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तो ऐसे जीता डॉनल्ड ट्रंप ने सबसे बड़ा चुनाव

९ नवम्बर २०१६

सब कह रहे थे कि डॉनल्ड ट्रंप तो राष्ट्रपति बनने के लायक ही नहीं हैं. ट्रंप ने सबको गलत साबित कर दिया. यह लगभग एक करिश्मा है. लेकिन उन्होंने सबको गलत कैसे साबित किया.

USA Wahlkampf Republikaner Donald Trump in Sarasota, Florida
तस्वीर: Getty Images/C. Somodevilla

एक रिऐलिटी टीवी स्टार अमेरिका का राष्ट्रपति बनने जा रहा है. डॉनल्ड ट्रंप ने सबको गलत साबित कर दिया. सारे सर्वेक्षण, पॉलिटिकल पंडितों की भविष्यवाणियां और पहली महिला राष्ट्रपति बनने की उम्मीदें धरी रह गईं. जिस शख्स को लगभग सभी ने सिरे से खारिज किया, राष्ट्रपति बनने लायक माना ही नहीं, वह धमाकेदार जीत के साथ व्हाइट हाउस जा रहा है. ट्रंप ने ऐसा कैसे किया?

अपनी जीत के बाद भाषण में ट्रंप ने कहा, "हमारा चुनाव प्रचार अभियान नहीं था, एक महान आंदोलन था." दरअसल, यह एक आंदोलन था जो असंतोष पर टिका था. रॉयटर्स और इप्सोस ने अमेरिका में वोटिंग वाले दिन एक सर्वे किया था. इसमें पता चला कि देश के ज्यादातर लोग अपने हालात से नाखुश थे. 60 फीसदी लोगों ने कहा कि देश गलत दिशा में जा रहा है. 58 प्रतिशत लोगों ने कहा कि अमेरिका जैसा बन गया है, वैसा मुझे नहीं चाहिए. और 75 प्रतिशत लोगों ने कहा कि अमेरिका को एक ऐसे मजबूत नेता की जरूरत है तो अमीरों से देश को वापस ले सके. इस सर्वे के विश्लेषण में यह बात सामने आई कि जो लोग देश की दिशा से नाखुश थे उनके ट्रंप के पक्ष में वोट करने की संभावना क्लिंटन से तीन गुना ज्यादा थी.

इस बार अमेरिका का राष्ट्रपति चुनाव एक विभाजनकारी अभियान पर आधारित था. ऐसे अभियान में ट्रंप ने ऐसी ऐसी मुश्किलों को भी पार किया, जो किसी भी अन्य कैंडिडेट को धराशायी कर सकती थीं. जब उन पर महिलाओं के बारे में अभद्र टिप्पणियां करने का आरोप लगा तो उन्होंने कहा, हां मैंने ऐसा कहा. जब उनसे अपने टैक्स रिटर्न सार्वजनिक करने की मांग हुई तो उन्होंने कहा, मैं नहीं करूंगा. उन्होंने एक विकलांग रिपोर्टर का मजाक उड़ाया. उन्होंने एक अमेरिकी मुस्लिम सैनिक के परिवार के बारे में ऊल-जुलूल बातें कहीं. उन्होंने एक अमेरिकी संघीय जज पर तीखी टिप्पणियां कीं. उन्होंने मीडिया पर सीधे और तीखे हमले किए. उन्होंने अमेरिका की चुनाव प्रक्रिया पर सवाल उठाए. लेकिन इस सबके बावजूद वह जीत गए.

ट्रंप के एक समर्थक और रिपब्लिकन रणनीतिकार फोर्ड ओ कॉनल कहते हैं, "वह गलतियों से भरे हुए उम्मीदवार थे लेकिन उनका संदेश गलतियों से लगभग पूरी तरह साफ था. मुझे नहीं लगता कि (उनका विरोध करने वाले) बहुत ज्यादा लोग इस बात को समझ पाए."

अमेरिका में यह असंतोष का दौर था. लोग अर्थव्यवस्था से, सत्ता प्रतिष्ठान से और अमेरिका के विदेशों में प्रदर्शन से संतुष्ट नहीं थे. ट्रंप ने इस बात को पकड़ा और इसी लहर पर अपनी नाव पार लगा ली. श्वेत लोगों और अल्पसंख्यकों, शहरियों और ग्रामीणों, मजदूरों और बड़ी नौकरियां करने वालों के बीच बढ़ती खाई का उन्होंने भरपूर फायदा उठाया. जिन श्वेत लोगों के पास कॉलेज डिग्री नहीं थी, उनके बीच ट्रंप ने क्लिंटन को 31 पॉइंट्स से हराया. बिना कॉलेज डिग्री वाली महिलाओं के बीच भी ट्रंप ने क्लिंटन को 27 पॉइंट्स पीछे छोड़ा.

ट्रंप को सबसे बड़ा फायदा इस बात का हुआ कि उनके सामने जो उम्मीदवार थी, उनमें बहुत दोष थे. क्लिंटन लगातार विवादों से जूझती रहीं. निजी ईमेल विवाद से लेकर अपने पारिवारिक फाउंडेशन को मिले धन के इस्तेमाल तक लगातार उनके सामने ऐसे विवाद आए जो खुद उनके वोटर यानी डेमोक्रैट्स को परेशान करते रहे. जिस वोटर को क्लिंटन का सबसे बड़ा समर्थक माना जा रहा था, यानी महिलाएं, युवा और अल्पसंख्यक वे भी पूरी तरह क्लिंटन के समर्थन में नहीं आए. इन तीनों समूहों में क्लिंटन जीतीं जरूर लेकिन जीत का अंतर बहुत कम रहा. 49 फीसदी महिलाओं ने क्लिंटन का समर्थन किया जबकि 47 फीसदी ने ट्रंप का. 18 से 34 साल की उम्र वाले 55 प्रतिशत वोटरों ने क्लिंटन को वोट दिया जबकि 38 प्रतिशत ने ट्रंप को.

ट्रंप को सबसे बड़ा फायदा श्वेत वोटरों में हुआ. कुल श्वेत वोटों का 56 फीसदी उन्हें मिला जबकि क्लिंटन को सिर्फ 39 फीसदी.

ट्रंप ने उन लोगों की बात की जो विभिन्न आंदोलनों की वजह से पीछे छूट गए थे. वे चाहे मजदूर हों या बहुसंख्य श्वेत अमेरिकी. इस बात का असर कितना ज्यादा हुआ होगा, इसका अंदाजा लगाने के लिए सिर्फ यही तथ्य काफी है कि 1988 के बाद पहली बार रिपब्लिकन पार्टी पेनसिल्वेनिया में जीती है. आयोवा से रिपब्लिकन पार्टी के पुराने नेता क्रेग रॉबिन्सन कहते हैं कि एक ऐसे चुनाव में जब पारंपरिक समझ बार-बार गलत साबित हो रही थी, तब पॉलिटिकल पंडित उसी समझ के आधार पर विश्लेषण करते रहे और गलत साबित हुए.

वीके/एके (रॉयटर्स)

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