तेज गर्मी सड़क, रेल और पुलों के लिए भी बड़ी आफत है
११ जून २०२५
दुनिया की जानी मानी सलाहकार संस्था, बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप (बीसीजी) का मानना है कि दुनिया भर में परिवहन का बुनियादी ढांचा जलवायु बदलाव के कारण खतरे में है. तटीय हाईवे से लेकर पहाड़ी रेल लाइनों और हवाई यातायात पर अत्यधिक गर्मी का गंभीर असर पड़ रहा है. जिससे सड़कों और हवाई पट्टियों पर गाड़ियों की पकड़ कमजोर हो जाती है, रेलवे के ट्रैक मुड़ जाते हैं और पुलों को जोड़ने वाले हिस्से पिघल जाते हैं और बुनियादी ढांचा जल्दी कमजोर हो जाता है. पर्यावरण के लिए उभरे खतरे का नुकसान बुनियादी ढांचे को भी चपेट में ले रहा है.
मैनहटन को ब्रॉन्क्स से जोड़ने वाला न्यूयॉर्क का एक पुल भी ऐसे ही भीषण गर्मी के कारण खराब हो गया. 2024 में भीषण गर्मी के दौरान जब जहाजों के गुजरने के लिए इसे खोला गया, तो गर्मी से उसका धातु फैल गया, पुल फंस गया और भारी ट्रैफिक जाम लग गया. जैसे-जैसे दुनिया और गर्म हो रही है. यह जरूरी हो गया है कि हम ऐसे समाधान ढूंढ़ें, जिससे बुनियादी ढांचे को मौसम की मार से सुरक्षित रखे जा सके.
सड़कें पिघल रही हैं
जब तापमान बहुत समय तक अधिक बना रहता है, तो सामान्य डामर से बनी सड़कों की सतह धंसने लगती है और उसे जोड़े रखने वाला बिटुमिन टूटने या बहने लगता है. जब यह बिटुमिन ढीला होने लगता है, तो भारी ट्रैफिक से उसकी सतह हमेशा के लिए खराब हो जाती है.
इससे बचने का एक उपाय जो कई विशेषज्ञों ने सुझाया है, वह है, सड़क पर गर्मी को परावर्तित करने वाली परत और ठंडे फुटपाथ बनाना. ये ऐसे हों जो कि सूरज से कम गर्मी सोखें. साथ ही इनके जरिये पानी भी जमीन के नीचे जा सकता है, जिससे बाढ़ से होने वाला नुकसान भी घटाया जा सकता है.
पेट्रोलियम से बनी सामान्य डामर के मुकाबले पेड़ से निकाले गए रेजिन से बने ठंडे फुटपाथ की सतह चमकीली होती है और गर्मी को भी कम सोखती है. इसके अलावा, रंगीन डामर और हल्के रंग के कंक्रीट का मिश्रण भी इसके लिए कारगर हो सकता है.
हाईवे और हवाई पट्टियों पर इस्तेमाल होने वाले बिटुमिन को भी कुछ संशोधन के साथ बेहतर बनाया जा सकता है, जो गर्मी का असर घटा कर सड़कों को ज्यादा टिकाऊ बना सकते हैं.
कंक्रीट का कार्बन उत्सर्जन भले ही ज्यादा होता हो लेकिन इसकी गर्मी सहने की क्षमता अधिक होती है और यह गर्म मौसम में भी लंबे समय तक टिका रह सकता है.
परंपरागत सड़कों और पगडंडियों को भी लचीला और गर्मी सहने योग्य बनाया जा सकता है. जिसके लिए डामर में पेविंग फैब्रिक, जियोटेक्सटाइल्स या स्ट्रेस अब्जॉर्बिंग मेम्ब्रेन लेयर (तनाव सोखने वाली परतें) जैसे कि सीलमैक ग्रीन को मिलाया जा सकता है.
सार्वजनिक परिवहन को सुरक्षित बनाना
जब रेलवे ट्रैक सूरज की अत्यधिक गर्मी में मुड़ जाते हैं तो इससे ट्रेनों में लंबी देरी होती है और कभी-कभी तो ट्रेन पटरी से उतर भी जाती है.
विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि अगर ट्रेनों को भविष्य में सामान ढोने के लिए कम-कार्बन उत्सर्जन वाला बेहतर विकल्प बनना है, तो उन्हें बढ़ते तापमान का सामना करने के लिए सक्षम बनाना होगा.
यूके में नेटवर्क रेल के ट्रेन संचालकों ने गर्मी में ट्रैक के फैलाव को कम करने के लिए रेल के कुछ हिस्सों को सफेद रंग से रंग रही है ताकि वह कम गर्मी सोखे और कम फैले. सफेद रंग की रेल ट्रैक की सतह सामान्य से लगभग 10 डिग्री सेल्सियस तक ज्यादा ठंडी रह सकती है.
रेल ट्रैक को मुड़ने से रोकने का एक और तरीका भी है. जैसे पुराने लकड़ी के स्लीपरों की जगह पर मजबूत कंक्रीट स्लैब का इस्तेमाल करना.
इसी दौरान, वॉशिंगटन डी.सी. के मेट्रो ट्रेन ऑपरेटरों ने 2024 की गर्मी में ट्रेन का तापमान 52 डिग्री सेल्सियस पहुंचने पर ट्रेनों की अधिकतम गति घटाकर 56 किमी प्रति घंटा कर दी ताकि ट्रेन के पटरी से उतरने वाली घटनाओं से बचा जा सके.
टेक्सस यूनिवर्सिटी में सिविल इंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रोफेसर,सयूण पॉल हैम के अनुसार गर्मी सहन करने वाले तत्व जैसे कि हार्ड मार्टनसाइट रेल स्टील का इस्तेमाल करके भी रेल ट्रैक के फैलने के खतरे को कम किया जा सकता है.
एक और तरीका यह भी हो सकता है कि हाइड्रोलिक "टेंसर” मशीनों की मदद से रेलवे ट्रैक को बिछाते समय ही थोड़ा खींच दिया जाए. जिससे कि ट्रैक गर्म होने पर ज्यादा फैलेगा नहीं और मुड़ने या टेढ़ा होने की संभावना भी कम हो जाएगी.
पुलों को भी कमजोर कर रही भीषण गर्मी
पुल, जो ज्यादातर स्टील से बने होते हैं और सड़कों और ट्रेनों को नदियों या बंदरगाहों के ऊपर से ले जाने में मदद करते हैं. वह भी गर्मी के कारण खराब हो रहे हैं.
कोलोराडो स्टेट यूनिवर्सिटी की 2019 की एक स्टडी के अनुसार, अमेरिका के करीब छह लाख पुलों में से एक चौथाई पुलों का कोई भी हिस्सा 2040 तक गिर सकता है, क्योंकि बढ़ते तापमान की वजह से पुलों को सहारा देने वाले जोड़ों पर तनाव बढ़ रहा है.
एक्सपेंशन जॉइंट्स यानी फैलने वाले जोड़, जो पुल की लंबाई में होते हैं और उनका काम होता है कि जब तापमान बढ़े या घटे तो पुल के ढांचे में लचीलापन बनाये रहे. लेकिन यह जोड़ अक्सर मलबे या गंदगी से भर जाते हैं और गर्मी बढ़ने पर पुल फैल नहीं पाता और जॉइंट्स कमजोर या खराब हो जाते हैं.
कारें ले जा रही हैं जर्मनी को जलवायु लक्ष्यों से दूर
अधिकांश पुल जलवायु परिवर्तन की चरम स्थितियों को ध्यान में रखे बिना बनाये गए हैं. लेकिन न्यू जर्सी की रुटगर्स यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता अब ऐसे पुलों की क्षति का सिमुलेशन (नकल) बना रहे हैं. जिन पर वह लगभग -18 से 40 डिग्री सेल्सियस तक के तेज तापमान बदलाव से होने वाले दबाव डाल रहे हैं.
इसका उद्देश्य यह है कि भविष्य में पुल इस तरह से डिजाइन किए जाएं कि उनमें बेयरिंग्स (सहारा देने वाले हिस्से) हों. ये वजन को संभाल सकें और बिना खराब हुए गर्मी भी झेल सके.
इसके अलावा, अत्यधिक तापमान के दौरान और बाद में नियमित रूप से इनका जरूरी निरीक्षण किया जाएं ताकि ढांचे को समय रहते गंभीर नुकसान से बचाया जा सके.
रिसर्चर बताते हैं कि अमेरिका में कई बड़े पुलों को फिर से बनाया जा रहा है ताकि उन्हें जलवायु के अनुकूल बनाया जा सके. जैसे गोएथल्स ब्रिज, जो न्यू जर्सी और न्यूयॉर्क को जोड़ता है. 1928 के पुराने पुल की जगह 2018 में उसको एक आधुनिक रूप में दोबारा बनाया गया था. यह नया पुल बेहद गर्मी को सहन करने के लिए डिजाइन किया गया है और इसका लक्ष्य है कि यह कम से कम 100 साल तक मजबूती से टिका रह सके.