पश्चिम को तुर्की की जरूरत की 5 वजहें
४ नवम्बर २०२२तुर्की वैश्विक मंच पर अपेक्षाकृत बड़ी भूमिका का तलबगार रहता आया है. और उसके इस इरादे को हवा दे रहे हैं अपने पश्चिमी भागीदारों के प्रति उसके आक्रामक और राष्ट्रवादी होते सुर. यूरोपीय संघ में सदस्यता का उम्मीदवार, तुर्की आज वैसा नहीं है जैसा कि पश्चिम चाहता है. वो फिर भी वैश्विक राजनीति में एक अहम खिलाड़ी है.
तुर्की में रेयर अर्थ का विशाल भंडार मिलने से खत्म होगा चीन का दबदबा?
यहां उन वजहों का जिक्र किया जा रहा है जिनसे पता चलता है कि पश्चिमी देश तुर्की पर क्यों निर्भर हैं.
रूस और यूक्रेन के लिए मध्यस्थ
यूक्रेन पर रूसी लड़ाई का मतलब अंतरराष्ट्रीय बिरादरी के लिए बहुत कुछ था लेकिन तुर्की को इससे एक कूटनीतिक अवसर हासिल हो गया. हमले के शुरुआती दिनों में ही तुर्की रूस और यूक्रेन के बीच एक अनिवार्य मध्यस्थ के रूप में उभर आया था क्योंकि पश्चिमी देश रूस से बात करने को बहुत उत्सुक नहीं थे. तुर्की के रूस और यूक्रेन दोनो से अच्छे रिश्ते हैं- ये बात इन दिनों दुर्लभ ही है.
यूक्रेनी मक्का से लदा पहला जहाज लेबनान के लिए रवाना
तुर्की ने प्रमुख समस्याओं को हल करने के लिए एक गलियारे या चैनल के रूप में काम करना शुरू किया. जैसे कि यूक्रेनी बंदरगाहों से अन्न निर्यात. युद्ध से पहले यूक्रेन गेहूं, मक्का, जौ और सूरजमुखी के तेल के सबसे बड़े निर्यातकों में से एक था. रूस और यूक्रेन के बीच जुलाई में तुर्की और संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता में निर्यात समझौता इस्तांबुल में हुआ.
इसके अलावा तुर्की आज भी दोनों पक्षों के बीच भविष्य में किसी संभावित शांति वार्ता का अकेला मुफीद ठिकाना माना जाता है.
नाटो सदस्य, जिसकी हरी झंडी हर हाल में जरूरी है
तुर्की 1952 से नाटो का सदस्य रहा है. अमेरिका के बाद नाटो गठबंधन में दूसरी सबसे बड़ी सेना उसी की है. वो एक दक्षिणपूर्वी किनारे पर स्थित है लिहाजा ट्रांसअटलांटिक गठबंधन को प्रमुख रूप से सुरक्षा मुहैया कराता है.
फिलहाल स्वीडन और फिनलैंड तुर्की को अपनी नाटो सदस्यता की मंजूरी देने के लिए मना रहे हैं.
तुर्की ने लटकाई स्वीडन और फिनलैंड की नाटो मेम्बरशिप
पिछले हफ्ते स्वीडन के नये प्रधानमंत्री उल्फ क्रिस्टरसन ने तुर्की राष्ट्रपति रेचप तैयप एर्दोगान को चिट्ठी लिखकर इस मुद्दे पर एक बैठक बुलाने की इल्तजा की थी. दोनों पक्ष अब तुर्की में मिलने वाले हैं. तुर्की का आरोप है कि स्वीडन और फिनलैंड, कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी, पीकेके के सुरक्षित ठिकाने बने हुए हैं. तुर्की के अलावा यूरोपीय संघ और अमेरिका में हथियारबंद पीकेके एक आतंकी संगठन के रूप में दर्ज है.
सस्ती सुरक्षा का निर्माता
तुर्की के रक्षा उद्योग की बढ़ती अहमियत ने उसे एक अहम खिलाड़ी बना दिया है जो सीधे पश्चिमी हितों पर असर डालता है. पिछले सालों में तुर्की में बने बेरेक्टर टीबी-2 हथियारबंद ड्रोन काफी असरदार साबित हुए हैं. जर्मन सेना के थिंक टैंक बाक्स की 2021 की रिपोर्ट के मुताबिक तुर्की के ड्रोनों ने नागोर्नो-काराबाख संघर्ष में निर्णायक भूमिका निभाई थी.
