कैसे चुना जाता है नए पोप का नाम
९ मई २०२५
21 अप्रैल को पोप फ्रांसिस के निधन से पहले जनवरी 2025 में पोप फ्रांसिस की आत्मकथा, "होप” सामने आई थी. जिसमें उन्होंने 2013 के उन पलों की चर्चा की थी जब पोप चुने जाने की प्रक्रिया के दौरान उन्हें अपना नाम मिला था. 13 मार्च 2013 को मतदान के पांचवें और आखिरी दौर में उनका नाम, जॉर्ज मारियो बर्गोग्लियो (पोप फ्रांसिस के जन्म वाला नाम) बार-बार सुनाई देने लगा था.
पोप फ्रांसिस ने अपनी किताब में लिखा, "जब मेरा नाम सतहत्तरवीं बार दोहराया गया, तो तालियों की गड़गड़ाहट बज उठी, हालांकि मतों की गिनती अब भी जारी थी. लेकिन उस पल में जब अन्य कार्डिनल अभी भी तालियां बजा ही रहे थे, तभी रियो ग्रांडे दो सुल के फ्रैंसिस्कन सेमिनरी ऑफ तक्वारी के कार्डिनल हम्मेस, उठे और मुझे गले लगाते हुए बोले, "गरीबों को कभी मत भूलना.” उनके वो शब्द मेरे जहन में उतर गए. और ठीक उसी समय ‘फ्रांसिस' नाम उजागर हुआ.” उस पल से पहले उन्होंने कभी ख्यालों में भी नहीं सोचा था कि वह चुने जा सकते है और पोप के रूप में एक नाम का चुनाव कर सकते हैं.
जब वह सेंट पीटर्स बैसिलिका की बालकनी में पोप फ्रांसिस के रूप में कदम आगे बढ़ा रहे थे, तो उनका चुना हुआ नाम उन्हें और खास बना रहा था. खास इसलिए क्योंकि पिछले 600 साल में ऐसा पहला बार हो रहा था कि किसी पोप ने ऐसा नाम चुना था, जो पहले कभी इस्तेमाल नहीं किया गया था. यह नाम पूरी तरह से नया था.
एक बेघर की पुकार
जर्मनी के ऑग्सबुर्ग शहर के कैथोलिक धर्मशास्त्री और पोप विशेषज्ञ, यॉर्ग एर्नेस्टी ने डीडब्ल्यू को बताया, "मैं मानता हूं कि नाम का चुनाव अक्सर एक बुलावे का प्रतीक होता है.” अपनी आत्मकथा "होप” में पोप फ्रांसिस ने भी उसी पल को याद किया है, जब उन्हें संकेत मिला था. जैसे इस नाम ने पहले ही उन्हें चुन लिया हो.
पोप फ्रांसिस ने अपनी किताब में बताया, "कॉन्क्लेव या अधिवेशन के दिनों में एक बेघर व्यक्ति सेंट पीटर स्क्वायर में घूम रहा था. उसकी गर्दन में एक तख्ती लटकी हुई थी, जिस पर ‘पोप फ्रांसिस प्रथम' लिखा था. लेकिन वह दृश्य मुझे कई दिनों बाद याद आया जब उस व्यक्ति की तस्वीर कई अखबारों में छपी.”
266वें पोप, बर्गोग्लियो, से पहले कभी किसी भी पोप ने ‘फ्रांसिस' नाम को नहीं चुना था. हालांकि, ऐसे कई नाम है जो कई बार चुने गए हैं. जैसे कि 2025 तक, जॉन नाम 23 बार चुना गया है, ग्रेगरी नाम 16 बार, बेनेडिक्ट नाम भी 16 बार, क्लेमेंट नाम 14 बार, इनोसेंट नाम 13 बार, लिओ नाम 14 बार और पायस नाम 12 बार चुना गया है.
इसके अलावा 40 से अधिक ऐसे नाम हैं, जो इतिहास में केवल एक बार ही इस्तेमाल हुए हैं. जैसे कि पीटर, फैबियनस, कॉन्स्टैन्टाइन और हाल में इस्तेमाल किया गया फ्रांसिस. और जिस तरह से कैथोलिक चर्च के नेतृत्व में आने वाले परिवर्तन के बारे अटकले लगाई जाती है. ठीक वैसे ही नए पोप का नाम भी उत्सुकता का विषय होता है.
