1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
समाजजर्मनी

कितने खुश हैं जर्मनी में रह रहे विदेशी?

ओलिवर पीपर
३१ अक्टूबर २०२५

एक हालिया रिपोर्ट बताती है कि जर्मनी में पूर्वी यूरोप से आए नए आप्रवासी सबसे ज्यादा संतुष्ट हैं. वहीं, एशिया और अफ्रीका से आने वाले इमिग्रेंट्स का अनुभव अलग है. जानिए, जर्मनी में रहने वाले आप्रवासी कैसा महसूस करते हैं?

यूईएफए विमिन्स यूरो 2025 के एक फुटबॉल मैच में जर्मनी के एक सपोर्टर का चेहरा जर्मन झंडे के रंगों से रंगा हुआ
जर्मनी में पूर्वी यूरोप से आने वाले आप्रवासियों का लंबा इतिहास रहा है. इनमें वे लोग भी शामिल हैं, जो सोवियत संघ के टूटने के बाद बने देशों में रहते थे, लेकिन उनके परिवार की जड़ें जर्मनी से जुड़ी हैंतस्वीर: Sebastien Bozon/AFP

हाल ही में प्रकाशित साल 2025 'हैपीनेस एटलस' की रिपोर्ट के मुताबिक, जर्मनी के लोग अब पिछले कुछ सालों के मुकाबले अपनी जिंदगी से ज्यादा खुश और संतुष्ट हैं. कोरोना महामारी के बाद से लोगों का मिजाज काफी बेहतर हुआ है.

हर दो में से एक व्यक्ति ने कहा कि वह अपनी जिंदगी से बहुत संतुष्ट है. खास बात यह है कि पूर्वी जर्मनी में रहने वालों की संतुष्टि, पश्चिमी इलाकों की तुलना में ज्यादा बढ़ी है. रिपोर्ट के अनुसार, समूचे जर्मनी में हैम्बर्ग के लोग सबसे ज्यादा खुश हैं.

जर्मनी के सरकारी जनसंख्या अनुसंधान संस्थान (फेडरल इंस्टिट्यूट फॉर पापुलेशन रिसर्च) द्वारा किए गए 'बीआइबी.मॉनिटर वेल-बीइंग' सर्वे में भी ऐसे ही नतीजे देखे गए. इस सर्वे में जर्मनी में रह रहे 20 से 52 साल की उम्र के 30,000 लोगों से बात की गई.

जर्मनी: हर चार में से एक आप्रवासी देश छोड़ना चाहता है

इसमें उन अध्ययनों के नतीजे भी जोड़े गए, जिनमें खासतौर पर आप्रवासी समुदायों के एकीकरण पर ध्यान दिया गया था. आज जर्मनी की 8.3 करोड़ आबादी में हर चौथा व्यक्ति या तो पिछले 50 सालों में आया आप्रवासी है, या आप्रवासियों की संतान है.

एशिया और अफ्रीका से आने वाले हर तीन में से एक आप्रवासी ने कहा कि वो जर्मनी में अपनी जिंदगी से असंतुष्ट हैं. यह अनुपात बाकी किसी भी आप्रवासी समूह से ज्यादा हैतस्वीर: Axel Heimken/dpa/picture alliance

'इंटीग्रेशन पैरेडॉक्स'

बीआइबी.मॉनिटर की प्रमुख काथारीना श्पीस ने बताया, "अब हम जिंदगी से संतुष्टि के मामले में लगभग कोरोना से पहले वाली स्थिति में पहुंच गए हैं." हालांकि, जब शोधकर्ताओं ने अलग-अलग आप्रवासी समुदायों को देखा तो कुछ अंतर सामने आए. जैसा कि श्पीस बताती हैं, "हम 'इंटीग्रेशन पैरेडॉक्स' देख रहे हैं, यानी आप्रवासियों की अगली पीढ़ी अपने माता-पिता के मुकाबले कम संतुष्ट है."

जर्मनी की सबसे बड़ी चिंता है घर चलाने का खर्च

'इंटीग्रेशन पैरेडॉक्स' शब्द का पहली बार इस्तेमाल समाजशास्त्री अलादिन एल-मफालानी ने किया था. उनके मुताबिक, जब कोई समाज में अच्छी तरह घुल-मिल जाने में कामयाब होता है, तो टकराव की संभावना भी बढ़ जाती है. जैसे कि, जब आप्रवासियों की अगली पीढ़ी सिर्फ समाज का हिस्सा बनकर ही नहीं जीना चाहती, बल्कि उसमें बदलाव भी लाना चाहती है. ऐसे में कई बार उन लोगों के साथ संघर्ष के हालात पैदा हो जाते हैं, जो बदलाव नहीं चाहते. यही आप्रवासियों में असंतोष और निराशा का कारण बनता है.

क्या जर्मन पेंशन सिस्टम का मुश्किल में पड़ना पहले से तय था

शोध में पाया गया कि पूर्वी यूरोप से आए आप्रवासी सबसे ज्यादा संतुष्ट हैं. दूसरे नंबर पर वो लोग हैं, जिनकी कोई प्रवासी पृष्ठभूमि नहीं है. और, फिर वे जो आप्रवासियों की पहली पीढ़ी के बच्चे हैं.

श्पीस के मुताबिक, "आप्रवासियों की संतानें कम खुश इसलिए भी हो सकती हैं, क्योंकि उनकी उम्मीदें पूरी नहीं हुईं, या उनका समाज में एकीकरण वैसा नहीं हुआ जैसा उन्होंने या समाज ने सोचा था."

कोरोना महामारी के दौर से तुलना करें, तो लोग काफी बेहतर महसूस कर रहे हैंतस्वीर: S. Ziese/blickwinkel/IMAGO

पूर्वी यूरोपीय आप्रवासी जर्मनी में सबसे खुश

पूर्वी यूरोपीय देशों से आए करीब चार में से एक आप्रवासी ने कहा कि वह जर्मनी में अपनी जिंदगी से बहुत खुश है. जर्मनी में पोलिश कामगारों समेत पूर्वी यूरोप से आने वाले आप्रवासियों का लंबा इतिहास रहा है. इनमें वे लोग भी शामिल हैं, जो सोवियत संघ के टूटने के बाद बने देशों में रहे, लेकिन उनके परिवार की जड़ें जर्मनी से जुड़ी हैं.

वहीं, एशिया और अफ्रीका से आने वाले हर तीन में से एक आप्रवासी ने कहा कि वो जर्मनी में अपनी जिंदगी से असंतुष्ट हैं. यह अनुपात बाकी किसी भी आप्रवासी समूह से ज्यादा है. शोधकर्ताओं का मानना है कि इसकी वजह भेदभाव और नस्लवाद हो सकती है.

साल 2015 और 2016 में जर्मनी आए शरणार्थियों में नतीजे मिले-जुले रहे. तकरीबन हर तीन में से एक सीरियाई व्यक्ति जर्मनी में बहुत संतुष्ट है, जबकि इराक या इरिट्रिया से आए इतने ही लोग खुश नहीं हैं.

जर्मनी में नहीं आ सकेंगे शरणार्थियों के परिवार

शोधकर्ताओं के मुताबिक, इसका कारण यह हो सकता है कि सीरियाई शरणार्थियों को दूसरे देशों के शरणार्थियों की तुलना में ज्यादा सुरक्षा दी गई थी. इसके अलावा उन्हें परिवार को साथ लाने की इजाजत भी मिली थी.

जर्मन चुनाव में कहां खड़े हैं भारतीय मूल के लोग

04:23

This browser does not support the video element.

जर्मन भाषा है अच्छी तरह घुलने-मिलने और संतोष की चाबी

फरवरी 2022 में यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद जर्मनी आए यूक्रेनियों के लिए जीवन में संतुष्टि की भावना 2024 की तुलना में थोड़ी बढ़ गई है. लेकिन, यह अब भी बहुत कम है. यूक्रेन से आई आधी जनता ने कहा कि वो अपनी स्थिति से ज्यादा खुश नहीं हैं.

श्पीस का कहना है कि यह असंतोष खासकर बुजुर्ग महिलाओं में ज्यादा देखा गया, क्योंकि उनके जीवन-साथी अब भी यूक्रेन में हैं और बहुत संभावना है कि वे सक्रिय रूप से युद्ध में शामिल हों.

आप्रवासी विरोधी बिल पास होने पर सीडीयू परेशान, एएफडी मस्त

शोधकर्ताओं ने एक और अहम बात यह बताई कि जो आप्रवासी घर पर जर्मन भाषा कम बोलते हैं, वे ज्यादा असंतुष्ट रहते हैं. यानी, भाषा सफल एकीकरण की एक अहम चाबी है. श्पीस के मुताबिक, ऐसा सिर्फ जर्मनी में ही नहीं है कि आप्रवासी देश में जितना ज्यादा वक्त बिताते हैं, उन्हें रोजगार के उतने बेहतर अवसर मिल पाते हैं और भाषा पर उनकी पकड़ भी बेहतर होती है. उन्होंने कहा, "लोग जितना ज्यादा वक्त बिताते कहीं बिताते हैं, उनकी संतुष्टि उतनी ही बढ़ती जाती है."

सर्वे में जर्मनी छोड़कर जाने वाले लोगों से भी बात की गई. स्पेन, इटली, पुर्तगाल और ग्रीस में बसने वाले जर्मन लोग अपनी जिंदगी से बहुत खुश हैं. श्पीस कहती हैं, "यह यकीनन मौसम की वजह से है, और साथ की कम खर्चों के कारण भी है."

वह आगे कहती हैं, "जो लोग जर्मनी छोड़ते हैं, जरूरी नहीं कि वो यहां असंतुष्ट हों. कई लोग बस नई जगह पर नए अनुभव लेना चाहते हैं."

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें