अब तक भारत के लिए टोक्यो ओलंपिक में पदक हासिल करने वाली सभी खिलाड़ी महिलाएं हैं. इतना ही नहीं ओलंपिक में भारतीय खिलाड़ियों के प्रदर्शन की पूरी सूची देखें तो पिछले 8 में से 6 ओलंपिक मेडल लड़कियों ने जीते हैं.
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भारत ने अब तक टोक्यो ओलंपिक में तीन मेडल सुरक्षित कर लिए हैं. भारोत्तोलन में साइखोम मीराबाई चानू ने रजत पदक जीता. इसके बाद बैडमिंटन में लगातार दूसरी बार पीवी सिंधू ने पदक जीता. इस बार सिंधू को कांस्य से संतोष करना पड़ा हालांकि साल 2016 के रियो ओलंपिक में उन्होंने रजत पदक हासिल किया था. तीसरा पदक सुनिश्चित करने वाली खिलाड़ी हैं, मुक्केबाज लवलीना बोरगोहेन.
तस्वीरों मेंः कैसे कैसे रहे हैं ओलंपिक के मैस्कॉट
कैसे कैसे रहे हैं ओलंपिक के मैस्कॉट
टोक्यो ओलंपिक खेलों के मैस्कॉट हैं मिराइतोवा. ओलंपिक खेलों में मैस्कॉट लाने की परंपरा करीब 50 साल पुरानी है, जो शुरू हुई थी जर्मन डैशन्ड कुत्ते वाल्डी से.
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टोक्यो 2021: मिराइतोवा और सोमैटी
मिराइतोवा (बाईं तरफ) और पैरालंपिक खेलों के मैस्कॉट सोमैटी (दाईं तरफ) टोक्यो ओलंपिक खेलों के दौरान हर जगह दिखाई देंगे. इन्हें बनाने वाले कलाकार का नाम है रियो तानिगूची.
तस्वीर: picture-alliance/Kyodo/Maxppp
म्युनिक 1972: वाल्डी
जर्मन डैशन्ड कुत्ता वाल्डी सबसे पहला ओलंपिक मैस्कॉट था.
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मोंट्रियल 1976: अमीक
लाल सैश वाल काला बीवर अमीक 1976 में कनाडा के मोंट्रियल में हुए ओलंपिक खेलों का मैस्कॉट था.
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मॉस्को 1980: मीशा
रूस की राजधानी मॉस्को में हुए 1980 के ओलंपिक खेलों का मैस्कॉट था मुस्कुराता हुआ भूरा भालू मीशा.
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लॉस एंजेलिस 1984: सैम
1984 में अमेरिका के लॉस एंजेलिस में हुए ओलंपिक खेलों का मैस्कॉट था सैम नाम का बॉल्ड ईगल.
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सीओल 1988: होदोरी
दक्षिण कोरिया के पहले ओलंपिक खेलों का मैस्कॉट था होदोरी नाम का अमूर बाघ.
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बार्सिलोना 1992: कोबी
1992 में स्पाई के बार्सिलोना में हुए खेलों का मैस्कॉट था पाइरीनियन पहाड़ी कुत्ता कोबी.
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एटलांटा 1996: इज्जी
एटलांटा में 1996 में हुए खेलों का मैस्कॉट था इज्जी नाम का एक काल्पनिक किरदार.
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सिडनी 2000: औली, सिड और मिली
ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में 2000 में हुए ओलंपिक खेलों के तीन मैस्कॉट थे - औली नाम का कूकाबुरा, सिड नाम का प्लैटिपस और मिली नाम का एकिडना.
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एथेंस 2004: एथेना और फिबोस
2004 के खेलों के लिए ग्रीस ने मैस्कॉट के रूप में चुना दो प्राचीन नामों को. एथेना और फिबोस यूनानी देवताओं के नाम है. इन्हें रोशनी और संगीत का प्रतीक माना गया.
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बीजिंग 2008: बीबी, जिंगजिंग, हुआंहुआं, यिंगयिंग और निनी
2008 के खेलों के लिए भी चीन ने एक से ज्यादा मैस्कॉट का इस्तेमाल किया. ये मैस्कॉट थे बीबी मछली, जिंगजिंग पांडा, हुआंहुआं नामक ओलंपिक की अग्नि का रूप, यिंगयिंग तिब्बती ऐंटिलोप और निनी स्वालो पक्षी.
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लंदन 2012: वेनलॉक और मैंडेविल
चार सालों बाद लंदन ने खेलों के मैस्कॉट के रूप में दो आकारहीन किरदारों को प्रस्तुत किया. वेनलॉक (बाईं तरफ) ओलंपिक का मैस्कॉट था और मैंडेविल (दाईं तरफ) पैरालंपिक खेलों का. दोनों को इस्पात उद्योग के प्रतिनिधि के रूप में देखा गया.
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रियो 2016: विनिचियस और टॉम
ब्राजील के ओलंपिक खेलों का मैस्कॉट था विनिचियस (दाईं तरफ) जो एक बंदर और जंगली बिल्ली का मिश्रण जैसा था और ब्राजील में पाए जाने वाले जीव-जंतुओं का प्रतिनिधि था. टॉम (बाईं तरफ) कई पौधों का मिश्रण था और ब्राजील के पेड़ पौधों का प्रतिनिधि था. (बेट्टीना बाउमैन)
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इसका मतलब कि अब तक भारत के लिए टोक्यो ओलंपिक में पदक हासिल करने वाली सभी खिलाड़ी महिलाएं हैं. वहीं महिला हॉकी टीम ने तो पहली बार ओलंपिक के सेमीफाइनल में पहुंचकर इतिहास रच दिया है. इतना ही नहीं ओलंपिक में भारतीय खिलाड़ियों के प्रदर्शन की पूरी सूची देखें तो पिछले 8 में से 6 मेडल लड़कियों ने जीते हैं जबकि अब भी ओलंपिक में भेजे जाने वाले भारतीय दल में महिलाओं और पुरुषों की संख्या बराबर नहीं हुई है.
भारत की ओर से भी जिन खिलाड़ियों का दल ओलंपिक में भेजा गया है, उसके 127 खिलाड़ियों में से 56 महिलाएं और 71 पुरुष खिलाड़ी हैं. यानी महिलाओं की हिस्सेदारी करीब 45 फीसदी है. वहीं अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक कमेटी (IOC) ने बताया है कि ओलंपिक में इस बार कुल खिलाड़ियों में से 49 फीसदी महिलाएं हैं, जबकि रियो ओलंपिक में 45 फीसदी खिलाड़ी महिलाएं थीं. ग्रेट ब्रिटेन जैसे देशों ने तो इस बार पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा महिलाओं को ओलंपिक में भेजा है.
मानसिक मजबूती
जानकार कहते हैं कि अगर प्रैक्टिस की बात करें तो ओलंपिक के लिए पुरुष और महिला एथलीट्स की प्रैक्टिस एक ही तरह से हुई है. सभी को एक जैसी सुविधाएं ही उपलब्ध कराई जा रही हैं. हालांकि खेल पत्रकार प्रत्यूषराज कहते हैं, "फिर भी एक वजह हो सकती है, जहां थोड़ा अंतर आ सकता है. वह है, मानसिक मजबूती. हम जानते हैं कि 'ओलंपिक' खेल की सबसे बड़ी अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा है और इसमें खिलाड़ियों पर जबरदस्त दबाव होता है. यह दबाव कई बार गलतियां भी करवाता है लेकिन जो खिलाड़ी इससे पार पा जाता है, वह बेहतरीन प्रदर्शन करता है. पीवी सिंधू के लगातार दो ओलंपिक खेलों में मेडल हासिल करने के मामले में हम यह बात देख सकते हैं."
हालांकि वह यह भी कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि सभी महिला खिलाड़ियों पर मानसिक दबाव का असर नहीं होता. उनके मुताबिक तीरंदाज दीपिका कुमारी को कई अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में बेहतरीन प्रदर्शन करते देखा गया है लेकिन ओलंपिक में वह इतनी प्रभावशाली होकर नहीं उबर पातीं. ऐसा ही मनु भाकर और कमलप्रीत कौर के साथ हुआ है.
कमलप्रीत कौर ने क्वॉलिफायर में जो प्रदर्शन किया वह उनका व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था और उन्हें मेडल दिलाने के लिए पर्याप्त था लेकिन वे इसे फाइनल में नहीं दोहरा सकीं. फिर भी काफी हद तक पुरुष खिलाड़ियों की अपेक्षा महिला खिलाड़ियों ने मानसिक मजबूती का बेहतर परिचय दिया है.
बढ़ी प्रतिभागिता भी जिम्मेदार
खेल पत्रकार नीरू भाटिया जरा अलग रुख रखती हैं. वह कहती हैं, "सबसे बड़ा अंतर प्रतिभागिता का है. जैसे-जैसे एथलीट्स में महिलाओं की संख्या बढ़ रही है, उसी हिसाब से उनके मेडल भी बढ़ रहे हैं. हर साल किसी एक खेल प्रतियोगिता में महिलाएं पहली बार आ रही हैं. ऐसा भी नहीं कि वे वाइल्ड कार्ड एंट्री हैं, वे इसलिए आ रही हैं क्योंकि उन्होंने क्वॉलीफाई किया है. इस साल जो काम तलवारबाजी में भवानी देवी ने किया, पिछली बात जिम्नास्टिक्स में दीपिका कर्माकर ने किया था. उससे पहले मुक्केबाजी के लिए मैरीकॉम ने किया था. उससे पहले रेसलिंग के लिए फोगाट बहनों ने किया था जबकि तब महिलाओं के लिए कुश्ती जैसे खेल अच्छी नजरों से नहीं देखे जाते थे."
भाटिया कहती हैं, "ऐसे में अगर अभी तक अगर सिर्फ महिलाओं ने ही मेडल जीते हैं तो यह उनकी बढ़ी प्रतिभागिता का नतीजा है और एक संयोग मात्र है." नीरू भाटिया सहित ज्यादातर जानकार मानते हैं कि महिलाओं के मेडल उनके समाज में हर तरह से हो रहे विकास और शिक्षा में बढ़ोतरी से भी जुड़े हुए हैं. अब कई तरह की रुढ़ियां धीरे-धीरे मिट रही हैं.
हरियाणा से आने वाली लड़कियों के मेडल इसका नतीजा हैं. वहीं पहले के मुकाबले अब कई आर्थिक रूप से कमजोर घरों की लड़कियां भी ओलंपिक में जबरदस्त प्रदर्शन कर रही हैं. कमलप्रीत कौर, सविता पूनिया, रानी रामपाल और नेहा गोयल जैसी खिलाड़ी ऐसे ही परिवारों से आती हैं.
बराबरी के अलावा अवसर भी
जानकार बताते हैं कि पहले जहां ओलंपिक में भारत के पदकों को 'हिट बाई ट्रायल' यानी तुक्का मान लिया जाता था, अब ऐसा नहीं रहा. स्थिति काफी बदल चुकी है. जो खिलाड़ी पदक हासिल कर रहे हैं, वे लगातार बड़ी अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में अपना प्रदर्शन दोहरा रहे हैं. खिलाड़ियों की फिटनेस और डाइट की ट्रेनिंग भी अच्छी हुई है. ओलंपिक के लिए अब सालों-साल तैयारी होती है.
तस्वीरों मेंः भारत को मेडल दिलाने वांली खिलाड़ी
भारत को ओलंपिक में मेडल दिलाने वाली महिला खिलाड़ी
भारत में क्रिकेट खिलाड़ियों की जितनी चर्चा होती है उतनी ओलंपिक के सितारों की नहीं. यहां देखिए उन महिला खिलाड़ियों को जिन्होंने ओलंपिक में भारत का झंडा लहराया है.
