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समाजजर्मनी

जर्मनों को कितना देशभक्त होना चाहिए?

बेन नाइट
९ जून २०२३

जर्मनी के रूढ़िवादी विपक्षी दल मानते हैं कि देश को ज्यादा देशभक्ति की जरूरत है, ताकि राजनीतिक ध्रुवीकरण से निपटा जा सके और पूर्वी जर्मन ज्यादा सम्मिलित महसूस कर पाएं. लेकिन जर्मनी में देशभक्ति का मतलब आखिर है क्या?

खेल आयोजनों के दौरान राष्ट्रीय झंडा फहराने से जर्मनों को कोई दिक्कत नहीं है.
खेल आयोजनों के दौरान राष्ट्रीय झंडा फहराने से जर्मनों को कोई दिक्कत नहीं है. तस्वीर: Daniel Reinhardt/dpa/picture alliance

सेंटर-राइट रुझान वाली क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन (सीडीयू) पार्टी ने पिछले हफ्ते जर्मन संसद में एक प्रस्ताव रखा. यह प्रस्ताव उस नब्ज को छूता है, जो दूसरे विश्व युद्ध के खत्म होने के बाद से ही देश को परेशान करती आ रही है. यह सवाल है, जर्मन लोग खुद पर फिर से कब गर्व कर सकेंगे?

सीडीयू का कहना है कि 1949 में अंगीकृत किए गए जर्मन संविधान या बुनियादी कानून (बेसिक लॉ) के उपलक्ष्य में 23 मई को राष्ट्रीय स्मृति दिवस के रूप में मनाया जाना चाहिए. इसके साथ ही "देशभक्ति का संघीय कार्यक्रम" भी लागू करना चाहिए. इसके तहत निम्न योजनाएं रखी गई हैं-

- सार्वजनिक स्थानों पर राष्ट्रीय प्रतीकों की झांकियां साल में और ज्यादा दिखाई जाएं- खासतौर पर राष्ट्रीय झंडा.

- सार्वजनिक अवसरों पर राष्ट्रीय गान ज्यादा से ज्यादा गाया जाए.

- जर्मन सेना ज्यादा से ज्यादा सार्वजनिक समारोह आयोजित करे, ताकि "सशस्त्र बलों और नागरिक समाज के बीच संबंध और प्रगाढ़ हो और इस संपर्क में देशभक्ति की संभावना को मजबूत बनाया जाए."

सीडीयू ने समावेशी संदर्भों में उपरोक्त विचारों को पेश करने की अपनी ओर से भरपूर कोशिश की. पार्टी के मुताबिक, इस आधुनिक देशप्रेम को  बेसिक लॉ में निर्धारित मूल्यों से जुड़े रहने के लिए प्रवासी समुदायों को आमंत्रित करना चाहिए. जिसे पार्टी देशभक्ति की "संभावना" करार देती है, उसे राजनीतिक हाशियों के लिए नहीं छोड़ा जा सकता.

धुर-दक्षिणपंथी प्रदर्शनकारी अक्सर प्रदर्शनों के दौरान राष्ट्रीय झंडा फहराते हैं. तस्वीर: Patrick Pleul/dpa/picture alliance

इसका मतलब सीडीयू अपनी चुनावी प्रतिद्वंद्वी धुर दक्षिणपंथी अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी (एएफडी) पार्टी से देशभक्ति के मुद्दे पर सीधा मुकाबला करने की उम्मीद कर रही है. सीडीयू के नेता फ्रीडरिश मर्त्स और संसद में उनकी सहयोगी पार्टी सीएसयू के नेता अलेक्सांद्र डोब्रिन्ड्ट ने अपने प्रस्ताव में लिखा कि राष्ट्रीय गर्व की नवीकृत भावना "हमारे समाज में बढ़ते ध्रुवीकरण और विभाजन" का मुकाबला करेगी.

गर्व की और शर्म की संस्कृति

जर्मन देशप्रेम की समस्या संघीय गणतंत्र जितनी ही पुरानी है. उसमें दूसरे विश्व युद्ध के बाद के जख्मी गौरव के निशान आज भी महसूस किए जाते हैं

इन्सा इंस्टिट्यूट के 2021 के एक पोल ने दिखाया कि 61 फीसदी जर्मनों का खयाल था कि स्कूलों को बच्चों में जर्मनी के प्रति ज्यादा सकारात्मक संपर्क पोषित करना चाहिए. असल में इसके मायने क्या होंगे, यह साफ नहीं है लेकिन जर्मन इतिहास स्वाभाविक तौर पर बताता है कि देशप्रेम हमेशा ही कि देशभक्ति हमेशा ही बेहद समस्याग्रस्त मुद्दा बनी रहेगी.

हुम्बोल्ट यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर एमेरिटस और पोत्सदाम में समकालीन इतिहास के लाइबनिस केंद्र के पूर्व निदेशक मार्टिन जाब्रो पूछते हैं, "आखिर कौन, बगैर सोचे-समझे और बगैर अड़चन, जर्मन राष्ट्र से अपने जुड़ाव को कबूल कर सकता है?" वह कहते हैं, "बर्लिन के सरकारी हलके में एक होलोकॉस्ट मेमोरियल है, जहां 60 लाख यहूदियों के कत्ल और युद्ध में मारे गए लाखों लोगों की स्मृति में स्तंभ गाड़े गए हैं. राष्ट्रीयता को लेकर एक किस्म की बेचैनी अगर हमारे पास न होती, तो यह अजीब बात होती."

काला, लाल और सुनहराः जर्मनी के विवादास्पद रंग

जर्मनी में दूसरी जगहों की अपेक्षा देशप्रेम इतना सीधा-सपाट न होने की और भी पुरानी वजहें हैं. जर्मनी के राष्ट्रीय रंगों- काला, लाल और सुनहरा का एक आला राजनीतिक इतिहास रहा है. और जैसे कि अमेरिका का सितारों और पट्टियों वाला झंडा है या ब्रिटेन का यूनियन जैक है, उस लिहाज से तमाम जर्मनों को एकजुट करने में देश का झंडा बमुश्किल ही काम आया है.

काले, लाल और सुनहरे रंगों वाला झंडा पहली बार प्रशियाई सेना के व्यक्तिगत कोर ने यूरोप को नेपोलियन से मुक्त कराने की लड़ाई में फहराया था. शुरुआती 19वीं सदी में उन्होंने खुद को जर्मन परिसंघ के राष्ट्रीय रंगों के तौर पर स्थापित कर दिया. नेशनल असेंबली ने 1848 की क्रांतियों के बाद झंडे को अंगीकार कर लिया. उस समय राष्ट्रीय अस्मिता, उदारता और व्यक्तिगत अधिकार राजशाही विरोधी उभार के साथ गुंथ गए थे.

जर्मन राइष का झंडा काला, सफेद और लाल था. तस्वीर: Hendrik Schmidt/dpa/picture alliance

लेकिन प्रशिया की ताकत बढ़ने और राजशाही के खुद को फिर से स्थापित करने के साथ तीनों रंग प्रचलन से बाहर हो गए. और 1871 में काला, सफेद और लाल, नए जर्मन राइष के रंग बन गए. काले, लाल और सुनहरे के पैटर्न को वाइमर गणतंत्र ने 1919 में राजा विलहेल्म द्वितीय के पतन के बाद फिर से अंगीकार कर लिया. नाजियों ने 1934 में इस पैटर्न को फिर से हटा दिया.

युद्ध के बाद भी रंग विवादों में रहे. 1949 में पूर्वी जर्मनी के रूप में विभाजन के बाद बने जर्मन लोकतांत्रिक गणराज्य का उल्लेख करते हुए जाब्रो कहते हैं, "जीडीआर के साथ एक झगड़ा था. काले, लाल, सुनहरे पैटर्न को पहले उसी ने नामांकित किया था, पश्चिमी जर्मनी उसके नक्शेकदम पर चला. उस लिहाज से, रंगों के संयोजन को अलग-अलग राजनीतिक कैंप नजरअंदाज कर दें, ऐसी कोई परंपरा नहीं थी."