सदियों से कैसे चुने जाते हैं नए पोप
प्रारंभिक सदियों में पोप अपना नाम नहीं बदला करते थे. पोप विशेषज्ञ, यॉर्ग एर्नेस्टी बताते हैं, "पहली बार वर्ष 533 में किसी पोप ने अपना नाम बदला था और वह भी शर्मिंदगी के कारण.” उनका नाम "मर्क्यूरियस" था, जो कि एक रोमन देवता का नाम था. लेकिन चर्च के मुखिया के रूप में यह नाम उपयुक्त नहीं था, इसलिए उन्होंने अपना नाम बदलकर ‘जॉन द्वितीय' रख लिया था.
एर्नेस्टी बताते हैं कि पोप द्वारा चुना गया नाम और धार्मिक संस्थाओं के सदस्य द्वारा अपनाया गया नया नाम एक जैसा नहीं होता है. यह केवल एक ‘गलतफहमी' है. जब पुरुष और महिलाएं संन्यास लेते हैं, तब वह अपने बपतिस्मा के नाम को त्याग देते हैं, जो कि उनके नए जीवन का प्रतीक होता है. लेकिन पोप के मामले में ऐसा नहीं है. वह अपने असल नाम से मुंह नहीं मोड़ते हैं. बल्कि नया नाम केवल प्रतीकात्मक होता है. उनका मूल व्यक्तित्व और धार्मिक पहचान में कोई बदलाव नहीं होता है. जैसे कि पोप का ‘नेम डे' उस संत के दिन ही मनाया जाता है, जिसका नाम उन्हें बपतिस्मा के समय दिया गया था, ना कि उस नाम पर जो उन्होंने पोप बनने पर चुना हो.
पोप और सेंट फ्रांसिस
पोप फ्रांसिस के बाद से यह बात और साफ हो गई है कि एक पोप का चुना हुआ नाम कितना गहरा असर रखता है. ‘फ्रांसिस' नाम सेंट फ्रांसिस ऑफ असीसी (1182-1226) की याद दिलाता है. वह इटली के असीसी शहर में रहने वाले एक व्यापारी के बेटे थे, लेकिन उन्होंने अपनी सारी दौलत त्याग दी थी. उन्हें यीशु का बुलावा महसूस हुआ जैसे वह उन्हें एक सादा गरीब जीवन जीने की लिए बोल रहे हो. जिसके बाद उन्होंने फ्रांसिस्कन संप्रदाय की स्थापना की.
पोप फ्रांसिस ने भी वैसा ही रास्ता अपनाया. वह हमेशा गरीबों और वंचितों की बात करते थे. वह भी सेंट फ्रांसिस की तरह ही प्रकृति को बचाने की जरूरत पर जोर देते थे. और पोप बनने के बाद, रोम के बाहर वह किसी जगह उन्होंने इतनी बार नहीं गए जितनी बार वह इटली के असीसी गए थे.
आधुनिक समय में पोप के प्रतीकात्मक नाम का सबसे अच्छा उदाहरण पोप पॉल छठवें से बेहतर कोई नहीं हो सकता, जो 1963 से 1978 तक चर्च के प्रमुख थे. पोप बनने से पहले वह मिलान के आर्कबिशप थे और इटली के उत्तरी भाग से संबंध रखते थे. वह खुद को आधुनिक समय का ‘राष्ट्रों के प्रेरित' करने वाला मानते थे. यह वही उपाधि है, जो अक्सर सेंट पॉल को दी जाती है. यीशु के बाद सेंट पॉल ही थे जिन्होंने ईसाई धर्म को फलीस्तीन के बाहर दुनिया भर में फैलाया था.
पोप पॉल छठवें भी सेंट पॉल की राह पर ही चले. वह पहले पोप थे, जो पोप बनने के सिर्फ चार महीने के भीतर हवाई जहाज में चढ़कर पवित्र भूमि पहुंच गए थे. एक साल बाद, वह मुंबई भी आए. और इसके बाद उन्होंने दुनिया के कई हिस्सों जैसे न्यूयॉर्क, युगांडा, एशिया, ओशिनिया और ऑस्ट्रेलिया की भी यात्रा की थी.