहिर होता है कि एशिया की सुरक्षा को लेकर महत्वपूर्ण देशों का अलग-अलग नजरिया अपना रहे हैं. अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया या भारत जैसे प्रभावशाली देशों के लिए सुरक्षा का मतलब, चीन को रोकना या अपना वर्चस्व कायम करना है. इसका नतीजा यह हो रहा है कि तनाव बढ़ रहा है. एक बार फिर से शीत युद्ध शुरू होने के आसार हैं. वहीं, हब-एंड-स्पोक्स सिस्टम का दायरा बढ़ सकता है. हालांकि, यह अभी स्पष्ट नहीं है कि उभरता हुआ नया ‘सुरक्षा जाल' इस क्षेत्र को स्थिर रखेगा या अस्थिर कर देगा.

इस बीच, कोरोना महामारी की वजह से पूरी दुनिया पहले से ही संकट से गुजर रही है. ऐसे में अगर इस क्षेत्र में संघर्ष शुरू होता है, तो इसका सीधा असर आपूर्ति श्रृंखलाओं और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा. 

यूक्रेन और रूस के बीच चल रहे युद्ध का विनाशकारी परिणाम पूरी दुनिया देख रही है. अगर ताइवान को लेकर एशिया में युद्ध छिड़ता है, तो दुनिया वाकई में हिल जाएगी.

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें