कैसे लाखों कर्मचारियों की कमाई बढ़ा देता है 'फिटमेंट फैक्टर'
१७ जनवरी २०२५भारत को आजादी मिलने से लेकर अबतक सात वेतन आयोग बनाए जा चुके हैं. अब केंद्र सरकार ने आठवें वेतन आयोग के गठन को मंजूरी दे दी है. केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने एक प्रेस ब्रीफिंग में इसकी जानकारी दी. उन्होंने बताया कि जल्द ही आयोग के अध्यक्ष और अन्य दो सदस्यों की नियुक्ति की जाएगी. उनकी प्रेस ब्रीफिंग का वीडियो प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो के यूट्यूब चैनल पर देखा जा सकता है.
भारत में केंद्रीय कर्मचारियों और पेंशनधारकों की संख्या एक करोड़ से ज्यादा है. अगस्त, 2022 में लोकसभा में केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने जानकारी दी थी कि वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान देश में करीब 70 लाख केंद्रीय पेंशनभोगी थे. आठवें वेतन आयोग की वजह से इनके वेतन और पेंशन में बढ़ोतरी होने की उम्मीद है. लेकिन अभी इसके लिए इंतजार करना होगा क्योंकि केंद्र सरकार की घोषणा के साथ इस प्रक्रिया की शुरुआत ही हुई है.
वेतन आयोग को मंजूरी मिली, अब आगे क्या?
आर्थिक विषयों के जानकार डॉ. एमएम सूरी ने ‘पे कमीशंस ऑफ इंडिया' नाम की एक किताब लिखी है. इसमें पहले से लेकर सातवें वेतन आयोग तक के बारे में बताया गया है. इसके मुताबिक, लगभग हर दस साल के बाद केंद्रीय वेतन आयोग का गठन किया जाता है. यह आयोग केंद्र सरकार के कर्मचारियों, सशस्त्र बलों और पेंशनभोगियों के वेतन ढांचे की समीक्षा करता है और अपनी सिफारिशें देता है. नए वेतन ढांचे की सिफारिश करने से पहले, आयोग देश की सामान्य आर्थिक स्थिति, कर्मचारियों की संख्या, सरकार के वित्तीय संसाधनों और महंगाई के आंकड़ों का विश्लेषण भी करता है.
किताब में बताया गया है कि वेतन आयोग कर्मचारियों के भत्तों, सेवानिवृत्ति लाभ, सेवा शर्तों और पदोन्नति नीति जैसे अन्य पहलुओं पर भी विचार करता है. इसके बाद, सरकार आयोग की सिफारिशों को लागू करने के विषय में अंतिम फैसला लेती है. यह जरूरी नहीं होता कि आयोग की सभी सिफारिशों को लागू कर दिया जाए. सरकार चाहे तो उनमें से कुछ सिफारिशों को लागू कर सकती है या फिर उनमें कुछ बदलाव भी कर सकती है. किताब के मुताबिक, वेतन आयोग एक संवैधानिक निकाय नहीं है इसलिए केंद्र सरकार के पास यह छूट रहती है कि वह रिपोर्ट के किस हिस्से को लागू करेगी और कब लागू करेगी.
कितनी होती है वेतन में असल बढ़ोतरी
वेतन आयोग की सिफारिशों के आधार पर एक 'फिटमेंट फैक्टर' तय किया जाता है. नए वेतन ढांचे में किसी कर्मचारी का मूल वेतन कितना होगा, यह पता करने के लिए मौजूदा मूल वेतन में फिटमेंट फैक्टर का गुणा करना होता है. सेवानिवृत्त कर्मचारियों की नई पेंशन पता करने के लिए भी इसी तरीके का इस्तेमाल किया जाता है.
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इसे एक उदाहरण से समझते हैं. सातवें वेतन आयोग की रिपोर्ट में सभी कर्मचारियों के लिए फिटमेंट फैक्टर 2.57 तय किया गया था. उससे पहले, केंद्रीय कर्मचारियों की न्यूनतम मूल आय सात हजार रुपए प्रति महीना हुआ करती थी. अब नई न्यूनतम मूल आय का पता लगाने के लिए सात हजार में 2.57 का गुणा कर दिया गया, जिसका परिणाम आया 18 हजार रुपए. यानी सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के लागू होने के बाद केंद्रीय कर्मचारियों का न्यूनतम मूल वेतन बढ़कर 18 हजार रुपए हो गया.
लेकिन इसमें भी एक पेंच है. सतही तौर पर लगता है कि आय में करीब ढाई गुना की बढ़ोतरी हो गई. लेकिन असल में हुई बढ़ोतरी इससे काफी कम होती है. सातवें वेतन आयोग की रिपोर्ट में बताया गया है कि फिटमेंट फैक्टर में कर्मचारियों के महंगाई भत्ते को भी शामिल कर लिया जाता है. उसे हटाकर देखने पर असली बढ़ोतरी पता चलती है. रिपोर्ट के मुताबिक, सातवें वेतन आयोग के बाद न्यूनतम आय में 14.3 फीसदी की असल बढ़ोतरी हुई थी. उससे पहले छठवें वेतन आयोग के बाद, न्यूनतम आय में सबसे ज्यादा 54 फीसदी की असल बढ़ोतरी हुई थी.
हर वेतन आयोग का अलग होता है फोकस
लगभग हर वेतन आयोग का एक अलग उद्देश्य होता है. राजधानी दिल्ली स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ इकोनॉमिक ग्रोथ की एक स्टडी के मुताबिक, 1947 में लागू हुए पहले वेतन आयोग का उद्देश्य जीवन की न्यूनतम आवश्यकताओं के लिए जरूरी वेतन तय करना था. दूसरे वेतन आयोग का जोर इस बात पर था कि सरकारी नौकरियों में योग्य लोगों की भर्ती की जाए. वहीं, तीसरे वेतन आयोग ने वेतन ढांचे को बेहतर बनाने पर काम किया.
साल 2014 में गठित किए गए सातवें वेतन आयोग का मुख्य उद्देश्य था कि उच्च गुणवत्ता वाले कर्मचारियों को सरकारी नौकरियों की तरफ आकर्षित किया जाए. अब आठवें वेतन आयोग का फोकस किस बात पर रहेगा, इसकी जानकारी अभी सरकार की ओर से नहीं दी गई है. हालांकि, कई मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि सरकार कर्मचारियों के प्रदर्शन के आधार पर वेतन बढ़ाने की योजना पर विचार कर रही है.