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विवादईरान

खुद का परमाणु बम बनाने के कितना करीब है ईरान?

कैर्स्टन क्निप
१६ सितम्बर २०२२

अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी ने हाल ही में चेतावनी दी है कि ईरान के पास पर्याप्त मात्रा में इतना यूरेनियम है कि वो कुछ हफ्तों में परमाणु बम बना सकता है. लेकिन वो वास्तव में ऐसा नहीं करना चाहता.

ईरान का विवादित परमाणु कार्यक्रम
तस्वीर: irdiplomacy

क्या ऐसा हो सकता है कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम वास्तव में सैन्य उद्देश्यों के लिए है? अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) ने शायद ऐसा ही कुछ संदेह पिछले हफ्ते पेश की गई एक रिपोर्ट में जताया है. रिपोर्ट के मुताबिक, ईरान 2015 में तय की गई सीमा से ज्यादा यूरेनियम संवर्धन जारी रखे हुए है. यह सीमा ईरान के साथ चीन, फ्रांस, रूस, ब्रिटेन, अमेरिका, जर्मनी और यूरोपीय संघ के एक समझौते में तय हुई थी. लेकिन अगस्त के अंत तक ईरान के संवर्धित यूरेनियम का भंडार करीब 3,940 किग्रा तक पहुंच गया जो कि समझौते के तहत तय की गई सीमा से करीब 19 गुना ज्यादा है.

आईएईए का कहना है कि वो ‘इस स्थिति में नहीं हैं कि इस बात का आश्वासन दे सके कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम पूरी तरह से शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है.' ईरान से अघोषित स्थलों पर परमाणु सामग्री के बारे में पूछा जा रहा था और आईएईए के डायरेक्टर राफेल ग्रॉसी लगातार "इस बात से चिंतित थे कि ईरान सुरक्षा उपायों के बारे में जानकारी को लेकर आईएईए से सहयोग नहीं कर रहा था और इसलिए इस मामले को सुलझाने की दिशा में कोई प्रगति नहीं हुई.”

ईरान के साथ परमाणु करार पर बातचीत कहां तक पहुंची

आईएईए ने ईरान पर 2015 में हुए परमाणु समझौते पर अमल करने के लिए दबाव डाला जिस पर ईरान ने हस्ताक्षर किए थे. इससे पहले एक अन्य रिपोर्ट में आईएईए ने कहा था कि उसने ईरान के उस फैसले पर खेद जताया था जिसमें 27 खुफिया कैमरों को हटाने का निर्देश दिया गया था. इन कैमरों के जरिए एजेंसी के निरीक्षक ईरान की परमाणु गतिविधियों पर निगरानी रख रहे थे. आईएईए का यह भी कहना था कि इस वजह से उसने ईरान के परमाणु कार्यक्रम के शांतिपूर्ण होने की जो गारंटी दी थी, वह भी कमजोर पड़ गई. आईएईए के मुताबिक, ईरान ने अपना परमाणु संवर्धन जारी रखा था, यहां तक कि उस वक्त भी वो ऐसा कर रहा था जबकि आईएईए के पर्यवेक्षकों को वहां जाने से रोक दिया गया था. विएना में राजनयिक सूत्रों का मानना है कि ईरान के पास इतना यूरेनियम इकट्ठा हो गया है कि उसे एक परमाणु बम बनाने में महज तीन या चार हफ्ते का समय लगेगा.

