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भ्रष्टाचार के दोषी सिक्किम के सीएम के चुनाव लड़ने से रोक हटी

ऋषभ कुमार शर्मा
३० सितम्बर २०१९

सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह गोले ने भ्रष्टाचार के मामले में एक साल की जेल की सजा काटी थी. अयोग्य घोषित किए जाने के डर से उन्होंने चुनाव भी नहीं लड़ा था. उनका दल एनडीए का हिस्सा है. मुख्यमंत्री बनने पर कैसे हट गई?

Indien | Sikkim | Prem Singh Golay
तस्वीर: AFP/Getty Images

2019 के लोकसभा चुनाव के साथ हुए विधानसभा चुनावों में सबसे बड़ा उलटफेर सिक्किम में देखने को मिला था. वहां 25 साल से सत्ता संभाल रहे पवन सिंह चामलिंग के हाथ से सत्ता निकल कर पहले उनके साथी रह चुके प्रेम सिंह तमांग जिन्हें पीएस गोले कहा जाता है, के हाथ में पहुंच गई. लेकिन पीएस गोले के साथ एक दिक्कत ये थी कि वो चुनाव नहीं लड़ सकते थे. 1996-97 में किए भ्रष्टाचार के एक मामले में उन्हें 2017 में एक साल की जेल हुई. इसी वजह से उनकी विधानसभा की सदस्यता भी रद्द हो गई थी. 2019 के विधानसभा चुनाव में वो चुनाव नहीं लड़े थे क्योंकि उन्हें चुनाव आयोग द्वारा अयोग्य ठहराए जाने का डर था. लेकिन अब ऐसा नहीं होगा. चुनाव आयोग ने 29 सितंबर को प्रेम सिंह तमांग के चुनाव लड़ने पर लगी रोक को पांच साल कम कर दिया. अब वो चुनाव लड़ सकेंगे. उनकी पार्टी एनडीए गठबंधन का हिस्सा है.

क्या है पूरा मामला

पीएस गोले ने 27 मई 2019 को सिक्किम के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. 32 सदस्यों वाली विधानसभा में उनकी पार्टी सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा को 17 और पवन सिंह चामलिंग की पार्टी सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट को 15 सीटें मिलीं. लेकिन पीएस गोले खुद विधायक का चुनाव नहीं लड़े थे. एक साल की सजा पाने की वजह से जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 11 के मुताबिक उनके चुनाव लड़ने पर छह साल की रोक थी. अगर वो पर्चा भरते तो अयोग्य प्रत्याशी घोषित हो जाते. उनकी सजा 10 अगस्त  2018 को पूरी हुई. चुनाव लड़ने पर रोक सजा पूरी होने के छह साल बाद तक जारी रहती है. ऐसे में वो 10 अगस्त 2024 तक चुनाव नहीं लड़ सकते थे. लेकिन चुनाव आयोग ने अब इस रोक को छह साल की जगह एक साल एक महीने कर दिया. इसके हिसाब से वह समयसीमा 10 सितंबर 2019 को पूरी हो गई. यानि अब मुख्यमंत्री बने गोले छह महीने पूरे होने से पहले चुनाव लड़ सकेंगे.

पीएस गोले ने 25 साल सीएम रहे पवन सिंह चामलिंग को सत्ता से बाहर किया था.तस्वीर: IANS

किस आधार पर कम की गई पाबंदी

पीएस गोले ने मुख्यमंत्री बनने के बाद चुनाव आयोग को अर्जी दी थी कि उनके चुनाव लड़ने पर लगी रोक पर पुनर्विचार किया जाए. उन्होंने इस पुनर्विचार पर सुनवाई 30 सितंबर से पहले करने का निवेदन भी किया था. सुनवाई करते हुए चुनाव आयोग ने कहा कि पीएस गोले को 1996-97 में किए गए भ्रष्टाचार के लिए एक साल की सजा मिली है. भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम, 1988 के मुताबिक अगर किसी व्यक्ति को भ्रष्टाचार के मामले में कम से कम दो साल की सजा मिली हो तो उसके चुनाव लड़ने पर सजा पूरे होने के छह साल बाद तक रोक होती है. लेकिन गोले को एक साल की सजा हुई थी जो पूरी हो गई है. ऐसे में उनके चुनाव लड़ने पर लगी पाबंदी को कम किया गया है.

चुनाव आयोग ने अपने आदेश में कहा, "आवेदक ने 2019 के विधानसभा चुनाव के दौरान पर्चा नहीं भरा और ना ही चुनाव आयोग से रोक हटाने की गुजारिश की. वो तब चुनाव आयोग में अपील करने आए जब उनके राज्य के चुने हुए विधायकों ने उनके नेतृत्व में आस्था जताई. इसी वजह से राज्यपाल ने भी उन्हें सरकार बनाने का निमंत्रण दिया. 1977 में श्याम नारायण तिवारी के मामले में भी ऐसा ही किया गया था. हत्या के मुकदमे में सजायाफ्ता श्याम नारायण तिवारी ने अवैध तरीके से चुनाव लड़ा और वो जीत गए. लेकिन चुनाव आयोग ने जनता द्वारा उन्हें चुने जाने का सम्मान किया था और उनके चुनाव को वैध घोषित किया था."

श्याम नारायण तिवारी पर 1970 के दशक में एक हत्या का मुकदमा था. उन्हें इसके लिए फांसी की सजा सुनाई गई थी. लेकिन बाद में इसे उम्रकैद में बदल दिया गया. चार साल बाद अच्छे व्यवहार के चलते उन्हें जेल से छोड़ दिया गया था. 1977 में सीपीआई के टिकट पर उत्तर प्रदेश के महाराजगंज जिले की फरेंदा सीट से उन्होंने चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की. उनकी चुनाव आयोग में शिकायत की गई थी लेकिन चुनाव आयोग ने जनता द्वारा चुने जाने का हवाला देकर उनका निर्वाचन रद्द नहीं किया था. अब पीएस गोले को 27 नवंबर से पहले विधायक का चुनाव जीतना होगा जिससे वो आगे भी मुख्यमंत्री बने रह सकें.

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