शनि के चमकीले छल्लों को अब तक सौरमंडल का अपेक्षाकृत नया हिस्सा माना जाता था. लेकिन अब एक नए शोध में दावा किया गया है कि ये छल्ले शायद शनि के बनने के समय से मौजूद हैं, यानी करीब 4.5 अरब साल पुराने.
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जापानी वैज्ञानिकों की टीम ने कहा है कि शनि के छल्लों की उम्र उससे ज्यादा हो सकती है, जितना अब तक सोचा गया. उनका कहना है कि ये छल्ले "मिट्टी" जमा होने के प्रभाव से बचते रहे हैं, इसलिए इतने साफ और चमकीले दिखते हैं.
कई दशकों से वैज्ञानिकों का मानना था कि शनि के छल्ले 10 करोड़ से 40 करोड़ साल पुराने हैं. यह अनुमान अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के कैसिनी मिशन के डेटा पर आधारित था. 2017 में मिशन खत्म होने से पहले कैसिनी ने दिखाया था कि छल्ले बहुत साफ-सुथरे हैं. उन पर अंतरिक्ष की धूल (माइक्रोमिटीऑरॉइड्स) के टकराने से काला असर नहीं पड़ा था, जो आमतौर पर समय के साथ होना चाहिए.
इस साफ-सफाई के कारण वैज्ञानिकों ने सोचा कि ये छल्ले हाल ही में बने होंगे. अनुमान था कि शायद किसी चंद्रमा या धूमकेतु के टूटने से ये छल्ले बने. लेकिन नए अध्ययन ने इस विचार को चुनौती दी है. ‘नेचर जियोसाइंस‘ में प्रकाशित इस शोध के अनुसार, टोक्यो के इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस के वैज्ञानिक रयुकी ह्योडो और उनकी टीम ने कंप्यूटर सिमुलेशन का इस्तेमाल किया. उनका कहना है कि छल्ले नए नहीं हैं बल्कि "धूल से बचने की क्षमता" के कारण साफ दिखते हैं.
कैसे रहते हैं छल्ले साफ?
शोध के मुताबिक, जब माइक्रोमिटीऑरॉइड्स (रेत के कणों से भी छोटे कण) शनि के छल्लों की बर्फ से टकराते हैं, तो वे वाष्प बन जाते हैं. यह वाष्प तेजी से फैलता है और उससे बने चार्ज्ड कण या तो शनि की ग्रैविटी में समा जाते हैं या अंतरिक्ष में उड़ जाते हैं. इसी वजह से गंदगी छल्लों पर टिकती ही नहीं.
वॉयजर मिशन: ब्रह्मांड का अनोखा मुसाफिर
नासा ने वॉयजर 2 अंतरिक्षयान से संपर्क फिर से बहाल कर लिया है. इससे दोबारा डेटा भी मिलने लगा है. 1977 में वॉयजर अंतरिक्ष यात्रा पर रवाना हुआ था. इसकी पृथ्वी पर कभी वापसी नहीं होगी. जानिए क्यों बहुत खास है वॉयजर मिशन...