यूक्रेन की लड़ाई में भी वो असरदार रहे हैं. रूसी सेना से अपने इलाकों की हिफाजत के लिए यूक्रेनी सेना कथित तौर पर इन ड्रोनों की मदद लेती आ रही है. पिछले महीने यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की ने बेरेक्टर ड्रोन की निर्माता कंपनी बेकर के मुख्य कार्याधिकारी हालुक बेरकटार को मदद का आभार जताते हुए प्रथम श्रेणी के ऑर्डर ऑफ मेरिट से सम्मानित किया था.
तुर्की का सैन्य साहस एर्दोवान कब तक दिखाते रहेंगे
जब यूक्रेनी लोग अपनी सेनाओं के लिए नये ड्रोन खरीदने के लिए फंड जुटा रहे थे तो जवाब में बेकर ने "देशभक्त यूक्रेनियों को अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए" ड्रोन दान किए थे.
ड्रोनों की कम लागत तुर्की को उन देशों का एक खास सहयोगी बनाती है जो ऊंची कीमत वाले सैन्य उपकरण नहीं खरीद सकते हैं या महंगे शोध नहीं कर सकते हैं बल्कि विकल्पों की तलाश करते हैं. अंतरराष्ट्रीय और सुरक्षा मामलों के जर्मन संस्थान (एसडब्लूपी) की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, "अफ्रीका में हथियारों की बिक्री आसमान छू रही है और तुर्की, अफ्रीका में हथियारों के एक बड़े सप्लाईकर्ता के रूप में उभर आया है."
यूरोप की प्रवास असहायता में मुख्य किरदार
दक्षिण और पूरब के कई देशों की सीमाएं तुर्की से लगी हैं. ये तथ्य तुर्की को न सिर्फ अपनी रक्षा नीति की क्षमताओं से लैस करता है बल्कि यूरोपीय संघ की अपनी प्रवास नीति से जुड़ी असहायता या कमजोरी के लिहाज से भी उसका महत्व बढ़ जाता है. एर्दोवान ब्रसेल्स, जर्मनी और दूसरे यूरोपीय देशों को "अपने दरवाजे खोलने" को लेकर लिए कई बार धमकाने से भी नहीं हिचके हैं "जिसका तकनीकी तौर पर मतलब है शरणार्थियों को यूरोप तक खुली पहुंच."
तुर्की की धमकियां कारगर रही और यूरोपीय संघ और तुर्की के बीच 2016 में एक शरणार्थी समझौता हुआ. जिसकी एवज तुर्की को 6 अरब यूरो का भुगतान मिलेगा. बदले में तुर्की अपने इलाके में शरणार्थियों को समायोजित करेगा.
जर्मनी का तुर्क प्रसार
"जर्मनी में रहने वाले 60 फीसदी से ज्यादा तुर्कों ने एर्दोवान को वोट दिया." 2018 में तुर्की के आम चुनावों के बाद कई जर्मन अखबारों की हेडलाइन यही थी. वास्तव में जर्मनी में बसे तुर्की समुदाय का एक उल्लेखनीय हिस्सा तुर्की राज्य से लगाव और जुड़ाव महसूस करता है.
इस मुद्दे का दूसरा हिस्सा है घरेलू सुरक्षाः संविधान की रक्षा के संघीय कार्यालय के मुताबिक जर्मन संविधान पर खतरे की तरह मंडराती बहुत सारी उग्रपंथी विचारधाराएं देश में सक्रिय हैं. इस्लामी समूहों के अलावा, धुर राष्ट्रवादी ग्रे वुल्व्स, पीकेके समर्थक कुर्दों और वाम चरमपंथी समूहों पर सरकार निगरानी रखती है.
तुर्की में होने वाली घटनाओं से इन समूहों के बीच बने समीकरणें भी प्रभावित होती हैं. कुछ मामलों में तुर्की राज्य इन समूहों पर प्रत्यक्ष प्रभाव रखता है जैसे कि ग्रे वुल्व्स.
रिपोर्टः बुराक इयुनवेरन