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बरसों से युद्ध की जमीन तैयार कर रहा है रूसी मीडिया

रोमान गोंसारेंको
१७ फ़रवरी २०२२

अगर रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया होता तो बहुत से रूसी इस बात से हैरान नहीं होते. बरसों से रूसी सरकारी मीडिया इसकी जमीन तैयार कर रहा है और यूक्रेन को हमेशा दुश्मन देश की तरह पेश करता रहा है.

व्लादिमीर पुतिन
कई साल से रूसी मीडिया की आक्रामता बढ़ती जा रही हैतस्वीर: Alexander Nemenov/AFP/Getty Images

क्या रूसी नागरिक यूक्रेन के साथ युद्ध करने के पक्ष में हैं? जब से यूक्रेन की सीमा पर रूसी सैनिकों का जमावड़ा किया है, तब से यह सवाल हर किसी के जेहन में है.

मॉस्को के जाने-माने लेवाडा सेंटर में सर्वेक्षणकर्ता के तौर पर काम करने वाले डेनिस वोल्कोव इस सवाल का जवाब देने से पहले थोड़ा सोचते हैं. वह कहते हैं, "हमने लोगों से यह सवाल पूछा ही नहीं. कुछ लोगों का रवैया युद्ध समर्थक हो सकता है, लेकिन ऐसे लोगों की तादाद बहुत कम है."

युद्ध कितना संभव है?

रूसी मीडिया में युद्ध की संभावना को लेकर खुले आम चर्चा होती है. दक्षिणपंथी सांसद व्लादिमीर जिरीनोव्स्की अकसर टीवी पर होने वाली बहसों में शामिल होते हैं और कई साल से यूक्रेन पर हमले का आह्वान करते रहे हैं. पिछले साल के आखिरी दिनों में एक अखबार को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि अगर यूक्रेन नाटो में शामिल ना होने की रूस की मांग को नहीं मानता है तो उसके खिलाफ बलप्रयोग किया जाना चाहिए.

कई साल पहले रूस के एक सरकारी टीवी चैनल पर जिरीनोव्स्की ने कहा था कि रूस को कीव में यूक्रेन के तत्कालीन राष्ट्रपति पेत्रो पोरोशेंको के घर पर परमाणु बम गिरा देना चाहिए. इस तरह की भड़काऊ बयानबाजी सोशल मीडिया पर भी धड़ल्ले से की जाती है. मिसाल के तौर पर, हाल ही में एक रूसी पत्रकार ने ट्विटर पर लिखा, "अब यूक्रेन को एक बार फिर आजाद कराने का समय आ गया है."

रूसी हमले की आशंका से उठाए हथियार

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यह साफ नहीं है कि आम रूसी जनता में इस तरह की भावना कितनी गहराई से मौजूद हैं. सितंबर 2021 में हुए पिछले संसदीय चुनावों में जिरीनोव्स्की की लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ रशिया को सिर्फ 7.5 प्रतिशत वोट मिले थे. इनमें से भी सारे लोग युद्ध का समर्थन नहीं करेंगे.

सर्वे करने वाले वोल्कोव के पास कुछ और आंकड़े हैं. जो लोग उनके सर्वे में शामिल रहे, उनमें से 36 प्रतिशत लोगों ने माना कि मौजूदा तनाव रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध का रूप ले ले इसकी "बहुत आशंका है" . अन्य चार प्रतिशत लोग ऐसे थे जिन्हें लगता है कि युद्ध को 'टाला नहीं जा सकता'. ये आंकड़े 2021 के आखिर में लेवाडा सेंटर की तरफ से कराए गए एक सर्वे के हैं.

वोल्कोव कहते हैं, "ज्यादातर लोग युद्ध नहीं चाहते, वे इसे लेकर डरे हुए हैं, लेकिन उनके भीतर यह अहसास भी है कि युद्ध कभी भी शुरू हो सकता है." सर्वे में हिस्सा लेने वाले लोग इस स्थिति के लिए पश्चिमी देशों को जिम्मेदार मानते हैं. अगर युद्ध शुरू होता है, तो रूस में आधे लोग इसके लिए पूरी तरह अमेरिका और नाटो देशों को कसूरवार मानेंगे. वहीं 16 प्रतिशत इसकी जिम्मेदारी यूक्रेन पर और चार प्रतिशत लोग रूस पर डालेंगे.

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रूसी मीडिया के मुद्दे

रूसी आबादी के बड़े तबके में इस तरह की राय होना इस बात की पुष्टि करता है कि सरकारी मीडिया जो बरसों से प्रचारित-प्रसारित करता रहा है, उसने लोगों को सीधे तौर पर प्रभावित किया है. वोल्कोव कहते हैं, "(यूक्रेन के साथ संभावित युद्ध का) मुद्दा लोगों तक टीवी के जरिए ही पहुंचा है, जो दो तिहाई रूसी लोगों के लिए सूचना देने वाला सबसे अहम साधन है."

