दक्षिण अफ्रीका में जिस वैज्ञानिक ने सबसे पहले ओमिक्रॉन को देखा, उसके लिए यह जिंदगी का सबसे बड़ा झटका था. ओमिक्रॉन की पहचान की पूरी कहानी तीन दिन की है.
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दक्षिण अफ्रीका की सबसे बड़ी निजी टेस्टिंग लैब लांसेट की विज्ञान प्रमुख रकेल वियाना के लिए वह जिंदगी का सबसे बड़ा झटका था. उनके सामने कोरोनावायरस के आठ नमूनों के विश्लेषण थे. और इन सभी में अत्याधिक म्यूटेशन नजर आ रहा था, खासकर उस प्रोटीन की मात्रा तो बहुत ज्यादा बढ़ी हुई थी जिसका इस्तेमाल वायरस इंसान के शरीर में घुसने के लिए करता है.
रकेल वियाना बताती हैं, "वो देखकर तो मुझे बड़ा झटका लगा था. मैंने पूछा भी कि कहीं प्रक्रिया में कुछ गड़बड़ तो नहीं हो गई है. लेकिन जल्दी ही वो झटका एक गहरी निराशा में बदल गया क्योंकि उन नमूनों के बहुत गंभीर नतीजे होने वाले थे."
तस्वीरेंः ऐसा दिखता है कोरोनावायरस
ऐसा दिखता है कोरोना वायरस
शोधकर्ताओं ने इलेक्ट्रान माइक्रोस्कोप की मदद से कोरोना वायरस की अद्भुत तस्वीरें ली हैं. देखिए कैसा दिखता है यह वायरस, यह कैसे काम करता है और दूसरे वायरसों और इसमें क्या फर्क है.
तस्वीर: Seth Pincus/Elizabeth Fischer/Austin Athman/National Institute of Allergy and Infectious Diseases/AP Photo/AP Photo/picture alliance
कोरोना की तस्वीर
यह है कोविड-19 महामारी को फैलाने वाले एसआरएस-सीओवी-2 की असली तस्वीर. इसके हर कण का व्यास करीब 80 नैनोमीटर होता है. हर कण में वायरस के जेनेटिक कोड यानी आरएनए की एक गेंद होती है. उसकी रक्षा करता है एक स्पाइक प्रोटीन यानी बाहर की तरफ निकले हुए मुकुट जैसे उभार जिनकी वजह से वायरस को यह नाम मिला. यह कोरोना वायरस परिवार का एक हिस्सा है, जिसके और भी सदस्य हैं.
तस्वीर: Peter Mindek/Nanographics/apa/dpa/picture alliance
हवा से प्रसार
इसके कण छोटी छोटी बूंदों और ऐरोसोल के जरिए तब फैलते हैं जब कोई सांस लेता है या खांसता है या बात करता है. यह संक्रमित सतहों के जरिए भी फैलता है.
तस्वीर: AFP/National Institutes of Health
मानव कोशिकाओं में प्रवेश
यह वायरस स्पाइक प्रोटीनों का इस्तेमाल कर कोशिकाओं की सतह पर मौजूद प्रोटीन से जुड़ जाता है. इससे कुछ रासायनिक बदलाव होते हैं जिनकी बदौलत वायरस का आरएनए (इस तस्वीर में हरे रंग में) कोशिकाओं में घुस जाता है. वहां वो कोशिकाओं से आरएनए की प्रतियां बनवाता है. एक कोशिका वायरस के हजारों नए कण (इस तस्वीर में बैंगनी रंग में) बना सकती है, जो फिर दूसरी स्वस्थ कोशिकाओं को प्रभावित करते हैं.
तस्वीर: NIAID/ZUMAPRESS.com/picture alliance
इंसानों के लिए नया
इस तस्वीर में बुरी तरह से संक्रमित एक कोशिका नीले रंग में दिखाई दे रही है. उसे संक्रमित करने वाले वायरस के कण लाल रंग में हैं. यह वायरस फ्लू या जुकाम करने वाले वायरसों से ज्यादा अलग नहीं है लेकिन 2019 से पहले इसका कभी किसी से पाला ही नहीं पड़ा था. इसी वजह से किसी में भी इसके खिलाफ इम्युनिटी नहीं थी.
तस्वीर: NIAID/Zuma/picture alliance
2002 में आया सदी का पहला कोरोनावायरस
2002 में चीन में इंसानों के बीच इस सदी का पहला कोरोनावायरस हमला सामने आया. यह एसआरएस-सीओवी था जिससे एसएआरएस नाम की बीमारी आई. यह बीमारी करीब 30 देशों में फैल गई लेकिन यह उतनी घातक नहीं निकली. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जुलाई 2003 में ही इस पर नियंत्रण कर लिए जाने की घोषणा कर दी थी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Center of Disease Control
मिलिए परिवार के एक और सदस्य से
2012 में खोज हुई एमईआरएस-सीओवी की जिसे एक नई फ्लू जैसी बीमारी को जन्म दिया. मध्य पूर्व में पहली बार सामने आने वाले इस बीमारी का नाम एमईआरएस रखा गया. यह कोविड-19 से कम संक्रामक होती है. संक्रमण अमूमन एक ही परिवार के सदस्यों में या अस्पतालों के अंदर फैलता है.
तस्वीर: picture-alliance/AP/NIAID-RML
एचआईवी: एक और महामारी
इस तस्वीर में पीले रंग में दिख रहा है एड्स बीमारी फैलाने वाला एचआई वायरस. नीले रंग में टी-कोशिकाएं हैं जो हमारे इम्यून सिस्टम का हिस्सा होती हैं और वायरस इसी सिस्टम पर हमला करता है. एसआरएस-सीओवी-2 की ही तरह यह भी आरएनए आधारित वायरस है.
तस्वीर: Seth Pincus/Elizabeth Fischer/Austin Athman/National Institute of Allergy and Infectious Diseases/AP Photo/AP Photo/picture alliance
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वियाना ने फौरन फोन उठाया और जोहानिसबर्ग स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर कम्यूनिकेबल डिजीज (NICD) स्थित अपने एक सहयोगी वैज्ञानिक डेनियल एमोआको को फोन किया. एमोआको जीन सीक्वेंसर हैं. वियाना कहती हैं, "मुझे समझ नहीं आ रहा ये बात उन्हें कैसे बताई जाए. मुझे तो ये एक अलग ही शाखा लग रही थी."
यह ओमिक्रॉन था!
यह शाखा दरअसल कोरोनावायरस का वो वेरिएंट ओमिक्रॉन था, जिसने इस वक्त पूरी दुनिया को चिंता में डाला हुआ है. दो साल बाद जब हालात सामान्य होने लगे थे तब एक बार फिर दुनिया बड़े लॉकडाउन के मुहाने पर पहुंच गई है. कई देश अपनी सीमाएं बंद कर चुके हैं और विशेषज्ञों में डर है कि अब तक किया गया टीकाकरण भी इस वेरिएंट के सामने नाकाम हो सकता है.
20-21 नवंबर को एमोआको और उनकी टीम ने वियाना के भेजे आठ नमूनों का अध्ययन किया. एमोआको बताते हैं कि उन सभी में समान म्यूटेशन पाई गई. एक बार तो उन लोगों को भी लगा कि कहीं कोई गलती हुई है. फिर उन्हें ख्याल आया कि पिछले एक हफ्ते में कोविड-19 के मामलों में असामान्य वृद्धि हुई थी, जिसकी वजह यह नया वेरिएंट हो सकता है.
इससे पहले वियाना को उनके एक सहयोगी ने भी एक अलग तरह के म्यूटेशन के बारे में चेताया था जो अब तक के सबसे खतरनाक वेरिएंट डेल्टा से टूटकर बना था. एमोआको बताते हैं, "23 नवंबर, मंगलवार तक हमने जोहानिसबर्ग और प्रेटोरिया के इर्द-गिर्द 32 और नमूनों की जांच की. इसके बाद तस्वीर साफ हो गई. यह डराने वाली थी."
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दुनियाभर में प्रसार
मंगलवार को ही NICD की टीम ने स्वास्थ्य मंत्रालय और देश की अन्य प्रयोगशालाओं को सूचित किया. बाकी प्रयोगशालाओं को भी वैसे ही नतीजे मिले. आंकड़ों को वैश्विक डेटाबेस GISAID को भेजा गया और तब पता चला कि बोत्सवाना और हांग कांग में भी ऐसे ही जीन सीक्वेंस वाले मामले मिल चुके हैं.
तस्वीरों मेंः भारत की टीका यात्रा
भारत की टीका यात्रा
भारत ने 21 अक्टूबर को 100 करोड़ कोरोना टीकों की यात्रा पार कर ली. 130 करोड़ से ज्यादा आबादी वाले देश में यह एक बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है. हालांकि इन 100 करोड़ में से अधिकतर वो लोग हैं जिन्हें सिर्फ एक टीका लगा है.
तस्वीर: Manjunath Kiran/AFP
एक अरब टीके
भारत ने 100 करोड़ टीके लगाने का मुकाम 21 अक्टूबर, 2021 को हासिल कर लिया. कोरोना के खिलाफ 279 दिनों में 100 करोड़ टीके का अहम पड़ाव हासिल किया.
तस्वीर: Manjunath Kiran/AFP
"टीम इंडिया की कामयाबी"
100 करोड़ से अधिक टीके लग जाने के अगले दिन यानी 22 अक्टूबर 2021 को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के सभी प्रमुख हिंदी और अंग्रेजी अखबारों में आलेख लिखा. उन्होंने लिखा 100 करोड़ टीके टीम इंडिया की सफलता है. मोदी ने अपने आलेख में लिखा, "भारत ने टीकाकरण की शुरुआत के मात्र 9 महीने बाद ही 21 अक्टूबर, 2021 को टीके की 100 करोड़ खुराक का लक्ष्य हासिल कर लिया है."
22 अक्टूबर को राष्ट्र के नाम संबोधन में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, "मेड इन इंडिया की ताकत बहुत बड़ी होती है. हमारे लिए लोकतंत्र का मतलब सबका साथ है." उन्होंने कहा नई सफलता से नया आत्मविश्वास जागा है.
तस्वीर: Manjunath Kiran/AFP
ऐतिहासिक पल
100 करोड़ डोज पूरे होने पर देश की 100 ऐतिहासिक इमारतों को विशेष लाइटिंग के जरिए सजाया गया.
तस्वीर: Anushree Fadnavis/REUTERS
सजा लालकिला
ऐतिहासिक लाल किले को भी तिरंगे वाली रोशनी से सजाया गया. इस मौके पर खादी का सबसे बड़ा तिरंगा फहराया गया.
तस्वीर: Altaf Qadri/AP Photo/picture alliance
खास फ्लाइट
स्पाइस जेट ने देश के 100 करोड़ टीके पूरे होने पर एक खास फ्लाइट को उतारा. इस पर मोदी की तस्वीर के साथ कोरोना वॉरियर्स की भी तस्वीरें लगीं हैं.
तस्वीर: Manish Swarup/AP Photo/picture alliance
बीजेपी समर्थकों का जश्न
सत्ताधारी दल बीजेपी के समर्थकों ने गुजरात के अहमदाबाद में कुछ इस तरह से 100 करोड़ डोज पूरे होने का जश्न मनाया.
तस्वीर: Ajit Solanki/AP Photo/picture alliance
राज्यों की भूमिका
नौ राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों ने अपनी पूरी 18 प्लस आबादी को टीके की एक खुराक लगा दी है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों के अनुसार देश की 31 फीसदी वयस्क आबादी को दोनों खुराक दी जा चुकी हैं.
तस्वीर: Manjunath Kiran/AFP
चुनौती अभी बाकी
देश में लगभग तीन-चौथाई वयस्कों को अब एक टीका लग चुका है और लगभग 31 प्रतिशत को पूरी तरह से टीका लगाया गया है. हालांकि 18 साल से कम उम्र के करोड़ों भारतीयों - जो आबादी का लगभग 40 प्रतिशत हैं उन्हें अभी तक टीका नहीं लगाया गया है.
तस्वीर: Dibyangshu Sarkar/AFP
कोवैक्सीन को मान्यता का इंतजार
विश्व स्वास्थ्य संगठन से भारत बायोटेक की कोवैक्सीन को अब तक मान्यता नहीं मिली है. कंपनी ने संगठन को जरूरी डेटा सौंपे हैं लेकिन अब तक कौवैक्सीन को मंजूरी का इंतजार है. भारत को उम्मीद है कि जल्द ही डब्ल्यूएचओ इसको मंजूरी दे देगा.
तस्वीर: Nasir Kachroo/NurPhoto/picture alliance
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24 नवंबर को NICD व दक्षिण अफ्रीका के स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों विश्व स्वास्थ्य संगठन को सूचित किया. वियाना कहती हैं कि तब तक दक्षिण अफ्रीकी राज्य गाउटेंग में मिले कोरोनावायरस के मामलों में दो तिहाई से ज्यादा ओमिक्रॉन के थे, जो एक संकेत था कि यह वेरिएंट तेजी से फैल रहा था.
सोमवार को देश के प्रमुख विशेषज्ञ सलीम अब्दुल करीम ने बताया कि ओमिक्रॉन की वजह से इस हफ्ते के आखिर तक दक्षिण अफ्रीका में कोविड-19 के मामले चार गुना बढ़कर 10 हजार को पार कर जाएंगे.
अब वैज्ञानिको के सामने बड़ा सवाल यह है कि ओमिक्रॉन वैक्सीन या पहले हुए संक्रमण से तैयार हुई इम्यूनिटी को धोखा दे सकता है या नहीं. साथ ही यह भी कि किस आयुवर्ग पर इस वेरिएंट का असर सबसे ज्यादा होगा. इन सवालों के जवाब खोजने में दुनियाभर के वैज्ञानिक जुटे हुए हैं. उनका कहना है कि इनके जवाब मिलने में तीन-चार हफ्ते का वक्त लग सकता है.