"पप्पू" जैसे ताने से परिपक्व नेता तक राहुल गांधी का सफर
८ जून २०२४भारत और खुद को समझने के लिए पहले पूरे देश की थाह लेनी होगी, यह बात भारत में बौद्ध भिक्षुओं समेत तमाम धार्मिक संतों ने समझी. 1915-16 में राजनीतिक रूप से महात्मा गांधी ने इस मर्म के महत्व समझा और अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन छेड़ने से पहले पूरे भारत का भ्रमण किया.
भारत को समझने की इस कोशिश का मतलब, हेलिकॉप्टर से नीचे झांकना, अधिकारियों के साथ चाय-बिस्कुट चबाते हुए चर्चा करना या फिर जी हजूर शागिर्दों की टोली के साथ सायरन बजाते हुए घूमना नहीं है. यह यात्रा होती है, जनमानस के बीच जाने की, उसके साथ जमीन पर बैठने की, उसकी कांसे या स्टील की थाली में खाना खाने की, उसके बच्चों के बारे में पूछने की, साथ ही उसकी उस मेहनत व जिजीविषा को महसूस करने की, जो बिना एयरकंडीशनर के देश की धमनियों में जान फूंकती है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, आरएसएस के प्रचारक के तौर पर कई दशकों पहले ऐसी यात्राएं कर चुके हैं. और अब इस कड़ी में कांग्रेस नेता राहुल गांधी का भी नाम है.
राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा
जनवरी 2024, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में जहां बीजेपी, राम मंदिर के भव्य उद्धाटन की तैयारियां कर रही थी, वहीं 53 साल के राहुल गांधी भारत जोड़ो न्याय यात्रा कर रहे थे. 14 जनवरी को राहुल गांधी की अगुवाई में पूर्वोत्तर भारत के राज्य मणिपुर से यात्रा की शुरुआत हुई. उस मणिपुर से जो मई 2023 से हिंसा की आग में जल रहा था. वहां से लगातार हिंसा के झकझोरने वाले वीडियो और समाचार आ रहे थे. राहुल गांधी समेत कई आलोचक ये सवाल कर रहे थे कि सोशल मीडिया पर तमाम लोगों को बधाई देने वाले और मन की बात करने वाले पीएम मोदी, मणिपुर पर खामोश क्यों हैं.
ऐसे कई सवालों से शुरू हुई राहुल गांधी की यात्रा आगे बढ़ते हुए नागालैंड और असम पहुंची. रिपोर्टों के मुताबिक, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा नहीं चाहते थे कि राहुल गांधी गुवाहाटी आएं, इसीलिए जोराबाट में बैरिकेडिंग कर दी गई. कुछ कांग्रेसी नेता जब बैरिकेड पर चढ़े तो मुख्यमंत्री के निर्देश पर राहुल गांधी के खिलाफ भीड़ को उकसाने का मुकदमा दर्ज कर दिया गया. राहुल गांधी जिस दिन मेघालय पहुंचे, उसी दिन अयोध्या में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राम मंदिर का उद्घाटन किया. इस दौरान ऐसा भी लगने लगा जैसे आयोजन आस्था पर भारी पड़ा हो.
वहीं दूसरी तरफ राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा को राष्ट्रीय मीडिया और खासतौर पर टीवी मीडिया ने बहुत अहमियत नहीं दी. लेकिन सोशल मीडिया के दौर में कांग्रेस पार्टी लगातार इस यात्रा से जुड़े वीडियो और फोटो शेयर करती थी. यह वही दौर था, जब राहुल गांधी, अरुणाचल, मेघालय, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र में आम लोगों और कांग्रेस कार्यकर्ताओं से मिलते हुए चल रहे थे.
यात्रा के समानान्तर मोदी सरकार पर जानबूझकर इलेक्टोरल बॉन्ड्स की जानकारी शेयर न करने के आरोप लग रहे थे. सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट आदेश के बावजूद स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, दानदाताओं की जानकारी शेयर करने में आनाकानी कर रहा था. आए दिन विपक्षी पार्टियों के नेताओं पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के छापे पड़ रहे थे. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जेल भेजने की तैयारी हो रही थी. बीजेपी अबकी बार 400 पार का नारा दे चुकी थी और उसके नेता संविधान बदलने के दावे करने लगे. प्लान पेश किए जाने लगे कि सरकार बनने के 100 दिन के भीतर क्या काम किए जाएंगे.
भारत के करीब एक तिहाई ग्रेजुएट युवा बेरोजगार थे. बीजेपी के शासन वाले तमाम राज्यों में पेपर लीक और भर्ती घपले जैसे मामले सामने आ चुके थे. लेकिन रोजगार की बात करते ही बीजेपी के खेमे से मंदिर और अर्थव्यवस्था के उलझाने वाले आंकड़े सामने आ रहे थे.