रूसी टीवी पर यूक्रेन ऐसा मुद्दा है जो बरसों से चला आ रहा है. यूक्रेन में 2004 में हुई ऑरेंज क्रांति के बाद से उसे लेकर रूस में व्यापक कवरेज शुरू हुई. 2004 में यूक्रेन के राष्ट्रपति चुनावों के बाद बड़े पैमाने पर प्रदर्शन शुरू हो गए. प्रदर्शनकारियों ने चुनावों में धांधली का आरोप लगाया. आखिकार पश्चिमी समर्थक विक्टर युश्चेंको को विजेता घोषित किया गया और रूस के करीबी विक्टर यानुकोविच को पराजित. इसे रूस पश्चिमी देशों की तरफ से हुए तख्तापलट के तौर पर देखता है.

इससे पहले रूस और यूक्रेन को "रणनीतिक साझीदार" और बहुत करीबी सहयोगी माना जाता था. 2008 में रूस और जॉर्जिया के बीच हुआ युद्ध भी एक अहम मोड़ था जिसमें यूक्रेन ने जॉर्जिया का साथ दिया था.

इसके बाद यूक्रेन से युद्ध का विचार रूसी और यूक्रेनी लोगों के साथ साथ उनके मीडिया के दिमाग में घुस गया.

पूर्वी यूक्रेन के "रूसी लोग"

रूस ने 2014 में जब यूक्रेन के क्रीमिया इलाके को अपने क्षेत्र में मिलाया तो उससे पहले रूस के पूरे मीडिया में हर तरफ यूक्रेन की चर्चा थी, ठीक उसी तरह जैसे 2004 के विरोध प्रदर्शनों को तख्तापलट की तरह पेश किया गया था. रूसी मीडिया की रिपोर्टिंग में रूसी भाषा बोलने वाले यूक्रेनी नागरिकों के लिए मौजूद तथाकथित 'खतरे' पर बहुत जोर दिया जाता है. इस खतरे को बढ़ा चढ़ा कर पेश किया जाता है, जबकि ना उन पर कभी हमला हुआ और ना ही इसकी कोई गंभीर आशंका है. हालांकि रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने इसी बात को आधार बनाकर क्रीमिया को हड़पकर उसे रूसी क्षेत्र में मिला लिया. इसके बाद पुतिन ने कहा कि उनका मकसद रूसियों की रक्षा करना था.

इसके बाद यूक्रेन रूसी मीडिया की रिपोर्टिंग का अहम विषय बन गया. घरेलू राजनीति के बाद सबसे ज्यादा रूसी मीडिया यूक्रेन की ही चर्चा करता है. रूस के भीतर और बाहर बहुत से पर्यवेक्षक मानते हैं कि ऐसा इसीलिए किया जा रहा है ताकि अगर यूक्रेन से रूस का कोई सैन्य टकराव होता है तो रूसी लोग हमेशा अपनी सरकार के रवैया का समर्थन करें.

पूर्वी यूरोप बीते दशकों में बार बार तनाव का केंद्र बनतारहा हैतस्वीर: General Staff of the Armed Forces of Ukraine/via REUTERS

बरसों से रूसी मीडिया में यूक्रेन को एक कमजोर और नाकाम राष्ट्र के तौर पर पेश किया जाता रहा है. उसे पश्चिमी देशों की कठपुतली और रूस का दुश्मन बताया जाता है. लोग भी इस बारे में सुन-सुन कर थक गए हैं. इसका नतीजा यह हुआ कि रूसी लोग अमेरिका के बाद यूक्रेन को अपना दूसरा सबसे बड़ा दुश्मन मानने लगे हैं. ब्रिटेन को वे लोग इस सूची में तीसरे स्थान पर रखते हैं.

मौजूद संकट के दौरान भी साफ है कि रूसी मीडिया इस बार भी यूक्रेन में मौजूद "रूसियों की हिफाजत" पर जोर दे रहा है. उसका इशारा यूक्रेन के पूर्वी और दक्षिणी हिस्से में रहने वाले रूसी भाषी यूक्रेनी लोगों की तरफ है जो खास तौर से यूक्रेन के अलगाववादी इलाकों दोनेत्स्क और लुहांस्क गणराज्यों में रहते हैं.

ऐसे लाखों लोगों को 2019 के बाद से रूसी नागरिकता दी गई है. दिसंबर के आखिर में राष्ट्रपति पुतिन ने पहली बार पूर्वी यूक्रेन में "नरसंहार" के संकेत मिलने की बात कही. अलगाववादी पहले ही घोषणा कर चुके हैं कि वे सैन्य मदद के लिए रूस को बुलाएंगे. यह एक और ऐसा विषय है जिस पर रूसी मीडिया आसमान सिर पर उठा लेगा.

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