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ईलॉन मस्क का इतना महंगा इंटरनेट गांवों में कौन लेगा!

प्रभाकर मणि तिवारी
११ नवम्बर २०२१

भारत के ग्रामीण इलाकों में इंटरनेट पहुंचाने की ईलॉन मस्क की कोशिश कितनी कामयाब हो पाएगी, इस पर संदेह है. वजह है इसकी भारी-भरकम कीमत. इतनी महंगी सेवा क्या गांवों में चल पाएगी!

तस्वीर: Reuters/P. Waydande

देश के दुर्गम इलाकों तक इंटरनेट की सुविधा मुहैया कराने के सरकार के तमाम दावों के बावजूद इंटरनेट कनेक्टिविटी के मामले में देश के ग्रामीण इलाके शहरी इलाकों के मुकाबले काफी पिछड़े हैं. अब ईलॉन मस्क की रॉकेट कंपनी स्पेसएक्स के सैटेलाइट इंटरनेट डिवीजन स्टारलिंक की ताजा पहल और भारत सरकार की ओर से बीते महीने इंडियन स्पेस एसोसिएशन (आईएसपीए) की शुरुआत ने तस्वीर बेहतर होने की उम्मीद तो जगाई है.

समस्या यह है कि इन दोनों प्रस्तावों का हकीकत में बदलना अब भी दूर की कौड़ी लगती है. इंटरनेट ऐंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया के मुताबिक वर्ष 2020 में भारत में 62.2 करोड़ से अधिक इंटरनेट उपभोक्ता थे. यह आंकड़ा 2025 तक बढ़ कर 90 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है. ईलॉन मस्क की निगाहें इसी बाजार पर हैं.

शहरी और ग्रामीण इलाकों में खाई

इंटरनेट की पहुंच के मामले में शहरी और ग्रामीण इलाकों में खाई साफ नजर आती है. देश की शहरी आबादी के 67 फीसद हिस्से तक इंटरनेट की पहुंच है जबकि ग्रामीण भारत में यह आंकड़ा महज 31 फीसद है. इसके पीछे इंटरनेट का सुलभ नहीं होना और आम लोगों के सामर्थ्य से दूर होना भी प्रमुख वजह है. रिलायंस जियो ने शहरी इलाकों में भले इंटरनेट क्रांति पैदा कर दी हो, ग्रामीण इलाकों में इसकी पहुंच तो कम है ही, कीमत भी आम लोगों की जेब पर भारी है.

अंतरिक्ष अभियान से अंतरिक्ष उद्योग तक

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नेशनल सैंपल सर्वे की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, देश में महज 4.4 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों के पास ही कंप्यूटर उपलब्ध है. शहरी क्षेत्र में यह आंकड़ा बढ़कर 14.9 प्रतिशत तक पहुंच जाता है. ग्रामीण क्षेत्रों के 14.9 प्रतिशत परिवारों को ही इंटरनेट की सुविधा मिल पाती है लेकिन शहरी इलाकों में यह संख्या 42 फीसदी यानी करीब तीन गुनी ज्यादा है.

एक और उदाहरण से शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों की खाई और साफ हो जाती है. शहरी इलाकों में जहां प्रति सौ व्यक्ति पर 104 इंटरनेट कनेक्शन हैं वहीं ग्रामीण इलाको में यह आंकड़ा महज 27 ही है. शहरी इलाकों में कई मोबाइल फोनों में दो-दो सिम कार्ड होने की वजह से आंकड़ा बढ़ जाता है.