ईरानी परमाणु कार्यक्रम की एक साइटतस्वीर: Alfred Yaghobzadeh/SalamPix/abaca/picture alliance

एक परमाणु बम होने का मतलब

हैम्बर्ग स्थित GIGA इंस्टीट्यूट फॉर मिडिल ईस्ट स्टडीज के एक शोधकर्ता मोहम्मद बाघेर फॉरो कहते हैं कि यह सही है कि ईरान के पास परमाणु बम बनाने भर का पर्याप्त यूरेनियम होगा. डीडब्ल्यू से बातचीत में वो कहते हैं, "हालांकि यह सिर्फ एक परमाणु बम के लिए ही पर्याप्त होगा, न कि कई बम बनाने के लिए. सैन्य रूप से एक परमाणु बम की कोई खास अहमियत नहीं है. विश्व की परमाणु शक्तियां महज एक परमाणु बम को बहुत ज्यादा महत्व नहीं देती हैं. इससे कोई युद्ध भी नहीं लड़ा जा सकता है. यह इसलिए भी पर्याप्त नहीं है क्योंकि सभी को पता है कि जो परमाणु संपन्न देश हैं उनके पास ऐसे कई बम होंगे और एक बम वाले देश को नुकसान पहुंचाया सकता है.”

फॉरो कहते हैं कि इसके अलावा भी कई कारण हैं जिनसे पता चलता है कि ईरान अभी अपना परमाणु बम बनाने की क्षमता से बहुत दूर है. इन कारणों में एक यह भी है कि ईरान के पास ऐसा सामान नहीं है जो कि एक डेटोनेटर बनाने के लिए जरूरी है. वो कहते हैं, "परमाणु शक्तियों का इतिहास बताता है कि परमाणु बम बनाने में कई साल लग जाते हैं. आईएईए ने निश्चित तौर पर मौजूदा स्थिति की गंभीरता के बारे में बताया है. लेकिन इन सबसे आप इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकते हैं कि ईरान खुद का परमाणु बम बनाने की दिशा में अग्रसर है.”

परमाणु विनाश से बस एक गलती दूर है दुनिया

हैम्बर्ग यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट फॉर पीस रिसर्च एंड सिक्योरिटी पॉलिसी के वरिष्ठ शोधकर्ता ओलिवर मेयर कहते हैं कि निश्चित तौर पर यह चिंता वाली बात है कि ईरान को 2015 में परमाणु समझौते के तहत जितना यूरेनियम रखने की अनुमति दी गई थी, उससे कहीं ज्यादा यूरेनियम उसके पास है. एक समय ईरान के पास हैवी वॉटर न्यूक्लियर रिएक्टर भी था जो कि प्लूटोनियम बनाने में सक्षम था और यह भी परमाणु बम बनाने में इस्तेमाल होता है. मेयर आगे कहते हैं, "लेकिन वह रास्ता फिलहाल बंद हो गया है.”

परमाणु कार्यक्रम के साथ मिसाइल कार्यक्रम पर भी काम कर रहा है ईरानतस्वीर: khabaronline

ईरान के परमाणु रिएक्टरों में सेंट्रीफ्यूज भी लगे हैं जो कि उन रिएक्टरों से ज्यादा एडवांस होते हैं जिन्हें 2015 के समझौते के तहत अनुमति दी गई थी. फेडरेशन ऑफ अमेरिकन साइंटिस्ट्स ने अपनी वेबसाइट पर इसे कुछ इस तरह समझाया है, "सेंट्रीफ्यूज की वजह से परमाणु हथियारों की होड़ का खतरा होता है क्योंकि वही मशीन जो कि परमाणु रिएक्टर में यूरेनियम संवर्धन में काम आती है, वही परमाणु बम के संवर्धन मेँ भी काम आती है. सामान्य तौर पर परमाणु रिएक्टर में ज्यादा मात्रा में कम संवर्धन की जरूरत होती है जबकि एक बम को कम मात्रा में ज्यादा संवर्धन की जरूरत होती है.”

मेयर कहते हैं कि ईरान अपने पास मौजूद यूरेनियम की मात्रा से कहीं ज्यादा का इस्तेमाल कर रहा है. और उनके संवर्धन का स्तर भी काफी है. मेयर कहते हैं, "यहां हर सीमा हद से बाहर हो रही है. इसलिए तकनीकी रूप से वो हथियारों में इस्तेमाल होने वाले यूरेनियम की पर्याप्त मात्रा अपने परमाणु बम के लिए अगले कुछ हफ्तों में पा सकते हैं."