पिछले दो दशकों में राष्ट्रीय झंडे को लेकर लोगों के नखरे कम हुए हैं, खासकर जब वे राष्ट्रीय खेल की टीमों का समर्थन करने उतरते हैं. जर्मनी में 2006 के विश्वकप फुटबॉल आयोजन को अक्सर प्यार से नए सकारात्मक, आशावादी देशप्रेम की सुबह के तौर पर याद किया जाता है. "समर फेरी टेल" के नाम से मशहूर हुए उस टूर्नामेंट के दौरान, जर्मनी का राष्ट्रीय झंडा अंतहीन बाल्कनियों और कार के शीशों पर फहराया जाता रहा. पूरा राष्ट्र बहुसंस्कृति के प्रतिनिधि खिलाड़ियों के पीछे खड़ा हो गया था.

फिर भी पिछले कुछ सालों के दौरान, राष्ट्रीय झंडे और देशभक्ति के मुद्दे को इस्लाम विरोधी पेगिडा आंदोलन और 2013 में गठित प्रवासी विरोधी राजनीतिक दल एएफडी जैसी धुर दक्षिणपंथी राजनीतिक शक्तियों ने हड़प लिया.

काला, लाल और सुनहरे रंग वाला झंडा वाइमर गणतंत्र के समय इस्तेमाल हुआ था, दोनों विश्व युद्धों के बीच. तस्वीर: akg-images/picture alliance

'संवैधानिक राष्ट्रप्रेम' को वापस लाने की कोशिश में सीडीयू

सीडीयू ने धुर दक्षिण दलों से राष्ट्रीय गौरव के विषय को वापस खींचने के काम को अपना लक्ष्य बना लिया है. लेकिन ट्रियर यूनिवर्सिटी के राजनीतिक विश्लेषक उवे युन के मुताबिक पार्टी "संवैधानिक राष्ट्रप्रेम" परंपरा को पुनर्स्थापित करने की कोशिश भी कर रही है. उसका आशय उस देशभक्ति से है, जो राष्ट्रीय अस्मिता या पहचान में नहीं, बल्कि जर्मनी के बुनियादी कानून से निर्धारित मूल्यों में निबद्ध है.

उवे युन ने डीडब्लू को बताया, "वे कहते हैं, जर्मनी में एक स्थिर लोकतंत्र निर्मित करने वाले इस बेसिक लॉ को उत्सव के अवसर की तरह इस्तेमाल करना चाहिए." लेकिन ज्यादा-से-ज्यादा मौकों पर झंडा फहराने से एएफडी के वोटरों को वापस जीतने की सीडीयू की उम्मीद पूरी होगी या नहीं, इस बारे में युन अनिश्चित हैं. ताजा मत सर्वेक्षणों में एएफडी का उभार देखा जा रहा है.

सीडीयू की उम्मीद के संदर्भ में युन कहते हैं, "वैसा हो पाना मुश्किल है" क्योंकि बहुत से कोर एएफडी वोटर, प्रोटेस्ट वोटर हैं जिनका सीडीयू जैसे मध्यमार्गी दलों से भरोसा उठ गया है. जाब्रो को भी इस पर संदेह है. वह कहते हैं, "अपनी ऐतिहासिक जिम्मेदारी से इंकार किए बगैर यह एक कथित 'सामान्यता' की ओर लौटने की कामना है. लेकिन मुझे लगता है कि ऐसी कोशिशें पूरी तरह से व्यर्थ हैं. मुझे नहीं लगता कि ऊपर से इस तरह का जुड़ाव थोपना आधुनिक समाज में मुमकिन है."

भीकाजी कामा: इन्होंने विदेश में फहराया भारत का पहला झंडा

13:38

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