राहुल गांधी की छवि में परिवर्तन
राहुल गांधी के चेहरे के साथ लोकसभा चुनावों में पहली बार कांग्रेस पार्टी को इतनी बड़ी सफलता मिली है. भले ही पार्टी 140 सीटों पर बीजेपी से हार गई, लेकिन 2014 और 2019 के मुकाबले उसका प्रदर्शन काफी बेहतर रहा है. मंगलवार को चुनाव के नतीजे आने के बाद कांग्रेस मुख्यालय में लाल रंग की संविधान की प्रति हाथ में लेकर राहुल गांधी ने कहा, मतदाताओं ने "इस देश के संविधान की रक्षा के पहला और सबसे बड़ा कदम उठा लिया है."
अगले दिनों में उन्होंने बीजेपी पर एग्जिट पोल्स के जरिए शेयर बाजार को प्रभावित कर कुछ लोगों को भारी मुनाफा और आम आदमी को नुकसान पहुंचाने के आरोप लगाए. भारतीय शेयर बाजार में हुई उस उथल-पुथल से आम निवेशकों को बड़ा नुकसान हुआ और राहुल गांधी ने एक तेज तर्रार नेता के तौर पर मौके का फायदा उठाया.
एक नए राहुल गांधी
राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि राहुल गांधी ने 2022 में अपनी छवि बदलने की शुरुआत की. इस दौरान राहुल गांधी पर मानहानि का मुकदमा चल रहा था. मार्च 2023 में सूरत की अदालत ने उन्हें दोषी करार देते हुए दो साल की सजा सुना दी. इस सजा के कारण, उन्हें लोकसभा सदस्य के रूप में अयोग्य घोषित किया गया और राहुल गांधी को अपना सांसद आवास भी छोड़ना पड़ा.
भारत जैसे देश में जहां आपराधिक पृष्ठभूमि वाले सांसदों और विधायकों की भरमार हो, वहां विपक्ष के नेता के साथ हुए ऐसे व्यवहार ने राहुल गांधी के पक्ष में कुछ सहानुभूति जरूर पैदा की. इस जरा सी सहानुभूति को विशाल बनाने में बीजेपी ने भी खूब योगदान दिया. बीजेपी के नेता लगातार राहुल गांधी पर टिप्पणी करते रहे. भारतीय जनमानस के सामने, कमजोर को और शर्मसार करने की कोशिश करते रहे.
इस दौरान बीजेपी के छोटे-बड़े नेता जहां आलोचना होने पर तमतमाते नजर आने लगे, वहीं राहुल गांधी आलोचना का जबाव मुस्कुरा कर देना सीख गए. राहुल गांधी कम और जरूरी बात ही बोलने लगे. वहीं बीजेपी के नेता हर मसले पर स्वजनित ज्ञान बांचते नजर आए.
कांग्रेस और इंडिया गठबंधन की रणनीति
राहुल गांधी की अगुवाई में कांग्रेस ने इस बार गठबंधन को गंभीरता से लिया. कांग्रेस ने सहयोगियों की बातें सुनीं, समझीं और उन्हें सम्मान व श्रेय भी दिया. राहुल गांधी ने चुनाव प्रचार के दौरान मोदी पर व्यक्तिगत टिप्पणी के बजाए, एजेंसियों के दुरुपयोग, तानाशाही, संविधान की रक्षा, विपक्ष को खत्म करने की कोशिश, नौकरियों की कमी, नफरत भरी राजनीति, अग्निवीर स्कीम, इलेक्टोरल बॉन्ड और चंद उद्योगपतियों की सरकार जैसे मुद्दों को उठाया.
सात चरणों में हुए लोकसभा चुनावों में बीजेपी अपनी सरकार की उपलब्धियां बताने के बजाए कांग्रेस को कोसती रही. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद इसमें सबसे आगे रहे. 'मेरी सरकार ने बीते 10 साल में क्या किया', यह समझाने के बजाए वह 'कांग्रेस आई तो क्या होगा', इस पर केंद्रित हो गए. तीसरा चरण आते-आते बीजेपी के प्रचार से "अबकी बार 400 पार" गायब हो चुका था.
राहुल के साथ मतदाताओं की भी परिपक्वता
भारत में चुनाव अभियान के दौरान कई मतदाताओं ने यह खुलकर कहा कि देश को एक मजबूत विपक्ष की जरूरत है. ऐसा कहने वालों में कई ऐसे लोग भी थे जो पीएम मोदी के मुरीद थे, लेकिन उन्हें मजबूत विपक्ष की भूमिका स्पष्ट रूप से दिखने लगी थी.
भारत के प्रतिष्ठित अंग्रेजी अखबार द हिंदू की पॉलिटकल एडिटर निस्तुला हेब्बर कहती हैं, "अतीत में उनकी खूब ट्रोलिंग हुई और तंज का एक पात्र बन गए."
हेब्बर के मुताबिक, चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन "सही में राहुल गांधी के लिए एक बड़ी जीत है."
द कारवां मैग्जीन के राजनीतिक संपादक हरतोष सिंह बल के मुताबिक, लोकसभा चुनावों के नतीजे बता रहे हैं कि अब राहुल गांधी को "राजनीतिक रूप से काफी गंभीरता से लिया जाएगा."
हालांकि बल आगाह करते हैं कि बीजेपी के कमजोर प्रदर्शन को अभी कांग्रेस और राहुल गांधी की बड़ी कामयाबी समझना जल्दबाजी होगी.