सबसे ज्यादा आबादी के साथ भारत के सामने आएंगी कैसी चुनौतियां
मुरली कृष्णन
२१ नवम्बर २०२२
दुनिया की आबादी आठ अरब को पार कर गई है और भारत दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बनने की ओर बढ़ रहा है. ऐसे में विशेषज्ञ उन चुनौतियों और अवसरों के बारे में बात कर रहे हैं, जो भारत के सामने आने वाले हैं.
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मानव सभ्यता के इतिहास में एक और मील का पत्थर पार हो गया है. पिछले हफ्ते मनुष्यों की आबादी आठ अरब को पार कर गई है. सात से आठ अरब होने में इंसानों को सिर्फ 12 साल लगे. इस एक अरब में भारत का योगदान सबसे ज्यादा रहा है. उसने 17.7 करोड़ लोग जोड़े हैं जबकि चीन में इस दौरान 7.3 करोड़ लोग जन्मे.
भारत की आबादी जिस तेजी से बढ़ रही है, उसे देखते हुए संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी यूएनएफपीए का अनुमान है कि अगले साल वह दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन जाएगा. 2022 में भारत की आबादी 1.41 अरब पर पहुंच चुकी है जबकि चीन की जनसंख्या 1.43 अरब है.
2050 में भारत की जनसंख्या 1.67 अरब हो जाएगी जबकिचीन 1.32 अरब पर होगा और यूएन का तो कहना है कि अगले एक अरब लोगों में चीन का योगदान नेगेटिव रहेगा और जनसंख्या की बढ़त मुख्यतया आठ देशों में केंद्रित रहेगी, जिनमें एक भारत होगा.
बात सिर्फ आंकड़ों की नहीं
संयुक्त राष्ट्र में आर्थिक और सामाजिक मामलों को देखने वालीं अवर-महासचिव लू जेनमिन कहती हैं कि ज्यादा आबादी भूख और गरीबी जैसी चुनौतियों को और गंभीर कर सकती है. जेनमिन ने कहा, "बहुत तेजी से जनसंख्या में वृद्धि गरीबी उन्मूलन, भूख और कुपोषण से लड़ाई और शिक्षा व स्वास्थ्य सुविधाओं के प्रसार को और चुनौतीपूर्ण बना देती है.”
पहले इंसान से 8 अरब तक बढ़ने का सफर
धरती पर होमो सेपिएंस यानी आधुनिक मानव करीब 3 लाख साल पहले आया. मंगलवार, 15 नवंबर को धरती पर मानव की आबादी 8 अरब को पार कर गई. आंकड़ों में देखिये इस सफर की कहानी.
तस्वीर में दिख रहे होमो इरेक्टस के रूप में मानव का धरती पर सफर करीब 18.9 लाख साल पहले शुरू हुआ.11 लाख साल पहले यह लुप्त हो गये. करीब 3 लाख साल पहले होमो सेपिएंस यानी आधुनिक मानव की उत्पत्ति हुई. वर्तमान में पृथ्वी के कोने कोने में मानव की सारी प्रजाति है वह होमो सेपिएंस है.
ईसा पूर्व 10 हजार साल तक धरती पर सिर्फ 60 लाख होमो सेपिएंस थे जो ईसा पूर्व 2,000 में 1 करोड़ और ईसा बाद पहली शताब्दी में 2.5 करोड़ तक पहुंचे. धरती पर होमो सेपिएंस की संख्या एक से एक अरब तक पहुंचने में लाखों साल लगे. मौजूदा आंकड़े बताते हैं कि सन 1803 में धरती पर एक अरब होमो सेपिएंस हो गये थे.
औद्योगिक विकास और जीवन स्तर में सुधार के चलते इंसान का विकास बड़ी तेजी से हुआ और महज 33 साल में ही एक अरब और लोग जुड़ गये. साल 1960 में दुनिया की आबादी 3 अरब हो गई.
तस्वीर: Rajanish Kakade/AP/dpa/picture alliance
15 साल बाद 4 अरब
विश्वयुद्ध के बाद के दौर में दुनिया तुलनात्मक रूप से थोड़ी शांत थी और इस दौर में इंसान की आबादी और तेजी से बढ़ी महज 15 साल में ही एक अरब लोग और जुड़ गये.
तस्वीर: Antonio Pisacreta/ROPI/picture alliance
हर 12 साल में एक अरब
पांचवें, छठे और सातवें अरब की हर सीढ़ी इंसानों ने 12 साल में पा कर ली. इस तरह से दुनिया की आबादी 1987 में पांच, 1999 में छह और 2011 में सात अरब पहुंच गई.
तस्वीर: Larry MacDougal/CANADIAN PRESS/picture alliance
11 साल बाद 8 अरब
धरती पर इस समय सबसे ज्यादा इंसान मौजूद है और सबसे कम समय में एक अरब की आबादी जुड़ गई है लेकिन इसके बाद यह समय लंबा होगा.
तस्वीर: Adekunle Ajayi/NurPhoto/picture alliance
आबादी में आधा इजाफा केवल 8 देशों से
केवल आठ देशों से ही दुनिया की आबादी में बढ़ोत्तरी का आधा हिस्सा भर जा रहा है. ये देश हैं, डेमोक्रैटिक रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो, मिस्र, इथियोपिया, भारत, नाइजीरिया, पाकिस्तान, फिलिपींस और तंजानिया. यूरोप और अमेरिका की आबादी में ज्यादा फर्क आने के आसार नहीं हैं यह थोड़ा बहुत ऊपर नीचे होगा लेकिन एशिया और अफ्रीका में इसका बढ़ना जारी रहेगा.
तस्वीर: Thomas Imo/photothek/picture alliance
चीन में आबादी का बढ़ना रुका
दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाले देश चीन में आबादी का बढ़ना अब रुक गया है, आने वाले सालों में इसके घटने के आसार हैं. अगले साल तक भारत चीन से आबादी में आगे होगा और अभी कुछ सालों तक वहां आबादी बढ़ेगी.
तस्वीर: Jia Minjie/Xinhua/dpa/picture alliance
9 अरब तक 15 साल बाद
दुनिया भर में मानव आबादी बढ़ने की जो दर है उसमें हुए बदलावों को देख कर संयुक्त राष्ट्र ने 2037 तक इसके 9 अरब तक पहुंचने अनुमान लगाया है. हालांकि इसके बाद आबादी के विकास की गति काफी धीमी पड़ जायेगी. 2080 तक दुनिया की आबादी 10.4 अरब पर पहुंचने की उम्मीद है.
तस्वीर: Adek Berry/AFP/Getty Images
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जनसंख्या विशेषज्ञ और अर्थशास्त्रियों का मानना है कि भारत के लिहाज से आंकड़ों के फेर में पड़ने के कारण असली चुनौतियों से ध्यान भटक सकता है. उनका कहना है कि विकास को समान और टिकाऊ रूप से सब तक पहुंचाने के लिए सरकार की आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक नीतियों में सुधार की ओर ध्यान देने की जरूरत है.
पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की निदेशक पूनम मुटरेजा कहती हैं, "भारत जैसे अधिक आबादी वाले देशों में सभी के लिए खुशहाल और स्वस्थ भविष्य की बेहतर योजनाएं बनाना बड़ी चुनौती है. आने वाले समय में भारत को बढ़ती और बूढ़ी होती आबादी की जरूरतें पूरी करने के लिए उपाय करने होंगे. इनमें सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाएं और सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था में सुधार जैसी बातें शामिल होंगी.”
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बुजुर्ग होती आबादी
पिछले साल भारत में बुजुर्गों की जनसंख्या 13.8 करोड़ पर थी और राष्ट्रीय सांख्यिकी विभाग के मुताबिक 2030 तक इस आयुवर्ग में 19.4 करोड़ लोग होंगे यानी 41 प्रतिशत की वृद्धि. इस तेजी से बूढ़ी होती जनसंख्या के सामने शोषण, परित्याग, अकेलापन और वित्तीय परेशानियों जैसी कई समस्याएं होंगी.
शोध दिखाते हैं कि फिलहाल 26.3 प्रतिशत बुजुर्ग आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हैं. 20.3 प्रतिशत बुजुर्ग ऐसे हैं जो आर्थिक रूप से किसी अन्य पर निर्भर हैं जबकि 53.4 फीसदी बुजुर्ग अपने बच्चों पर निर्भर हैं.
अभी तो भारत को एक युवा देश कहा जाता है. उसकी 55 प्रतिशत जनसंख्या 30 या उससे कम वर्ष की है जबकि एक चौथाई आबादी अभी 15 वर्ष की भी नहीं हुई है. विशेषज्ञ कहते हैं कि जनसांख्यिकीय अनुपात से मिलने वाले लाभ अपने आप आर्थिक लाभों में तब्दील नहीं होते और बिना प्रभावशाली नीतिनिर्माण के ये हानि में भी बदल सकते हैं. मसलन, बेरोजगारी का बढ़ना.
दुनिया के सबसे ज्यादा अनसस्टेनेबल महानगर
दुनिया के कई महानगर तेजी से बढ़ती आबादी, दूषित हवा, पानी की कमी और मौसमी परिवर्तनों से जूझ रहे हैं. इंस्टीट्यूट ऑफ इकोनॉमिक्स एंड पीस ने भारी दबाव झेलने वाले अनसस्टेनेबल महानगरों की लिस्ट तैयार की है.
तस्वीर: Sam Panthaky/AFP/Getty Images
1. दार ए सलाम
तंजानिया के इस सबसे बड़े शहर की आबादी अभी 75 लाख है. लेकिन 2050 तक यह 118 फीसदी बढ़कर 1.64 करोड़ हो सकती है. मौसमी बदलावों के कारण आने वाले बरसों में यह महानगर खूब बारिश का सामना करेगा.
तस्वीर: Xinhua/picture alliance
2. नैरोबी
केन्या की राजधानी नैरोबी में फिलहाल 52 लाख लोग रहते हैं. 2050 तक इस मेगासिटी की आबादी दोगुनी होकर 1.04 करोड़ होने का अनुमान है. जलवायु में हो रहे बदलाव नैरोबी के सामने सूखे का संकट खड़ा करेंगे.
तस्वीर: Tony Karumba/AFP/Getty Images
3. किन्शासा
डेमोक्रैटिक रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो की राजधानी किन्शासा की आबादी भी 2050 तक 84 फीसदी बढ़कर 2.9 करोड़ हो सकती है. यह महानगर सूखे से संघर्ष करने की राह पर है
तस्वीर: REUTERS
4. लागोस
नाइजीरिया की वित्तीय राजधानी कहे जाने वाले लागोस के 1.55 करोड़ बाशिंदे अभी ही बेहद दूषित हवा से जूझ रहे हैं. आने वाले 28 साल में शहर की आबादी करीब दोगुनी हो जाएगी और मौसम बेहद गर्मी और खूब बारिश लाएगा.
तस्वीर: Adeyinka Yusuf/AA/picture alliance
5. खारतूम
सूडान की राजाधानी खारतूम भी तीन दशकों के भीतर दोगुनी आबादी देखेगी. 2050 में इस शहर की जनसंख्या 1.12 करोड़ पहुंच सकती है. दूषित हवा से हांफता ये महानगर भविष्य में गर्मी और सूखे से भी जूझेगा.
तस्वीर: AFP/Getty Images
6. लुआंडा
अफ्रीकी देश अंगोला की राजधानी लुआंडा भी आबादी में 62 फीसदी इजाफा देखेगी. फिलहाल 90 लाख लोगों को रिहाइश देने वाला यह महानगर मौसमी बदलावों के कारण खूब गर्मी और खूब बारिश झेल सकता है.
तस्वीर: Manuel Luamba/DW
7. कराची
1.69 करोड़ की आबादी वाला कराची पाकिस्तान का सबसे बड़ा शहर है. 2050 तक यह तटीय महानगर ढाई करोड़ लोगों का बसेरा होगा. दूषित हवा से जूझ रहे कराची में मौसमी बदलाव खूब गर्मी और फिर खूब बारिश ला सकते हैं.
तस्वीर: IMAGO/Xinhua
8. लाहौर
पाकिस्तानी पंजाब प्रांत की राजधानी और देश का दूसरा बड़ा शहर लाहौर बीते एक दशक से भयानक वायु प्रदूषण का सामना कर रहा है. आंकड़े बताते हैं कि 2050 तक लाहौर की गर्मियां बहुत ही दुश्वार होंगी. तब 2.14 करोड़ लोगों को इससे जूझना होगा.
तस्वीर: Tanvir Shahzad/DW
9. सूरत
भारत की डायमंड सिटी कहा जाने वाला गुजरात का सूरत शहर अभी 79 लाख लोगों का बसेरा है. शहर वायु प्रदूषण की चपेट में है. आने वाले 28 साल में इस महानगर की आबादी 1.20 करोड़ होने का अनुमान है. वक्त बीतने के साथ सूरत का मौसम गीला और गर्म होता जाएगा.
तस्वीर: EatthTime (Google)
10. अहमदाबाद
गुजरात का सबसे बड़ा शहर अहमदाबाद भी 2050 तक 1.30 करोड़ लोगों का आशियाना होगा. अभी शहर की आबादी करीब 85 लाख है. मौसमी बदलाव अहमदाबाद में और ज्यादा तपिश पैदा करेंगे.
तस्वीर: Sam Panthaky/AFP/Getty Images
नंबर 11 से 18 तक
अनसस्टेनेबल मेगासिटीज की लिस्ट में अहमदाबाद के बाद हैदराबाद, कोलकाता, मुंबई, चेन्नई, दिल्ली, पुणे, बेंगलुरू और ढाका जैसे दक्षिण एशियाई महानगर हैं. दिल्ली और कोलकाता जहां बढ़ती तपिश झेलेंगे. वहीं पुणे ज्यादा बारिश झेलेगा और बाकी महानगर गर्मी और बारिश से संघर्ष करेंगे.
तस्वीर: DW
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हाल ही में जारी हुई कंफेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्रीज की रिपोर्ट कहती है कि यदि भारत के जनसांख्यिकीय लाभ को उत्पादक रूप से रोजगार में शामिल किया जाए तो विकास की संभावनाएं जोरदार होंगी, जिससे जीडीपी में बड़ी वृद्धि का लाभ मिलेगा. रिपोर्ट के मुताबिक भारत की जीडीपी अभी के 30 खरब डॉलर से से बढ़कर 2030 में 90 खरब डॉलर और 2047 तक 400 खरब डॉलर तक भी पहुंच सकती है.
युवा आबादी का लाभ
इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेज की प्रोफेसर अपराजिता चट्टोपाध्याय कहती हैं कि बेरोजगारी की समस्या तभी पैदा होगी जबकि कौशल विकास की रफ्तार जनसंख्या के अनुपात में नहीं बढ़ी. उन्होंने डॉयचे वेले को बताया, "अभी तो 7 प्रतिशत की बेरोजगारी दर इतनी चिंता की बात नहीं है. बहुत से देशों में बेरोजगारी दर इससे ज्यादा है, लेकिन आरक्षण की नीति एक चिंता की बात है जो कि एक राजनीतिक मुद्दा बन चुकी है और इसका दायरा लगातार बढ़ रहा है. ब्रेन ड्रेन (प्रतिभाशाली युवाओं का विदेश जाना) लगातार बढ़ रहा है और चार में तीन भारतीय विदेश जा रहे हैं, जो विकासशील देशों में सबसे ज्यादा है. अगर यह जारी रहता है तो भारत का भविष्य विनाशकारी होगा.”
कई शोध कहते हैं कि भारतीयों के विदेश जाने की संख्या और प्रवृत्ति में तेजी से वृद्धि हुई है. 2014 के बाद से 23 हजार करोड़पति भारत छोड़कर विदेश चले गए हैं. सिर्फ 2019 में सात हजार करोड़पतियों ने भारत को अलविदा कहा जिससे भारत को टैक्स रेवन्यू में अरबों डॉलर का नुकसान हुआ. 2015 के बाद नौ लाख भारतीयों ने भारत की नागरिकता का त्याग किया है.
यूएन की एक रिपोर्ट बताती है कि 2000 से 2020 के बीच भारत ने प्रवासन का सबसे तेज दौर देखा है. इन दो दशकों में एक करोड़ से ज्यादा लोग भारत छोड़कर चले गए. इस वक्त लगभग 3 करोड़ भारतीय विदेशों में रह रहे हैं.
यूएनएफपीए के मुताबिक भारत की जनसंख्या वृद्धि की रफ्तार अब स्थिर हो रही है जो इस बात का संकेत है कि देश की जनसंख्या और स्वास्थ्य नीतियां काम कर रहे हैं. भारत में जन्मदर 2.2 से घटकर 2 पर आ गई है. विशेषज्ञों का मानना है कि दीर्घकालिक और टिकाऊ विकास के लिए किसी भी देश की जन्मदर 2.1 होनी चाहिए.