सब कह रहे थे कि डॉनल्ड ट्रंप तो राष्ट्रपति बनने के लायक ही नहीं हैं. ट्रंप ने सबको गलत साबित कर दिया. यह लगभग एक करिश्मा है. लेकिन उन्होंने सबको गलत कैसे साबित किया.
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एक रिऐलिटी टीवी स्टार अमेरिका का राष्ट्रपति बनने जा रहा है. डॉनल्ड ट्रंप ने सबको गलत साबित कर दिया. सारे सर्वेक्षण, पॉलिटिकल पंडितों की भविष्यवाणियां और पहली महिला राष्ट्रपति बनने की उम्मीदें धरी रह गईं. जिस शख्स को लगभग सभी ने सिरे से खारिज किया, राष्ट्रपति बनने लायक माना ही नहीं, वह धमाकेदार जीत के साथ व्हाइट हाउस जा रहा है. ट्रंप ने ऐसा कैसे किया?
अपनी जीत के बाद भाषण में ट्रंप ने कहा, "हमारा चुनाव प्रचार अभियान नहीं था, एक महान आंदोलन था." दरअसल, यह एक आंदोलन था जो असंतोष पर टिका था. रॉयटर्स और इप्सोस ने अमेरिका में वोटिंग वाले दिन एक सर्वे किया था. इसमें पता चला कि देश के ज्यादातर लोग अपने हालात से नाखुश थे. 60 फीसदी लोगों ने कहा कि देश गलत दिशा में जा रहा है. 58 प्रतिशत लोगों ने कहा कि अमेरिका जैसा बन गया है, वैसा मुझे नहीं चाहिए. और 75 प्रतिशत लोगों ने कहा कि अमेरिका को एक ऐसे मजबूत नेता की जरूरत है तो अमीरों से देश को वापस ले सके. इस सर्वे के विश्लेषण में यह बात सामने आई कि जो लोग देश की दिशा से नाखुश थे उनके ट्रंप के पक्ष में वोट करने की संभावना क्लिंटन से तीन गुना ज्यादा थी.
ये होंगी नए अमेरिकी राष्ट्रपति की चुनौतियां
अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में जीत डॉनल्ड ट्रंप की हुई है, आइए जानते हैं उनकी चुनौतियां क्या होंगी?
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अर्थव्यवस्था
अमेरिकी अर्थव्यवस्था को मजबूत करना नए अमेरिकी राष्ट्रपति की अहम प्राथमिकताओं में शामिल होगा. 2008 के आर्थिक संकट के असर से अब भी अमेरिकी मध्य और कामकाजी वर्ग आजाद नहीं हो पाया है.
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गैर कानूनी प्रवासी
मेक्सिको के अलावा मध्य और दक्षिणी अमेरिका से आने प्रवासी अमेरिका में एक बड़ा मुद्दा हैं. ट्रंप इन्हें रोकने के लिए मेक्सिको की सीमा पर दीवार लगाने की बात भी कह चुके हैं. वहीं कई लोग अर्थव्यवस्था में प्रवासियों के योगदान को सराहते हैं, हालांकि गैर कानूनी प्रवासियों को वो भी रोकने के हक में हैं.
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गन क्राइम
अमेरिका में गन कल्चर लगातार बहस का विषय रहा है. पुलिस और सेना के अलावा भी देश में लगभग 31 करोड़ बंदूकें हैं. अकसर अमेरिका में होने वाली गोलीबारी को गन कल्चर से जोड़ा जाता है. राष्ट्रपति ओबामा इस पर रोक लगाना चाहते हैं, लेकिन उन्हें पर्याप्त समर्थन नहीं मिला.
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इस्लामी कट्टरपंथ और आतंकवाद
सीरिया, इराक, अफगानिस्तान और लीबिया से लेकर यूरोप तक में इस्लामी आतंकवाद ने हाल के सालों में हजारों लोगों की जानें ली हैं. इस्लामी आतकंवाद के चलते मध्य पूर्व में अशांति है और इसी कारण यूरोप प्रवासी संकट का सामना कर रहा है. इससे निपटना नए अमेरिकी राष्ट्रपति की बड़ी चुनौती होगी.
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जलवायु परिवर्तन
दुनिया के बढ़ते तापमान को किस तरह काबू किया जाए, ये चुनौती भी नए अमेरिका राष्ट्रपति के सामने होगी. अमेरिका में भी प्रदूषण और जंगलों के कटाव की समस्या बढ़ रही है.
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राजनयिक मोर्चा
नए अमेरिकी राष्ट्रपति को कूटनीतिक मोर्चे पर भी जूझना होगा. चीन और रूस के अलावा विश्व मंच पर उभर रहे नए समीकरणों की काट भी नए अमेरिकी राष्ट्रपति को तलाशनी होगी.
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इस बार अमेरिका का राष्ट्रपति चुनाव एक विभाजनकारी अभियान पर आधारित था. ऐसे अभियान में ट्रंप ने ऐसी ऐसी मुश्किलों को भी पार किया, जो किसी भी अन्य कैंडिडेट को धराशायी कर सकती थीं. जब उन पर महिलाओं के बारे में अभद्र टिप्पणियां करने का आरोप लगा तो उन्होंने कहा, हां मैंने ऐसा कहा. जब उनसे अपने टैक्स रिटर्न सार्वजनिक करने की मांग हुई तो उन्होंने कहा, मैं नहीं करूंगा. उन्होंने एक विकलांग रिपोर्टर का मजाक उड़ाया. उन्होंने एक अमेरिकी मुस्लिम सैनिक के परिवार के बारे में ऊल-जुलूल बातें कहीं. उन्होंने एक अमेरिकी संघीय जज पर तीखी टिप्पणियां कीं. उन्होंने मीडिया पर सीधे और तीखे हमले किए. उन्होंने अमेरिका की चुनाव प्रक्रिया पर सवाल उठाए. लेकिन इस सबके बावजूद वह जीत गए.
ट्रंप के एक समर्थक और रिपब्लिकन रणनीतिकार फोर्ड ओ कॉनल कहते हैं, "वह गलतियों से भरे हुए उम्मीदवार थे लेकिन उनका संदेश गलतियों से लगभग पूरी तरह साफ था. मुझे नहीं लगता कि (उनका विरोध करने वाले) बहुत ज्यादा लोग इस बात को समझ पाए."
अमेरिका में यह असंतोष का दौर था. लोग अर्थव्यवस्था से, सत्ता प्रतिष्ठान से और अमेरिका के विदेशों में प्रदर्शन से संतुष्ट नहीं थे. ट्रंप ने इस बात को पकड़ा और इसी लहर पर अपनी नाव पार लगा ली. श्वेत लोगों और अल्पसंख्यकों, शहरियों और ग्रामीणों, मजदूरों और बड़ी नौकरियां करने वालों के बीच बढ़ती खाई का उन्होंने भरपूर फायदा उठाया. जिन श्वेत लोगों के पास कॉलेज डिग्री नहीं थी, उनके बीच ट्रंप ने क्लिंटन को 31 पॉइंट्स से हराया. बिना कॉलेज डिग्री वाली महिलाओं के बीच भी ट्रंप ने क्लिंटन को 27 पॉइंट्स पीछे छोड़ा.
ट्रंप पर क्या बोली दुनिया
अमेरिका में रिपब्लिकन उम्मीदवार डॉनल्ड ट्रंप की जीत पर दुनिया एक अजीब से सदमे में थी. खुशी की लहर तो कहीं नहीं दिख रही है. प्रतिक्रियाएं या तो बुरी हैं या संतुलित.
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इंडोनेशिया
इंडोनेशिया के सोशल मीडिया पर लोग पूछ रहे थे कि अमेरिका ऐसे व्यक्ति को राष्ट्रपति कैसे चुन सकता है. इस्लामिक देश इंडोनेशिया में फेसबुक और ट्विटर समेत तमाम सोशल मीडिया वेबसाइटों पर लोग कयास लगा रहे थे कि चुनाव प्रचार के दौरान जो कुछ ट्रंप ने बोला है, उस पर वह अमल करेंगे या नहीं. कुछ लोगों ने तो यह तक डर जताया कि ट्रंप के प्रशासन में वे अपने रिश्तेदारों से मिलने अमेरिका जा पाएंगे या नहीं.
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क्यूबा
अमेरिका के साथ संबंध सामान्य करने में जुटे क्यूबा को बराक ओबामा प्रशासन से जिस तरह का समर्थन मिल रहा था, उस पर अब संदेह के बादल नजर आने लगे हैं. ट्रंप ने वादा किया है कि अगर क्यूबा के राष्ट्रपति राउल कास्त्रो ने और ज्यादा राजनीतिक आजादी नहीं दी तो वह संबंधों को बेहतर बनाने वाले फैसले पलट देंगे. कुछ लोगों ने कहा कि उनकी जिंदगी में जो थोड़े बहुत सुधार होने लगे थे, अब क्या पता वे फिर से छिन जाएं.
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चीन
चीन के ब्लॉगर वांग यिमिंग ने उम्मीद जताई है कि एक रिपब्लिकन राष्ट्रपति चीन में अभिव्यक्ति की आजादी के लिए ज्यादा जोर लगाएगा.बीजिंग यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर लू बिन कहते हैं कि वह किसी के समर्थक नहीं हैं लेकिन ट्रंप की छवि एक जेंटलमैन की नहीं है और राष्ट्रपति पद पर आप ऐसे व्यक्ति को चाहते हैं जो देश की छवि पेश करे.
तस्वीर: Getty Images/J. Watson
ऑस्ट्रेलिया
ऑस्ट्रेलियाई विदेश मंत्री जूली बिशप ने कहा कि सरकार तो जो बनेगा, उसके साथ काम करेगी. उन्होंने कहा कि अमेरिका हमारा मुख्य सुरक्षा सहयोगी है और सबसे बड़ा विदेशी निवेशक भी.
तस्वीर: Reuters/C. Barria
न्यूजीलैंड
एक बार में अमेरिकी चुनावों के नतीजे देखते वक्त 22 साल की एक स्टूडेंट सारा पेरेरा ने कहा कि वह अमेरिकी संसद में इंटर्नशिप करने जा रही हैं लेकिन ट्रंप की जीत से डर लग रहा है. इसी हफ्ते एक स्कॉलरशिप पर अमेरिका जा रही सारा कहती हैं कि ट्रंप का राष्ट्रपति बनना अमेरिका के अंतरराष्ट्रीय संबंधों के लिए विनाशकारी हो सकता है.
तस्वीर: Getty Images/S. Platt
जापान
जापान के विशेषज्ञों को लग रहा है कि अमेरिका की जापान नीति में बड़ा बदलाव हो सकता है. लेकिन सरकार ने कहा है कि वह अमेरिका-जापान रणनीतिक संबंधों की बेहतरी के लिए काम करती रहेगी.
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भारत
भारत में डॉनल्ड ट्रंप की जीत की उम्मीद की जा रही थी. वहां उन्हें बड़ी संख्या में समर्थक मिले थे. इसलिए एक तरह की खुशी देखी जा रही है. भारत के जाने माने पत्रकार प्रभु चावला ने ट्वीट किया है कि उदारवादियों ने कहा था, मोदी जीते तो देश छोड़ जाएंगे. अब वे अमेरिका भी नहीं जा सकते जो हमेशा उनका नेचुरल हैबिटैट रहा है.
तस्वीर: Getty Images/S. Platt
जर्मनी
जर्मनी की रक्षा मंत्री उरसुला फॉन डेअ लाएन ने कहा है कि अमेरिका का घटनाक्रम उनके लिए एक बड़ा धक्का है. अमेरिकी चुनाव नतीजों में रिपब्लिकन उम्मीदवार डॉनल्ड ट्रंप की बढ़त के बाद उनका ये बयान आया है. जर्मन टीवी चैनल एआरडी से बातचीत में उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि ट्रंप इस बात को जानते हैं कि ये वोट उनके लिए नहीं हैं, बल्कि वॉशिंगटन के खिलाफ है, वहां के प्रतिष्ठान के खिलाफ हैं."
तस्वीर: Getty Images/C. Somodevilla
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ट्रंप को सबसे बड़ा फायदा इस बात का हुआ कि उनके सामने जो उम्मीदवार थी, उनमें बहुत दोष थे. क्लिंटन लगातार विवादों से जूझती रहीं. निजी ईमेल विवाद से लेकर अपने पारिवारिक फाउंडेशन को मिले धन के इस्तेमाल तक लगातार उनके सामने ऐसे विवाद आए जो खुद उनके वोटर यानी डेमोक्रैट्स को परेशान करते रहे. जिस वोटर को क्लिंटन का सबसे बड़ा समर्थक माना जा रहा था, यानी महिलाएं, युवा और अल्पसंख्यक वे भी पूरी तरह क्लिंटन के समर्थन में नहीं आए. इन तीनों समूहों में क्लिंटन जीतीं जरूर लेकिन जीत का अंतर बहुत कम रहा. 49 फीसदी महिलाओं ने क्लिंटन का समर्थन किया जबकि 47 फीसदी ने ट्रंप का. 18 से 34 साल की उम्र वाले 55 प्रतिशत वोटरों ने क्लिंटन को वोट दिया जबकि 38 प्रतिशत ने ट्रंप को.
ट्रंप को सबसे बड़ा फायदा श्वेत वोटरों में हुआ. कुल श्वेत वोटों का 56 फीसदी उन्हें मिला जबकि क्लिंटन को सिर्फ 39 फीसदी.
ट्रंप ने उन लोगों की बात की जो विभिन्न आंदोलनों की वजह से पीछे छूट गए थे. वे चाहे मजदूर हों या बहुसंख्य श्वेत अमेरिकी. इस बात का असर कितना ज्यादा हुआ होगा, इसका अंदाजा लगाने के लिए सिर्फ यही तथ्य काफी है कि 1988 के बाद पहली बार रिपब्लिकन पार्टी पेनसिल्वेनिया में जीती है. आयोवा से रिपब्लिकन पार्टी के पुराने नेता क्रेग रॉबिन्सन कहते हैं कि एक ऐसे चुनाव में जब पारंपरिक समझ बार-बार गलत साबित हो रही थी, तब पॉलिटिकल पंडित उसी समझ के आधार पर विश्लेषण करते रहे और गलत साबित हुए.