फिनलैंड और स्वीडन को नाटो सदस्यता मिलने से पहले कौन बचाएगा
१६ मई २०२२शायद उनकी इसी चिंता को दूर करने पिछले हफ्ते ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन स्वीडन और फिनलैंड के दौरे पर गए थे. उन्होंने दोनों देशों के साथ साझा सुरक्षा समझौता करने पर सहमति दी. इसके मुताबिक, अगर स्वीडन और फिनलैंड पर हमला होता है, तो ब्रिटेन उनकी मदद के लिए आएगा. इसके साथ ही यह साफ हो गया कि इस गारंटी के बाद दोनों देश जल्द ही नाटो सदस्यता को लेकर आधिकारिक ऐलान कर देंगे.
फिनलैंड और स्वीडन ने नाटो (नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन) में शामिल होने के आशय की आधिकारिक घोषणा कर दी है.अपनी दशकों पुरानी तटस्थता की नीति से हटते हुए दोनों देशों की सरकारें इससे जुड़ा प्रस्ताव संसद में रखेंगी. इस पर संसद से मुहर लगने के बाद दोनों नाटो सदस्यता के लिए एक साझा आवेदन देंगे इसमें अब कोई संदेह की गुंजाइश नहीं रह गई है.
क्या कहते हैं स्वीडन और फिनलैंड
फिनलैंड के राष्ट्रपति साउली निनिस्ट ने इस फैसले को देश के लिए ऐतिहासिक दिन बताया. उन्होंने कहा, "राष्ट्रपति और सरकार की विदेश नीति से जुड़ी समिति इस बात पर सहमत हो गई है कि संसद से मशविरा लेने के बाद फिनलैंड नाटो की सदस्यता के लिए आवेदन करेगा. एक नया दौर शुरू हो रहा है. एक सुरक्षित फिनलैंड का जन्म हो रहा है, जो कि एक स्थिर, मजबूत और जिम्मेदार नॉर्डिक क्षेत्र का हिस्सा है. हमें सुरक्षा मिलेगी और हम इसमें साझेदारी भी निभायेंगे." प्रधानमंत्री सना मरीन ने भी उम्मीद जताई कि संसद आने वाले दिनों में इस फैसले की पुष्टि कर देगी.
फिनलैंड की ओर से हुई पुष्टि के कुछ ही घंटों बाद स्वीडन का भी बयान आया. स्वीडिश प्रधानमंत्री और सोशल डेमोक्रैट्स पार्टी की नेता मागदालेना आंदसॉन ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा,"हम सोशल डेमोक्रैट्स का मानना है कि स्वीडन और स्वीडिश नागरिकों की सुरक्षा के लिए सबसे नाटो में शामिल होना सबसे अच्छा रहेगा. यह स्पष्ट है कि गुटनिरपेक्षता की नीति स्वीडन के हित में रही है, लेकिन हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि यह नीति भविष्य में हमारे लिए फायदेमंद नहीं होगी. बाल्टिक क्षेत्र में अकेला नाटो से बाहर रहने पर स्वीडन की स्थिति असुरक्षित हो जाएगी." सोशल डेमोक्रैट्स पहले नाटो सदस्यता के विरोधी था. मगर रूस के यूक्रेन पर हमला करने के बाद बनी स्थितियों में पार्टी ने अपना रुख बदलने का फैसला किया.
नाटो सदस्यता की जरूरी शर्तें
यूरोप के वे देश, जहां लोकतंत्र है और जिनके सिद्धांत नाटो के आदर्शों से मेल खाते हैं और जो सदस्यता की शर्तें पूरी करने को तैयार हैं, वे आवेदन दे सकते हैं. आवेदक देश में कम-से-कम ये पांच चीजें होनी चाहिए:
1. वहां लोकतंत्र हो. विविधता के लिए सहिष्णुता हो.
2. वह देश मार्केट इकॉनमी की दिशा में आगे बढ़ रहा हो.
3. वहां की सेना मजबूत नागरिक सरकार के नियंत्रण में हो.
4. वह अच्छा पड़ोसी हो और अपनी सीमा के बाहर दूसरों देशों की संप्रभुता का सम्मान करता हो.
5. वह नाटो सेनाओं के साथ बेहतर तालमेल बिठाने, उनके अनुकूल बनने की दिशा में काम कर रहा हो.
एक अहम शर्त यह भी है कि जो भी नया देश शामिल हो रहा होगा, उसकी सदस्यता पर सदस्य देशों के बीच सहमति होगी. आवेदन करने वाले देश में सदस्यता से जुड़ी संसदीय और कानूनी प्रक्रिया पूरी हो, यह भी जरूरी है. सदस्यता पर विचार करते हुए कि यह भी देखा जाता है कि क्या उस नए सदस्य के साथ आने से नाटो को मजबूती मिलेगी और यूरोप में सुरक्षा और स्थिरता से जुड़े नाटो के बुनियादी मकसद को मजबूती मिलेगी.
नाटो में जुड़ने की प्रक्रिया क्या है?
नाटो सदस्यता की प्रक्रिया औपचारिक तौर पर तय नहीं है और प्रक्रिया के चरण कई बार अलग भी हो सकते हैं. लेकिन आमतौर पर इसके पांच प्रमुख चरण हैं:
- आवेदक देश के प्रतिनिधि और नाटो के एक्सपर्ट ब्रसेल्स में मुलाकात करते हैं. दोनों के बीच बातचीत से सुनिश्चित किया जाता है कि आवेदक देश सदस्यता के लिए तैयार है और वह इससे जुड़ी राजनैतिक, कानूनी और सैन्य शर्तों और प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में समर्थ है.
- इसके बाद आवेदक देश नाटो के महासचिव को सदस्य बनने के अपने आशय से जुड़ा एक आधिकारिक पत्र भेजता है. इसमें वह नाटो सदस्य बनने के लिए जरूरी दायित्व निभाने की जिम्मेदारी पर अपनी रजामंदी देता है.
- नाटो अपने फाउंडिंग डॉक्यूमेंट "दी वॉशिंगटन ट्रीटी" में नए सदस्य के दाखिले से जुड़े प्रोटोकॉल को पूरा करने की तैयारी शुरू करता है.
- नाटो के सदस्य देशों की सरकारें अपने यहां के कानूनों का पालन करते हुए सर्वसम्मति से प्रोटोकॉल्स को मंजूरी देती हैं.
- जब सभी सदस्य देशों की सरकारें नए सदस्य के शामिल होने पर मंजूरी दे देती हैं, तो नाटो के मेंबर अमेरिका की सरकार को सूचना देते हैं. इसके बाद नाटो के महासचिव आवेदन करने वाले देश को संगठन में शामिल होने का न्योता देते हैं.
नाटो का रुख
नाटो के महासचिव स्टोल्नटेनबर्ग कई बार कह चुके हैं कि स्वीडन और फिनलैंड अगर समूह से जुड़ना चाहें, तो उनका बांहें फैलाकर स्वागत किया जाएगा. उन्होंने यह भी कहा है कि सदस्यता की प्रक्रिया जल्दी पूरी कर ली जाएगी. हालांकि मौजूदा सदस्य देशों से मिलने वाली आधिकारिक मंजूरी की प्रक्रिया में महीनों का समय लग सकता है. सदस्य बनने के बाद ही उन्हें "दी वॉशिंगटन ट्रीटी" के आर्टिकल 5 का फायदा मिल सकता है. यह आर्टिकल सदस्य देशों के बीच साझा सुरक्षा का वादा करती है. इसके तहत, अगर नाटो के किसी भी सदस्य पर हमला होता है, तो इसे सभी सदस्य देशों पर हमला समझा जाएगा.