तस्वीर: ZUMA/imago images
176 सालों में बनने वाला खास संयोग
1965 में गणनाओं से पता चला कि अगर 1970 के दशक के अंत तक अंतरिक्षयान लॉन्च किया जाए, तो वो आउटर प्लैनेट के चारों विशाल ग्रहों- बृहस्पति, शनि, अरुण और वरुण तक पहुंच सकता है. अंतरिक्षयान को 176 सालों में बनने वाले एक ऐसे अनूठे अलाइनमेंट से मदद मिल सकती है, जिससे वो इन चारों में से हर एक ग्रह के गुरुत्वाकर्षण का इस्तेमाल कर अगले की ओर घूम सकता है. तस्वीर में: 1998 में वॉयजर की ली नेप्च्यून की तस्वीर
तस्वीर: NASA/JPL
जुड़वां यात्री
इसके बाद शुरू हुआ "द मरीनर जूपिटर/सैटर्न 1977" प्रोजेक्ट. मार्च 1977 में मिशन का नाम बदलकर वॉयजर रखा गया. इस मिशन के दो हिस्से हैं, वॉयजर 1 और वॉयजर 2. ये जुड़वां अंतरिक्षयान हैं. योजना के मुताबिक, वॉयजर 2 को वॉयजर 1 के बाद बृहस्पति और शनि ग्रह तक पहुंचना था. इसीलिए पहले रवाना होने के बावजूद इसका क्रम 2 है, 1 नहीं. फोटो में: 14 जनवरी, 1986 को वॉयजर 2 द्वारा ली गई यूरेनस की तस्वीर
तस्वीर: NASA/JPL
1977 में शुरू हुई यात्रा
वॉयजर 2 ने 20 अगस्त, 1977 को फ्लोरिडा के केप केनावरल से सफर शुरू किया. वॉयजर 1 ने भी 5 सितंबर, 1977 को यहीं से यात्रा शुरू की. दुनिया ने अंतरिक्षयान से ली गई पृथ्वी और चांद की जो पहली तस्वीर देखी, उसे 6 सितंबर 1977 को वॉयजर 1 ने ही भेजा था. 40 साल से ज्यादा वक्त से ये दोनों अंतरिक्ष के ऐसे सुदूर हिस्सों की खोजबीन कर रहे हैं, जहां धरती की कोई चीज पहले कभी नहीं पहुंची. फोटो: शनि ग्रह का सिस्टम
तस्वीर: NASA/abaca/picture alliance
बृहस्पति के राज बताए
5 मार्च, 1979 को वॉयजर 1 बृहस्पति के सबसे नजदीक आया. इसी से पता चला कि इस ग्रह पर सक्रिय ज्वालामुखी हैं. यह भी पता चला कि इसका "ग्रेट रेड स्पॉट" असल में एक बड़ा तूफान है और बृहस्पति पर भी बिजली गिरती है. जुलाई 1979 में वॉयजर 2 की भी बृहस्पति से मुलाकात हुई. इसी के मार्फत पहली बार बृहस्पति के छल्लों "रिंग्स ऑफ जूपिटर" की तस्वीर मिली. वॉयजर 2 ने बृहस्पति के चांद "मून यूरोपा" को भी करीब से देखा.
तस्वीर: Science Photo Library/IMAGO
शनि के चंद्रमा
नवंबर 1979 में वॉयजर 1 ने शनि ग्रह के सबसे बड़े चंद्रमा टाइटन को सबसे करीब से देखा. इसी यात्रा में मिले डेटा से पहली बार हमारी पृथ्वी से परे टाइटन पर नाइट्रोजन युक्त वातावरण की जानकारी मिली. इससे यह संभावना मिली कि टाइटन की सतह के नीचे तरल मीथेन और इथेन मौजूद हो सकती है. 1981 में वॉयजर 2 ने भी शनि के कई बर्फीले चंद्रमाओं को देखा.
तस्वीर: NASA/EPA/dpa/picture alliance
सौर मंडल का सबसे ठंडा ग्रह
जनवरी 1986 में वॉयजर 2 के मार्फत इंसानों ने यूरेनस का क्लोज-अप देखा. पहली बार पता लगा कि यहां तापमान माइनस 195 डिग्री सेल्सियस तक चला जाता है. यानी, यूरेनस या अरुण हमारे सौर मंडल का सबसे ठंडा ग्रह है. अगस्त 1989 में वॉयजर 2, नेप्च्यून या वरुण को सबसे पास से देखने वाला पहला अंतरिक्षयान बना. फिर इसने सौर मंडल के बाहर अपनी यात्रा शुरू की. तस्वीर में: वॉयजर 2 की भेजी तस्वीरों से बनाई गई यूरेनस की फोटो
तस्वीर: NASA/JPL/REUTERS
सुदूर अंतरिक्ष का यात्री
17 फरवरी, 1998 को पायनियर 10 को पीछे छोड़कर वॉयजर 1 अंतरिक्ष में सबसे सुदूर पहुंचा मानव निर्मित यान बना. 25 अगस्त, 2012 को वॉयजर 1 इंटरस्टेलर स्पेस में दाखिल हुआ. यह ऐसा करने वाली पहली मानव निर्मित वस्तु थी.
तस्वीर: United Archives/picture alliance
हेलियोस्फीयर के पार
फिर 5 नवंबर, 2018 को वॉयजर 2 हेलियोस्फीयर पार कर इंटरस्टेलर स्पेस में घुसा. हेलियोस्फीयर, सूर्य के सुदूर वातावरण की परत है, जो अंतरिक्ष में एक तरह का सुरक्षात्मक चुंबकीय बुलबुला है. वॉयजर 1 और 2 ने हमारे सौर मंडल के सारे बड़े ग्रहों की खोजबीन की. ये ग्रह हैं: बृहस्पति, शनि, अरुण और वरुण.
गोल्डन रेकॉर्ड: पृथ्वी का पैगाम
दोनों वॉयजर पर एक अद्भुत चीज है; 12 इंच की गोल्ड प्लेटेड कॉपर डिस्क. इसे कहा जाता है, गोल्डन रेकॉर्ड. अगर कभी पृथ्वी से परे जीवन के किसी रूप से इनकी मुलाकात हुई, तो ये गोल्डन रेकॉर्ड उन तक हमारे अस्तित्व का संदेश पहुंचाएंगे. पृथ्वी का जीवन, जीवन की विविधता, हमारी संस्कृति... सबका हाल सुनाएंगे. साथ ही, गोल्डन रेकॉर्ड कैसे बजाया जाए, इसके लिए सांकेतिक निर्देश भी हैं.
तस्वीर: ZUMA/imago images
संगीत और ध्वनियां भी हैं
इस रेकॉर्ड की सामग्रियों को नासा की एक कमिटी ने चुना था, जिसके अध्यक्ष मशहूर अमेरिकी खगोलशास्त्री कार्ल सागन थे. इनमें हमारे सौर मंडल का मानचित्र है. यूरेनियम का एक टुकड़ा है, जो रेडियोएक्टिव घड़ी का काम करता है और अंतरिक्षयान के रवाना होने की तारीख बता सकता है. पृथ्वी पर जीवन का स्वरूप बताने के लिए इनकोडेड तस्वीरें हैं. संगीत और कई ध्वनियां भी हैं. तस्वीर: कार्ल सागन
तस्वीर: IMAGO/UIG
अभी कहां हैं दोनों वॉयजर
वॉयजर एक अनंत यात्रा का राहगीर है, जो ब्रह्मांड में आगे बढ़ता रहेगा. नासा के "आईज ऑन द सोलर सिस्टम" ऐप पर आप दोनों वॉयजर यानों की यात्रा और लोकेशन देख सकते हैं. अभी तो वॉयजर अपने पावर बैंक की मदद से डेटा भेजते हैं, लेकिन 2025 के बाद इसके पावर बैंक धीरे-धीरे कमजोर होते जाएंगे. इसके बाद भी ये मिल्की वे में तैरना-टहलना जारी रखेगा. चुपचाप, शायद अनंत काल तक.
तस्वीर: Canberra Deep Space Com. Complex/NASA/ZUMA/picture alliance
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ह्योडो ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "हमारे शोध से लगता है कि शनि के छल्ले नए नहीं, बल्कि खुद को साफ रखने के अद्भुत सिस्टम की वजह से साफ दिखते हैं. हो सकता है कि ये छल्ले शनि के बनने के शुरुआती समय में ही बने हों."
