कोविड-19 की वैक्सीन ना केवल जानलेवा वायरस से सुरक्षा दे रही हैं बल्कि वैश्विक प्रभाव की लड़ाई में भी अहम भूमिका निभा रही हैं. खासतौर पर चीन और रूस के बीच.
विज्ञापन
अमेरिका अपनी वैक्सीन को देश की जनता के लिए बचा रहा है, तो यूरोप वैक्सीन की उपलब्धता से जूझ रहा है. लेकिन बीजिंग और मॉस्को के साथ ही भारत गरीब और कमजोर देशों के साथ वैक्सीन को साझा करके अपनी प्रतिष्ठा को और संवार रहा है. शोध संस्था सौफन केंद्र के मुताबिक, "इन टीकों को अरबों लोगों तक पहुंचाना अब अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. कहा जाए तो यह एक तरीके की 'हथियारों की नई दौड़' है."
चीन जो पहले से ही मास्क के वितरण के साथ महामारी की शुरुआत में ही खेल में आगे था, कई देशों को टीके की आपूर्ति करता रहा है, वह कभी-कभी मुफ्त में भी टीके दे रहा है. करीब दो लाख खुराकें अल्जीरिया, सेनेगल, सिएरा लियोन और जिंबाब्वे को भेजी जा चुकी हैं, पांच लाख खुराकें पाकिस्तान और साढ़े सात लाख डॉमिनिक गणराज्य को मिल चुकी हैं.
पेरिस स्थित अंतरराष्ट्रीय मामलों के प्रोफेसर बर्ट्रेंड बडी कहते हैं, "चीन एक समय में खुद को दक्षिणी देशों के चैंपियन के रूप में पेश करने में कामयाब रहा जब उत्तर के देश स्वार्थी बने रहे." इस बीच रूस गर्व से अपने स्पुतनिक वैक्सीन का वितरण कर रहा है, जिसका नाम सोवियत संघ द्वारा लॉन्च किए पहले उपग्रहों के नाम पर है.
यूरोप के तीन देश-हंगरी, स्लोवाकिया और चेक गणराज्य ने रूस की स्पुतनिक वैक्सीन को चुना, हालांकि इन देशों ने यूरोपियन मेडिसिंस एजेंसी (ईएमए) की मंजूरी का इंतजार नहीं किया. बडी कहते हैं, "रूस के लिए, दुनिया को यह दिखाने के लिए मौका था कि वह अमेरिका की तुलना में कोरोनो वायरस से कम पीड़ित है और यह कि रूस पश्चिमी यूरोपीय देशों की तुलना में कहीं अधिक कुशल (टीके) से लैस है, जो कि शक्ति को दोबारा हासिल करने का तरीका है." वे कहते हैं, "अंतरराष्ट्रीय संबंधों में आपके द्वारा पेश की गई छवि निर्णायक होती है."
साथ ही वे जोड़ते हैं कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की "जुनूनी इच्छा रूसी शक्ति को फिर से स्थापित करने और पश्चिमी दुनिया के साथ समानता और सम्मान पाने की है." हालांकि रूस को अपनी सीमित उत्पादन क्षमता के कारण हाथ थोड़ा पीछे करना पड़ा है.
भारत की भूमिका
भारत में बड़े पैमाने पर टीके का उत्पादन हो रहा है, उसने पड़ोसी देश श्रीलंका, नेपाल और बांग्लादेश को टीके की सप्लाई की है. यही नहीं भारत गरीबों देशों की मदद के लिए अपने यहां बने टीके की आपूर्ति कर रहा है, वह भी मुफ्त में. कई विशेषज्ञ भारत के इस कदम को चीन के दबदबे को कम करने के तौर पर देख रहे हैं.
14 देशों के लोगों में चीन के प्रति नकारात्मक नजरिया
अमेरिकी संस्था प्यू के सर्वे में पाया गया है कि पिछले एक साल में अमेरिका में चीन को लेकर नकारात्मक धारणा तेजी से बढ़ी है. यही नहीं, दुनिया के 14 विकसित देशों के लोगों के मन भी चीन के प्रति अच्छे विचार नहीं है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/M. Schiefelbein
चीन पर सर्वे
अमेरिकी रिसर्च केंद्र प्यू ने दुनिया के 14 देशों में चीन को लेकर एक सर्वे किया है और इसके चौंकाने वाले नतीजे सामने आए हैं. सर्वे अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, जर्मनी, नीदरलैंड्स, स्वीडन, दक्षिण कोरिया, स्पेन और कनाडा में कराए गए. सर्वे के मुताबिक चीन के प्रति नकारात्मक धारणाएं उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है.
तस्वीर: picture-alliance/landov
कैसे हुआ सर्वे
प्यू ने इस सर्वे को 10 जून से लेकर 3 अगस्त 2020 तक किया और सर्वे में शामिल लोगों से फोन पर उनकी राय ली गई. सर्वे कोरोना वायरस पर केंद्रित था. 14 देशों के 14,276 वयस्क लोगों ने इस सर्वे में हिस्सा लिया.
तस्वीर: leungchopan/Panthermedia/Imago Images
कोरोना वायरस का असर?
सर्वे के नतीजे ऐसे समय में सामने आए जब पूरी दुनिया कोरोना वायरस से निपट रही है और लाखों लोग अपनी जान गंवा बैठे हैं. चीन के शहर वुहान से ही कोविड-19 पूरी दुनिया में फैला है. अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में भी विदेश नीति को लेकर चीन एक बड़ा मुद्दा है.
प्यू के मुताबिक जिन 14 देशों में सर्वे किया गया है वहां के 61 फीसदी लोगों ने कहा कि चीन ने कोरोना वायरस महामारी को खराब तरीके से संभाला और 37 फीसदी लोगों ने माना कि चीन ने महामारी को लेकर अच्छे से काम किया. वहीं जब लोगों से अमेरिका द्वारा महामारी से निपटने के बारे में पूछा गया तो 84 फीसदी लोगों ने कहा कि उसने महामारी को खराब तरीके से संभाला.
तस्वीर: Reuters/C.G. Rawlins
शी जिनपिंग पर भरोसा नहीं !
सर्वे में शामिल लोगों ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग पर भरोसा नहीं जताया है. सर्वे में चीन के राष्ट्रपति की साख पर भी बट्टा लगता दिखा है. सर्वे में शामिल 78 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उन्हें जिनपिंग पर विश्व मामलों में सही तरीके से काम करने का भरोसा नहीं है. जिन लोगों ने कोरोना को लेकर चीन की प्रतिक्रिया पर सकारात्मक नजरिया रखा उनमें 10 में से चार से ज्यादा लोगों ने शी पर भरोसा नहीं जताया.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A. Solanki
ऑस्ट्रेलिया में बढ़ा नकारात्मक दृष्टिकोण
प्यू के सर्वे के मुताबिक ऑस्ट्रेलिया में चीन के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी हुई है. ऑस्ट्रेलिया में 81 फीसदी लोगों ने कहा कि वे चीन के प्रति प्रतिकूल दृष्टिकोण रखते हैं, इसमें पिछले साल के मुकाबले 24 फीसदी की बढ़ोतरी है. ऑस्ट्रेलिया चीन पर कोरोना वायरस फैलाने का आरोप लगाता आया है और अंतरराष्ट्रीय जांच की मांग उठाता आया है.
तस्वीर: Reuters/J. Ross
बाकी देशों की क्या है राय
सिर्फ कोरोना वायरस ही नहीं पड़ोसी देशों के साथ चीन के संबंध हाल के साल में खराब हुए हैं. प्यू के सर्वे के मुताबिक चीन के प्रति प्रतिकूल दृष्टिकोण रखने वाले लोगों में ब्रिटेन में 74 प्रतिशत (जो पिछले साल की तुलना में 19 प्रतिशत ज्यादा है), जर्मनी में 71 प्रतिशत (इसमें भी 15 प्रतिशत अधिक) और अमेरिका में 73 प्रतिशत (इसमें भी पिछले साल के मुकाबले 13 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई) हैं.