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समाजजापान

जापान कैसे करता है दूसरे विश्व युद्ध के इतिहास का सामना?

१९ अगस्त २०२३

जापान ने द्वितीय विश्व युद्ध में आत्मसमर्पण के 78 वर्ष पूरे कर लिए हैं. मारे गए सैनिकों की याद के साथ वह युद्धकालीन अत्याचारों के इतिहास को याद करने को मजबूर है. यासुकुनी तीर्थ का एक स्मारक अक्सर विवादों में रहता है.

दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जापान के सैनिक इसी तरह की वर्दियों में दिखते थे. आज 78 साल बाद उनकी पुश्तें उन्हें श्रद्धांजलि देने जाती हुईं.
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जापान के सैनिक इसी तरह की वर्दियों में दिखते थे. आज 78 साल बाद उनकी पुश्तें उन्हें श्रद्धांजलि देने जाती हुईं.तस्वीर: Eugene Hoshiko/AP/picture alliance

केन काटो हर साल कई बार मध्य टोक्यो में यासुकुनी तीर्थ स्थल पर जाते हैं. उनका कहना है कि ऐसा वो अपने दादाजी को ‘हैलो कहने' के लिए करते हैं. 15 अगस्त को, द्वितीय विश्व युद्ध के अंत में जापान के आत्मसमर्पण की 78वीं वर्षगांठ पर भी, काटो ने अपने दादा के प्रति सम्मान व्यक्त किया. यासुकुनी, जापान की राजधानी टोक्यो के मध्य में इंपीरियल पैलेस की खाई के बगल में स्थित एक विशाल शिंटो तीर्थ स्थल है. 1869 में स्थापित यह स्मारक करीब 25 लाख उन पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को समर्पित है जो जापान के युद्धों में मारे गए थे. इस स्थल पर जिन जापानियों को याद किया गया उनमें द्वितीय विश्व युद्ध के समय के वे नेता भी शामिल हैं जिन्हें युद्ध अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया था. यासुकुनी तीर्थ को जापान की उस सैन्य आक्रामकता के इतिहास के प्रतीक के रूप में देखा जाता है, जिसके लिए उसे अक्सर माफी मांगनी पड़ती है. 1945 के आत्मसमर्पण की सालगिरह पर हजारों लोग इस तीर्थस्थल पर आते हैं. हालांकि ट्रॉपिकल तूफान की वजह से इस साल हुए स्मारक समारोहों में सामान्य से कम लोग शामिल हुए. फिर भी समारोह में अर्ध-सैन्य वेशभूषा में परिवार के सदस्यों, विधवाओं और राष्ट्रवादियों ने बड़े पैमाने पर हिस्सा लिया.

चक्रवाती तूफान के बावजूद लोग श्रद्धांजलि देने के लिए जमा हुए. तस्वीर: Eugene Hoshiko/AP/picture alliance

पूर्व सैनिकों ने दी श्रद्धांजलि

कई पूर्व सैनिकों ने भी उन लोगों को श्रद्धांजलि दी जो द्वितीय विश्व युद्ध के युद्ध क्षेत्र से कभी वापस नहीं आए. श्रद्धांजलि देने वालों में कुछ ने द्वितीय विश्व युद्ध की शाही सेना की वर्दी पहन रखी थी. पूर्व सैनिक एक-एक करके धर्मस्थल के मुख्य हॉल के पास पहुंचे, सिर झुकाया, ताली बजाई और एक छोटी प्रार्थना की. अन्य लोग द्वितीय विश्व युद्ध की जापानी पोशाक वाली वर्दी पहनकर समारोह में शामिल हुए. काटो के दादाजी ने पूरे युद्ध के दौरान जापानी सेना के लिए एक अनुवादक के रूप में काम किया, जब तक कि उन्हें 1945 में फिलीपींस के जंगलों में मलेरिया नहीं हो गया. उसके बाद उन्हें सिंगापुर ले जाया गया और जापान के आत्मसमर्पण से कुछ समय पहले उनकी मृत्यु हो गई. डीडब्ल्यू से बातचीत में काटो कहते हैं, "मैं उनकी तस्वीर के सामने खड़े होने और थोड़ी देर प्रार्थना करने के लिए नियमित रूप से वहां जाता हूं. मेरे लिए यह महत्वपूर्ण है कि मैं वहां जाऊं और उन्हें याद करूं.”

सैन्य कपड़ों पहन यासुकुनी श्राइन में दाखिल होते जापानी.तस्वीर: Eugene Hoshiko/AP/picture alliance

युद्धपीड़ितों ने धर्मस्थल को लेकर नाराजगी जताई

टोक्यो के रहने वाले काटो एक रूढ़िवादी व्यवसायी हैं. उन्हें इस बात पर बिल्कुल भी आश्चर्य नहीं हुआ कि प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा ने इस वर्ष एक बार फिर यासुकुनी श्राइन के स्मारक समारोहों में भाग नहीं लिया. इसके बजाय किशिदा ने टोक्यो के बुडोकन हॉल में वर्षगांठ की याद में आयोजित एक समारोह में भाग लिया. किशिदा ने कहा,"शांति में सक्रिय योगदान के अभियान के तहत, जापान अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ जुड़ने और दुनिया के सामने आने वाली विभिन्न चुनौतियों को हल करने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करने के लिए प्रतिबद्ध है. जापान युद्ध की त्रासदी को दोबारा न दोहराने के अपने संकल्प पर कायम रहेगा.”

हालांकि जापान में पहले के प्रधानमंत्री यासुकुनी का दौरा करते रहे हैं, खासकर वसंत और शरद ऋतु पर होने वाले त्योहारों में. इसकी चीन के साथ ही उत्तर और दक्षिण कोरिया ने भी तीखी निंदा की है, जिनके नागरिकों को पिछली शताब्दी के शुरुआती दशकों में जापानी औपनिवेशिक शासन के तहत काफी प्रताड़ना झेलनी पड़ी थी. यासुकुनी में उन एक हजार युद्ध अपराधियों को भी श्रद्धांजलि दी जाती है जो पैसिफिक थियेटर में किए गए कुछ सबसे भयानक अत्याचारों के लिए जिम्मेदार थे. इनमें मित्र राष्ट्रों की ओर से दोषी ठहराए गए और फांसी पर लटकाए गए 14 ‘क्लास ए' युद्ध अपराधी भी शामिल थे.

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापानी साम्राज्य के सैन्य शासन ने पूरे एशिया प्रशांत क्षेत्र में लाखों लोगों की हत्या की थी. कुछ जानकारों का अनुमान है कि जापानी सैनिकों ने एक करोड़ से ज्यादा लोगों की हत्या की थी. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापानियों ने जो अत्याचार किए थे उनमें सामूहिक बलात्कार, यौन दासता, युद्धबंदियों की हत्या और भुखमरी, जैविक हथियारों के प्रयोग और बड़ी संख्या में नागरिकों की हत्याएं शामिल थीं. चीन का कहना है कि साल 1937 के नानजिंग नरसंहार में जापानी सैनिकों ने तीन लाख चीनी नागरिकों को मार डाला था (युद्ध के बाद मित्र देशों के ट्राइब्यूनल ने मरने वालों की संख्या 1.42 लाख बताई थी). हालाँकि, कुछ रूढ़िवादी जापानी राजनेता और विद्वान इस बात से इनकार करते हैं कि कोई नरसंहार हुआ भी था. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान में भी 25-30 लाख लोगों की मौत हुई थी जिनमें नागरिकों और सैनिक दोनों शामिल थे.

प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा ने बुडोकन हॉल में श्रद्धांजलि दी.तस्वीर: Tomohiro Ohsumi/Getty Images

संवेदनशील है जापान का युद्ध इतिहास

अपने भाषण के दौरान, किशिदा ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान एशिया में जापानी आक्रमण की चर्चा नहीं की. 1900 के दशक के पूर्वार्ध में पूरे एशिया में जापानी आक्रमण या उसके पीड़ितों के किसी भी संदर्भ की अनुपस्थिति को आलोचक जापान की युद्धकालीन क्रूरता को मिटाने के एक कदम के रूप में देखते हैं. बुडोकन हॉल समारोह में, जापानी सम्राट नारुहितो ने युद्ध के दर्द और पीड़ा पर ‘गहरा पश्चाताप' व्यक्त किया. उन्होंने कहा,"अपने अतीत पर विचार करते हुए और गहरे पश्चाताप की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए, मैं पूरी उम्मीद करता हूं कि युद्ध की तबाही फिर कभी नहीं दोहराई जाएगी.” फुकुई प्रीफेक्चरल यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के प्रोफेसर योइची शिमादा ने सोमवार को मध्य जापान में अपने घर के करीब एक धर्म स्थल पर जाकर श्रद्धांजलि अर्पित की. वह कहते हैं, "मुझे उम्मीद थी कि किशिदा इस साल यासुकुनी जा सकते हैं, लेकिन मुझे आश्चर्य नहीं है कि वह नहीं गए.” वो कहते हैं, "यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक नेता के इस तरह से सम्मान देने के कृत्य का अन्य देशों ने इतना राजनीतिकरण कर दिया है.”

 

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