तस्वीर: Pedro Pardo/AFP
मीराबाई चानू
टोक्यो ओलंपिक में मीराबाई चानू ने वेटलिफ्टिंग की 49 किलोग्राम श्रेणी में रजत पदक जीतकर भारत का खाता खोला था. चानू कहती हैं कि उन्होंने 2016 के ओलंपिक में पदक चूकने के बाद काफी मेहनत की थी. पांच साल की मेहनत सफल होने पर वे बहुत खुश हैं.
तस्वीर: picture-alliance/epa/S. Lesser
पीवी सिंधु
पीवी सिंधु ने साल 2016 के रियो दे जनेरो ओलंपिक में सिल्वर मेडल भारत के नाम किया. इसके बाद उन्होंने टोक्यो ओलंपिक में ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया. वे लगातार दो ओलंपिक में मेडल जीतने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी हैं. उनका पूरा नाम पुसरला वेंकट सिंधु है.
तस्वीर: Naomi Baker/Getty Images
कर्णम मल्लेश्वरी
कर्णम मल्लेश्वरी भारत को ओलंपिक में मेडल दिलाने वाली पहली महिला हैं. कर्णम को वेट लिफ्टिंग में कांस्य पदक मिला है. यह मेडल उन्होंने साल 2000 के सिडनी ओलंपिक में जीता था. उन्होंने स्नैच श्रेणी में 110 किलोग्राम और क्लीन एंड जर्क में 130 किलोग्राम भार उठा कर यह मुकाम हासिल किया. कर्णम का जन्म आंध्र प्रदेश में हुआ था.
तस्वीर: Martin Rose/Bongarts/Getty Images
साइना नेहवाल
साइना नेहवाल दूसरी भारतीय एथलीट हैं जिन्होंने साल 2012 के लंदन ओलंपिक में कांस्य पदक जीता. बैडमिंटन के लिए ओलंपिक पदक जीतने वाली वह पहली महिला हैं. साइना का जन्म हरियाणा में हुआ था. साइना नेहवाल की जिदंगी पर बॉलीवुड फिल्म `साइना` बन चुकी है. इस फिल्म में परिणीति चोपड़ा ने साइना का किरदार निभाया है.
तस्वीर: Lu Binghui/Imaginechina/imago images
मेरी कॉम
मेरी कॉम अकेली भारतीय महिला हैं जिन्होंने देश को बॉक्सिंग में मेडल दिलाया. मेरी को साल 2012 के लंदन ओलंपिक गेम्स में कांस्य पदक मिला था. इसके साथ ही मेरी कॉम ने छह विश्व खिताब भी अपने नाम किए हैं. मेरी का जन्म मणिपुर में हुआ था. मेरी कॉम पर बॉलीवुड में फिल्म भी बन चुकी है. इस फिल्म में प्रियंका चोपड़ा ने मेरी कॉम का किरदार निभाया था.
साक्षी मलिक ने ओलंपिक में कांस्य पदक हासिल किया है. यह मेडल उन्हें साल 2016 के रियो ओलंपिक में फ्रीस्टाइल कुश्ती के 58 किलो भार वर्ग के लिए मिला था. इसके साथ ही वह पहली महिला पहलवान हैं जिन्होंने ओलंपिक में एक पदक जीता है. साक्षी का जन्म हरियाणा में हुआ था.
तस्वीर: Kadir Caliskan/imago images
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जानकारों के मुताबिक महिला एथलीट भी इस प्रक्रिया से लाभ पा रही हैं. और अगर वे बहुत अच्छा प्रदर्शन करती हैं तो उन्हें पर्सनल कोच और अन्य सुविधाएं भी सरकार की ओर से उपलब्ध कराई जाती हैं. पीवी सिंधू और एमसी मैरीकॉम जैसे खिलाड़ी इसी प्रक्रिया का हिस्सा हैं. हालांकि उनके मुताबिक अब भी भारत को इस दिशा में लंबी दूरी तय करनी है. ऐसा नहीं होता तो इस बार टेनिस के महिला सिंगल्स प्रतियोगिता के लिए ओलंपिक में भेजने के लिए कोई न कोई महिला खिलाड़ी जरूर मौजूद होती.