सैटेलाइट इंटरनेट की तैयारी

देश के ग्रामीण इलाकों में इस खाई को पाटने के लिए ही अब सैटेलाइट इंटरनेट मुहैया कराने की पहल हो रही है. हालांकि ऑप्टिकल फाइबर केबल के मुकाबले इसकी स्पीड कम होगी. लेकिन कुछ नहीं होने से कुछ होना बेहतर ही है. सैटेलाइट इंटरनेट से पिछड़े या ग्रामीण क्षेत्रों को इस आधुनिक तकनीक से जोड़ा जा सकेगा. खासकर ऐसे क्षेत्रों में या लोगों तक भी इंटरनेट पहुंचेगा जहां फिलहाल यह सपना ही है. 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते महीने भारतीय अंतरिक्ष संघ (इंडियन स्पेस एसोसिएशन यानी आईएसपीए) का उद्घाटन किया था. इस मौके पर उनका कहना था,  "इन-स्पेस अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी कंपनियों को बढ़ावा देने में मदद करेगा. निजी क्षेत्र की भागीदारी को सुविधाजनक बनाने के लिए सरकार ने इंडियन नेशनल स्पेस प्रमोशन ऐंड ऑथराइजेशन (इन-स्पेस) का गठन किया है. यह अंतरिक्ष से संबंधित सभी कार्यक्रमों के लिए सिंगल विंडो एजेंसी के रूप में काम करेगा."

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फिलहाल लार्सन ऐंड टूब्रो, नेल्को (टाटा समूह), वन वेब, भारती एयरटेल, मैपमाइइंडिया, वालचंदनगर इंड्रस्ट्रीज और अनंत टेक्नोलॉजी लिमिटेड, गोदरेज, बीईएल सहित अन्य कंपनियां भारतीय अंतरिक्ष संघ में शामिल हैं.

इस मौके पर केंद्रीय संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव का कहना था, "अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी और दूरसंचार के मेल से देश के दूरदराज के क्षेत्रों तक डिजिटल सेवाओं की पहुंच बढ़ेगी और समावेशी विकास में मदद मिलेगी. सरकार इस क्षेत्र में सुधार और स्वस्थ प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करने के लिए कृतसंकल्प है."

ईलॉन मस्क की पहल

दूसरी ओर, अमेरिकी उद्योगपति ईलॉन मस्क की कंपनी भी देश के ग्रामीण इलाकों में सैटेलाइट इंटरनेट मुहैया कराने की दिशा में काम कर रही है. उनकी कंपनी स्पेसएक्स के सैटेलाइट इंटरनेट डिवीजन स्टारलिंक का लक्ष्य अगले साल दिसंबर तक तक भारत में दो लाख स्टारलिंक उपकरणों की स्थापना करना है. इनमें से से 80 प्रतिशत ग्रामीण जिलों में होंगे. 

कंपनी ने वर्ष 2015 में अपने सैटेलाइट नेटवर्क का विकास शुरू किया था. वर्ष 2018 में उसने पहला प्रोटोटाइप सैटेलाइट लॉन्च किया था. फिलहाल अंतरिक्ष में 1700 से ज्यादा स्टारलिंक सैटेलाइट तैनात हैं. कंपनी इनकी सहायता से ही खासकर ग्रामीण इलाकों में इंटरनेट की पहुंच सुलभ कराएगी. इसके इंटरनेट कनेक्शन के लिए घर पर एक छोटा सा सैटेलाइट डिश लगाना होगा जिससे सिग्नल मिलेगा.

ये 'मीम' क्या बला है

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वैसे, ग्रामीण अर्थव्यवस्था को ध्यान में रखते हुए इस पर सवाल भी उठ रहे हैं. स्टारलिंक ने कहा है कि उसे भारत में पांच हजार प्री-ऑर्डर मिल चुके हैं. कंपनी ने ‘बेटर दैन नथिंग' बीटा प्रोग्राम में शामिल होने के इच्छुक उपभोक्ताओं से प्री-ऑर्डर लेना भी शुरू कर दिया है. लेकिन कंपनी की इंटरनेट सेवा की लागत प्रति महीने 99 डॉलर या करीब 7,350 रुपये है. इसके अलावा टैक्स, फीस, सैटेलाइट डिश और राउटर के लिए 500 अमेरिकी डॉलर का एकमुश्त भुगतान करना होगा. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि ग्रामीण इलाकों में कितने लोग इस सेवा का लाभ उठाने में सक्षम होंगे?

कोलकाता में दूरसंचार विशेषज्ञ रविकांत जाना कहते हैं, "ग्रामीण इलाकों में अगर सरकार इस पर सब्सिडी नहीं देती तो आम लोगों के लिए इंटरनेट पर इतना खर्च करना न तो संभव है और न ही व्यवहारिक. इसलिए फिलहाल यह पहल कोई खास उम्मीद नहीं जगाती.”

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