दुनिया के कई देशों के बीच इस समय युद्ध के हालात हैं. इनका खामियाजा कहीं न कहीं बच्चों को भुगतना पड़ रहा है. इसके चलते बचपन में ही मस्तिष्क पर हो रहे आघात उनके मानसिक विकास को स्थायी रूप से प्रभावित कर सकते हैं.
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कम से कम बीते 30 वर्षों से दुनिया उस दौर से गुजर रही है, जब कई कोनों में हिंसा एवं सशस्त्र संघर्ष अपने चरम पर है. यूक्रेन में युद्ध और गाजा में इजरायल- हमास युद्ध समेत अफ्रीका, एशिया, लैटिन अमेरिका और यूरोप में लगभग 110 सशस्त्र संघर्ष चल रहे हैं.
इनमें से कई युद्ध शहरों के अंदर और भीड़- भाड़ वाले इलाके में हो रहे हैं. कई युद्ध क्षेत्रों में उपयोग किये जा रहे मिसाइल और ड्रोन हमलों से नागरिकों, स्कूलों, अस्पतालों और बच्चों के शेल्टर यानी ठिकाने भी प्रभावित हो रहे हैं.
अधिकारियों ने चेतावनी दी है कि आधुनिक युग में हो रही भू-राजनीतिक लड़ाइयों में पहले से कहीं अधिक बच्चे पीड़ित हैं. संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेष ने बार-बार चेतावनी दी है कि बच्चों को आधुनिक संघर्षों का "असमान रूप से" खामियाजा भुगतना पड़ रहा है.
इनमें से कुछ प्रभाव शारीरिक होते हैं. युद्ध क्षेत्र में रह रहे कई बच्चों को वहां से आश्रय स्थल तक लाया जाता है. इनमें से कुछ को हमलावरों के द्वारा किए गए यौन शोषण का भी सामना करना पड़ता है. लेकिन शारीरिक घावों के अलावा युद्ध क्षेत्र में रहने वाले बच्चों को मनोवैज्ञानिक परेशानियों से भी गुजरना पड़ता है.
सबसे ज्यादा प्रतिबंधों वाले देश
यूक्रेन युद्ध के बाद रूस पर एक के बाद एक प्रतिबंध लगाए जाते रहे हैं और वह दुनिया में सबसे ज्यादा प्रतिबंधों वाला देश है. लेकिन और बहुत से देश हैं, जिन पर बड़े अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगे हुए हैं.
रूस पर इस वक्त 18,772 प्रतिबंध हैं. हालांकि 2022 में यूक्रेन पर उसके हमले की तुलना में यह छह गुना बढ़ चुके हैं. फरवरी 2022 के बाद से ही उस पर या उसके नागरिकों पर 16,000 से ज्यादा प्रतिबंध लगाए गए हैं. इनमें से 11,462 तो व्यक्तियों पर हैं.
यूक्रेन युद्ध शुरू होने के पहले ईरान दुनिया का सबसे अधिक प्रतिबंधों वाला देश था. यूएन, अमेरिका, यूरोपीय संघ और ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, भारत व इस्राएल जैसे देशों ने उस पर 3,616 प्रतिबंध लगाए हुए थे जो अब बढ़कर 4,953 हो चुके हैं.
तस्वीर: Rouzbeh Fouladi/ZUMA/picture alliance
सीरिया, तीसरे नंबर पर
सीरिया पर 2,811 प्रतिबंध हैं. हालांकि इनमें से अधिकतर 2011 के गृह युद्ध के बाद लगाए गए. अब वह प्रतिबंधों की संख्या के मामले में दुनिया में तीसरे नंबर पर है.
तस्वीर: Louai Beshara/AFP/Getty Images
उत्तर कोरिया
प्रतिबंधों के मामले में उत्तर कोरिया दशकों से अंतरराष्ट्रीय संगठनों और पश्चिमी देशों की सूची में ऊपर रहा है. फिलहाल उसके ऊपर 2,171 प्रतिबंध लगे हैं.
तस्वीर: Lee Jin-man/AP Photo/picture alliance
बेलारूस
रूस का बेहद करीबी और पड़ोसी बेलारूस प्रतिबंधों की सूची में पांचवें नंबर पर है. उस पर कुल 1,454 प्रतिबंध हैं. इनमें से एक तिहाई से ज्यादा फरवरी 2022 के बाद लगाए गए हैं.
तस्वीर: Sergei Supinsky/Getty Images/AFP
म्यांमार
2021 में सेना द्वारा लोकतांत्रिक सरकार का तख्तापलट किए जाने से पहले भी म्यांमार बड़ी संख्या में प्रतिबंध झेल रहा था. लेकिन अब उसके प्रतिबंधों की संख्या 988 हो चुकी है.
उदाहरण के तौर पर, यूक्रेन के सीमावर्ती इलाकोंमें दो साल पहले शुरू हुए रूस के आक्रमण के बाद बच्चों ने 3000 से 5000 घंटे, जो कि चार से सात महीने के बराबर है, भूमिगत आश्रय स्थलों में बिताए हैं.
यूनिसेफ के संयुक्त राष्ट्र बालकोष में मानसिक स्वास्थ्य सहायता विशेषज्ञ ली जेम्स ने डीडब्ल्यू को बताया, "डर, आक्रोश और अपने प्रियजनों से बिछड़ने के मिश्रित प्रभाव बच्चों पर व्यापक रूप से असर डालते हैं. 40% बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं. इसके परिणाम बहुत ही व्यापक होते हैं.”
विशेषज्ञों का कहना है कि युद्ध का परिणाम लाखों लोगों के लिए भविष्य में मानसिक और मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालने वाला हो सकता है.
विकास संबंधी अनियमितताएं
यूक्रेन में कड़ी निगरानी के तहत एक संघर्ष स्थल में सामाजिक कार्यकर्ता इस बात से चिंतित हैं कि रूस यूक्रेन युद्ध की लंबी खींचतान बच्चों के विकास में बाधक बन रही है.
बच्चों की जिंदगी में इतनी मुश्किलें!
यूनिसेफ फोटो ऑफ द इयर 2023 के लिए चुनी गई तस्वीरों में बच्चों की जिंदगी के कड़वे सच से सामना होता है. खासकर संघर्ष वाले इलाकों में उनकी जिंदगी का हाल दिखाई देता है.
तस्वीर: Supratim Bhattacharjee
यूक्रेनः युद्ध के काले साये में बचपन
प्रतियोगिता जीतने वाली यह तस्वीर पोलिश फोटोग्राफर पैट्रिक याराक्स की है जिसमें पांच साल की अलीना अपने दोस्तों के साथ साइकिल चलाने की प्रैक्टिस कर रही हैं. यह फोटो उत्तर-पश्चिमी यूक्रेन में युद्ध के साये में जी रहे बच्चों की जिंदगी के एक खुशहाल पल को दिखाती है. तस्वीर लिए जाने से पहले वाली रात को ही ड्रोन हमले में पास के तेल डिपो में आग लगी थी, जिससे तस्वीर में धुआं निकलता दिख रहा है.
तस्वीर: Patryk Jaracz
अफगानिस्तानः चिनारक की खदानों से
ओलिवर वाइकेन को दूसरा स्थान मिला जिन्होंने अपनी तस्वीर में अफगानिस्तान की राजधानी काबुल के उत्तरी इलाके चिनारक की कोयला खदानों में काम करने वाले लड़कों की जिंदगी की झलक दिखाई. दस साल का यह लड़का दिनभर में चंद पैसे कमाता है. अफगानिस्तान में बाल मजदूरी की समस्या नई नहीं है लेकिन तालिबान की जीत के बाद से देश के हालात इतने बिगड़े हैं कि वहां बच्चों को कमाने के लिए काम पर जाना ही पड़ता है.
तस्वीर: Oliver Weiken
रूसः ग्रेट कोल्ड फॉरेस्ट के बच्चे
रूसी फोटोग्राफर नताल्या सप्रूनोवा को साइबेरिया में टुंड्रा और याकूतिया जंगलों में मूल निवासी इवेंकी समुदाय में बच्चों की जिंदगी दिखाने के लिए तीसरा पुरस्कार मिला. कभी रेनडियरों के साथ अकेले जिंदगी बिताने वाले इवेंकी लोगों के रहन-सहन पर सोने और हीरों का खनन करने आए लोगों से लेकर, जंगलों की कटाई और मिशनरीज का भी असर पड़ा है.
तस्वीर: Natalya Saprunova
जर्मनीः योहानेज की चार पैरों वाली बहन
2023 का ऑनरेबल मेंशन मिला जर्मनी के फोटोग्राफर मिषाएल लोवा को. जर्मनी में करीब 35,000 बच्चे और युवा, टाइप 1 डाइबिटीज से जूझ रहे हैं और उन्हें लगातार अपना ब्लड शुगर लेवल मॉनीटर करना होता है. योहानेज भी उन्हीं में से एक हैं. उनकी मदद करती है थेरेपी डॉग एन्या, जो योहानेज के ब्लड शुगर लेवल में खतरनाक उतार-चढ़ाव को सूंघ सकती है और बेल बजाकर योहानेज के माता-पिता को बताने के लिए प्रशिक्षित है
तस्वीर: Michael Löwa
अमेरिका: आपबीती बताता बच्चा
फोटोग्राफर रॉबिन हैमंड न्यूजीलैंड के रहने वाले हैं. उन्होंने अमेरिका के पांच राज्यों में बच्चों और युवाओं की तस्वीरें लीं. यहां जॉर्जिया के रहने वाले 11 साल के कॉलिन अपनी जिंदगी, मानसिक स्वास्थ्य और उन्हें चिंतित करने वाली चीजों के बारे में बात कर रहे हैं. और इस दौरान रॉबिन ने उन्हें अपने कैमरे में उतारा.
तस्वीर: Robin Hammond
सिएरा लियोनः समुद्र में समाता अस्तित्व
ब्रिटिश फोटोग्राफर टॉमी ट्रेंचर्ड ने सिएरा लियोन जाकर 8 साल के एक बच्चे एनडोले कमारा के जीवन पर जलवायु परिवर्तन के असर को तस्वीरों में समेटा. यहां एनडोले नायंगाई द्वीप स्थित अपनी झोपड़ी के किनारे पर बैठा है जिसकी दीवार तक समुद्र की ऊंची उठती लहरें पहुंचने लगी हैं. हर बार द्वीपवासियों के घर समुद्र की चपेट में आते हैं तो वह उठकर थोड़ी दूर चले जाते हैं लेकिन यह लहरें वहां भी पहुंच जाती हैं.
तस्वीर: Tommy Trenchard
भारतः पानी के नन्हें योद्धा
पश्चिम बंगाल के पुरुलिया में फोटोग्राफर सुप्रतिम भट्टाचार्जी ने कंग्साबती नदी के तट पर गड्ढा करके पीने का पानी निकाल रही एक छोटी सी लड़की को कैमरे में कैद किया है. इस इलाके में पानी के संकट ने लोगों को इस तरह के कदम उठाने पर मजबूर किया है. कुछ लोगों को पीने का पानी लेने के लिए कई किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ती है जबकि कुछ अन्य लोग नदी के किनारों पर गड्ढे करके पानी लेने पर मजबूर हैं.
तस्वीर: Supratim Bhattacharjee
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अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी में न्यूरो साइंटिस्ट क्रिस्टॉफ एनेकर ने डीडब्ल्यू को बताया कि विज्ञान इस चिंता को दूर कर सकता है. उन्होंने कहा कि तनाव भरी जिंदगी से गुजर रहे शुरुआती जीवन के लोगों में वयस्क होने पर तंत्रिका तंत्र और विकास संबंधी असामान्यताएं आ सकती हैं.
एनेकर ने समझाया, "बचपन में हुआ आघात तनाव और भय की प्रतिक्रियाओं को बदल देता है. इससे वयस्क होने पर मस्तिष्क तनाव के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाता है. उन्होंने कहा कि जिन लोगों ने बचपन में प्रतिकूल परिस्थितियां झेली होती हैं, उनमें स्ट्रेस हार्मोन ऐसा न झेलने वालों की अपेक्षा अधिक तेजी से स्रावित होता है. जिन बच्चों ने ऐसा अनुभव किया होता है, उनमें एंग्जाइटी और अवसाद के मामले और आगे चलकर अल्जाइमर जैसी बीमारी का जोखिम कहीं अधिक होता है.”
वह कहते हैं कि युद्ध क्षेत्र का अनुभव रखने वाले व्यक्तियों में पीटीएसडी का खतरा हमेशा बना रहता है, फिर चाहे वह बच्चा हो या वयस्क. कुल मिलाकर वयस्कों में तनाव का खतरा अधिक होता है क्योंकि उनमें विकास की संभावना कम होती है.
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सहारे की जरूरत
बचपन में मस्तिष्क विकास के तथाकथित संवेदनशील दौर से गुजरता है. एनेकर कहते हैं, "इस अवधि में दुख या चिंता के कारण खुद में ही सिमटना या फिर अपने परिवार से दूर होना और सामाजिक और भावनात्मक रूप से अलग-अलग होना बच्चों के विकास को गड़बड़ कर देता है.”
वह कहते हैं कि वयस्क होने पर बचपन में मिले ट्रॉमा (पीड़ा या प्रताड़ना) को पूरी तरह से भूल पाने का कोई भी प्रभावशाली तरीका अब तक नहीं है. इसीलिए यह बहुत जरूरी है कि विकास की संवेदनशील अवधि में बच्चों को तनाव वाली हर एक बात से दूर रखा जाए. जेम्स कहते हैं कि यूनिसे- यूक्रेन में हम बड़े हो रहे बच्चों के लिए उनके बचपन में मिले तनाव को काम करने के दीर्घकालिक प्रभावों पर काम कर रहे हैं.
जेम्स कहते हैं, "इनमें से कुछ उपाय सरल हैं. जैसे कि बच्चों को खेलने और दूसरों से जुड़ने के लिए एक सुरक्षित वातावरण देना उन्हें दुख और अलगाव से निपटने में मदद करना और इसके लिए उन्हें मूलभूत कौशल सिखाना. लेकिन इनमें से सबसे ज्यादा जरूरी है देखभाल करने वालों को समर्थन देना ताकि वह बच्चों के लिए एक रोल मॉडल के तौर पर उभर कर आए युद्ध के समय में देखभाल करना सबसे मुश्किल काम है. उनका तनाव कम करने का प्रभाव बच्चों पर भी पड़ेगा.”
जेम्स ने बताया कि कई ऐसे कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं जिनसे उन बच्चों और परिवारों को पहचान में सहायता मिल रही है जिन्हें अधिक व्यवहारिक मदद की जरूरत होती है.
अमीर देश जर्मनी में क्यों बढ़ रही है गरीबी
जर्मनी में गरीबों की संख्या तेजी बढ़ रही है. खासकर बच्चों में गरीबी रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है. हर पांच में से एक बच्चा गरीबी की जद में है.
तस्वीर: Michael Gstettenbauer/IMAGO
एक रिपोर्ट में सामने आई जानकारी
जर्मनी की गैर-लाभकारी कल्याणकारी संस्था 'पारिटेटिश वोह्लफ़ार्ट्सफर्बांड' ने एक
रिपोर्ट जारी की है. इसके अनुसार, देश में गरीबों की संख्या में काफी तेजी से इजाफा हुआ है. इस रिपोर्ट के नतीजे साल 2022 के डेटा पर आधारित हैं.
तस्वीर: Michael Gstettenbauer/IMAGO
देश में कितने गरीब
रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2022 में जर्मनी में करीब डेढ़ करोड़ लोग गरीबी में जी रहे थे. यानी संख्या कुल आबादी में लगभग 17 प्रतिशत लोग गरीब हैं. 2021 के मुकाबले यह संख्या एक लाख ज्यादा है.
तस्वीर: Schoening/picture alliance
गरीब बच्चों की रिकॉर्ड संख्या
रिपोर्ट कहती है कि यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी में ना सिर्फ गरीबी बढ़ी, बल्कि बच्चे खासतौर पर इससे प्रभावित पाए गए. देश में हर पांच में से एक बच्चा गरीबी से प्रभावित है.
तस्वीर: Sebastian Gollnow/dpa/picture alliance
कोरोना के बाद और बढ़ी गरीबी
2022 के आंकड़ों की तुलना महामारी के पहले के समय से करें, तो स्थितियां ज्यादा गंभीर दिखती हैं. 2019 से 2022 के बीच गरीबों की संख्या में तकरीबन 10 लाख का इजाफा हुआ. हालांकि जर्मनी में 2006 के बाद से ही गरीबी बढ़ रही है. 2006 से अब तक गरीबों की संख्या में करीब 27 लाख की वृद्धि हुई है.
रिपोर्ट के मुताबिक, कोरोना महामारी के दौरान और इसके बाद भी कई लोगों ने अपनी नौकरी खो दी. कई रिटायर हो गए. ऐसे में लोगों की आमदनी घटी और उनके पास गुजर-बसर के लिए पर्याप्त संसाधनों का अभाव हो गया. फरवरी 2022 में यूक्रेन पर हुए रूस के हमले के बाद भी महंगाई काफी बढ़ी है.
तस्वीर: Martin Wagner/IMAGO
दुनिया में कितने गरीब
वर्ल्ड बैंक के 2022 के डेटा के अनुसार, दुनिया में करीब 65 करोड़ लोग बेहद गरीबी में जी रहे हैं. यह दुनिया की कुल आबादी का लगभग आठ फीसदी हिस्सा है. दक्षिण सूडान, बुरुंडी, सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक और डेमोक्रैटिक रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो दुनिया के सबसे गरीब देशों में शामिल हैं.
तस्वीर: Eranga Jayawardena/AP/picture alliance
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हालांकि यूनिसेफ के प्रवक्ता जो इंग्लिश ने डीडब्ल्यू को बताया कि अन्य क्षेत्रों में संघर्ष में फंसे बच्चों को इस तरह का समर्थन नहीं मिल पा रहा है.
इंग्लिश ने बताया, "दुनिया भर के संघर्षों में आवश्यकता के पैमाने को देखते हुए और सामान्य रूप से मानवीय अपीलों और विशेष रूप से बाल संरक्षण की गंभीर कमी को देखते हुए कई बच्चों को वह समर्थन नहीं मिल पाता, जिसकी उन्हें आवश्यकता होती है.”
यूक्रेनी बच्चों और परिवारों के बारे में उत्तर आसानी से उपलब्ध है. गाजा, यमन और दक्षिण सूडान सहित दुनिया के कई अन्य सक्रिय युद्ध क्षेत्र में समस्या की सीमा विश्वसनीय डाटा की कमी के कारण अज्ञात है.