1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

मांस खाना जलवायु के लिए कितना हानिकारक है?

विल्डे वुल्फ
४ नवम्बर २०२२

जलवायु परिवर्तन से लड़ने में मदद करने के लिए ज्यादा से ज्यादा लोग मांसाहार छोड़कर शाकाहार अपना रहे हैं. हालांकि, बड़ा सवाल यह है कि क्या शाकाहारी भोजन वाकई में पृथ्वी के लिए बेहतर है?

बर्गर
तस्वीर: Simon Belcher/imageBROKER/picture alliance

संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) के मुताबिक, हाल के दशक में वैश्विक स्तर पर मांस की खपत में काफी ज्यादा वृद्धि हुई है. अगर 1960 के दशक के शुरुआती वर्षों से तुलना करें, तो प्रति व्यक्ति मांस की वार्षिक खपत लगभग दोगुनी हो गई है. 60 के दशक में यह खपत प्रति व्यक्ति औसतन 23.1 किलो थी. वहीं, 2019 में यह आंकड़ा बढ़कर 43.2 किलो पर पहुंच गया.

अध्ययन से पता चलता है कि अमीर देशों में मांस की खपत अधिक है. अनुमान के मुताबिक 2022 में वैश्विक स्तर पर प्रति व्यक्ति मांस की खपत बढ़कर 69.5 किलो हो जाएगी. वहीं, विकासशील देशों में यह आंकड़ा 27.6 किलो रहेगा.

जलवायु और स्वास्थ्य के लिए अफ्रीका में मीट खाना छोड़ रहे लोग

ग्रीनहाउस गैसों का बड़ा उत्सर्जक है पशुपालन उद्योगतस्वीर: Rupert Oberhäuser/dpa/picture alliance

ग्लोबल वार्मिंग को कैसे बढ़ाते हैं पशु?

एफएओ के आंकड़ों के मुताबिक, इंसानी गतिविधियों की वजह से ग्रीनहाउस गैसों का जितना उत्सर्जन होता है उसके 14.5 फीसदी हिस्से के लिए पशुपालन क्षेत्र जिम्मेदार है. इससे न सिर्फ कार्बन डाइऑक्साइड (सीओटू), बल्कि मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड का भी उत्सर्जन होता है. ये दोनों गैसें भी ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाने में सीओटू की तरह ही भूमिका निभाती हैं. हालांकि, ये दोनों सीओटू की तरह लंबे समय तक वातावरण में मौजूद नहीं रहती हैं, लेकिन कुछ समय के लिए ये वातावरण में गर्मी को काफी ज्यादा बढ़ा देते हैं. कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में मीथेन वातावरण को 25 गुना और नाइट्रस ऑक्साइड 300 गुना गर्म कर देती है. अलग-अलग ग्रीनहाउस गैसों के असर की तुलना, कार्बन डाइऑक्साइड के असर के हिसाब से की जाती है.

इतना मीट क्यों खाता है इंसान?

पशुपालन के दौरान सबसे ज्यादा उत्सर्जन पशुओं के चारे के उत्पादन से होता है. यह कुल उत्सर्जन के 58 फीसदी हिस्से के लिए जिम्मेदार है. वहीं, जानवरों की पाचन प्रक्रियाओं के दौरान 31 फीसदी उत्सर्जन होता है. गाय-बैल, भेड़, बकरी और अन्य मवेशी जुगाली करने के दौरान काफी मात्रा में वातावरण में मीथेन छोड़ते हैं.

वहीं, पशुपालन के क्षेत्र में प्रसंस्करण और परिवहन के दौरान सात फीसदी और खाद के भंडारण के दौरान चार फीसदी गैस का उत्सर्जन होता है. पशुपालन के दौरान लगभग 87 फीसदी मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड का उत्सर्जन मवेशियों की वजह से होता है, क्योंकि उनकी संख्या काफी ज्यादा होती है.

शाकाहारी खाना खाने की सलाह पर स्पेन में राजनीतिक विवाद

ये आंकड़े सभी तरह के पशुओं के पालन से जुड़े हुए हैं. दूसरे शब्दों में कहें, तो इसमें डेयरी फार्मिंग, पनीर, जिलेटिन, और ऊन के उत्पादन के क्षेत्र भी शामिल हैं. उदाहरण के लिए, दूध, मक्खन जैसे डेयरी प्रॉडक्ट के उत्पादन के लिए गायों को पालने से काफी ज्यादा मीथेन का उत्सर्जन होता है. कुल मिलाकर वैश्विक स्तर पर 15 फीसदी ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन पशुपालन से होता है. यह परिवहन क्षेत्र से होने वाले उत्सर्जन के बराबर है.

दुनिया भर में मांस की खपत

क्या मांस न खाने से ग्लोबल वार्मिंग धीमी हो जाती है?

पशुपालन के दौरान ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन के आकलन से हमें पूरी तरह यह नहीं पता चलता कि मांस खाने या न खाने से जलवायु पर क्या प्रभाव पड़ता है. इसलिए, पौधों से मिलने वाले खाद्य पदार्थ और पशुओं से मिलने वाले खाद्य पदार्थ की तुलना करना ज्यादा व्यवहारिक है. नेचर फूड में प्रकाशित 2021 के एक अध्ययन में ऐसा ही किया गया है.

इस अध्ययन में पाया गया कि वैश्विक स्तर पर खाद्य उद्योग से ग्रीनहाउस गैस का जितना उत्सर्जन होता है उसमें पौधों से मिलने वाले खाद्य पदार्थ का हिस्सा सिर्फ 29 फीसदी है. इसके विपरीत, गाय, सुअर और अन्य पशुओं के प्रजनन और पालन के साथ-साथ उनके चारे के उत्पादन से 57 फीसदी गैस का उत्सर्जन होता है.

गायों की डकार पर न्यूजीलैंड में सरकार और किसानों के बीच तकरार

कथित तौर पर खाद्य उद्योग में वैश्विक स्तर पर एक-चौथाई ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन सिर्फ बीफ उत्पादन से होता है. इसके बाद, धान की खेती दूसरे नंबर पर है. इस दौरान सुअर का मांस, मुर्गी पालन, भेड़, मटन और डेयरी प्रॉडक्ट से ज्यादा गैस का उत्सर्जन होता है.

इस अध्ययन में हर खाद्य पदार्थ से होने वाले कुल वैश्विक ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन का विश्लेषण किया गया है. एक विस्तृत तस्वीर तब सामने आयी जब अलग-अलग खाद्य पदार्थों के हर एक किलो के उत्पादन का पर्यावरण पर पड़ने वाले असर का अध्ययन किया गया. अध्ययन से पता चला कि पर्यावरण पर सबसे ज्यादा असर बीफ के उत्पादन से पड़ता है. हर एक किलो बीफ उत्पादन से 99.48 किलो कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन होता है. जबकि, भेड़ का मांस और मटन के उत्पादन के दौरान 39.72 किलो गैस उत्सर्जन होता है.

क्या मीट खाना मुसीबतों की जड़ है?

05:28

This browser does not support the video element.

इसी तरह, सुअर का मांस और पॉलट्री फॉर्म में मुर्गा, मुर्गी और बत्तख जैसे जीवों के एक किलो मांस के उत्पादन में कमश: 12.31 और 9.87 किलो गैस का उत्सर्जन होता है. हालांकि, पनीर के उत्पादन के दौरान 23.88 और मछली के उत्पादन में 13.66 किलो गैस का उत्सर्जन होता है, इसका मतलब साफ है कि ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन इस बात पर निर्भर करता है कि किस मांस का उत्पादन किया जा रहा है और कितनी मात्रा में किया जा रहा है. उदाहरण के लिए, बीफ खाने की तुलना में मुर्गे का मांस खाने पर ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन में कमी आएगी.

पशुओं से मिलने वाले खाद्य पदार्थ की तुलना में पौधों से मिलने वाले खाद्य पदार्थ के उत्पादन में ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन कम होता है. उदाहरण के तौर पर, एक किलो चावल के उत्पादन में 4.45 किलो कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन होता है. यह एक किलो पॉल्ट्री उत्पाद के उत्सर्जन से भी कम है.

इसका मतलब है कि मांस की खपत पूरी तरह बंद करने से कार्बन फुटप्रिंट को कम करने में मदद मिल सकती है. मांस की खपत से हर साल वैश्विक स्तर पर औसतन 1.1 टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन होता है. वहीं, यूरोप में मांस की खपत से औसतन 1.8 टन और उत्तरी अमेरिका में 4.1 टन गैस का उत्सर्जन होता है. आंकड़ों के लिहाज से देखें, तो उत्तरी अमेरिका में मांस की खपत से जितने गैस का उत्सर्जन होता है उतना भारत में रहने वाला एक व्यक्ति दो साल और चार महीने में करता है.

वर्ष 2050 तक कार्बन न्यूट्रल बनने के लिए, धरती पर मौजूद हर व्यक्ति को हर साल दो टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन में कटौती करनी होगी. यह मात्रा लगभग उतना ही है जितना यूरोप में मांस खाने वालों की वजह से उत्सर्जित होती है. बीफ, भेड़ और मटन न खाने से कई अन्य फायदे भी हो सकते हैं. इनके पालन के लिए धान की खेती के मुकाबले 116 गुना ज्यादा जमीन की जरूरत होती है.

यूएनईपी के हालिया अध्ययन के मुताबिक, दुनियाभर में कृषि भूमि के कुल 78 फीसदी हिस्से पर पशुपालन हो रहा है. ऐसे में खेती योग्य भूमि और चारागाह को बढ़ाने के लिए जंगलों को नष्ट करने से पारिस्थितिक तंत्र का ह्रास होता है. साथ ही, कीटनाशकों के इस्तेमाल से जैव विविधता को नुकसान पहुंचता है.

पश्चिम में मांस को टक्कर देता कटहल

04:01

This browser does not support the video element.

निष्कर्ष

कुल मिलाकर बात यह है कि मांस उद्योग वैश्विक स्तर पर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के एक बड़े हिस्से के लिए जिम्मेदार है. यह न सिर्फ ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाता है बल्कि प्रत्यक्ष तौर पर पर्यावरण को भी प्रदूषित करता है. जो लोग बहुत अधिक मांस खाते हैं, वे मांस की खपत को कम करके या पूरी तरह छोड़ कर जलवायु संकट से लड़ने में मदद कर सकते हैं. यहां तक कि बीफ की जगह अन्य मांस खाकर ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन को कम किया जा सकता है.

आप क्या कर सकते हैं?

अगर यूरोप और उत्तरी अमेरिका के लोग पशुओं से मिलने वाले खाद्य पदार्थ और मांस को छोड़कर पौधों से मिलने वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करें, तो अपने वार्षिक ग्रीनहाउस उत्सर्जन में औसतन एक-चौथाई की कटौती कर सकते हैं. हालांकि, जीवन से जुड़े अन्य क्षेत्र भी बड़ी मात्रा में ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं, जैसे कि परिवहन और विमानन क्षेत्र. एक साल में 10 हजार किलोमीटर ड्राइविंग करने से दो टन सीओ2 के बराबर गैस का उत्सर्जन होता है, जो कि यूरोप से न्यूयॉर्क विमान से एक बार आने-जाने के बराबर है. इसी तरह जब आप विमान से यूरोप से एशिया या दक्षिण अमेरिका जाते हैं, तो यह उत्सर्जन दोगुना हो जाता है. 

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें