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समाज

कोरोना वायरस की मार झेलते किसान

२३ मार्च २०२०

कोरोना वायरस के संक्रमण से अब कोई भी अछूता नहीं है चाहे वह उद्योग जगत हो या फिर कृषि जगत. भारत में किसान पहले से ही आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं और इस नई महामारी ने उनकी मुसीबतें और बढ़ा दी हैं.

Indien Verbrennung von Ernterückständen
तस्वीर: DW/Catherine Davison

किसान बनवारीलाल भारद्वाज रबी की फसल की बंपर पैदावार को बेचकर कार खरीदने की उम्मीद लगाए बैठे थे, लेकिन कोरोना वायरस ने उनके सपनों को चकनाचूर कर दिया. जैसे-जैसे कोरोना वायरस का संकट दुनियाभर में फैल रहा है वैसे-वैसे कृषि उत्पाद की कीमतों पर भी असर डाल रहा है. राजस्थान के किसान बनवारीलाल कहते हैं, "अब मैं कार नहीं खरीद पाऊंगा. जो भी मैं कमाऊंगा उसका इस्तेमाल कर्ज लौटाने में होगा." बनवारीलाल ने अपने छह हेक्टेयर खेत में सफेद सरसों और मटर लगाए हैं. सफेद सरसों की कीमत इस साल 16 फीसदी तक गिर गई है जबकि मटर का दाम 10 फीसदी गिर चुका है. बनवारीलाल कहते हैं, "अगर दाम और गिर गए तो मेरे लिए कर्ज चुकाना भी मुश्किल होगा."

देश में 20 करोड़ से अधिक किसान हैं, देश के कृषि क्षेत्र की सेहत का सीधा असर अर्थव्यवस्था पर पड़ता है. देश की आधी से अधिक आबादी अपनी आजीविका के लिए कृषि क्षेत्र पर निर्भर करती है. इसलिए मुनाफा देने वाली उपज से खपत बढ़ती है और जबकि छोटी फसलें या कम कीमत वाली फसलें मंदी ला सकती हैं. 2019 में अत्यधिक बारिश के कारण गर्मी की फसल बर्बाद हो गई थी और किसान सर्दी की फसलों से उम्मीद लगाए बैठे थे कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था दोबारा उछाल मारेगी. हालांकि कोरोना वायरस के फैलने के बाद फसलों की कीमतें कमजोर हो गई हैं. एशिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था छह सालों में सबसे धीमी गति से बढ़ रही है. मक्का, सोयाबीन, कपास और प्याज जैसी फसलों की कीमत 50 फीसदी तक गिर गई है. मुंबई स्थित डेरिवेटिव और कमोडिटीज विशेषज्ञ हरीष गलीपेल्ली के मुताबिक, "अधिक पैदावार का असर कम कीमत से अमान्य हो जाएगा.किसानों की आय शुद्ध रूप से उतनी ही रह जाएगी."

बेमौसम बारिश और अब कोरोना की मार

पिछले साल जून-सितंबर के दौरान भारी बारिश से मिट्टी में नमी बढ़ गई, जिस वजह से किसानों ने सर्दी की फसल को 10 फीसदी अधिक बोने का फैसला किया. मध्य प्रदेश के किसान रामनारायण मंडलोई ने इसी उम्मीद के साथ बीज और उर्वरक पर अधिक खर्च किया क्योंकि उन्हें बाजार के दाम और मौसम दोनों ही बेहतर नजर आ रहे थे. मंडलोई कहते हैं, "मैंने गेहूं की फसल लगाई थी लेकिन दाम गिरने लगे. मैंने पहले ही बीज और उर्वरक पर

अधिक खर्च कर दिया है."

सोशल मीडिया में मुर्गियों को लेकर फैली अफवाह के कारण पहले ही मुर्गियों के दाम गिर गए है. सोशल मीडिया पर ऐसे पोस्ट वायरल हुए जिनमें कहा गया कि चिकन के कारण कोरोना वायरस फैलता  है.

आनंद एग्रो ग्रुप के चेयरमैन उद्धव अहीरे कहते हैं, "चिकन की मांग घटने से नुकसान में रहने वाले पोल्ट्री मालिक मकई और सोयामील की खरीद में कटौती करने के लिए मजबूर हो गए हैं."

एए/सीके (रॉयटर्स)

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