ईरान के परमाणु कार्यक्रम का जायजा लेते पूर्व राष्ट्रपति हसन रोहानीतस्वीर: Iranian Presidency Office/AP Photo/picture alliance

लेकिन मेयर यह भी स्पष्ट करते हैं कि एक परमाणु बम बनाने के लिए ईरानियों को इससे ज्यादा सामग्री की जरूरत है. वो स्वीकार करते हैं, "ईरान इस पर अच्छी तरह से काम कर रहा है. निश्चित तौर पर वहां इस बात पर शोध हो रहा है कि इसे मिसाइल में कैसे इस्तेमाल किया जा सकता है. हालांकि 2009 के बाद इसका कोई संकेत नहीं मिला है कि यह शोध जारी है या फिर से शुरू हो गया है.”

राजनीतिक दबाव

ऐसे में यह सवाल उठता है कि ईरान इतनी तेज गति से यूरेनियम संवर्धन क्यों कर रहा है? फॉरो कहते हैं कि ईरान पर इसके लिए राजनीतिक दबाव है. ईरानी नेतृत्व के दृष्टिकोण से, जेसीपीओए में तय की गई शर्तों को अमेरिकी सरकार ने डॉनल्ड ट्रंप के कार्यकाल में रद्द कर दिया था और 2018 में वो समझौते से इकतरफा तरीके से बाहर हो गया था. जब से जो बाइडेन राष्ट्रपति बने हैं, अमेरिका जेसीपीओए के एक नए संस्करण पर फिर से बातचीत शुरू करने की कोशिश कर रहा है. फॉरो कहते हैं, "ऐसा लगता है कि यूरेनियम संवर्धन का मामला अमेरिका और अन्य देशों के बीच समझौते पर हस्ताक्षर का एक माध्यम बन गया है जिस पर विएना में लगभग पूरी तरह से बातचीत हो चुकी है.”

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यह राजनीतिक दबाव तब और भी मायने रखता है जब अमेरिका में मध्यावधि चुनाव होने हैं और कांग्रेस और सीनेट के कुछ सदस्य चुने जाने हैं. फॉरो कहते हैं, "यह असंभव नहीं है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के नेतृत्व में डेमोक्रेट्स कांग्रेस में बहुमत खो देंगे. और इस स्थिति में जेसीपीओए समझौते पर कभी हस्ताक्षर नहीं होंगे. यह एक और वजह है जो ईरान इतना ज्यादा दबाव बना रहा है.”

जहां तक ईरान सरकार का सवाल है, तो वह उन प्रतिबंधों को समाप्त कराने की कोशिश में लगा है जो उस पर परमाणु हथियार बनाने के आरोप में लगाए गए थे. यदि जेसीपीओए समझौते पर सभी पक्षों के हस्ताक्षर हो जाते हैं तो प्रतिबंधों में ढील दे दी जाएगी.  दूसरी ओर, GIGA के मेयर कहते हैं कि ईरान खुद बातचीत का रास्ता तलाश रहा है. वार्ता का रास्ता इसलिए इतना जटिल हो रहा है क्योंकि आईएईए इस बात को सत्यापित करने की स्थिति में नहीं है कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम में भीतर ही भीतर क्या चल रहा है.

डीडब्ल्यू से बातचीत में मेयर कहते हैं, "इसीलिए आईएईए अब ज्यादा स्पष्ट तरीके से कह रहा है कि यदि जेसीपीओए समझौते को बहाल करना है तो ईरान के परमाणु कार्यक्रम की जांच के लिए कुछ और बेहतर तरीके अपनाने होंगे. बहुत से बकाया मुद्दे हैं और उन्हें जल्दी से हल करना जरूरी है.”

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