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प्रतिबंधों के बावजूद यूक्रेन से कैसे निकल रहे हैं मर्द

ईरीना चेतायोवा
२१ जुलाई २०२२

यूक्रेन ने युद्ध की शुरुआत में ही कुछ अपवाद के साथ पुरुषों के देश छोड़ कर जाने पर रोक लगा दी थी. हालांकि बहुत से पुरुष देश के बाहर जाना चाहते हैं और उन्हें भी इसका रास्ता मिल ही जा रहा है, हां कीमत जरूर चुकानी पड़ती है.

यूक्रेन-पोलैंड सीमा
यूक्रेन-पोलैंड सीमातस्वीर: Leon Kügeler/BMEL/photothek/picture alliance

एंटन (बदला हुआ नाम) यूक्रेन में एक व्यापारी थे. 24 फरवरी को रूसी हमले से बच कर भागने के लिए अपनी बीवी और दो बच्चों के साथ कार में सीमा पर आए. आमतौर पर इस सफर में कुछ ही घंटे लगते हैं लेकिन उन्हें इसमें पूरा दिन लग गया.

हालांकि अभी वो रास्ते में ही थे कि यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने 18 से 60 साल की उम्र वाले पुरुषों के देश छोड़ कर जाने पर प्रतिबंध लगा दिया. इसका मतलब कि उनके बीवी और बच्चों को यूरोपीय संघ में जाने की छूट मिली लेकिन वे पीछे ही रह गए. हालांकि इसके तुरंत बाद ही वो परिवार के पास  जाने के तरीकों की खोज में जुट गए.

एंटन ने कहा, "परिवार के प्रति कर्तव्य प्राथमिकता है." इसके बाद वो कार लेकर रोमानिया की सीमा पर एक गांव में पहुंचे. उनका इरादा तिस्चा नदी को पार करने का था. एंटन ने डीडब्ल्यू को बताया, "हम कई लोग थे लेकिन स्थानीय लोगों ने धोखा दिया और हम पकड़े गये. हम तो नदी तक भी नहीं पहुंच पाए."

एंटन ने यह भी बताया कि इसके बाद उन्हें पता चला कि आमतौर पर तस्कर चार लोगों को नदी तक ले जाते हैं और 5,000 डॉलर प्रति व्यक्ति ले कर उन्हें नदी पार करने का रास्ता दिखाते हैं. एंटन को तुरंत ही सेना में भर्ती तो कर लिया गया लेकिन उनके लिए तुरंत कोई उपयुक्त काम नहीं मिला. ऐसे में वह घर वापस आ गये और बाहर जाने की नई योजना बनाई.

सोशल नेटवर्क पर सुराग मिला

देश छोड़ने पर लगा प्रतिबंध अकेले पिताओं पर लागू नहीं होता. इसके साथ ही जिन लोगों के तीन या उससे ज्यादा बच्चे हैं और जो लोग विकलांग हैं, उन पर भी. विदेशी यूनिवर्सिटियों के छात्र, मानवीय सहायता के काम में जुटी गाड़ियों के ड्राइवर इसके साथ ही जिन लोगों के पास देश के बाहर स्थायी रूप से रहने की अनुमति है उन्हें भी प्रतिबंध से छूट मिली है.

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कुछ लोग इनमें से किसी वर्ग में नहीं आते लेकिन फिर भी यूक्रेन छोड़ना चाहते हैं उन्होंने क्राइमिया से हो कर जाने का रास्ता चुना, जिसे रूस ने अलग कर अपने साथ मिला लिया है. कुछ दूसरे लोगों ने विदेशी यूनिवर्सिटियों में दाखिला लिया है, या फिर आपातकालीन मदद पहुंचा रहे एजेंसियों में ड्राइवर या फिर स्वयंसेवी बन कर शामिल हो गए हैं. कुछ लोग कथित ग्रीन बॉर्डर से पैदल ही सीमा पार करने की भी कोशिश कर रहे हैं.

सोशल नेटवर्क कई तरह के सुराग देते हैं. इंस्टाग्राम अकाउंट "डिपार्चर फॉर एवरीवन" के 14 हजार से ज्यादा फॉलोअर हैं. निजी चैट में यह जानकारी दी जाती है कि कैसे पोलैंड या किसी और यूरोपीय देश की यूनिवर्सिटी में दाखिला हो सकता है. इसके लिए युद्ध शुरू होने से पहले तारीख में 980 यूरो की रकम लेकर 10 दिन के भीतर दाखिला हो जा रहा है.

'मेरे जैसे लोग देशद्रोही कहे जाते हैं'

एंटन अपने दोस्तों के चैरिटी फाउंडेशन की मदद से यूक्रेन छोड़ने में सफल हो गए. उनका कहना है, "फाउंडेशन ने एग्जिट परमिट के लिए आवेदन किया. हम सभी ड्राइव करके गए और कारें मानवीय सहायता के साथ यूक्रेन वापस लौट आईं लेकिन मैं यूरोपीय संघ में ही रह गया. मेरे जैसे लोगों को गद्दार कहा जाता है."

एंटन ने यह भी कहा, "मैं मोर्चे पर जाने से नहीं डरता, अगर मेरे बच्चे नहीं होते तो मैं बहुत पहले वहां चला जाता लेकिन हमारे बच्चे हैं और मेरी बीवी को उनके साथ अकेले जीना होगा."

यह दिख रहा है कि देश के बाहर जाने में लोगों की काफी दिलचस्पी है. टेलिग्राम चैनल "लीगल मूव अब्रॉड" के 53,000 से ज्यादा फॉलोअर हैं और इसके बैकअप चैनल "हेल्प एट द बॉर्डर" के 28,000 फॉलोअर हैं. 1,500 डॉलर लेकर "हेल्प एट दा बॉर्डर" एक सर्टिफिकेट देता है कि फलां व्यक्ति को सैनिक सेवा से स्वास्थ्य कारणों से छूट मिली है. एक और ऑफर भी है जिसमें देश के बाहर जाने के लिए मानवीय सहायता के ट्रक का ड्राइवर बनाया जाता है. कथित रूप से इसमें हर दिन 10 लोगों को बाहर भेजा जाता है और इसके बदले उनसे 2000 डॉलर वसूले जाते हैं.

टेलिग्राम उन लोगों के रीव्यू भी पोस्ट करता है जिन्होंने कथित रूप से इन सेवाओं का इस्तेमाल कियाः "मैं एक हेल्पर के रूप में गया, मैंने जितना सोचा था, हर चीज उससे बहुत तेज और आसान थी," "बहुत शुक्रिया मेरे बेटे की मदद के लिए अब वह इटली में है," "मैं बुल्गारिया में आ गया हूं, मैं आभारी हूं." डीडब्ल्यू ने ऐसे बहुत से यूजरों को संदेश भेजा लेकिन इनमें से सिर्फ एक ने जवाब दिया कि मैं "किसी को जोखिम में डालना या कुछ बताना" नहीं चाहता.

शरणार्थी पोलैंड और जर्मनी में

संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक 24 फरवरी से अब तक 90 लाख से ज्यादा यूक्रेनी लोग देश के बाहर गए हैं. डीडब्ल्यू ने यूक्रेन के सीमा नियंत्रण सेवा से पूछा कि इस आंकड़े में पुरुषों की कितनी संख्या है लेकिन अब तक कोई जवाब नहीं मिला. यूक्रेन के गृह मंत्रालय ने एक मार्च को यह रिपोर्ट दी कि सैनिक सेवा के योग्य करीब 80,000 पुरुष देश में वापस आए हैं, "संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा के लिए" इनमें से ज्यादातर 24 फवरी के बाद आए.

ऐलेग्जैंडर गुमिरोवतस्वीर: Privat

ज्यादातर शरणार्थियों को पोलैंड और जर्मनी में जगह मिली है. पोलैंड ने करीब 36 लाख लोगों को शरण दी है. इनमें 432,000 पुरुष हैं और इनकी उम्र 18-60 साल के बीच है. ये लोग 24 फरवरी से 7 जून के बीच आए. जर्मनी में फरवरी के आखिर से 19 जून के बीच आए कुल 867,214 शरणार्थियों के नाम दर्ज हैं. संघीय गृह मंत्रालय की ओर से कराए सर्वे के मुताबिक इनमें 48 फीसदी औरतें बच्चों के साथ हैं, 14 फीसदी अकेली औरतें हैं और 7 फीसदी पुरुष और बच्चे हैं जबकि 3 फीसदी ऐसे पुरुष हैं जो अकेले आये हैं.

एक याचिका और कई रिश्वतें

मई में ओडेसा के वकील आलेक्जांडर गुमिरोव ने एक याचिका शुरू कर मांग रखी की यूक्रेन पुरुषों के विदेश जाने पर लगी रोक हटा ले, इसकी बजाय उन्होंने स्वयंसेवकों के नियुक्ति की मांग की. कुछ ही दिनों में इस याचिका पर 25,000 लोगों ने दस्तखत किये. इसका मतलब था कि राष्ट्रपति को इस फैसले पर पुनर्विचार करना पड़ा. इसके जवाब में राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने कहाः यह याचिका उन सैनिकों के मां बाप को संबोधित की जानी चाहिए जिनके बच्चे यूक्रेन की रक्षा करते हुए मारे गये.

गुमिरोव अब भी प्रतिबंध को बेकार मानते हैं. उनका कहना है, "अगर कोई इंसान अपने आजाद, प्यारे देश, अपने परिवार और घर की रक्षा करना चाहता है तो फिर उसके देश छोड़ने पर किसी प्रतिबंध की कोई जरूरत नहीं." इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि अगर लोग अपने घर को नहीं बचाना चाहते तो यह प्रतिबंध गैरजरूरी है.

दो दुनियाओं के बीच फंसे हैं ये बच्चे

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यूक्रेन में बहुत से पुरुषों के पास कोई नकौरी नहीं है. गुमिरोव के मुताबिक वे ना तो अपने परिवार को खिला सकते हैं ना ही कोई टैक्स देते हैं. गुमिरोव का यह भी कहना है कि यह प्रतिबंध भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहा है, हर कोई रिश्वत का ऑफर लेकर ही आता है. 

दमित्रो बुसानोव कीव में वकील हैं. उनका कहा है कि संविधान के मुताबिक यूक्रेन से बाहर जाने के अधिकार पर रोक सिर्फ कानून के जरिये ही लगाई जा सकती है जो अब तक नहीं हुआ है. वह मौजूदा प्रतिबंध को गैरकानूनी मानते हैं. बुसानोव का कहना है, "मुझे बहुत सी शिकायतें मिली हैं लेकिन लोग अदालत में मुकदमा दायर करना नहीं चाहते." उनका मानना है कि इस मामले को मानवाधिकार की यूरोपीय अदालत में लेकर जाया जा सकता है.

बहुत कम स्वयंसेवक

एक यूक्रेनी वकील ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर बताया कि विदेश जाने वाले यूक्रेनी पुरुषों की निंदा उन पुरुषों की बीवियां करती हैं जिनके पति वहां लड़ रहे हैं. इस वकील के पति भी अपनी इच्छा से मोर्चे पर लड़ने गये हैं. उनका कहना है कि वह गुमिरोव की याचिका का सैद्धांतिक रूप से समर्थन करती हैं लेकिन इसमें सही शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया गया है-यह जाहिर करता है कि लोग सब छोड़ कर जा सकते हैं और "सिर्फ स्वयंसेवकों को ही लड़ने देंगे, यह उचित नहीं है." इस वकील का कहना है कि बहुत कम ही स्वयंसेवक हैं. फिलहाल वे अपने बच्चों के साथ यूरोपीय संघ में हैं. उनके पति लड़ना चाहते थे लेकिन वो अपने बच्चों से मिलना भी चाहते हैं. उनका कहना है कि सैनिकों को छोटी छोटी छुट्टियां दे कर विदेश जाने की अनुमति मिलनी चाहिए.

एंटन अब एक यूरोपीय संघ के देश में अपने बीवी बच्चों के साथ रह रहे हैं. वह भाषा सीख रहे हैं और नौकरी की तलाश में हैं. वह इस बात से इनकार नहीं करते कि युद्ध में जीतने के बाद अपने घर लौट जायेंगे. उनके मुताबिक, "शांतिकाल में मैंने हमेशा कहा है कि यूक्रेन रहने के लिए बेहतरीन जगहों में है." वो खुद को देशभक्त भी मानते हैं और चाहते हैं कि युद्ध जितनी जल्दी हो खत्म हो जाए.

एंटन ने कहा, "मैं सेना को पैसे भेजता हूं, हम बहुत दूर हैं लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि मैं गद्दार हूं."

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