जलवायु परिवर्तन की वजह से गंभीर हो रही आवास संकट की स्थिति
२५ अप्रैल २०२५
पूरी दुनिया में घरों की कीमतें तेजी से बढ़ रही हैं. जलवायु परिवर्तन की वजह से आने वाली आपदाएं इस स्थिति को और गंभीर बना रही हैं. ऐसे में हमारे पास क्या उपाय है?
पूरी दुनिया में घरों की कीमतें तेजी से बढ़ रही हैं. जलवायु परिवर्तन की वजह से आने वाली आपदाएं इस स्थिति को और गंभीर बना रही हैं. ऐसे में हमारे पास क्या उपाय है?तस्वीर: Pond5 Images/IMAGO
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इस साल की शुरुआत में लॉस एंजिल्स के जंगलों में भीषण आग लगी थी. हजारों घर जलकर खाक हो गए थे. इस आपदा के कुछ महीनों बाद, घर के लिए ज्यादा कीमत वसूलने के कारण कैलिफोर्निया के अधिकारियों ने मकान मालिकों पर सख्ती बरतना शुरू कर दिया है. हालांकि, यह कोई नया चलन नहीं है, बल्कि जलवायु परिवर्तन की वजह से हुई बड़ी तबाही से उबर रहे शहरों में घरों की कीमतों का तेजी से बढ़ना एक आम बात हो गई है.
यह चलन पूरी दुनिया में पहले से जारी आवास संकट को और बढ़ा रहा है. तेजी से बढ़ते शहरीकरण, निवेश कंपनियों के बीच प्रॉपर्टी खरीदने की होड़, महंगाई और आसमान छूती निर्माण लागत के कारण दुनिया भर में बहुत से लोगों के लिए घर खरीदना मुश्किल हो गया है.
कैलिफोर्निया में जंगल की आग बुझाने वाली गुलाबी चीज क्या है?
अमेरिका के कैलिफोर्निया में लगी आग ने जान और माल को काफी नुकसान पहुंचाया है. आग को बुझाने के लिए सरकार पिंक फायर रेटार्डेंट का इस्तेमाल कर रही है. इस पर कई पर्यावरणविद आपत्ति जता रहे हैं.
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क्या होता है पिंक फायर रेटार्डेंट?
फायर रेटार्डेंट अग्निरोधी रसायनों का मिश्रण है जिसका इस्तेमाल आग को बुझाने या उसे फैलने से रोकने के लिए किया जाता है. अग्निरोधी रसायन अलग अलग प्रकार के होते हैं. अमेरिका में जंगल की आग से निपटने के लिए, अधिकारी आमतौर पर फॉस-चेक का उपयोग करते हैं, जिसमें ज्यादातर अमोनियम फॉस्फेट-आधारित घोल होता है
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कैसे काम करता है फॉस-चेक?
आमतौर पर, यह अमोनियम पॉलीफॉस्फेट जैसे साल्ट से बना होता है, जो पानी की तरह आसानी से भाप में तब्दील नहीं होता है और लंबे समय तक रहता है. आग के दौरान पेड़-पौधे पर इसका छिड़काव होता है. इसकी परत पेड़ों पर चढ़ जाती जिससे ऑक्सीजन की सप्लाई कट जाती है और ऐसे पेड़ नहीं जलते.
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गुलाबी क्यों है यह स्प्रे?
रंग आमतौर पर इसमें अलग से मिलाया जाता है ताकि दमकलकर्मी इसे साफ तौर पर देख सकें. इससे उन्हें फायर रेटार्डेंट के चारों ओर अग्नि रेखाएं बनाने में मदद मिलती है, जिससे जान और माल दोनों को ही आग से नुकसान कम होता है. खास गुलाबी रंग इसलिए इस्तेमाल होता है क्योंकि वो देखने में सुंदर लगता है.
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नदियों और जंगलों के प्रदूषण पर असर
पर्यावरणविदों का मानना है कि विमानों से इस स्प्रे को फेंकना आग पर बेअसर और महंगा है. इसके साथ ही इससे पर्यावरण पर भी बुरा असर पड़ता है. यूनिवर्सिटी ऑफ सदर्न कैलिफोर्निया में 2024 में हुए एक शोध में बताया गया था कि फॉस-चेक में जहरीले धातु मौजूद हैं और 2009 से अब तक इस स्प्रे की वजह से पर्यावरण में लगभग 4 लाख किलो केमिकल जा चुका है.
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स्प्रे में कैंसर पैदा करने वाले धातु भी शामिल
स्प्रे में मौजूद जहरीले धातुओं में क्रोमियम और कैडमियम शामिल हैं जो इंसानों में कैंसर के साथ ही किडनी और लीवर की बीमारियों का कारण बन सकते हैं. हालांकि, असल मुद्दा यहां पर्यावरण पर इसका असर है, खासकर जब यह धातु पानी में मिल जाते हैं. मिसाल के तौर पर, यह पदार्थ पानी में जानवर और पेड़ पौधों को नष्ट कर सकते हैं.
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कितना कारग है स्प्रे?
फॉस-चेक कितना प्रभावशाली है इस पर अब भी मतभेद है. यह आग बुझाने में इस्तेमाल होने वाले कई तरीकों में से एक है. आग की लपटें बुझ जाने के बाद पता नहीं चलता कि आग असल में किस कारण से बुझी. न्यू यॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार वन वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में पाया है कि हवा संबंधित तरीके कितने कारगर होंगे यह उस जगह की ढलान, ईंधन का प्रकार, इलाके और मौसम जैसी पर्यावरणीय स्थितियों पर निर्भर है.
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आंकड़े क्या कहते हैं?
आंकड़ों से पता चलता है कि अमेरिका में 2009 और 2021 के बीच संघीय, सरकारी और निजी भूमि पर 44 करोड़ गैलन से अधिक रिटार्डेंट छिड़का गया था. एनवाईटी रिपोर्ट में कहा गया है कि इस आंकड़े का उपयोग करते हुए यूएससी अध्ययन ने अनुमान लगाया कि 2009 और 2021 के बीच, 400 टन से अधिक भारी धातुओं को पर्यावरण में छिड़का गया.
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पर्यावरणविदों की सरकार और कंपनी से बहस जारी
इन चिंताओं ने पर्यावरण विशेषज्ञों, सरकार और केमिकल बनाने वाली कंपनी पेरीमीटर सॉल्यूशंस के बीच बहस छेड़ दी है. लेकिन जैसे-जैसे वैश्विक तापमान बढ़ रहा है, जंगल की आग के हादसे और भी अधिक और बढ़ने की आशंका है. इससे केवल हवा में छिड़काव वाले अग्निरोधी उपायों का इस्तेमाल बढ़ेगा ही.
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सामाजिक नीति पर केंद्रित अमेरिकी थिंक टैंक ‘अर्बन इंस्टीट्यूट' में शोधकर्ता सारा मैकटार्नाघन कहती हैं, "यह कोई ग्रामीण या शहरी समस्या नहीं है और ना ही घर के मालिक या किराएदार से जुड़ी समस्या है. जिन इलाकों में घर की कीमतें और किराए आय की तुलना में काफी तेजी से बढ़ रहे हैं वहां सभी लोग इस समस्या को महसूस कर रहे हैं.”
यह ऐसी समस्या है जो किसी एक जगह तक सीमित नहीं है. दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ते किराए वाले आधे शहर ग्लोबल साउथ यानी दक्षिणी गोलार्ध के देशों में हैं.
चरम मौसम की घटनाओं से बढ़ रही समस्या
चरम मौसम की घटनाएं औरप्राकृतिक आपदाएं, जैसे कि तूफान, बाढ़, जंगल की आग वगैरह इस समस्या को और ज्यादा बढ़ा रही हैं. इन घटनाओं के बढ़ने में इंसानी गतिविधियां भी काफी हद तक जिम्मेदार हैं. जैसे, जीवाश्म ईंधन के बढ़ते इस्तेमाल से चरम मौसम की घटनाएं और प्राकृतिक आपदाएं बढ़ती जा रही हैं.
ऐसी आपदाओं के कारण खतरे वाले इलाकों को लेकर लोगों का नजरिया बदल रहा है. मियामी जैसे तटीय शहरों में, तूफानों के डर से प्रॉपर्टी के सट्टेबाज अब समुद्र के किनारे वाली संपत्तियों से ध्यान हटा रहे हैं, क्योंकि बढ़ती गर्मीके कारण समुद्र का स्तर बढ़ रहा है.
नीदरलैंड्स में डेल्फ्ट यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी में जलवायु से जुड़े आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ जैक टेलर ने कहा, "तटीय इलाकों में रहने वाले अमीर लोग अब ऊंचाई वाले इलाकों की ओर रुख कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें बाढ़ की चपेट में आने का डर सता रहा है. ऐसे में, निवेश के पैटर्न में हो रहा यह बदलाव कम आय वाले निवासियों को विस्थापित होने पर मजबूर कर रहा है.”
जंगलों की आग के बाद अब ग्रीस बाढ़ की ऐसी मार
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मियामी बीच जैसे इलाकों में समुद्र के किनारे की प्रॉपर्टी अभी भी लोगों को पसंद है, लेकिन लिटिल हैती जैसे कम आय वाले अंदरूनी इलाकों में कीमतें शहर के बाकी हिस्सों से ज्यादा तेजी से बढ़ रही हैं. मियामी के ऊंचे इलाके की प्रॉपर्टी की कीमत अमेरिका में सबसे तेजी से बढ़ रही है. विशेषज्ञ इसे ‘क्लाइमेट जेंट्रीफिकेशन' कहते हैं. जेंट्रीफिकेशन को दूसरे शब्दों में कहें, तो किसी पिछड़े हुए शहरी क्षेत्र में अमीर लोगों के आने से वहां की स्थिति बदलना.
टेलर ने कहा, "मैंने कुछ रियल एस्टेट डेवलपर्स से बात की. उन्होंने मुझे बताया कि वे लंबी अवधि के लिए प्रॉपर्टी खरीदते समय ऊंचाई के बारे में जरूर सोचते हैं. इसलिए, हम जानते हैं कि उन समुदायों पर विस्थापन का दबाव कुछ हद तकजलवायु परिवर्तन से जुड़ी चिंता की वजह से बढ़ रहा है.”
आपदा के बाद और भी महंगे हो जाते हैं घर
आपदाएं आने पर मौजूदा घरों को काफी ज्यादा नुकसान पहुंचता है. इससे किराये के लिए उपलब्ध घरों में कमी आ सकती है. यह असर सिर्फ आपदा प्रभावित शहर तक ही सीमित नहीं रहता, बल्कि कभी-कभी दूसरे शहरों में भी इसका व्यापक असर देखने को मिलता है.
लॉस एंजिल्स के जंगलों में लगी भयावह आग की वजह से 16,000 से ज्यादा इमारतें जल गईं, जिनमें से कई रिहायशी घर थे. इससे तुरंत उस जगह पर असर पड़ा जो पहले से ही देश की सबसे महंगी जगहों में से एक थी और जहां घर मिलना मुश्किल था.
मैकटार्नाघन ने कहा, "हम अक्सर सोचते हैं कि जब आपदा के बाद घर वापस बन जाता है तो सब ठीक हो जाता है, लेकिन यह नहीं देखते कि क्या वे घर खरीदने लायक हैं यानी किफायती हैं या नहीं? क्या उनमें वही लोग रह रहे हैं जो पहले रह रहे थे?”
न्यू ऑरलियन्स में, 2005 में कैटरीना तूफान के बाद घरों की कीमतों में 33 फीसदी की बढ़ोतरी हुई. इस तूफान के कारण 125 अरब डॉलर का नुकसान हुआ और 1,392 लोगों की मौत हो गई थी. 2017 में मारिया तूफान के बाद प्यूर्टो रिको में घरों की कीमत 22 फीसदी बढ़ गई थी.
जलवायु को बचाने के लिए पांच आइडिया
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मारिया हाल के अमेरिकी इतिहास में सबसे घातक तूफान है, जिसकी वजह से सिर्फ प्यूर्टो रिको में करीब 3,000 लोगों की जान गई और लगभग 90 अरब डॉलर का नुकसान हुआ. जब दोबारा घरों को बनाया गया और इलाके को बसाया गया, तो आपदा के बाद कीमतें बहुत बढ़ गईं. इससे यह देखने को मिला कि जो लोग पहले वहां रह रहे थे उनमें से कई दूसरी जगहों पर चले गए.
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बोझ लग रहा बीमा खर्च
दुनिया भर में 1.2 अरब लोग ऐसे इलाकों में रह रहे हैं जो जलवायु खतरे के प्रति बेहद संवेदनशील हैं. ऐसे लोगों के लिए बीमा का खर्च भी बढ़ता जा रहा है.
अमेरिका में, घरों के बीमा का सालाना औसत खर्च 2001 से 2021 के बीच लगभग तीन गुना बढ़कर 536 डॉलर से 1,411 डॉलर हो गया. इसका बड़ा कारण पृथ्वी के गर्म होने से जुड़ी आपदाओं का बढ़ता खतरा है. जर्मनी में बाढ़ की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं. ऐसे में, अगले दशक में घर के बीमा का प्रीमियम दोगुना होने का अनुमान है. ऑस्ट्रेलिया में भी जंगल की आग और बाढ़ की घटनाएं अक्सर देखने को मिल रही हैं.
वहां 15 फीसदी परिवारों को ‘घर के बीमा का बोझ' महसूस होता है. इसका मतलब है कि वे अपनी साल भर की कमाई का चार हफ्ते से ज्यादा पैसा बीमा में देते हैं.
भारत में बढ़ती घरों की कीमतें
रॉयटर्स के एक सर्वे के अनुसार, भारत में घरों की कीमतें लगातार बढ़ेंगी, खासतौर पर अमीर लोगों की लक्जरी प्रॉपर्टीज की मांग के चलते. दिल्ली में एक साल में कीमतें 30 फीसदी तक बढ़ चुकी हैं.
तस्वीर: Hindustan Times/Imago Images
भारत में और महंगे होंगे घर
भारत में पिछले साल घरों की कीमतों में औसतन 4.3 फीसदी की वृद्धि हुई थी, और इस साल 7.75 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान है. 18 प्रॉपर्टी मार्किट विशेषज्ञों के बीच सर्वे के मुताबिक अगले दो साल में कीमतें 6 से लेकर 6.25 प्रतिशत तक बढ़ सकती हैं.
तस्वीर: jayantbahel/Pond5/IMAGO
दिल्ली में सबसे ज्यादा वृद्धि
साल दर साल की तुलना में, दिल्ली और एनसीआर में घर की कीमतों में सबसे अधिक 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई. इसके बाद बेंगलुरु में 28 प्रतिशत, अहमदाबाद और पुणे में 13 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई. अन्य 8 बड़े शहरों और मेट्रोपॉलिटन क्षेत्रों में यह वृद्धि 10 प्रतिशत के स्तर से काफी नीचे रही.
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लक्जरी बनाम किफायती आवास
भारत में लक्जरी घरों की मांग किफायती घरों से कहीं ज्यादा बढ़ रही है, और नए किफायती घरों की सप्लाई नहीं हो रही है. भारत के अमीर लोग जिनके पास आमतौर पर दो या उससे अधिक घर होते हैं, इस मांग को बढ़ा रहे हैं.
तस्वीर: Hindustan Times/Imago Images
ब्याज दरों का असर नहीं
आरबीआई द्वारा 2.5 फीसदी तक ब्याज दरें बढ़ाने के बावजूद, भारत के प्रॉपर्टी बाजार पर इसका असर नहीं पड़ा है. अमीर लोगों ने कीमतों को और ऊपर धकेल दिया है. करीब 12 प्रतिशत अमीर इस साल एक और घर खरीदने की योजना बना रहे हैं.
तस्वीर: Indranil Aditya/NurPhoto/picture alliance
किफायती घर खरीदने की चुनौती
पहली बार घर खरीदने वालों के लिए किफायती घरों को लेकर विशेषज्ञों की राय बंटी हुई है. 10 लोगों का मानना है कि यह स्थिति सुधरेगी, जबकि 8 का कहना है कि यह और खराब होगी, खासतौर पर औसत आय वालों के लिए.
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आय बनाम घरों की कीमतें
10 लाख रुपये से कम आय वालों के लिए बड़े शहरों में घर खरीदना मुश्किल है, जबकि नौकरियों के अवसर इन्हीं शहरों में ज्यादा हैं. इससे किफायती घर दूर-दराज के इलाकों में चले जाते हैं, जहां से काम पर आना-जाना व्यावहारिक नहीं होता.
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किरायों में वृद्धि
विशेषज्ञों के अनुसार, अगले साल शहरी घरों के किराए में 6.5 से 10 प्रतिशत तक की वृद्धि होगी, जो उपभोक्ता महंगाई दर से ज्यादा होगी. अगले दो वित्तीय वर्षों में महंगाई दर 4.5 फीसदी रहने का अनुमान है.
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किफायती आवास उपलब्ध कराने का उपाय
मैकटार्नाघन का तर्क है कि ज्यादा घर बनने से आपदा के बाद अचानक बढ़ने वाली मांग से निपटने में मदद मिलेगी. उन्होंने कहा कि इससे आपदा से प्रभावित लोगों को ‘ज्यादा घर उपलब्ध होने' पर फायदा मिलेगा.
घरों की संख्या बढ़ाने से किराएदारों और घर खरीदारों के लिए ज्यादा विकल्प उपलब्ध होंगे. इससे घर से जुड़ी महंगाई की समस्या को हल करने में मदद मिलेगी. हालांकि, इन तमाम उपायों के बावजूद जलवायु परिवर्तन कुछ ऐसी अलग मुश्किलें लाता है जिन्हें सिर्फ ज्यादा घर बना देने से हल नहीं किया जा सकता.
मैकटार्नाघन ने कहा, "हमारे घरों के निर्माण के तरीके को बदलने की बहुत ज्यादा जरूरत है ताकि उनसे कार्बन कम निकले और वे जलवायु के खतरों के प्रति भी कमजोर ना हों.”
इन शहरों में तो किराया ही पसीने छुड़ा देता है
लंदन, न्यूयॉर्क, म्यूनिख या सिंगापुर, इन शहरों में नौकरी करना आसान है, लेकिन रहना मुश्किल. किराया ही कमर तोड़ देता है. देखिए किराये के लिहाज से सबसे मंहगे शहर.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Di Meo
रोम, इटली
सिंगल बेडरूम अपार्टमेंट का किराया 700 से 1,100 डॉलर.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Di Meo
टोक्यो, जापान
वन बेडरूम अपार्टमेंट का किराया 700 से 1,150 डॉलर.
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म्यूनिख, जर्मनी
एक बेडरूम अपार्टमेंट का किराया 800 से 1,200 डॉलर.
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पेरिस, फ्रांस
वन बेडरूम अपार्टमेंट का किराया 870 से 1,200 डॉलर.
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ओस्लो, नॉर्वे
वन बेडरूम अपार्टमेंट का किराया 1,000 से 1400 डॉलर.
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दुबई, यूएई
एक बेडरूम अपार्टमेंट का किराया 1,200 से 2,000 डॉलर.
तस्वीर: picture-alliance
सिंगापुर, सिंगापुर
एक बेडरूम अपार्टमेंट का किराया 1,300 से 2,000 डॉलर.
तस्वीर: picture-alliance
हांग कांग
वन बेडरूम अपार्टमेंट का किराया 1,400 से 2,200 डॉलर.
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लंदन, ब्रिटेन
वन बेडरूम अपार्टमेंट का किराया 1,500 से 2,200 डॉलर.
तस्वीर: picture-alliance/Prisma/C. Bowman
न्यूयॉर्क, अमेरिका
एक बेडरूम अपार्टमेंट का किराया 2,000 से 3,000 डॉलर.
तस्वीर: Reuters/L. Jackson
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शहर को इस तरह से बसाने की योजना बनानी चाहिए कि घनी आबादी वाले घर कम खतरे वाली जगहों पर बनें. इसके अलावा, जलवायु को ध्यान में रखते हुए पुराने घरों को ठीक कराना, आपदाओं से बचाने में मदद कर सकता है. जैसे, आग से बचाने वाली छतें या तूफान वाले इलाकों में मजबूत दीवारें बनाना.
जैक टेलर का तर्क है कि हमारे घर को बाढ़ या तूफान से बचाना एक काम है. दूसरा काम यह है कि सभी लोगों को किफायती घर मिले. वहीं, जलवायु परिवर्तन की वजह से आने वाली आपदाएं भी लगातार बढ़ती जा रही हैं. ऐसे में हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि ये तीनों अलग-अलग काम हैं, बल्कि ये सभी एक ही बड़ी समस्या के अलग-अलग हिस्से हैं जिन्हें हमें मिलकर हल करना है.
उन्होंने कहा, "हमें यह साफ-साफ सोचना होगा कि हम कैसी दुनिया में जीना चाहते हैं. हमें क्या बचाना है और किसमें पैसा लगाना है? सुरक्षित और किफायती घर हमारे लिए कितना मायने रखते हैं? अगर हमें अपने तौर-तरीकों को बदलना है ताकि हम इन खतरों का सामना कर सकें, तो हमें इस बारे में विचार करना पड़ेगा.”