गाजा पर जर्मनी के रुख पर इस्राएल की चुप्पी के क्या मायने हैं
३० मई २०२५
इस हफ्ते की शुरुआत में, विस्थापित फलीस्तीनी नागरिकों को आश्रय देने वाले एक स्कूल पर इस्राएली हवाई हमलों के बाद, जर्मन चांसलर फ्रीडरिष मैर्त्स ने गाजा में इस्राएल की कार्रवाई की आलोचना की.
जर्मन सरकारी प्रसारक ‘डब्ल्यूडीआर' की ओर से आयोजित यूरोपीय फोरम में सार्वजनिक रूप से प्रसारित साक्षात्कार में उन्होंने कहा, "यह एक मानवीय त्रासदी और राजनीतिक आपदा है. सच कहूं, तो मुझे अब समझ में नहीं आता कि गाजा पट्टी में इस्राएली सेना का लक्ष्य क्या है.” साथ ही, उन्होंने गाजा पट्टी में इस्राएल की बढ़ती सैन्य कार्रवाई और इस्राएल की घेराबंदी की वजह से उत्पन्न मानवीय संकट का जिक्र किया.
मैर्त्स ने इस बात पर भी जोर दिया कि उन्हें जर्मनी के इतिहास की अच्छी तरह जानकारी है और वे आलोचना करते समय सावधानी बरतना चाहते थे. उन्होंने कहा, "लेकिन जब सीमाएं पार हो जाती हैं और अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून का उल्लंघन हो रहा होता है, तो जर्मन चांसलर को इस बारे में कुछ कहना चाहिए.”
अब तक, जर्मनी के किसी भी प्रमुख राजनेता ने गाजा में इस्राएल के चल रहे सैन्य अभियान की आलोचना इतने स्पष्ट तरीके से नहीं की है. जर्मनी में इस्राएली राजदूत रॉन प्रोसोर ने इस पर तुरंत प्रतिक्रिया दी. उन्होंने बीते मंगलवार की सुबह जर्मन सरकारी प्रसारक ‘जेडडीएफ' को बताया, "जब फ्रीडरिष मैर्त्स इस्राएल की आलोचना करते हैं, तो हम बहुत ध्यान से सुनते हैं, क्योंकि वे हमारे मित्र हैं.” प्रोसोर ने दावा किया कि इस्राएल 7 अक्टूबर, 2023 को अपहृत लोगों को बचाने, गाजा के नागरिकों को सहायता प्रदान करने, और गाजा में ‘आतंकवादी शासन' को रोकने का प्रयास कर रहा है.
2023 में हमास ने इस्राएल पर हमला करके 251 लोगों का अपहरण कर लिया था और उस हमले में करीब 1,200 लोग मारे गए थे. इस हमले के जवाब में, इस्राएल गाजा में बड़े पैमाने पर सैन्य अभियान चला रहा है.
अब तक, इस्राएली अभियानों में कम से कम 53,000 फलीस्तीनी मारे गए हैं, जिनमें कई महिलाएं और बच्चे हैं. गाजा की लगभग पूरी आबादी को बार-बार विस्थापित होना पड़ा है. इस्राएल की जारी नाकेबंदी ने फलीस्तीनियों को अकाल के गंभीर खतरे में डाल दिया है. अनुमान है कि वर्तमान में 71,000 बच्चे भुखमरी का सामना कर रहे हैं.
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पिछले साल, इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (आईसीजे) ने एक फैसला सुनाया था जिसमें कहा गया था कि यह मानना ‘मुमकिन' है कि गाजा में इस्राएल नरसंहार कर रहा है.
इस्राएल ने गाजा में स्कूलों, मस्जिदों और अस्पतालों पर लगातार बमबारी की है और दावा किया है कि हमास ने उन्हें कमांडो सेंटर और हथियार डिपो के रूप में इस्तेमाल किया है, लेकिन इसके लिए कोई ठोस सबूत नहीं दिया है. नतीजतन, उत्तरी गाजा के सभी सरकारी अस्पतालों में काम-काज ठप्प हो गया है. बता दें कि जर्मनी, इस्राएल, अमेरिका और अन्य देश हमास को एक आतंकवादी संगठन मानते हैं.
मैर्त्स के शब्दों ने 'राजनीतिक अभिजात वर्ग को झकझोर दिया'
यरुशलम के हिब्रू विश्वविद्यालय में इस्लामी अध्ययन के एसोसिएट प्रोफेसर सिमोन वुल्फगांग फुक्स ने कहा कि यह उल्लेखनीय है कि इस्राएली मीडिया ने मैर्त्स की टिप्पणियों पर रिपोर्ट की है, लेकिन इस मामले पर शायद ही कोई औपचारिक टिप्पणी या सरकारी प्रतिक्रिया जारी की गई हो.
उन्होंने कहा, "शायद इसकी एक वजह यह है कि आलोचना करने के बावजूद, फ्रीडरिष मैर्त्स ने यह साफ-साफ नहीं बताया कि इसके क्या नतीजे हो सकते हैं.”
उन्होंने कहा कि कई यूरोपीय देशों ने गाजा में इस्राएल के सैन्य कार्रवाई की कड़ी आलोचना की है, लेकिन चांसलर मैर्त्स अब तक काफी संयमित रहे हैं. ऐसा लगता है कि जारी चुप्पी इस बात का संकेत है कि उनकी टिप्पणियों ने राजनीतिक अभिजात वर्ग को झकझोर दिया है और इस्राएल ने उनकी कही बातों को बहुत गंभीरता से लिया है.
इस्राएल सिर्फ ‘रूढ़िवादी, दक्षिणपंथी सहयोगियों' की बात सुनने को तैयार है
मैर्त्स की टिप्पणियों के जवाब में, इस्राएल के उदारवादी दैनिक अखबार ‘हारेत्स' ने अपनी राय छापी है जो आमतौर पर नहीं दिखती. डेविड इस्साकरॉफ ने मंगलवार को लिखा, "इस्राएली प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू गाजा में इस्राएल के युद्ध की आलोचना करने वाले वामपंथी नेताओं पर हमेशा यहूदी विरोधी घरेलू ताकतों के आगे झुकने का आरोप लगा सकते हैं, लेकिन उनके पास जर्मन चांसलर फ्रीडरिष मैर्त्स जैसे इस्राएल समर्थकों के बारे में सार्वजनिक रूप से कहने के लिए बहुत कम या कुछ भी नहीं है.”
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उन्होंने निष्कर्ष निकाला, "ऐसा लगता है कि सिर्फ दक्षिणपंथी नेताओं का ही प्रधानमंत्री पर कोई प्रभाव है, क्योंकि वह गाजा में ऐसा युद्ध कर रहे हैं जो राजनीति से प्रेरित है और जिसमें गाजा के स्वास्थ्य अधिकारियों के हिसाब से हर दिन दर्जनों फलीस्तीनी मारे जा रहे हैं.”
यह तरीका राजदूत प्रोसोर के सोच-समझकर दिए गए जवाब में भी दिखाई देता है. जैसा कि इस्साकरॉफ ने लिखा, "प्रोसोर आम तौर पर इस्राएल की किसी भी आलोचना को यहूदी-विरोधी कहते हैं. उनका शांत रहना एक कड़वी सच्चाई दिखाता है कि इस्राएल सिर्फ अपने रूढ़िवादी, दक्षिणपंथी सहयोगियों की बात सुनने को तैयार है.”
मैर्त्स की बात का हो सकता है असर
जर्मन इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल एंड सिक्योरिटी अफेयर्स में इस्राएली मामलों के विशेषज्ञ पीटर लिंटल का मानना है कि इस्राएल सरकार ने मैर्त्स की टिप्पणियों को अच्छे से सुना है. इस संदर्भ में, उन्होंने यूरोपीय संघ के साथ इस्राएल के व्यापार समझौते की ओर भी इशारा किया, जिसे यूरोपीय संघ के सदस्य देशों ने समीक्षा के लिए रखा है. यह व्यापार समझौता दोनों देशों के बीच आर्थिक भागीदारी को मजबूत करने के लिए है और इसके लिए दोनों भागीदारों को मानवाधिकारों का पालन करना आवश्यक है.
विशेषज्ञ ने कहा कि यूरोपीय संघ के साथ इस्राएल के व्यापार संबंधों पर अब सवाल उठने से इस्राएल पर गहरा असर पड़ा है. उन्होंने कहा कि यही बात अमेरिकी सरकार और कई अमेरिकी सीनेटरों के बढ़ते दबाव पर भी लागू होती है जो आमतौर पर इस्राएल के समर्थक रहे हैं.
लिंटल ने कहा, "मुझे लगता है कि ये जो बड़ी तस्वीर है, यही सबसे जरूरी है. इस माहौल में, जर्मनी ने जिस तरीके से अपनी बात कही है वह जरूर सुना जाएगा.
फुक्स का भी मानना है कि मैर्त्स की टिप्पणी काफी मायने रखती है, क्योंकि कई इस्राएली इस बात से काफी परेशान हैं कि उनका देश धीरे-धीरे अकेला पड़ता जा रहा है.
उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि बहुत से इस्राएली इस बात से डरते हैं कि उनका देश वर्तमान में इतनी अधिक प्रतिष्ठा खो रहा है कि अब इसे पश्चिमी मूल्यों वाले समुदाय का हिस्सा नहीं माना जा सकता है. अधिकांश इस्राएली महसूस करते हैं कि वे साफ तौर पर पश्चिमी देशों से जुड़े हुए हैं. वे इसका हिस्सा बनना और बने रहना चाहते हैं.”
क्या नेतन्याहू दबाव महसूस कर रहे हैं?
लिंटल का मानना है कि मैर्त्स की आलोचना गाजा में इस्राएल के युद्ध को नहीं रोक पाएगी. उन्होंने कहा कि इस बीच मुख्य सवाल यह है कि प्रधानमंत्री नेतन्याहू अपने सहयोगियों से कितना दबाव महसूस कर रहे हैं.
वह कहते हैं, "कुछ कैबिनेट सदस्य गाजा पर फिर से कब्जा करने के लिए दबाव डाल रहे हैं और नेतन्याहू राजनीतिक रूप से उन पर निर्भर हैं. सवाल यह है कि क्या अभी जो हो रहा है, उसे बदला जा सकता है.”
इस बारे में हारेत्स के लेख में उल्लेख किया गया है कि जर्मन नेताओं को यह कहना बंद कर देना चाहिए कि इस्राएल का अस्तित्व बनाए रखना उनकी जिम्मेदारी है.
इस्साकरॉफ ने लिखा, "उनकी असली जिम्मेदारी तो यह है कि वे जो हो रहा है उस पर सवाल उठाएं, खासकर जब जर्मनी का सहयोग है. इस्राएल के दोस्त, मैर्त्स को या तो सिर्फ इंस्टाग्राम पर मशहूर होने से मतलब रखना चाहिए या फिर गाजा में फलीस्तीनी बच्चों की भयानक मौत को रोकने के लिए पूरी कोशिश करनी चाहिए, जिसे नेतन्याहू ने अभी जल्दी रोकने का कोई इरादा नहीं दिखाया है.”