वैज्ञानिकों का मानना है कि भले ही छल्ले शनि के जीवनकाल के बीच (करीब 2.25 अरब साल पहले) बने हों, लेकिन सिमुलेशन से यह ज्यादा संभावना लगती है कि ये सौरमंडल के शुरुआती समय में बने थे. उस समय बड़े ग्रह एक-दूसरे के करीब आते-जाते थे और टकराव की घटनाएं ज्यादा होती थीं.
कैसिनी मिशन और नई खोज
कैसिनी मिशन ने शनि और उसके छल्लों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी. मिशन ने दिखाया कि छल्ले लगभग पूरी तरह बर्फ के बने हैं. बर्फ में गैर-बर्फीले पदार्थों की मात्रा बहुत कम है. पहले सोचा गया था कि समय के साथ माइक्रोमिटीऑरॉइड्स की वजह से बर्फ गंदी और काली हो जाती.
लेकिन नए शोध में बताया गया कि गैर-बर्फीला पदार्थ छल्लों पर टिकता ही नहीं. जब ये कण टकराते हैं, तो वाष्प बनकर बिखर जाते हैं. टीम के मॉडल्स के मुताबिक एक फीसदी से भी कम गंदगी छल्लों में समा पाती है. इससे पहले वैज्ञानिक मानते थे कि यह दर 10 फीसदी से ज्यादा है.
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शनि के छल्लों का रहस्य
शनि के छल्लों का रहस्य वैज्ञानिकों को आकर्षित करता रहा है. इन छल्लों को पहली बार 1610 में गैलीलियो ने देखा था. तब उन्होंने इसे "कान" जैसी संरचना बताया था. बाद में डच खगोलशास्त्री क्रिस्टियान ह्यूजेंस ने बताया कि ये छल्ले फ्लैट डिस्क की तरह हैं, जो शनि के चारों ओर घूम रहे हैं.
ये छल्ले बर्फ के लाखों-करोड़ों टुकड़ों से बने हैं. इन टुकड़ों का आकार छोटे कणों से लेकर कई मीटर बड़े टुकड़ों तक होता है. छल्ले काफी पतले होते हैं, सिर्फ 10 मीटर मोटे. लेकिन ये 2.8 लाख किलोमीटर दूर तक फैले हुए हैं.
वैज्ञानिकों के लिए इन छल्लों की उम्र और उत्पत्ति हमेशा से एक बड़ा सवाल रहा है. पहले माना जाता था कि शनि के पास किसी चंद्रमा या धूमकेतु के टूटने से ये छल्ले बने होंगे. लेकिन नई खोज बताती है कि शायद ये छल्ले सौरमंडल के शुरुआती समय के गवाह हैं.
क्या मायने रखती है ये खोज?
अगर शनि के छल्ले इतने पुराने हैं, तो वे हमें सौरमंडल के शुरुआती दिनों की झलक दिखाते हैं. इससे पता चल सकता है कि ग्रह और चंद्रमा कैसे बने और उनके चारों ओर की घटनाएं कैसी रहीं.
वह अंग जो मछलियों को पानी में डूबने नहीं देता
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हालांकि टीम के मॉडल्स में अभी भी कुछ अनिश्चितताएं हैं, जैसे कि छल्लों के कणों की ताकत और संरचना. लेकिन यह खोज एक नया नजरिया देती है कि ये छल्ले कुछ समय के लिए नहीं, बल्कि अरबों सालों से शनि के साथ बने हुए हैं.
ह्योडो ने कहा, "शनि के छल्ले सौरमंडल की सबसे खूबसूरत और अद्भुत चीजों में से हैं. अगर ये शनि के जितने पुराने हैं, तो यह उनकी सुंदरता को और भी खास और स्थायी बना देता है."
वैज्ञानिक अभी भी इस डेटा का विश्लेषण कर रहे हैं. लेकिन इतना तय है कि शनि के छल्ले हमें सौरमंडल के इतिहास की रोमांचक कहानियां सुनाने का मौका देते रहेंगे.