1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

जलवायु परिवर्तन की मुश्किलों का ये हल निकाला है लोगों ने

अलेक्जांडर फ्रॉयंड
१२ मार्च २०२५

कहीं बांस के घर तो कहीं टेराकोटा की सड़कें और कहीं सोलर का उपयोग, जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया की मुश्किलें बढ़ीं हैं तो कई समाधान भी सामने हैं. अलग अलग हिस्सों में लोगों ने अपनी जरूरतों के हिसाब से समाधान निकाले हैं.

Indien Bengaluru 2022 | Überschwemmungen nach Monsunregen
तस्वीर: XinHua/dpa/picture alliance

दुनिया की कुल 8 अरब आबादी में से आधे से ज्यादा लोग शहरों में रहते हैं. रिसर्च बताते हैं कि शहरी क्षेत्रों में तापमान ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में तेजी से बढ़ रहा है. इसके साथ ही, अंतरराष्ट्रीय संस्था वाटरऐड के नए शोध से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण शहरों पर पानी से जुड़ी आपदाओं का ज्यादा खतरा है.

यह रिसर्च 100 से अधिक बड़े शहरों की जलवायु परिस्थितियों पर केंद्रित था, जहां पिछले 40 वर्षों में मौसम के पैटर्न में बड़ा बदलाव देखा गया है. यह बदलाव अप्रत्याशित तरीकों से हुए है.

वाटरऐड की वैश्विक अंतरराष्ट्रीय मामलों की निदेशक कैथरीन नाइटिंगेल ने डीडब्ल्यू से कहा, "मैंने सोचा था कि सूखी जगहें और सूखी होंगी और गीली जगहें और गीली, लेकिन सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि कई शहरों में एकदम अलग बदलाव हो रहे हैं, जिसकी उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी."

लगातार गर्म हो रही है धरती फिर इतनी ठंड क्यों

जैसे काहिरा, मैड्रिड, हांगकांग और सऊदी अरब के रियाद व जेद्दाह, जहां पहले बाढ़ का खतरा रहता था, अब सूखे की समस्या से जूझ रहे हैं. जबकि भारत, कोलंबिया, नाइजीरिया और पाकिस्तान के शहर, जो पहले सूखे के लिए जाने जाते थे, अब बाढ़ का सामना कर रहे हैं.

स्पेन के वालमेयोर रिजर्वायर की क्षमता 2022 में 95 फीसदी से घट कर 66 फीसदी पर आ गईतस्वीर: Rafael Bastante/Europa Press/ABACA/picture alliance

नाइटिंगेल का कहना है, "इन शहरों में जो बुनियादी ढांचा पहले सूखे जलवायु को ध्यान में रखकर बनाया गया था, अब उन्हें इस कठिनाई से निपटना पड़ रहा है कि वे अब बाढ़ग्रस्त शहर बन गए हैं."

सबसे ज्यादा खतरे में कौन से क्षेत्र?

बाढ़ की बढ़ती संभावना से प्रभावित होने वाले 20 शहरों में से 18 एशिया में हैं और इनमें से आधे शहर भारत में हैं. यूरोप, उत्तर अफ्रीका और मध्य पूर्व में सूखा तेजी से बढ़ रहा है. चीन, इंडोनेशिया, अमेरिका और पूर्वी अफ्रीका के शहरों को जलवायु असंतुलन का सामना करना पड़ रहा है. यानी इन जगहों पर कभी ज्यादा बारिश होती है, तो कभी सूखा पड़ जाता है और यह बदलाव एक ही साल में कई बार आ सकता है. इससे निपटना सबसे मुश्किल होता है.

अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए पर्यावरण से समझौता करेगा यूरोप

नाइटिंगेल कहती हैं, "सूखा पानी के स्रोतों को सुखा देता है, जबकि बाढ़ जल निकासी प्रणाली को नष्ट कर देता है और पीने के पानी को दूषित कर देता है." जब पानी और स्वच्छता सेवाएं खराब हो जाती हैं, तो इसका सबसे ज्यादा असर गरीब और कमजोर समुदायों पर पड़ता है. उनकी सेहत, शिक्षा और आजीविका सबसे ज्यादा प्रभावित होती है, जिससे वे और ज्यादा गरीबी में चले जाते हैं.

कराची में कंक्रीट की जगह टेराकोटा की सड़कें बनाई गई हैं जो पानी सोख लेती हैं और बाढ़ से बचाती हैंतस्वीर: Heritage Foundation of Pakistan

कैथरीन नाइटिंगेल का कहना है, "यह समझना बहुत जरूरी है कि कौन सा समुदाय सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है और उनके साथ मिलकर समाधान निकाला जाए."

पानी सोखने वाली कराची की सड़कें

पाकिस्तान की पहली महिला आर्किटेक्ट यासमीन लारी, जो अब 80 साल की हैं, सालों से इस समस्या पर काम कर रही हैं. उन्होंने बाढ़ से सबसे ज्यादा प्रभावित लोगों को बचाने के लिए सस्ते और रचनात्मक उपाय खोजे हैं.

वॉटरऐड के अनुसार, पाकिस्तान का सबसे बड़ा शहर कराची दुनिया के उन दस शहरों में शामिल है, जो जलवायु संकट और कमजोर समुदाय के कारण सबसे ज्यादा खतरे में हैं. यहां की दो करोड़ आबादी में से आधे लोग झुग्गियों में रहते हैं, जहां बाढ़ का असर सबसे ज्यादा होता है.

शहर को बाढ़ से बचाने के लिए यासमीन लारी ने पाकिस्तान की पारंपरिक कारीगरी से प्रेरणा लेकर टेराकोटा का इस्तेमाल किया. उन्होंने कहा, "मुझे हैरानी होती है कि इसे ज्यादा इस्तेमाल क्यों नहीं किया जाता, यह शानदार है, यह पानी सोखता है और हवा को ठंडा भी करता है."

बांस के मकान ना सिर्फ सस्ते बल्कि मौसम के लिहाज से सुविधाजनक भी होते हैंतस्वीर: Heritage Foundation of Pakistan

यासमीन लारी ने कराची में बाढ़ से बचाने के लिए एक-एक सड़क पर काम किया. उन्होंने डामर की सड़कों की जगह टेराकोटा टाइल्स लगाई, बारिश का पानी सोखने वाले कुएं बनाए और देसी पेड़ लगाए. उनकी इस तकनीक से सड़कों का तापमान दस डिग्री सेल्सियस तक कम हुआ और बाढ़ रोकने में भी मदद मिली.

लारी कहती हैं, "शहरों जैसे जटिल माहौल में पूरे इलाके को एक साथ बदलना मुश्किल होता है, लेकिन छोटे-छोटे मोहल्लों को बाढ़ और गर्मी से बचाना संभव है." उन्होंने बताया कि 2022 में पाकिस्तान में भयंकर बाढ़ आई थी, जिससे 3.3 करोड़ लोग प्रभावित हुए थे और कराची पानी में डूब गया था, लेकिन लारी की बदली गई सड़कें ही इकलौती जगह थी, जो बाढ़ से बची हुई थी.

बाढ़ से बचाने वाले बांस के घर

यासमीन लारी ने सिर्फ सड़कें बाढ़-रोधी नही बनाई, बल्कि उन्होंने सस्ते और टिकाऊ घरों का समाधान भी निकाला. इस प्रक्रिया में उन्होंने स्थानीय लोगों को भी शामिल किया.

वह मानती है, "हमें बड़े-बड़े महंगे प्रोजेक्ट बनाने की जरूरत नहीं है. अगर हम सब कुछ स्थानीय स्तर पर, स्थानीय चीजों से बनाएं तो यह लोगों के लिए किफायती हो सकता है."

सौर ऊर्जा से चलने वाली पानी की टंकियां मुसीबत के समय साफ पानी मुहैया कराती हैंतस्वीर: Lee-Ann Olwage/WaterAid

सस्ते और सस्टेनेबल चीजों पर प्रयोग करने के बाद, लारी ने साधारण सी बांस की झोपड़ी बनाई, जिसकी लागत सिर्फ 87 डॉलर (अमेरिकी) है. यह पाकिस्तान के सीमेंट के घर से दस गुना सस्ता है और बाढ़ और भूकंप दोनों का सामना करने की क्षमता रखता है.

लारी कहती है, "पहले मैंने कभी नहीं सोचा था कि बांस इतना उपयोगी हो सकता है, लेकिन जब से मैंने इसे इस्तेमाल करना शुरू किया है, मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. अब मैं सिर्फ बांस का ही उपयोग करती हूं."

बांस प्राकृतिक रूप से लचीला होता है, जिससे यह दबाव में झुकता बेशक है लेकिन टूटता नहीं है. यह कंक्रीट की तरह पानी नहीं रोकता, जिससे इमारतें नुकसान से बच जाती है. यह तेजी से बढ़ता है, इसकी कुछ किस्में एक दिन में एक मीटर तक बढ़ सकती हैं और इसे उगाना भी आसान होता है. लारी का मानना है कि बांस के घर दुनिया के अन्य शहरों और विकसित देशों में भी उपयोग किए जा सकते हैं.

जाम्बिया के सूखे में सोलर पावर के इस्तेमाल से मिला पानी

जहां पाकिस्तान बाढ़ से जूझ रहा है, वहीं दक्षिण अफ्रीका का देश जाम्बिया सूखे की समस्या से परेशान है. यहां पानी, सफाई और बिजली की कमी गरीब समुदायों पर सबसे ज्यादा असर डाल रही है.

मिट्टी के मकान बाढ़ से बचाने में ज्यादा कारगर हैंतस्वीर: Heritage Foundation of Pakistan

जाम्बिया की बिजली हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर से बनती है. इसी बिजली से लोगों तक साफ पानी भी पहुंचाया जाता है. हालांकि जब बारिश कम होती है, तो बिजली की कमी हो जाती है और पीने का पानी मिलना मुश्किल हो जाता है और सूखे के कारण रुका हुआ पानी बीमारियों के पनपने की वजह बन सकता है.

वाटरऐड जाम्बिया की निदेशक, यांखो माताया ने बताया, "2024 में जाम्बिया में अब तक का सबसे भयंकर हैजा फैला था." उन्होंने बताया कि गंदे पानी की समस्या इस बीमारी के फैलने का सबसे बड़ा कारण थी और राजधानी लुसाका इसका केंद्र बन गई थी.

वॉटरऐड ने सिल्विया मसेबो इलाके में सौर पैनल लगाए, ताकि टैंकों में भरा पानी पंप करने के लिए बिजली बनाई जा सके. और यह योजना सफल रही. माताया कहती हैं, "जब सूखे के कारण बिजली संकट आया और जल आपूर्ति कम हो गई, तब भी इस समुदाय को पीने का साफ पानी मिलता रहा."

यह पहल को ग्रामीण इलाकों में आसानी से दोहराया जा सकता है. वाटरऐड ने अब इसे पहल को  स्कूलों, समुदायों और स्वास्थ्य केंद्रों तक बढ़ा दिया है.

वाटर कियॉस्क सौर ऊर्जा का इस्तेमाल कर पंप से पानी निकालता हैतस्वीर: Lee-Ann Olwage/WaterAid

वैश्विक वित्तीय सहायता जरूरी है

इन समाधानों को बड़े पैमाने पर लागू करने के लिए वित्तीय मदद की जरूरत है, लेकिन यांखो माताया के अनुसार, यह बहुत धीरे आ रही है. उन्होंने कहा, "समस्या यह है कि हम सार्वजनिक निवेश बहुत कम देख रहे हैं, और इसके बजाय हम बाहरी फंडिंग पर अधिक निर्भर है."

कैथरीन नाइटिंगेल का कहना है कि सरकारों को ऐसी योजनाएं और निवेश पर काम करना चाहिए, जिससे सबसे ज्यादा प्रभावित समुदायों को सीधे मदद पहुंचे जा सके.

उन्होंने कहा, "यह काम कोई मुश्किल नहीं है. समाधान हमारे पास पहले से हैं, और वे बहुत सरल है, इसके लिए बस मेहनत और प्रतिबद्धता चाहिए." उन्होंने आगे बताया, "हमारा डेटा दिखाता है कि यह एक वैश्विक समस्या है. हर महाद्वीप, हर देश का कोई ना कोई शहर इससे प्रभावित है. इसलिए हमें अब ही एकजुट होकर काम करने की जरूरत है ताकि शहरों को जलवायु परिवर्तन के लिए मजबूत बनाया जा सके."

केन्या में भोजन और पानी की कमी होने से जंगली जीवों की संख्या घट रही हैतस्वीर: Gerald Anderson/Anadolu Agency/picture alliance

यासमीन लारी भी सामूहिक प्रयासों की वकालत करती हैं. उनका मानना है कि बदलाव तब ही आएगा जब लोगों को इसमें भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा.

लारी का कहना है, "हमें यह समझना होगा कि लोगों को यह समझाने की जरूरत है कि वह खुद भी यह सब कर सकते हैं. बस ज्ञान साझा करना जरूरी है ताकि वह सशक्त बनें और अगर महिलाओं को नेतृत्व में लाते हैं, तो निश्चित रूप से जीत संभव है."

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें